एतिकाफ़

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एतिकाफ़ (एतकाफ, इंग्लिश: Iʿtikāf) अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है ठहर जाना और ख़ुद को रोक लेने के हैं। इस्लामी शरीयत की शब्दावली में एतिकाफ़ रमज़ान के आख़िरी अशरा (दस दिन) में इबादत (उपासना) के मक़सद से मस्जिद मैं ठहरे रहने को कहते हैं।[1]

विवरण :

नगर में से कोई एक एतिकाफ करले तो सबकी तरफ से हो जाता है, घनी आबादी के कारण मौहल्ले से किसी एक का करना ज़रूरी बताया जाता है।

क्यूँ करते हैं एतिकाफ़?[संपादित करें]

क़ुरआन में बयान शबेक़द्र की रात को मुस्लिम समुदाय में रमज़ान की आखरी दस रातों में होने की मान्यता है। इस लिए आस्थावान मुसलमान लगातार दस दिन मस्जिद में रह कर रात दिन इबादत[2] करते हैं जिस से वो रात किसी भी दिन हो, वो दिन उपासना से चूक न जाएं।

एतिकाफ के मक़सद की रात क़ुरआन में[संपादित करें]

“निःसंदेह हमने इस (क़ुरआन) को क़द्र की रात में उतारा है। और तुम्हें क्या मालूम कि क़द्र की रात क्या हैॽ क़द्र की रात हज़ार महीने से उत्तम है। उसमें फ़रिश्ते और रूह (जिब्रील) अपने रब की आज्ञा से उतरते हैं हर महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए। वह पूर्णतः शान्ति की रात है जो फ़ज्र (उषाकाल) के उदय होने तक रहती है।” [ क़ुरआन, सूरतुल-क़द्र :97:1-5]

एतिकाफ़ का आदेश क़ुरआन में[संपादित करें]

”(ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब हमने ख़ानए काबा को लोगों के सवाब और पनाह की जगह क़रार दी और हुक्म दिया गया कि इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल से अहद व पैमान लिया कि मेरे (उस) घर को तवाफ़ और एतिकाफ़ और रूकू और सजदा करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखो" (क़ुरआन 2:125)“

एतिकाफ़ हदीस में[संपादित करें]

मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने एक बार पहले रमजान से लेकर रमजान की बीसवीं तक एतिकाफ़ करने के बाद कहा: मैं ने शबे क़द्र की तलाश के लिए रमजान के पहले असरे(दस दिन) का एतिकाफ़ (मस्जिद में रात दिन इबादत करना) किया फिर बीच के अशरे का एतिकाफ़ किया फिर मुझे बताया गया कि शबे कदर आखरी असरे में है सो तुम में से जो शख्स मेरे साथ एतिकाफ़ करना चाहे वह कर ले। (सही मुस्लिम, पृष्ठ 594, हदीस 1168)
’’मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की बीवी आईशा से रिवायत है कि मुहम्मद रमज़ान उल-मुबारक के आख़िरी अशरे (10 दिन) में एतिकाफ़ किया करते थे यहां तक कि आप का विसाल हुआ। फिर आपके बाद आपकी अजवाज-ए-मतहरात (बीवीयां एतिकाफ़ करती रहीं।' ये हदीसमु त्तफ़िक़ अलैह है।

एतिकाफ़ की शर्तें[संपादित करें]

  • मर्दों का एतिकाफ़ मस्जिद में ही होगा
  • महिलाओं का एतकाफ घर पर एकांत में होगा।[3]
  • ऐसी मस्जिद है जहां मुअज़्ज़न और इमाम मुक़र्रर हो और इस में पाँच वक़्त की नमाज़ें या कुछ नमाज़ें जमात के साथ पढ़ी जाती हूँ।
  • 19 रमज़ान को जब बीसवी तरावीह की रात शुरु होगी अर्थात सूर्यास्त से पहले पहले मस्जिद में पहुंच जाये
  • वहाँ शौच आदि की व्यवस्था न हो तो उसके लिए बाहर कहीं या घर आ सकता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर[मृत कड़ियाँ]
  2. "एतिकाफ रमज़ान में".
  3. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर[मृत कड़ियाँ]