सामग्री पर जाएँ

इस्रा और मेराज

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(शब-ए-मेराज से अनुप्रेषित)
एक शृंखला का हिस्सा
मुहम्मद
Muhammad
tinyx28px
इस्लाम प्रवेशद्वार
tinyx28px
मुहम्मद प्रवेशद्वार

इसरा और मेराज (अरबी: الإسراء والمعراج‎‎, al-’Isrā’ wal-Mi‘rāj) रात के सफ़र के दो हिस्सों को कहा जाता है। इस रात मुहम्मद के दो सफ़र रहे, (1) मक्का से अल - अक्सा फिर वहां से सात आसमानों की सैर करते अल्लाह के सामने हाज़िर होकर मिले। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार रसूल मुहम्मद 621 ई में रजब की 27वीं रात को आसमानी सफ़र किये। कई रिवायतों के अनुसार इनका सफ़र जिस्मानी था कई रिवायतों के अनुसार खुद का रिश्ता था। रिवायतों के मुताबिक यह भी मानना है कि इनका सफ़र एक सवारी पर हुआ। लेकिन लोग इस बुर्राक़ को एक जानवर का रूप समझने लगे।

इस अवसर को ले कर मुस्लिम समुदाय इस इसरा और मेराज [1]को "शब् ए मेराज[2]" के नाम से त्यौहार मनाता है। जब कि इस त्यौहार मनाने का कोई रिवाज नहीं है। लेकिन मुहम्मद के इस आसमानी सफ़र को लेकर अहमियत देते हुवे इस रात को हर साल त्यौहार के रूप में मनाते हैं।

शब-ए-मेराज अथवा शबे मेराज एक इस्लामी त्योहार है जो इस्लामी कैलेंडर के अनुसार रजब के माह (सातवाँ महीना) में 27वीं तिथि को मनाया जाता है। इसे मेराज की रात के रूप में मनाया जाता है और मान्यताओं के अनुसार इसी रात, मुहम्मद एक इलाही जानवर बुर्राक़ पर बैठ कर आसमान का सफ़र किये थे।[3] अल्लाह से मुहम्मद के मुलाक़ात की इस रात को विशेष दुआएं और रोज़ा द्वारा मनाया जाता है और मस्जिदों में सजावट की जाती है तथा चिराग जलाये जाते हैं।[4]

अल इसरा और मेराज

[संपादित करें]

इसरा का मतलब होता है रात का सफर और अल-इसरा का मतलब एक विशेष रात के सफर से है। वही मेराज का मतलब होता है, ऊपर उठना या आरोहण। मुहम्मद का यह सफर तब शुरू हुआ जब उनके जीवन के दो महत्वपूर्ण लोग और उस समय उनके सबसे बड़े समर्थक इस दुनिया से छोड़कर जा चुके थे। इनमें से एक थीं उनकी पत्नी ख़दीजा, और दूसरे थे उनके चाचा अबू तालिब। यह मुहम्मद साहब के जीवन का वह दौर था जब उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा था, जब उनके अपने कुरैश समाज के लोगों ने उनका पूर्ण बहिष्कार कर उन्हे समुदाय से निष्कासित कर दिया था। मक्का, सऊदी अरब के बड़े एक बड़े रेगिस्थान के बीच बसा एक शहर है, उस ज़माने में अगर समुदाय किसी व्यक्ति को निष्कासित कर देता था तो उस व्यक्ति को अपना जीवन मरुस्थलीय भूमि पर बिताना पड़ता था जिस कारण वह व्यक्ति रेगिस्तान के कठिन वातावरण में स्वंय ही अपने प्राण त्याग देता था लेकिन जीवन के इतने कठिन समय में भी मुहम्मद का ईश्वर से विश्वास कभी नहीं हटा।

यरूशलम की यात्रा

[संपादित करें]
कुरान में "सबसे दूर की मस्जिद" के रूप में वर्णन के लिए मक्का और मदीना के बाद अल- अक्सा मस्जिद को तीसरा सबसे पवित्र इस्लामी स्थल माना जाता है

माना जाता है कि अल इसरा वल मेराज वह रात है जब अल्लाह की तरफ से एक खास सवारी बुर्राक़ भेजकर मुहम्मद को मक्का से यरूशलम लाया गया था। लेकिन आज के समय में यह सफर कुछ घंटो में किया जा सकता है, और उस जमाने में उंट से यह सफर तय करने में कम से कम दो महीने लग जाते थे। यरूशलम पहुंचकर मुहम्मद सल्लला हू अलैहू सल्लम् ने वहां स्थित अल-अक्सा मस्जिद में नमाज पढ़ी और फिर वहां से शुरू हुआ उनका एक आध्यात्मिक सफर जिसे मेराज कहा जाता है। मेराज में अल्लाह ने मुहम्मद को एक दूसरी दुनिया से परिचित कराया। हजरत मुहम्मद सल्लला हू अलैहू सल्लम् के इसी सफर के दौरान इस्लाम में एक दिन पाँच में वक्त कि नमाज पढ़ना भी अनिवार्य किया गया था।

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  1. Sheikh, Irfan. "New Shab E Meraj Quotes Images 2022 In Hindi Shayari Wiki". Irfani-Islam - इस्लाम की पूरी मालूमात हिन्दी. Retrieved 2022-02-14.
  2. Sheikh, Irfan. "Shab E Meraj Shayari Image New 2022 In Hindi Roman English". Irfani-Islam - इस्लाम की पूरी मालूमात हिन्दी. Retrieved 2022-02-14.
  3. S. C. Bhatt, Gopal K. Bhargava (2006). Land and People of Indian States and Union Territories: In 36 Volumes. Delhi. Gyan Publishing House. pp. 354–. ISBN 978-81-7835-390-6. Archived from the original on 26 अप्रैल 2017. Retrieved 25 अप्रैल 2017.
  4. Farzana Moon (12 January 2015). No Islam but Islam. Cambridge Scholars Publishing. pp. 25–. ISBN 978-1-4438-7404-5. Archived from the original on 26 अप्रैल 2017. Retrieved 25 अप्रैल 2017.

बाहरी कड़ियाँ

[संपादित करें]