तिरुपति
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तिरुपति | |||||
— शहर — | |||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||
देश | भारत | ||||
राज्य | आंध्र प्रदेश | ||||
MLA | वेंकट रमण | ||||
जनसंख्या | 736,569 (चौथा) | ||||
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
• 161 मीटर (528 फी॰) | ||||
विभिन्न कोड
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निर्देशांक: 13°39′N 79°25′E / 13.65°N 79.42°E तिरुपति {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20230116193342/https://hindi.newstrendsz.com/bharat-ke-5-famous-mandir भारत के आंध्र प्रदेश राज्य का एक शहर है जो विजयवाड़ा से 400 किलोमीटर दूर स्थित है यह तिरूपति जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह शहर महत्वपूर्ण हिंदू मंदिर तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर और अन्य ऐतिहासिक मंदिरों का घर है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं। समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थिम तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं। तिरुपति बालाजी एक बुधविहार है प्राचीन समय में यहां पर बौद्ध भिक्षु रहा करते थे
नामावली
[संपादित करें]तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है। तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था।
भूगोल
[संपादित करें]तिरुपति आंध्र प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित है।[1] यहां की अधिकतम औसत ऊंचाई है 162 मीटर (531 फीट).
मुख्य आकर्षण
[संपादित करें]यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन करने की होती है। भक्तों की लंबी कतारें देखकर सहज की इस मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान लगाया जाता है। मुख्य मंदिर के अलावा यहां अन्य मंदिर भी हैं। तिरुमला और तिरुपति का भक्तिमय वातावरण मन को श्रद्धा और आस्था से भर देता है।
तिरुमला के दर्शनीय स्थल
[संपादित करें]श्री वैंकटेश्वर मंदिर
[संपादित करें]श्री वैंकटेश्वर का यह प्राचीन मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी (वैंकटचला) पर स्थित है। यह श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। माना जाता है कि वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें वैंकटेश्वर कहा जाने लगा। इन्हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान श्री वैंकटेश्चर विष्णु साक्षात विराजमान है। यह मुख्य मंदिर के प्रांगण में है। मंदिर परिसर में अति सुंदरता से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं। मंदिर परिसर में मुख्श् दर्शनीय स्थल हैं:पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि।
कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है। यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है। इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्वर का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। हालांकि दर्शन करने वाले भक्तों के लिए यहां विभिन्न जगहों तथा बैंकों से एक विशेष्ा पर्ची कटती है। इसी पर्ची के माध्यम से आप यहां भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन कर सकते है।
देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में तिरुपति बालाजी मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। देश-विदेश के लगभग सभी बड़े उद्योगपति, फिल्म सितारे और राजनेता यहां अपनी उपस्थिति देते हैं.
जानें उनके आश्चर्यजनक तथ्य...
1. मुख्यद्वार के दाएं बालरूप में बालाजी को ठोड़ी से रक्त आया था, उसी समय से बालाजी के ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा शुरू हुई।
2. भगवान बालाजी के सिर पर रेशमी केश हैं, और उनमें गुत्थिया नहीं आती और वह हमेशा ताजा रहेते है।
3. मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव है, उस गांव में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषेध है। वहां पर लोग नियम से रहते हैं। वहीं से लाए गए फूल भगवान को चढ़ाए जाते हैं और वहीं की ही अन्य वस्तुओं को चढाया जाता है जैसे- दूध, घी, माखन आदि।
4. भगवान बालाजी गर्भगृह के मध्य भाग में खड़े दिखते हैं लेकिन, वे दाई तरफ के कोने में खड़े हैं बाहर से देखने पर ऎसा लगता है।
5. बालाजी को प्रतिदिन नीचे धोती और उपर साड़ी से सजाया जाता है।
6. गृभगृह में चढ़ाई गई किसी वस्तु को बाहर नहीं लाया जाता, बालाजी के पीछे एक जलकुंड है उन्हें वहीं पीछे देखे बिना उनका विसर्जन किया जाता है।
7. बालाजी की पीठ को जितनी बार भी साफ करो, वहां गीलापन रहता ही है, वहां पर कान लगाने पर समुद्र घोष सुनाई देता है।
8. बालाजी के वक्षस्थल पर लक्ष्मीजी निवास करती हैं। हर गुरुवार को निजरूप दर्शन के समय भगवान बालाजी की चंदन से सजावट की जाती है उस चंदन को निकालने पर लक्ष्मीजी की छबि उस पर उतर आती है।
9. बालाजी के जलकुंड में विसर्जित वस्तुए तिरूपति से 20 किलोमीटर दूर वेरपेडु में बाहर आती हैं।
10. गर्भगृह मे जलने वाले दिपक कभी बुझते नही हैं, वे कितने ही हजार सालों से जल रहे हैं किसी को पता भी नही है।
तिरुपति के दर्शनीय स्थल
[संपादित करें]श्री पद्मावती समोवर मंदिर, तिरुचनूर
[संपादित करें]तिरुचनूर (इसे अलमेलुमंगपुरम भी कहते हैं) तिरुपति से पांच किलोमीटर दूर है। यह मंदिर भगवान वैंकटेश्वर की पत्नी श्री पद्मावती को समर्पित है। कहा जाता है कि तिरुमला की यात्रा तब पूरी नहीं हो सकती जब तक इस मंदिर के दर्शन नहीं किए जाते। पुराणों के अनुसार भगवान वैंकटेश्वर श्री विष्णु और पद्मावती स्वयं लक्ष्मी ही है।
तिरुमला में सुबह 10.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक कल्याणोत्सव मनाया जाता है। यहां दर्शन सुबह 6.30 बजे से शुरु हो जाता हैं। शुक्रवार को दर्शन सुबह 8बजे के बाद शुरु होता हैं। तिरुपति से तिरुचनूर के बीच दिनभर बसें चलती हैं।
श्री गोविंदराजस्वामी मंदिर
[संपादित करें]श्री गोविंदराजस्वामी भगवान बालाजी के बड़े भाई हैं। यह मंदिर तिरुपति का मुख्य आकर्षण है। इसका गोपुरम बहुत ही भव्य है जो दूर से ही दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण संत रामानुजाचार्य ने 1130 ईसवी में की थी। गोविंदराजस्वामी मंदिर में होने वाले उत्सव और कार्यक्रम वैंकटेश्वर मंदिर के समान ही होते हैं। वार्षिक बह्मोत्सव वैसाख मास में मनाया जाता है। इस मंदिर के प्रांगण में संग्रहालय और छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें भी पार्थसारथी, गोड़ादेवी आंदल और पुंडरिकावल्ली का मंदिर शामिल है। मंदिर की मुख्य प्रतिमा शयनमूर्ति (भगवान की निंद्रालीन अवस्था) है। दर्शन का समय है- प्रात: 9.30 से दोपहर 12.30, दोपहर 1.00 बजे से शाम 6 बजे तक और शाम 7.00 से रात 8.45 बजे तक।
श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर
[संपादित करें]यह मंदिर तिरुपति के मध्य में स्थित है। यहां सीता, राम और लक्ष्मण की पूजा होती है। इस मंदिर का निर्माण चोल राजा ने दसवीं शताब्दी में कराया था। इस मंदिर के ठीक सामने अंजनेयस्वामी का मंदिर है जो श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर का ही उपमंदिर है। उगडी और श्री रामनवमी का पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
श्री कपिलेश्वरस्वामी मंदिर
[संपादित करें]कपिला थीर्थम भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर और थीर्थम है। मा यह मूर्ति कपिला मुनि द्वारा स्थापित की गई था और इसलिए यहां भगवान शिव को कपिलेश्वर के रूप में जाना जाता है।
यह तिरुपति का एकमात्र शिव मंदिर है। यह तिरुपति शहर से तीन किमी.दूर उत्तर में, तिरुमला की पहाड़ियों के नीचे ओर तिरुमाला जाने के मार्ग के बीच में स्थित है कपिल तीर्थम जाने के लिए बस, ऑटो रिक्शा यातायात का मुख्य साधन हैं ओर सरलता से उपलब्ध भी है।
यहां पर कपिला तीर्थम नामक पवित्र नदी भी है। जो सप्तगिरी पहाड़ियों में से बहती पहाड़ियों से नीचे कपिल तिर्थम मे आती हैं जो अति मनोरम्य लगता हैं। इसे अलिपिरि तीर्थम के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर श्री वेनुगोपाल ओर लक्ष्मी नारायण के साथ गौ माता कामधेनु कपिला गाय का य हनुमानजी का अनुपम मंदिर भी स्थित हैं।
यहां महाबह्मोत्सव, महा शिवरात्रि, स्खंड षष्टी और अन्नभिषेकम बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं। वर्षा ऋतु में झरने के आसपास का वातावरण बहुत ही मनोरम होता है।
श्री कल्याण वैंकटेश्वरस्वामी मंदिर, श्रीनिवास मंगापुरम
[संपादित करें]यह मंदिर तिरुपति से 12 किलोमीटरपश्चिम में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री पद्मावती से शादी के बाद तिरुमला जाने से पहले भगवान वैंकटेश्वर यहां ठहरे थे। यहां स्थापित भगवान वैंकटेश्वर की पत्थर की विशाल प्रतिमा को रेशमी वस्त्रों, आभूषणों और फूलों से सजाया गया है। वार्षिक ब्रह्मोत्सव और साक्षात्कार वैभवम यहां धूमधाम से मनाया जाता है।
श्री कल्याण वैंकटेश्वरस्वामी मंदिर, नारायणवनम
[संपादित करें]यह मंदिर तिरुपति से 40 किमी दूर है। भगवान श्री वैंकटेश्वरस्वामी और अक्सा महाराज की पुत्री पद्मावती अम्मवरु यही परिणय सूत्र में बंधे थे। यहां मुख्य रूप से श्री कल्याण वैंकटेश्वरस्वामी की पूजा होती है। यहां पांच उपमंदिर भी हैं। श्री पद्मावती अम्मवरी मंदिर, श्री अंदल अम्मवरी मंदिर, समेता रामुलवरी मंदिर, श्री रंगानायकुल मंदिर और श्री सीता लक्ष्मण मंदिर। इसके अलवा मुख्य मंदिर से जुड़े पांच अन्य मंदिर भी हैं। श्री पराशरेश्वर स्वामी मंदिर, श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर, श्री शक्ति विनायक स्वामी मंदिर, श्री अगस्थिश्वर स्वामी मंदिर और अवनक्षम्मा मंदिर। वार्षिक ब्रह्मोत्सव मुख्य मंदिर श्री वीरभद्रस्वामी मंदिर और अवनक्शम्मा मंदिर में मनाया जाता है।
श्री वेद नारायणस्वामी मंदिर, नगलपुरम
[संपादित करें]नगलपुरम का यह मंदिर तिरुपति से 70 किमी दूर है। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर सोमकुडु नामक राक्षस का यहीं पर संहार किया था। मुख्य गर्भगृह में विष्णु की मत्स्य रूप में प्रतिमा स्थापित है जिनके दोनों ओर श्रीदेवी और भूदेवी विराजमान हैं। भगवान द्वारा धारण किया हुआ सुदर्शन चक्र सबसे अधिक आकर्षक लगता है। इस मंदिर का निर्माण विजयनगर के राजा श्री कृष्णदेव राय ने करवाया था। यह मंदिर विजयनगर की वास्तुकला के दर्शन कराता है। मंदिर में मनाया जाने वाला मुख्य उत्सव ब्रह्मोत्सव और सूर्यt पूजा है। यह पूजा फाल्गुन मास की 12वीं, 13वीं और 14वीं तिथि को होती है। इस दौरान सूर्य की किरण प्रात: 6बजे से 6.15 मिनट तक मुख्य प्रतिमा पर पड़ती हैं। ऐसा लगता है मानो सूर्य देव स्वयं भगवान की पूजा कर रहे हों।
श्री वेणुगोपालस्वामी मंदिर, कारवेतीनगरम
[संपादित करें]यह मंदिर तिरुपति से 58 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां मुख्य रूप से भगवान वेणुगोपाल की प्रतिमा स्थापित है। उनके साथ उनकी पत्नियां श्री रुक्मणी अम्मवरु और श्री सत्सभामा अम्मवरु की भी प्रतिमा स्थापित हैं। यहां एक उपमंदिर भी है।
श्री प्रसन्ना वैंकटेश्वरस्वामी मंदिर, अप्पलायगुंटा
[संपादित करें]माना जाता है कि श्री पद्मावती अम्मवरु से विवाह के पश्चात् श्री वैंक्टेश्वरस्वामी अम्मवरु ने यहीं पर श्री सिद्धेश्वर और अन्य शिष्यों को आशीर्वाद दिया था। अंजनेयस्वामी को समर्पित इस मंदिर का निर्माण करवेतीनगर के राजाओं ने करवाया था। कहा जाता है कि आनुवांशिक रोगों से ग्रस्त रोगी अगर यहां आकर वायुदेव की प्रतिमा के आगे प्रार्थना करें तो भगवान जरुर सुनते हैं। यहां देवी पद्मावती और श्री अंदल की मूर्तियां भी हैं। साल में एक बार ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है।
श्री चेन्नाकेशवस्वामी मंदिर, तल्लपका
[संपादित करें]तल्लपका तिरुपति से 100 किलोमीटर दूर है। यह श्री अन्नामचार्य (संकीर्तन आचार्य) का जन्मस्थान है। अन्नामचार्य श्री नारायणसूरी और लक्कामअंबा के पुत्र थे। अनूश्रुति के अनुसार करीब 1000 वर्ष पुराने इस मंदिर का निर्माण और प्रबंधन मत्ती राजाओं द्वारा किया गया था।
श्री करिया मणिक्यस्वामी मंदिर, नीलगिरी
[संपादित करें]श्री करिया मणिक्यस्वामी मंदिर (इसे श्री पेरुमला स्वामी मंदिर भी कहते हैं) तिरुपति से 51 किलोमीटर दूर नीलगिरी में स्थित है। माना जाता है कि यहीं पर प्रभु महाविष्णु ने मकर को मार कर गजेंद्र नामक हाथी को बचाया था। इस घटना को महाभगवतम में गजेंद्रमोक्षम के नाम से पुकारा गया है।
श्री अन्नपूर्णा समेत काशी विश्वेश्वरस्वामी मंदिर, बग्गा अग्रहरम
[संपादित करें]कुशस्थली नदी के किनारे बना यह मंदिर तिरुपति से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां मुख्य रूप से श्री काशी विश्वेश्वर, श्री अन्नपूर्णा अम्मवरु, श्री कामाक्षी अम्मवरु और श्री देवी भूदेवी समेत श्री प्रयाग माधव स्वामी की पूजा होती है। महाशिवरात्रि और कार्तिक सोमवार को यहां विशेष्ा आयोजन किया जाता है।
स्वामी पुष्करिणी
[संपादित करें](पवित्र जलकुंड) इस कुंड के जल का प्रयोग केवल मंदिर के कामों के लिए ही किया जा सकता है। जैसे भगवान के स्नान के लिए, मंदिर को साफ करने के लिए, मंदिर में रहने वाले परिवारों (पंडित, कर्मचारी) द्वारा आदि। कुंड का जल पूरी तरह स्वच्छ और कीटाणुरहित है। यहां इसे पुन:चक्रित किए जाने व्यवस्था की भी व्यवस्था की गई है।
माना जाता है कि वैकुंठ में विष्णु पुष्करिणी कुंड में ही स्नान किया करते है। इसलिए गरुड़जी श्री वैंकटेश्वर के लिए इसे धरती पर लेकर आए। यह जलकुंड मंदिर से सटा हुआ है। यह भी कहा जाता है कि पुष्करिणी के दर्शन मात्र से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और भक्त को सभी सुख प्राप्त होते हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व भक्त यहां दर्शन करते हैं। ऐसा करने से शरीर व आत्मा दोनों पवित्र हो जाते हैं।
आकाशगंगा वॉटरफॉल
[संपादित करें]आकाशगंगा वॉटरफॉल तिरुमला मंदिर से तीन किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण यह है कि इसी जल से भगवान को स्नान कराया जाता है। पहाड़ी से निकलता पानी तेजी से नीचे धाटी में गिरता है। बारिश के दिनों में यहां का दृश्य बहुत की मनमोहक लगता है।
श्री वराहस्वामी मंदिर
[संपादित करें]तिरुमला के उत्तर में स्थित श्री वराहस्वामी का प्रसिद्ध मंदिर पुष्किरिणी के किनारे स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार वराह स्वामी को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि तिरुमला मूल रूप से आदि वराह क्षेत्र था और वराह स्वामी की अनुमति के बाद ही भगवान वैंकटेश्वर ने यहां अपना निवास स्थान बनाया। ब्रह्म पुराण के अनुसार नैवेद्यम सबसे पहले श्री वराहस्वामी को चढ़ाना चाहिए और श्री वैंकटेश्वर मंदिर जाने से पहले यहां दर्शन करने चाहिए। अत्री समहित के अनुसार वराह अवतार की तीन रूपों में पूजा की जाती है: आदि वराह, प्रलय वराह और यजना वराह। तिरुमला के श्री वराहस्वामी मंदिर में इनके आदि वराह रूप में दर्शन होते हैं।
श्री बेदी अंजनेयस्वामी मंदिर
[संपादित करें]स्वामी पुष्किरिणी के उत्तर पूर्व में स्थित यह मंदिर श्री वराहस्वामी मंदिर के ठीक सामने है। यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है। यहां स्थापित भगवान की प्रतिमा के हाथ प्रार्थना की अवस्था हैं। अभिषेक रविवार के दिन होता है और यहां हनुमान जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।
टीटीडी गार्डन
[संपादित करें]इस गार्डन का कुल क्षेत्रफल 460 एकड़ है। तिरुमला और तिरुपति के आस-पास बने इन खूबसूरत बगीचों से तिरुमला के मंदिरों के सभी जरुरतों को पुरा किया जाता है। इन फूलों का प्रयोग भगवान और मंडप को सजाने, पंडाल निर्माण में किया जाता है।
ध्यान मंदिरम
[संपादित करें]मूल रूप से यह श्री वैंकटेश्वर संग्रहालय था। जिसकी स्थापना 1980 में की गई थी। पत्थर और लकड़ी की बनी वस्तुएं, पूजा सामग्री, पारंपरिक कला और वास्तुशिल्प से संबंधित वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया है।
खानपान
[संपादित करें]- तिरुमला में
नित्य अन्ना दाना हॉल (मंदिर से एक किमी दूर, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के पास) में शाकाहारी खाना, चटनी, चावल, सांभर, रसम नि:शुल्क मिलता है। रोजाना 35 हजार लोग यहां खाना खाते हैं। दक्षिण भारतीय भोजन के लिए सप्तगिरी वुडलैंड्स रेस्टोरेंट (सप्तगिरी गेस्टहाउस के पास) एक अच्छा विकल्प है। सस्ते खाने के लिए आप स्वामीपुष्कर्नी तीर्थ के पास स्थित ढाबों का मजा ले सकते है। तिरुमला के सभी रेस्टोरेंट्स में खाने की कीमत टीटीडी द्वारा निर्धारित की जाती है।
- तिरुपति में
रामी गेस्टलाइन होटल के रेस्टोरेंट में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन मिलता है। तिरुपति रेलवे स्टेशन के पास सेल्फ सर्विस उपलब्ध कराने वाला दीपम फूड प्लाजा में बड़ी संख्या में यात्री आते हैं। यहां सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। एपीटीडीसी द्वारा संचालित पुन्नमी रेस्टोरेंट में सस्ता, स्वादिष्ट और स्वच्छ भोजन मिलता है।
उत्पाद
[संपादित करें]तिरुपति में चंदन की लकड़ी से बनाई गई भगवान वेंकटेश्वर और पद्मावती की मूर्तियां प्रसिद्ध हैं। यहां पर वैसे कलाकार भी है जिससे आप चावल के दानों पर अपना नाम लिखवा सकते है। यह वास्तव में एक अनोखी चीज है जिसे यादगार के तौर पर अपने पास रखा जा सकता है। आंध्र प्रदेश सरकार के लिपाक्षी इंपोरियम में पारंपरिक हस्तशिल्प और वस्त्रों की बुनाई के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। मंदिर में भगवान वैंकटेश्वर की तस्वीर वाले सोने से सिक्के भी बेचे जाते हैं।
मौसम
[संपादित करें]तिरुपति में आमतौर पर वर्षभर गर्मी होती है। तिरुमला की पहाड़ियों में वातावरण ठंडा होता है। यहां आने का सही समय सितंबर से फरवरी के बीच है।
आवागमन
[संपादित करें]- हवाई मार्ग
यहाँ से निकटम हवाई अड्डा रेनिगुंटा में स्त्तिथ है। इंडियन एयरलाइंस की हैदराबाद, दिल्ली और तिरुपति के बीच प्रतिदिन सीधी उडा़न उपलब्ध है।
- रेल मार्ग
यहां से सबसे पास का रेलवे जंक्शन तिरुपति है। यहां से बैंगलोर, चेन्नई और हैदराबाद के लिए हर समय ट्रेन उपलब्ध है। तिरुपति के पास के शहर रेनिगुंटा और गुडूर तक भी ट्रेन चलती है।
- सड़क मार्ग;
राज्य के विभिन्न भागों से तिरुपति और तिरुमला के लिए एपीएसआरटीसी की बसें नियमित रूप से चलती हैं। टीटीडी भी तिरुपति और तिरुमला के बीच नि:शुल्क बस सेवा उपलब्ध कराती है। यहां के लिए टैक्सी भी मिलती है।
शिक्षण संस्थान
[संपादित करें]तिरुपति मन्दिर जो एक प्राचीन कलाकृति है, अब श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय (1954) का केंद्र है।
जनसंख्या
[संपादित करें]2011 की जनगणना के अनुसार इस शहर की जनसंख्या 374,260 है और उपनगर (एन.एम.ए) की जनसंख्या 25,670 है।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Falling Rain Genomics, Inc - Tirupati". fallinggrain.com. मूल से 21 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-04-27.