महेश्वर, खरगोन
महेश्वर Maheshwar | |
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नगर | |
महेश्वर में एक सड़क | |
ज़िला | खरगोन ज़िला |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
देश | भारत |
ऊँचाई | 154 मी (505 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 30,000 |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, निमाड़ी |
समय मण्डल | IST (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 451224 |
टेलीफोन कोड | 07283 |
वाहन पंजीकरण | MP-10 |
वेबसाइट | www |
महेश्वर (Maheshwar) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के खरगोन ज़िले में स्थित एक नगर है।[1][2]
धार्मिक मान्यता
[संपादित करें]महेश्वर शहर की स्थापना हैहयवंशी राजा सहस्रार्जुन ने की थी। मान्यता है कि इन्होंने रावण को पराजित किया था। राज राजेश्वर सहस्त्रार्जुन ने अपनी ५०० रानियों के साथ नर्मदा नदी में जलक्रीड़ा करते हुए नदी के बहाव को अपनी एक हजार भुजाओं से रोक लिया था। उसी समय रावण अपने पुष्पक विमान में आकाश मार्ग से वहां पहुंचे व सूखी नदी के स्थान को देखकर रावण की शिवपूजा करने की इच्छा मन में हुई। जब रावण ने बालू से शिवलिंग बनाकर पूजा शुरू की तो राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन जी ने जलक्रीड़ा समाप्त होने के उपरांत जल छोड़ दिया। इस कारण से रावण की पूजा पूरी नहीं हो सकी व वह पानी में बहने लगा। इस पर क्रोधित हो जब राजराजेश्वर से रावण ने युद्ध करना चाहा तो रावण को हार स्वीकार करनी पड़ी व राज राजेश्वर सहस्त्रार्जुन ने उसे बंदी बना लिया। पुराणों में वर्णन है की राज राजेश्वर सहस्त्रार्जुन की रानियाँ रावण के दस शीशों पर दीपक जलाती थीं क्योंकि दीपक राज राजेश्वर सहस्त्रार्जुन को अति प्रिय थे। आज भी महेश्वर में स्थित श्री राज राजेश्वर मंदिर में अखंड ११ दीपक ज्योति पुरातनकाल से प्रज्जवल्लित है व मंदिर में श्रद्धालु देसी घी- प्रसाद के साथ अवश्य चढातें है। श्री राज राजेश्वर सहस्त्रार्जुन जी के वंशज हैहयवंशी क्षत्रिय समुदाय के लोग महेश्वर को तीर्थ स्थल मानते है। ऋषि जमदग्नि को प्रताड़ित करने के कारण उनके पुत्र परषुराम से युद्ध करना पड़ा, राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र अवतार थे दोनों का युद्ध खत्म होने को नहीं आ रहा था, तब भगवान दत्तात्रेय के सम्मुख सहस्त्रार्जुन जी ने पश्चाताप करने का प्रस्ताब रखा। भगवान दत्तात्रेय के कहने पर राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन महेश्वर में स्थित भगवान शंकर के मंदिर में स्थापित शिवलिंग में समा गए। महेश्वर का रामायण और महाभारत में भी उल्लेख है। बहुत ही सुन्दर स्थान है यहां जाने से मन व चित्त को शांति मिलती है
विवरण
[संपादित करें]नर्मदा नदी के किनारे बसा यह शहर अपने बहुत ही सुंदर व भव्य घाट तथा माहेश्वरी साड़ियों के लिये प्रसिद्ध है। घाट पर अत्यंत कलात्मक मंदिर हैं जिनमे से राजराजेश्वर मंदिर प्रमुख है। आदिगुरु शंकराचार्य तथा पंडित मण्डन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ यहीं हुआ था। इस शहर को महिष्मती नाम से भी जाना जाता था। कालांतर में यह महान देवी अहिल्याबाई होल्कर की भी राजधानी रहा है। देवी अहिल्याबाई होलकर के कालखंड में बनाए गए यहाँ के घाट सुंदर हैं और इनका प्रतिबिंब नदी में और खूबसूरत दिखाई देता है।
महेश्वर इंदौर से ही सबसे नजदीक है। इंदौर विमानतल महेश्वर से 91 किलोमीटर की दूरी पर है। इंदौर से 90 की.मी. की दुरी पर "नर्मदा नदी" के किनारे बसा यह खुबशुरत पर्यटन स्थल म.प्र. शासन द्वारा "पवित्र नगरी" का दर्जा प्राप्त है, अपने आप में कला, धार्मिक, संस्कृतिक, व एतिहासिक महत्व को समेटे यह शहर लगभग 2500 वर्ष पुराना हैं। मूलतः यह "देवी अहिल्या" के कुशल शासनकाल और उन्ही के कार्यकाल (1764-1795) में हैदराबादी बुनकरों द्वारा बनाना शुरू की गयी "महेश्वरी साड़ी" के लिए आज देश-विदेश में जाना जा रहा हैं। यहाँ खत्री,मोमिन व बलाई बुनकरों द्वारा सुंदर बुनाई कार्य पारंपरिक करघे पर किया जाता है। अपने धार्मिक महत्त्व में यह शहर काशी के समान भगवान शिव की नगरी है, मंदिरों और शिवालयो की निर्माण श्रंखला के लिए इसे "गुप्त काशी" कहा गया है। अपने पोराणिक महत्व में स्कंध पुराण, रेवा खंड, तथा वायु पुराण आदि के नर्मदा रहस्य में इसका "महिष्मति" नाम से विशेष उल्लेख है। ऐतिहासिक महत्त्व में यह शहर भारतीय संस्कृति में स्थान रखने वाले राजा महिष्मान, राजा सहस्त्रबाहू (जिन्होंने रावण को बंदी बनाया था) जैसे राजाओ और वीर पुरुषो की राजधानी रहा है, बाद में होलकर वंश के कार्यकाल में इसे प्रमुखता प्राप्त हुई।
लम्बा-चौड़ा नर्मदा तट एवं उस पर बने अनेको सुन्दर घाट एवं पाषाण कला का सुन्दर चित्र दिखने वाला "किला" इस शहर का प्रमुख पर्यटन आकर्षण है। समय-समय पर इस शहर की गोद में मनाये जाने वाले तीज-त्यौहार, उत्सव-पर्व इस शहर की रंगत में चार चाँद लगाते है, जिनमे शिवरात्रि स्नान, निमाड़ उत्सव, लोकपर्व गणगौर, नवरात्री, गंगादशमी, नर्मदा जयंती, अहिल्या जयंती एवं श्रावण माह के अंतिम सोमवार को भगवान काशी विश्वनाथ के नगर भ्रमण की "शाही सवारी" प्रमुख है।
दर्शनीय
[संपादित करें]- राजगद्दी और रजवाड़ा - महेश्वर किले के अंदर रानी अहिल्याबाई की राजगद्दी पर बैठी पर एक प्रतिमा रखी गई है।
- मंदिर - महेश्वर में घाट के आसपास कालेश्वर, राजराजेश्वर, विठ्ठलेश्वर और अहिलेश्वर मंदिर हैं।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
- ↑ "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293