राधेश्याम कथावाचक
राधेश्याम कथावाचक (25 नवम्बर 1890 - 26 अगस्त 1963)[1] हिन्दी साहित्यकार थे। पारसी रंगमंच शैली के हिन्दी नाटककारों में इनका प्रमुख नाम है। इन्होंने लोक-नाट्य-शैली के आधार पर खड़ीबोली में रामायण की कथा को २५ खण्डों में पद्यबद्ध किया। इस कृति ने राधेश्याम रामायण के नाम से विशेष प्रसिद्धि प्राप्त की। हिन्दी भाषा-भाषीप्रदेशों, विशेषतया उत्तर प्रदेश के ग्राम-ग्राम में, इसका प्रचार हुआ। कथावाचकों ने अपने कथावाचन तथा रामलीला करनेवालों ने रामलीला के अभिनय के लिए इसे अपनाया। इसके कई अंशों के ग्रामोफोन रिकार्ड बने। सामान्य जनता में उनकी ख्याति रामकथा की इनकी विशिष्ट शैली के कारण फैली। अल्फ्रेड नाटक कम्पनी से जुड़कर उन्होंने वीर अभिमन्यु, भक्त प्रहलाद, श्रीकृष्णावतार आदि अनेक नाटक लिखे। अपनी जनप्रिय रचनाओं के द्वारा हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में इनका महत्वपूर्ण योगदान है।
संक्षिप्त परिचय
[संपादित करें]राधेश्याम कथावाचक का जन्म 25 नवम्बर 1890 को संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध में बरेली शहर के बिहारीपुर मोहल्ले में पण्डित बांकेलाल के यहाँ हुआ था। केवल 17-18 की आयु में ही उन्होंने सहज भाव से राधेश्याम रामायण की रचना कर ली थी। यह रामायण अपनी मधुर गायन शैली के कारण शहर कस्बे से लेकर गाँव-गाँव और घर-घर आम जनता में इतनी अधिक लोकप्रिय हुई कि उनके जीवनकाल में ही उसकी हिन्दी-उर्दू में कुल मिलाकर पौने दो करोड़ से ज्यादा प्रतियाँ छपकर बिक चुकी थीं। रामकथा वाचन की शैली पर मुग्ध होकर मोतीलाल नेहरू ने उन्हें इलाहाबाद अपने निवास पर बुला कर चालीस दिनों तक कथा सुनी थी। 1922 के लाहौर विश्व धर्म सम्मेलन का शुभारम्भ उन्हीं के लिखे व गाये मंगलाचरण से हुआ था। राधेश्याम कथावाचक नेमहारानी लक्ष्मीबाई और कृष्ण-सुदामा जैसी फिल्मों के लिये गीत भी लिखे। महामना मदनमोहन मालवीय उनके गुरु थे तो पृथ्वीराज कपूर अभिन्न मित्र, जबकि घनश्यामदास बिड़ला उनके परम प्रशंसक थे। स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने भी उन्हें नई दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में आमन्त्रित कर उनसे पंद्रह दिनों तक रामकथा का आनन्द लिया था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु धन जुटाने महामना जब बरेली पधारे तो राधेश्याम कथावाचक ने उनको अपनी साल भर की कमाई उन्हें दान दे दी थी। 26 अगस्त 1963 को अपनी मृत्यु से पूर्व वे अपनी आत्मकथा भी मेरा नाटककाल नाम से लिख गये थे।[2]
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स में हिन्दी की सहायक प्रोफेसर पामेला के अनुसार राधेश्याम कथावाचक ने हिन्दी भाषा को एक विशिष्ट शैली की रामायण लिख कर काफी समृद्ध किया। वे इतने सधे हुए नाटककार थे कि उनके नाटकों पर प्रतिबन्ध लगाने का कोई आधार ब्रिटिश राज में अंग्रेजों को भी नहीं मिला।[3] पामेला लोथस्पाइच अपने शोध ‘द राधेश्याम रामायण एण्ड संस्कृटाइज़ेशन ऑफ खड़ी बोली‘ में वे 1939 से 1959 के बीच आए ‘राधेश्याम रामायण’ के संस्करणों में हिंदी-उर्दू ज़बान को शुद्ध हिंदी की ओर खींचने की कोशिश का जिक्र करती हैं. उनका मानना है कि अगर इसे 'हिंदू राष्ट्रवाद' से प्रेरित न भी माना जाए तो भी पुनर्लेखन के मूल में हिंदी भाषा-आंदोलन का असर ज़रूर हो सकता है. इससे उस दौर में भाषाई शुद्धता के बढ़ते आग्रह और दबाव को भी समझने में मदद मिलती है. अशोक वाटिका खण्ड के एक दोहे में फेरबदल से इस बात को आसानी से समझ सकते हैं- ‘इत्तिफाक़िया नज़र से गुज़रा एक मुक़ाम’ बाद के संस्करणों में ‘अकस्मात देखा तभी एक मनोहर धाम‘ हो गया है.
सन् १९१४ में इन्होंने पारसी नाटक कंपनी न्यू एल्फ्रेड कम्पनी के लिए अपना प्रसिद्ध नाटक वीर अभिमन्यु लिखा। इस नाटक की ख्याति से व्यावसायिक कंपनियों का ध्यान सुरुचिपूर्ण पौराणिक नाटकों की ओर गया। अभी तक इनके रंगमंच पर प्रायः फारसी एवं अंग्रेजी प्रेमाख्यानों के आधार पर निर्मित कुरुचिपूर्ण नाटकों का ही अभिनय किया जाता था, जिनमें अशिष्ट एवं अश्लील हास्य सामग्री के साथ प्रेम के वासनाजनित बाजारू ढंग का ही चित्रण होता था। इन कंपनियों का उद्देश्य जनसाधारण की निम्नवृत्तियों को उभारकर धनोपार्जन करना था। राधेश्याम कथावाचक तथा नारायण प्रसाद 'बेताब' जैसे लेखकों को ही यह श्रेय है कि इन्होंने सुरुचिपूर्ण आदर्शवादी हिन्दी पौराणिक नाटकों के द्वारा जनसाधारण को रुचि को परिष्कृत एवं परिमार्जित करने का प्रयास किया। कथावाचक जी ने इन कंपनियों के लिए लगभग एक दर्जन नाटक लिखे जिनमें श्रीकृष्णावतार, रुक्मिणीमंगल, ईश्वरभक्ति, द्रौपदी स्वयंवर, परिवर्तन आदि नाटकों को रंगमंचीय दृष्टि से विशेष सफलता मिली। दूसरी पारसी कंपनी 'सूर विजय' के लिये लिखे हुए उषा अनिरुद्ध ने वीर अभिमन्यु नाटक के समान ही ख्याति प्राप्त की।
इन नाटकों में जनता के नैतिक स्तर को उठाने तथा रुचि का परिष्कार करने का प्रयास तो था परन्तु अन्य सब बातों में पारसी रंगमंचीय परम्पराओं का ही पालन किया गया था, जैसे घटना वैचित्र्ययुक्त रोमांचकारी दृश्यों का विधानन, पद्यप्रधान संवाद, लययुक्त गद्य तथा अतिनाटकीय प्रसंगों की योजना आदि प्रायः ज्यों की त्यों इनमें भी विद्यमान थी।
26 अगस्त 1963 को 73 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।[2]
कृतियाँ
[संपादित करें]राधेश्याम कथावाचक ने अपने जीवनकाल में विपुल लेखन किया था। लगभग स्वयं की लिखी 57 पुस्तकें तथा 175 से अधिक पुस्तकों का सम्पादन एवं प्रकाशन करके राधेश्याम पुस्तकालय (प्रेस) को ऊंचाइयों तक पहुँचाया। अपने जीवन के लगभग 45 वर्षों तक कथावाचन एवं नाट्यलेखन-मंचन में भारत के सिरमौर बने रहे। आपने कथावाचन की जो शैली विकसित की उसे राधेश्याम छन्द (तजऱ् राधेश्याम) के रूप में प्रसिद्धि मिली। खड़ी बोली में लिखी रामायण का प्रयोग सफल रहा। राधेश्याम रामायण उनके जीवनकाल में ही लगभग सवा करोड़ परिवारों में पहुंच चुकी थी।
राधेश्याम कथावाचक ने रामायण के अतिरिक्त अनेक नाटक भी लिखे। एक समय ऐसा भी था जब उनके नाटकों ने पेशावर, लाहौर और अमृतसर से लेकर दिल्ली, जोधपुर, बंबई, मद्रास और ढाका तक पूरे हिन्दुस्तान में धूम मचा रक्खी थी। भक्त प्रहलाद नाटक में पिता के आदेश का उल्लंघन करने के बहाने उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन का सफल सन्देश दिया तथा हिरण्यकश्यप के दमन व अत्याचार की तुलना ब्रिटिश शासकों से की।[3] उनकी प्रमुख नाट्य-कृतियाँ और आत्मकथा निम्न हैं:[2]
- वीर अभिमन्यु -1915,
- श्रवणकुमार -1916,
- परमभक्त प्रह्लाद -1917,
- परिवर्तन -1917,
- श्रीकृष्ण अवतार -1926,
- रुक्मिणी मंगल -1927,
- मशरिकी हूर -1927,
- महर्षि वाल्मीकि -1939,
- देवर्षि नारद -1961,
- उद्धार और आज़ादी
- मेरा नाटक काल 1957 (आत्मकथा)
इनकी कृतियाँ साहित्यिक दृष्टि से भले ही ये उच्चस्तरीय न हों किन्तु जनप्रिय रचनाओं के द्वारा हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में इनका महत्वपूर्ण योगदान है।
https://m.sahityakunj.net/entries/view/ranmanchiy-drishitkon-aur-radhesyam-kathavachak-ke-naatak
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- राधेश्याम कथावाचक : जिन्होंने रामलीला को नया आधार ग्रंथ दिया Archived 2020-09-19 at the वेबैक मशीन
- राधेश्याम रामायण (सम्पूर्ण 25 भाग) - विश्व पुस्तक सूची में
- बृहत सूक्ति कोश भाग-2 - श्याम बहादुर वर्मा प्रभात प्रकाशन अभिगमन तिथि: 27 दिसम्बर 2013
https://www.apnimaati.com/2021/11/blog-post_0.html?m=1 Dr Nitin Sethi
- ↑ वर्मा श्याम बहादुर, बृहत सूक्ति कोश भाग-2 प्रभात प्रकाशन 2009 ISBN 8173151695, पृष्ठ: 539, अभिगमन तिथि: 27 दिसम्बर 2013
- ↑ अ आ इ शीर्ष कथावाचक और रंगकर्मी पंडित राधेश्याम Archived 2018-02-12 at the वेबैक मशीन 24 नवम्बर 2012 दैनिक ट्रिब्यून, अभिगमन तिथि: 27 दिसम्बर 2013
- ↑ अ आ हिन्दी दिवस 14 सितम्बर को: राधेश्याम कथावाचक Archived 2013-12-27 at the वेबैक मशीन 13 दिसम्बर 2011, हिन्दुस्तान लाइव, अभिगमन तिथि: 27 दिसम्बर 2013