खण्डखाद्यक
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खण्डखाद्यक ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित खगोलशास्त्र (ज्योतिष) ग्रन्थ है। इसकी रचना ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त के बाद (६६५ ई में) हुई।
खण्डखाद्यक के दो भाग हैं-
- (१) पूर्वखण्डखाद्यक - इसमें ९ अध्याय हैं। इसमें ब्रह्मगुप्त, आर्यभट द्वारा दिये गये खगोलीय नियतांकों का ही उपयोग करते हैं और आर्यभट की अर्धरातिका प्रणाली का उपयोग करते हैं किन्तु अपेक्षाकृत अधिक सरल नियम प्रतिपादित किये हैं।
- (२) उत्तरखण्डखाद्यक - इसमें ६ अध्याय हैं। इसमें ब्रह्मगुप्त ने कई उन्नत नियम बताये हैं जो पहले उपलब्ध नहीं हैं। इस दृष्टि से यह भाग ज्योतिष के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय प्रगति मानी जाती है। इनमें से कुछ नियम ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त में भी दिये गये हैं।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- The Khandakhadyaka of Brahmagupta (भट्टोत्पल टीका सहित) (गूगल पुस्तक ; अनुवादक : बीना चटर्जी)
- Khandakhadyaka, An Astronomical Treatise (पृथूदक स्वामी द्वारा रचित 'खण्डखाद्यकविवरण' नामक टीका सहित ; सम्पादक- प्रबोधचन्द्र सेनगुप्त)
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