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रमज़ान

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رمضان
रमदान
बहरैन के शहर मनामा में शाम के समय और खूबसूरत वर्धमान और रमदान माह का आरम्भ।
अनुयायीमुस्लिम
प्रकारपान्थिक
उत्सवसामूहिक इफ्तार और सामूहिक नमाज़ (उपासना व प्रार्थना)
अनुष्ठान
शुरुआत1 रमज़ान का महीना
अंत29, या 30 रमज़ान
तिथिइस्लामी कैलेण्डर (चान्द्रमान) के अनुसार बदलता है।
आवृत्तिप्रत्येक 12 चन्द्रमा (चान्द्रमान महीने)
संबंधितईद उल-फ़ित्र, लैलतुल क़द्र

इस्लामी कैलेंडर

  1. मुहर्रम
  2. सफ़र
  3. रबी अल-अव्वल
  4. रबी अल-थानी
  5. जमाद अल-अव्वल
  6. जमाद अल-थानी
  7. रजब
  8. शआबान
  9. रमजा़न
  10. शव्वाल
  11. ज़ु अल-क़ादा
  12. ज़ु अल-हज्जा
रमज़ान का चंद्रमा

रमज़ान या रमदान (उर्दू - अरबी - फ़ारसी : رمضان) इस्लामी पंचांग का नौवाँ महीना है। मुस्लिम समुदाय इस महीने को परम पवित्र मानता है।

इस माह की विशेषताएँ
  • महीने भर के रोज़े (उपवास) रखना
  • रात में तरावीह की नमाज़ पढना
  • कुरान तिलावत (पारायण) करना
  • एतेकाफ़ बैठना, यानी गाँव और लोगों की अभ्युन्नती व कल्याण के लिये अल्लाह से दुआ (प्रार्थना) करते हुवे मौन व्रत रखना
  • ज़कात देना
  • दान करना
  • अल्लाह का धन्यवाद अदा करना। अल्लाह का धन्यवाद अदा करते हुवे इस महीने के गुजरने के बाद शव्वाल (इस्लामी पंचांग का दसवां महीना) की पहली तिथि को ईद उल-फ़ित्र मनाते हैं।

इत्यादी को प्रमुख माना जाता है। कुल मिलाकार पुण्य कार्य करने को प्राधान्यता दी जाती है। इसी लिये इस माह को नेकियों और इबादतों का महीना यानी पुण्य और उपासना का माह माना जाता है।

रमज़ान और कुरान का अवतरण

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मुसलमानों के विश्वास के अनुसार इस महीने की 23वीं रात शब-ए-क़द्र को कुरान का नुज़ूल (अवतरण) हुआ। इसी लिये, इस महीने में क़ुरान को अधिक पढ़ना पुण्यकार्य माना जाता है। तरावीह की नमाज़ में महीना भर कुरान का पठन किया जाता है। जिस से कुरान पढ़ना न आने वालों को कुरान सुनने का अवसर अवश्य मिलता है।[1]

महत्वपूर्ण तिथियाँ

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ग्रेगोरियन कैलेण्डर अनुसार 1938 और 2038 के बीच रमज़ान की तिथि.

रमजान की पहली और आखिरी तारीख चांद्रमान इस्लामी कैलेंडर द्वारा निर्धारित की जाती है। [2]

हिलाल (वर्धमान चाँद), देख कर रमज़ान मास शुरू किया जाता है।

लैलतुल क़द्र

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लैलतुल क़द्र को वर्ष की सबसे पवित्र रात माना जाता है। आम तौर पर माना जाता है कि रमजान के आखिरी दस दिनों के दौरान एक विषम संख्या वाली रात होती है; दाऊदी बोहरा का मानना है कि शब-ए-क़द्र रमजान के 23वीं रात है।

क़ुरआन में लैलतुल-क़द्र (शबे-क़द्र)

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“निःसंदेह हमने इस (क़ुरआन) को क़द्र की रात में उतारा है। और तुम्हें क्या मालूम कि क़द्र की रात क्या हैॽ क़द्र की रात हज़ार महीने से उत्तम है। उसमें फ़रिश्ते और रूह (जिब्रील) अपने रब की आज्ञा से उतरते हैं हर महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए। वह पूर्णतः शान्ति की रात है जो फ़ज्र (उषाकाल) के उदय होने तक रहती है।” [क़ुरआन, सूरतुल-क़द्र :97:1-5]

ईद उल-फ़ित्र (अरबी: عيد الفطر) है, जो रमज़ान माह के अन्त और शव्वाल माह के पहले दिन मनाई जाती है. रमज़ान के आखरी दिन चाँद (हिलाल) देख कर अगले दिन ईद घोषित किया जाता है. यानी नया चाँद देख कर किया जाता है. अगर अगर चन्द्रमा का दर्शन नहीं हो पाया तो उपवास के तीस दिनों के पूरा होने के बाद घोषित किया जाता है।

रमज़ान और उपवास (रोज़ा)

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रमजान का महीना कभी 29 दिन का तो कभी 30 दिन का होता है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग उपवास रखते हैं। उपवास को अरबी में "सौम" कहा जाता है, इसलिए इस मास को अरबी में माह-ए-सियाम भी कहते हैं। फ़ारसी में उपवास को रोज़ा कहते हैं। भारत के मुसलिम समुदाय पर फ़ारसी प्रभाव ज़्यादा होने के कारण उपवास को फ़ारसी शब्द ही उपयोग किया जाता है।

उपवास के दिन फ़ज्र की नमाज़ से पहले खाने के सेवन को सुहूर या सेहरी कहते हैं। दिन भर न कुछ खाते हैं न पीते हैं। शाम को सूर्यास्तमय के बाद रोज़ा खोल कर खाते हैं जिसे इफ़्तारी कहते हैं।[3]

रमज़ान और इत्यादी बातें

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मुस्लिम समुदाय में रमजान को लेकर निम्न बातें अक्सर देखी जाती हैं।

  • रमज़ान को नेकियों या पुन्यकार्यों का मौसम-ए-बहार (बसंत) कहा गया है। रमजान को नेकियों का मौसम भी कहा जाता है। इस महीने में मुस्लमान अल्लाह की इबादत (उपासना) ज्यादा करता है। अपने परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए उपासना के साथ, कुरआन परायण, दान धर्म करता है।
  • यह महीना समाज के गरीब और जरूरतमंद बंदों के साथ हमदर्दी का है। इस महीने में रोजादार को इफ्तार कराने वाले के गुनाह माफ हो जाते हैं। पैगम्बर मोहम्मद सल्ल. से आपके किसीसहाबी (साथी) ने पूछा- अगर हममें से किसी के पास इतनी गुंजाइश न हो क्या करें। तो हज़रत मुहम्मद ने जवाब दिया कि एक खजूर या पानी से ही इफ्तार करा दिया जाए।
  • यह महीना मुस्तहिक लोगों की मदद करने का महीना है। रमजान के तअल्लुक से हमें बेशुमार हदीसें मिलती हैं और हम पढ़ते और सुनते रहते हैं लेकिन क्या हम इस पर अमल भी करते हैं। ईमानदारी के साथ हम अपना जायजा लें कि क्या वाकई हम लोग मोहताजों और नादार लोगों की वैसी ही मदद करते हैं जैसी करनी चाहिए? सिर्फ सदकए फित्र देकर हम यह समझते हैं कि हमने अपना हक अदा कर दिया है।
  • जब अल्लाह की राह में देने की बात आती है तो हमें कंजूसी नहीं करना चाहिए। अल्लाह की राह में खर्च करना अफज़ल है। ग़रीब चाहे वह अन्य धर्म के क्यों न हो, उनकी मदद करने की शिक्षा दीगयी है। दूसरों के काम आना भी एक इबादत समझी जाती है।
  • ज़कात, सदक़ा, फ़ित्रा, खैर ख़ैरात, ग़रीबों की मदद, दोस्त अहबाब में जो ज़रुरतमंद हैं उनकी मदद करना ज़रूरी समझा और माना जाता है।
  • अपनी ज़रूरीयात को कम करना और दूसरों की ज़रूरीयात को पूरा करना अपने गुनाहों को कम और नेकियों को ज़्यादा करदेता है।
  • मुहम्मद (सल्ल) ने फरमाया है जो शख्स नमाज के रोजे ईमान और एहतेसाब (अपने जायजे के साथ) रखे उसके सब पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएँगे। रोजा हमें जब्ते नफ्स (खुद पर काबू रखने) की तरबियत देता है। हममें परहेजगारी पैदा करता है। लेकिन अब जैसे ही माहे रमजान आने वाला होता है, लोगों के जहन में तरह-तरह के चटपटे और मजेदार खाने का तसव्वुर आ जाता है।
क्या हैं सहरी और इफ़्तार

सूर्योदय फ़ज्र की नमाज़ की अज़ान से पहले कुछ खान पान कर लेते हैं, खजूर या अन्य मनपसंद चीज खाई जाती है जिसे सहरी कहा जाता है. वहीं, इफ़तार सूर्य अस्त होने के बाद इफ्तार किया जाता है. [4]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. "रमज़ान और कुरान". NDTV Hindi. मूल से से 17 अप्रैल 2020 को पुरालेखित।. {{cite web}}: Cite has empty unknown parameter: |dead-url= (help)
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; AlJazeera नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  3. "रमज़ान में रोज़ा रखने से शरीर पर क्या पड़ता है असर?". BBC Hindi. {{cite web}}: Cite has empty unknown parameter: |dead-url= (help)
  4. "Significance Of Sehri And Irtaar : क्या हैं सहरी और इफ्तार जो रोजे में करते हैं मुसलमान". Independent News. अभिगमन तिथि: 23 अप्रैल 2020.

बाहरी कड़ियाँ

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रमज़ान के बारे में, विकिपीडिया के बन्धुप्रकल्पों पर और जाने:
शब्दकोषीय परिभाषाएं
पाठ्य पुस्तकें
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