तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर
अमृतम पत्रिका ग्वालियर की प्रस्तुति
- आंध्रप्रदेश के तिरुपति शहर से करीब 20 किलोमीटर पहाड़ी पर बसा तिरुमलय पर्वत में स्वयंभू रूप से विराजे हैं। ये प्रतिमा स्वयंभू श्रीयंत्र पर स्थापित है। इसीलिए यहां धन की कमी कभी नहीं हो सकती।
- दुनिया में अनेक उद्योगपति, व्यापारियों के ये साझेदार हैं। ये सभी अपने मुनाफे का कुछ हिस्सा हर साल अर्पित करते हैं।
- तिरुपति मंदिर के अलावा यहां आसपास 100 करीब प्राचीन तीर्थ हैं, जिनका संबंध तिरुपति बालाजी से आत्मीय है।
- तिरुपति रहस्य नामक एक पुराने ग्रंथ में इन्हे तिरुपुरारीश्वर बताया है। हिमालय पुत्री माता भगवती पार्वती का ये जन्म स्थान भी है।
- आदि अगस्त्य संहिता में बताया है कि तिरुपति बालाजी में स्थित प्रतिमा भगवान कार्तिकेय के 6 मुखों में एक मुख की है।
- ज्ञात हो कि मोर्गन स्वामी के 6 मुखों के अलग अलग मंदिर हैं।
1. पहला तिरुपति 2. दूसरा तिरुतनी जो तिरुपति से 70 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है। इस पर्वत पर 365 सीढ़ियाँ हैं, जो वर्ष के 365 दिनों की परिचायक हैं। 3. तीसरा कोडईकनाल से 65 km और त्रिपुर से 80 km दूरपालनी नमक शहर की पहाड़ी पर डिंडिगुल जिले में है। यहां करीब 3500 सीढियां है। 4. चौथा तिरु चंदूर मीनाक्षी मंदिर के समीप हैं। यहां भगवान कार्तिकेय ने भोलेनाथ को ॐ की दीक्षा दी थी। 5. पांचवा मुख मेंगलोर से 100 किलोमीटर दूर कुक्केश्री मंदिर है। बताते हैं कि यहीं अंतिम विश्राम किया था। यहां शेषनाग की अदभुत मूर्ति है, जो देखने में साक्षात लगती है। अमित शाह बीजेपी यहां अक्सर जाते हैं।
- तिरुमल तिरुपति देवस्थान, तिरुपति तिरुपति एवं उसके आसपास के दर्शनीय क्षेत्र
1. **श्री गोविंदराज स्वामी मंदिर** : आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमल पर्वत के पदभाग में तिरुपति स्थित है। 2. वैष्णवधर्म के प्रवर्तक श्रीरामानुज से संबंध रखनेवाला यह पुरातन शहर है। 3. ११३० ए.डि. में प्रख्यात वैष्णवधर्म के प्रवर्तक श्री रामानुज ने श्री गोविंदराज स्वामी मंदिर का निर्माण कर, परिसर के छोटे प्रांत को आवास योग्य बनाकर, उसे 'तिरुपति' का नाम रखा। 4. पुराणों के अनुसार, यहाँ के मूर्ति की वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक एवं महान आचार्य श्री रामानुज ने प्रतिष्ठा की। भगवान तो शयन मुद्रा में है। इस प्रांगण में श्री आण्डाल, श्री पार्थसारथी एवं श्री वेंकटेश्वर स्वामी के मंदिर हैं। 5. **श्री कोदंडराम स्वामी मंदिर** : तिरुपति रेल्वेस्टेशन से एक कि.मी. |दूरी पर श्रीराम का मंदिर है। लंका से वापस आते वक्त सीता लक्ष्मण सहित श्रीराम के तिरुपति आगमन के स्मरण में इस मंदिर का निर्माण किया गया है। 6. शिलालेख के आधार से १५वीं शताब्दी में | सालुव नरसिंह का अभ्युदय के लिए नरसिंह मोदलियार नामक व्यक्ति ने इस मंदिर का निर्माण किया। 7. **श्री कपिलेश्वर स्वामी मंदिर** : तिरुपति से तीन कि.मी. दूरी पर भगवान शिव का मंदिर है। कपिल महर्षि द्वारा प्रतिष्ठापित होने के कारण भगवान को कपिलेश्वर और तीर्थ को कपिलतीर्थम् का नाम प्रचलित हो गया है। 8. **अलमेलुमंगापुरम्** (तिरुचानूर) : तिरुपति से ५ किलोमीटर दूरी पर यह मंदिर स्थित है। श्री वेंकटेश्वर स्वामी की पत्नी श्री पद्मावती देवी का मंदिर है। 9. कहा जाता है कि तिरुचानूर में विराजमान श्री पद्मावती देवी के दर्शन के बाद ही तिरुमल यात्रा की सफलता प्राप्त होगी। 10. मां श्री पद्मावती देवी मंदिर की पुष्करिणी को 'पद्मसरोवर' कहा जाता है । पुराणों के अनुसार भगवती देवी ने इस पुष्करिणी के पद्म में स्वयं अवतार लिया है। 11. **श्रीनिवासमंगापुरम्** : तिरुपति से १२ किलोमीटर दूरी पर यह मंदिर स्थित है। ग्राम की आग्नेय दिशा में श्री कल्याण वेंकटेश्वर स्वामी का मंदिर है। 12. पुराणों में कहा गया है कि श्री वेंकटेश्वर स्वामी ने श्री पद्मावती देवी से विवाह करने के बाद तिरुमल जाने के पूर्व कुछ समय तक इस क्षेत्र में ठहरे। १६वीं सती में ताल्लपाक चिन्न तिरुवेंगडनाथ ने इस मंदिर का जीर्णोद्धारण किया। 13. **नारायणवनम्** : तिरुपति से लगभग २२ किलोमीटर की दूरी पर आग्नेय दिशा में स्थित मंदिर में श्री कल्याण वेंकटेश्वर स्वामी विराजमान है। 14. इसी पवित्र क्षेत्र में आकाशराजा की पुत्री श्री पद्मावती देवी एवं श्री वेंकटेश्वर स्वामी का विवाह सम्पन्न हुआ था। इस महान घटना की याद में आकाशराजा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 15. **नागुलापुरम्** : इस मंदिर में श्री वेदनारायण स्वामी विराजमान हैं। तिरुपति से लगभग ६५ कि.मी. दूरी पर आग्नेय दिशा में यह मंदिर स्थित है। 16. विजयनगर शैली को प्रतिबिंबित करनेवाली यह सुन्दर नमूना है। गर्भगृह में दोनों ओर श्रीदेवी व भूदेवी सहित मत्स्यावतार रूपी श्रीविष्णु की मूर्ति विराजमान हैं। 17. मंदिर की विशिष्टता का प्रमुख कारण है, सूर्याराधना। हर वर्ष मार्च महीने में सूर्य की किरणें तीन दिन तक गोपुर से होती हुई गर्भगृह में स्थित मूर्ति को स्पर्श करती हैं। इसे सूर्य द्वारा भगवान की आराधना मानी जाती है। 18. हम्पी विजयनगर सम्राट श्री कृष्णदेवराय ने अपनी माता के अनुरोध पर इस मंदिर का निर्माण कराया। 19. **अप्पलायगुंटा** : अप्पलायगुंटा में श्री प्रसन्न वेंकटेश्वर स्वामी का मंदिर है। तिरुपति से १५ कि.मी. दूरी पर स्थित है। 20. ब्रह्मोत्सव तथा प्लवोत्सव आदि को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। इस प्राचीन मंदिर में श्री पद्मावती देवी एवं आंडाल की मूर्तियाँ विराजमान हैं। 21. कार्वेटिनगरम् के राजाओं से निर्मित इस मंदिर के सामने श्री आंजनेय स्वामी की मूर्ति है। 22. **दीर्घकालीन व्याधियों** के निवारण के लिए यहाँ विराजमान श्री आंजनेय स्वामी की भक्तों द्वारा पूजार्चना की जाती है। 23. **कार्वेटिनगरम्** : तिरुपति से ५८ कि. मी. दूरी पर पुत्तूर के निकट यह मंदिर स्थित है। रुक्मिणी, सत्यभामा सहित श्री वेणुगोपाल स्वामी के दर्शन कर सकते हैं। 24. प्राचीन काल में नारायणवनम् के राजाओं ने इसका निर्वहण किया। हनुमत्समेत श्री सीताराम व लक्ष्मण की एकशिला मूर्ति इस मंदिर में विराजमान हैं।
- **वायल्पाडु** : श्रीराम का अति प्राचीन मंदिर यहाँ स्थित है। तिरुपति से लगभग १०० कि.मी. दूरी पर यह पुण्यक्षेत्र स्थित है।
amrutam.co.in तिरुपति के रहस्य क्या हैं।
तिरुपति बालाजी का मंदिर किस जगह पर है।
तिरुपति बालाजी में कोन से भगवान हैं।
मान पार्वती का जन्म स्थान कोन सा है।
तिरुपति केसे जाएं।
भगवान कार्तिकेय के कितने मंदिर हैं।
इस लेख में सत्यापन हेतु अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री को चुनौती दी जा सकती है और हटाया भी जा सकता है। (जून 2016) स्रोत खोजें: "तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर | |
---|---|
శ్రీ వెంకటేశ్వర స్వామి వారి ఆలయం | |
![]() | |
धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिंदू धर्म |
देवता | वेंकटेश्वर (विष्णु) |
त्यौहार | ब्रह्मोत्सवम्, वैकुण्ठ एकादशी, रथ सप्तमी |
शासी निकाय | तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | तिरुपति |
ज़िला | चित्तूर |
राज्य | आन्ध्र प्रदेश |
देश | भारत |
भौगोलिक निर्देशांक | 13°40′59.7″N 79°20′49.9″E / 13.683250°N 79.347194°Eनिर्देशांक: 13°40′59.7″N 79°20′49.9″E / 13.683250°N 79.347194°E |
वास्तु विवरण | |
प्रकार | द्रविड़ शैली |
आयाम विवरण | |
मंदिर संख्या | 1 |
अभिलेख | द्रविड़ भाषाओं और संस्कृत में[1] |
अवस्थिति ऊँचाई | 853 मी॰ (2,799 फीट) |
वेबसाइट | |
www |
तिरुपति वेंकटेश्वर मन्दिर तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ स्थल है। तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं। समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अदभूत उदाहरण हैं।
तमिल के शुरुआती साहित्य में से एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है। तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था।
अनुश्रुतियां[संपादित करें]
इस मंदिर के विषय में एक अनुश्रुति इस प्रकार से है। प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु अवतार ही है। ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था। यह सरोवर तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला- तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनीं 'सप्तगिरि' कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वरैया का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है।
वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार, 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ कर गये थे। प्रभु श्रीनिवास (वेंकटेश्वर का दूसरा नाम) उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई।
इतिहास[संपादित करें]
माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था, परंतु 15 सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही। 15 सदी के पश्चात इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हो गई। 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। हैदराबाद के मठ का भी दान रहा है।[2][3]
1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्रप्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।
वर्णन[संपादित करें]
यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन करने की होती है। ऐक १ लाख से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। भक्तों की लंबी कतारें देखकर सहज की इस मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान लगाया जाता है। मुख्य मंदिर के अलावा यहां अन्य मंदिर भी हैं। तिरुमला और तिरुपति का भक्तिमय वातावरण मन को श्रद्धा और आस्था से भर देता है।
इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णतः टीटीडी के संरक्षण में है।
मुख्य मंदिर[संपादित करें]
श्री वेंकटेश्वर का यह पवित्र व प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है। इसी कारण यहाँ पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं। पुराण व अल्वर के लेख जैसे प्राचीन साहित्य स्रोतों के अनुसार कलियुग में भगवान वेंकटेश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात ही मुक्ति संभव है। पचास हजार से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। इन तीर्थयात्रियों की देखरेख पूर्णतः टीटीडी के संरक्षण में है।
श्री वैंकटेश्वर का यह प्राचीन मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी (वैंकटचला) पर स्थित है। यह श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। माना जाता है कि वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें वैंकटेश्वर कहा जाने लगा। इन्हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्चर साक्षत विराजमान है। यह मुख्य मंदिर के प्रांगण में है। मंदिर परिसर में अति सुंदरता से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं। मंदिर परिसर में मुख्श् दर्शनीय स्थल हैं:पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि।
कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है। यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है। इस मंदिर की महिमा का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्वर का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। हालांकि दर्शन करने वाले भक्तों के लिए यहां विभिन्न जगहों तथा बैंकों से एक विशेष्ा पर्ची कटती है। इसी पर्ची के माध्यम से आप यहां भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन कर सकते है।
देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में तिरुपति बालाजी मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। देश-विदेश के कई बड़े उद्योगपति, फिल्म सितारे और राजनेता यहां अपनी उपस्थिति देते हैं.
जानें उनके आश्चर्यजनक तथ्य...
1. मुख्यद्वार के दाएं बालरूप में बालाजी को ठोड़ी से रक्त आया था, उसी समय से बालाजी के ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा शुरू हुई।
2. भगवान बालाजी के सिर पर रेशमी केश हैं, और उनमें गुत्थिया नहीं आती और वह हमेशा ताजा रहेते है।
3. मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव है, उस गांव में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषेध है। वहां पर लोग नियम से रहते हैं। वहीं से लाए गए फूल भगवान को चढ़ाए जाते हैं और वहीं की ही अन्य वस्तुओं को चढाया जाता है जैसे- दूध, घी, माखन आदि।
4. भगवान बालाजी गर्भगृह के मध्य भाग में खड़े दिखते हैं लेकिन, वे दाई तरफ के कोने में खड़े हैं बाहर से देखने पर ऎसा लगता है।
5. बालाजी को प्रतिदिन नीचे धोती और उपर साड़ी से सजाया जाता है।
6. गृभगृह में चढ़ाई गई किसी वस्तु को बाहर नहीं लाया जाता, बालाजी के पीछे एक जलकुंड है उन्हें वहीं पीछे देखे बिना उनका विसर्जन किया जाता है।
7. बालाजी की पीठ को जितनी बार भी साफ करो, वहां गीलापन रहता ही है, वहां पर कान लगाने पर समुद्र घोष सुनाई देता है।
8. बालाजी के वक्षस्थल पर लक्ष्मीजी निवास करती हैं। हर गुरुवार को निजरूप दर्शन के समय भगवान बालाजी की चंदन से सजावट की जाती है उस चंदन को निकालने पर लक्ष्मीजी की छबि उस पर उतर आती है।
9. बालाजी के जलकुंड में विसर्जित वस्तुए तिरूपति से 20 किलोमीटर दूर वेरपेडु में बाहर आती हैं।
10. गर्भगृह मे जलने वाले दिपक कभी बुझते नही हैं, वे कितने ही हजार सालों से जल रहे हैं किसी को पता भी नही है।
मंदिर की चढ़ाई[संपादित करें]
पैदल यात्रियों हेतु पहाड़ी पर चढ़ने के लिए तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम नामक एक विशेष मार्ग बनाया गया है। इसके द्वारा प्रभु तक पहुँचने की चाह की पूर्ति होती है। साथ ही अलिपिरी से तिरुमाला के लिए भी एक मार्ग है।
अन्य आकर्षण[संपादित करें]
श्री पद्मावती समोवर मंदिर[संपादित करें]
तिरुचनूर (इसे अलमेलुमंगपुरम भी कहते हैं) तिरुपति से पांच किमी. दूर है।
यह मंदिर भगवान श्री वेंकटेश्वर विष्णु की पत्नी श्री पद्मावती लक्ष्मी जी को समर्पित है। कहा जाता है कि तिरुमला की यात्रा तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक इस मंदिर के दर्शन नहीं किए जाते।
तिरुमला में सुबह 10.30 बजे से दोपहर 12 बजे तक कल्याणोत्सव मनाया जाता है। यहां दर्शन सुबह 6.30 बजे से शुरु हो जाता हैं। शुक्रवार को दर्शन सुबह 8बजे के बाद शुरु होता हैं। तिरुपति से तिरुचनूर के बीच दिनभर बसें चलती हैं।
श्री गोविंदराजस्वामी मंदिर[संपादित करें]
श्री गोविंदराजस्वामी भगवान बालाजी के बड़े भाई हैं। यह मंदिर तिरुपति का मुख्य आकर्षण है। इसका गोपुरम बहुत ही भव्य है जो दूर से ही दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण संत रामानुजाचार्य ने 1130 ईसवी में की थी। गोविंदराजस्वामी मंदिर में होने वाले उत्सव और कार्यक्रम वैंकटेश्वर मंदिर के समान ही होते हैं। वार्षिक बह्मोत्सव वैसाख मास में मनाया जाता है। इस मंदिर के प्रांगण में संग्रहालय और छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें भी पार्थसारथी, गोड़ादेवी आंदल और पुंडरिकावल्ली का मंदिर शामिल है। मंदिर की मुख्य प्रतिमा शयनमूर्ति (भगवान की निंद्रालीन अवस्था) है। दर्शन का समय है- प्रात: 9.30 से दोपहर 12.30, दोपहर 1.00 बजे से शाम 6 बजे तक और शाम 7.00 से रात 8.45 बजे तक
श्री कोदंडरामस्वमी मंदिर[संपादित करें]
यह मंदिर तिरुपति के मध्य में स्थित है। यहां सीता, राम और लक्ष्मण की पूजा होती है। इस मंदिर का निर्माण चोल राजा ने दसवीं शताब्दी में कराया था। इस मंदिर के ठीक सामने अंजनेयस्वामी का मंदिर है जो श्री कोदादंरमस्वामी मंदिर का ही उपमंदिर है। उगडी और श्री रामनवमी का पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
श्री कपिलेश्वरस्वामी मंदिर[संपादित करें]
कपिला थीर्थम भारत के आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर और थीर्थम है। मा यह मूर्ति कपिला मुनि द्वारा स्थापित की गई था और इसलिए यहां भगवान शिव को कपिलेश्वर के रूप में जाना जाता है। यह तिरुपति का एकमात्र शिव मंदिर है। यह तिरुपति शहर से तीन किमी.दूर उत्तर में, तिरुमला की पहाड़ियों के नीचे ओर तिरुमाला जाने के मार्ग के बीच में स्थित है कपिल तीर्थम जाने के लिए बस, ऑटो रिक्शा यातायात का मुख्य साधन हैं ओर सरलता से उपलब्ध भी है।
यहां पर कपिला तीर्थम नामक पवित्र नदी भी है। जो सप्तगिरी पहाड़ियों में से बहती पहाड़ियों से नीचे कपिल तिर्थम मे आती हैं जो अति मनोरम्य लगता हैं। इसे अलिपिरि तीर्थम के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर श्री वेनुगोपाल ओर लक्ष्मी नारायण के साथ गौ माता कामधेनु कपिला गाय का य हनुमानजी का अनुपम मंदिर भी स्थित हैं।
यहां महाबह्मोत्सव, महा शिवरात्रि, स्खंड षष्टी और अन्नभिषेकम बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं। वर्षा ऋतु में झरने के आसपास का वातावरण बहुत ही मनोरम होता है।
श्री कल्याण वेंकटेश्वरस्वामी मंदिर[संपादित करें]
यह मंदिर तिरुपति से 12 किमी.पश्चिम में श्रीनिवास मंगापुरम में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री पद्मावती से शादी के बाद तिरुमला जाने से पहले भगवान वेंकटेश्वर यहां ठहरे थे। यहां स्थापित भगवान वेंकटेश्वर की पत्थर की विशाल प्रतिमा को रेशमी वस्त्रों, आभूषणों और फूलों से सजाया गया है। वार्षिक ब्रह्मोत्सव और साक्षात्कार वैभवम यहां धूमधाम से मनाया जाता है।
श्री कल्याण वेंकटेश्वरस्वामी मंदिर[संपादित करें]
यह मंदिर तिरुपति से 40 किमी दूर, नारायणवनम में स्थित है। भगवान श्री वेंकटेश्वर और राजा आकाश की पुत्री देवी पद्मावती यही परिणय सूत्र में बंधे थे। यहां मुख्य रूप से श्री कल्याण वेंकटेश्वरस्वामी की पूजा होती है। यहां पांच उपमंदिर भी हैं। श्री देवी पद्मावती मंदिर, श्री आण्डाल मंदिर, भगवान रामचंद्र जी का मंदिर, श्री रंगानायकुल मंदिर और श्री सीता लक्ष्मण मंदिर। इसके अलवा मुख्य मंदिर से जुड़े पांच अन्य मंदिर भी हैं। श्री पराशरेश्वर स्वामी मंदिर, श्री वीरभद्र स्वामी मंदिर, श्री शक्ति विनायक स्वामी मंदिर, श्री अगस्थिश्वर स्वामी मंदिर और अवनक्षम्मा मंदिर। वार्षिक ब्रह्मोत्सव मुख्य मंदिर श्री वीरभद्रस्वामी मंदिर और अवनक्शम्मा मंदिर में मनाया जाता है।
श्री वेद नारायणस्वामी मंदिर[संपादित करें]
नगलपुरम का यह मंदिर तिरुपति से 70 किमी दूर है। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर सोमकुडु नामक राक्षस का यहीं पर संहार किया था। मुख्य गर्भगृह में विष्णु की मत्स्य रूप में प्रतिमा स्थापित है जिनके दोनों ओर श्रीदेवी और भूदेवी विराजमान हैं। भगवान द्वारा धारण किया हुआ सुदर्शन चक्र सबसे अधिक आकर्षक लगता है। इस मंदिर का निर्माण विजयनगर के राजा श्री कृष्णदेव राय ने करवाया था। यह मंदिर विजयनगर की वास्तुकला के दर्शन कराता है। मंदिर में मनाया जाने वाला मुख्य उत्सव ब्रह्मोत्सव और सूर्य पूजा है। यह पूजा फाल्गुन मास की 12वीं, 13वीं और 14वीं तिथि को होती है। इस दौरान सूर्य की किरण प्रात: 6बजे से 6.15 मिनट तक मुख्य प्रतिमा पर पड़ती हैं। ऐसा लगता है मानो सूर्य देव स्वयं भगवान की पूजा कर रहे हों।
श्री वेणुगोपालस्वामी मंदिर[संपादित करें]
यह मंदिर तिरुपति से 58 किमी. दूर, कारवेतीनगरम में स्थित है। यहां मुख्य रूप से भगवान वेणुगोपाल की प्रतिमा स्थापित है। उनके साथ उनकी पत्नियां श्री रुक्मणी अम्मवरु और श्री सत्सभामा अम्मवरु की भी प्रतिमा स्थापित हैं। यहां एक उपमंदिर भी है।
श्री प्रसन्ना वैंकटेश्वरस्वामी मंदिर[संपादित करें]
माना जाता है कि श्री पद्मावती अम्मवरु से विवाह के पश्चात् श्री वैंक्टेश्वरस्वामी अम्मवरु ने यहीं, अप्पलायगुंटा पर श्री सिद्धेश्वर और अन्य शिष्यों को आशीर्वाद दिया था। अंजनेयस्वामी को समर्पित इस मंदिर का निर्माण करवेतीनगर के राजाओं ने करवाया था। कहा जाता है कि आनुवांशिक रोगों से ग्रस्त रोगी अगर यहां आकर वायुदेव की प्रतिमा के आगे प्रार्थना करें तो भगवान जरुर सुनते हैं। यहां देवी पद्मावती और श्री अंदल की मूर्तियां भी हैं। साल में एक बार ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है।
श्री चेन्नाकेशवस्वामी मंदिर[संपादित करें]
तल्लपका तिरुपति से 100 किमी. दूर है। यह श्री अन्नामचार्य (संकीर्तन आचार्य) का जन्मस्थान है। अन्नामचार्य श्री नारायणसूरी और लक्कामअंबा के पुत्र थे। अनूश्रुति के अनुसार करीब 1000 वर्ष पुराने इस मंदिर का निर्माण और प्रबंधन मत्ती राजाओं द्वारा किया गया था।
श्री करिया मणिक्यस्वामी मंदिर[संपादित करें]
श्री करिया मणिक्यस्वामी मंदिर (इसे श्री पेरुमला स्वामी मंदिर भी कहते हैं) तिरुपति से 51 किमी. दूर नीलगिरी में स्थित है। माना जाता है कि यहीं पर प्रभु महाविष्णु ने मकर को मार कर गजेंद्र नामक हाथी को बचाया था। इस घटना को महाभगवतम में गजेंद्रमोक्षम के नाम से पुकारा गया है।
श्री अन्नपूर्णा-काशी विश्वेश्वरस्वामी[संपादित करें]
कुशस्थली नदी के किनारे बना यह मंदिर तिरुपति से 56 किमी. की दूरी पर,बग्गा अग्रहरम में स्थित है। यहां मुख्य रूप से श्री काशी विश्वेश्वर, श्री अन्नपूर्णा अम्मवरु, श्री कामाक्षी अम्मवरु और श्री देवी भूदेवी समेत श्री प्रयाग माधव स्वामी की पूजा होती है। महाशिवरात्रि और कार्तिक सोमवार को यहां विशेष्ा आयोजन किया जाता है।
स्वामी पुष्करिणी[संपादित करें]
इस पवित्र जलकुंड के पानी का प्रयोग केवल मंदिर के कामों के लिए ही किया जा सकता है। जैसे भगवान के स्नान के लिए, मंदिर को साफ करने के लिए, मंदिर में रहने वाले परिवारों (पंडित, कर्मचारी) द्वारा आदि। कुंड का जल पूरी तरह स्वच्छ और कीटाणुरहित है। यहां इसे पुन:चक्रित किए जाने व्यवस्था की भी व्यवस्था की गई है।
माना जाता है कि वैकुंठ में विष्णु पुष्करिणी कुंड में ही स्नान करते है, इसलिए श्री गरुड़जी ने श्री वैंकटेश्वर के लिए इसे धरती पर लेकर आए थे। यह जलकुंड मंदिर से सटा हुआ है। यह भी कहा जाता है कि पुष्करिणी के दर्शन करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और भक्त को सभी सुख प्राप्त होते हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व भक्त यहां दर्शन करते हैं। ऐसा करने से शरीर व आत्मा दोनों पवित्र हो जाते हैं।
आकाशगंगा जलप्रपात[संपादित करें]
आकाशगंगा जलप्रपात तिरुमला मंदिर से तीन किमी. उत्तर में स्थित है। इसकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण यह है कि इसी जल से भगवान को स्नान कराया जाता है। पहाड़ी से निकलता पानी तेजी से नीचे धाटी में गिरता है। बारिश के दिनों में यहां का दृश्य बहुत की मनमोहक लगता है।
श्री वराहस्वामी मंदिर[संपादित करें]
तिरुमला के उत्तर में स्थित श्री वराहस्वामी का प्रसिद्ध मंदिर पुष्किरिणी के किनारे स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार वराह स्वामी को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि तिरुमला मूल रूप से आदि वराह क्षेत्र था और वराह स्वामी की अनुमति के बाद ही भगवान वैंकटेश्वर ने यहां अपना निवास स्थान बनाया। ब्रह्म पुराण के अनुसार नैवेद्यम सबसे पहले श्री वराहस्वामी को चढ़ाना चाहिए और श्री वैंकटेश्वर मंदिर जाने से पहले यहां दर्शन करने चाहिए। अत्री समहित के अनुसार वराह अवतार की तीन रूपों में पूजा की जाती है: आदि वराह, प्रलय वराह और यजना वराह। तिरुमला के श्री वराहस्वामी मंदिर में इनके आदि वराह रूप में दर्शन होते हैं।
श्री बेदी अंजनेयस्वामी मंदिर[संपादित करें]
स्वामी पुष्किरिणी के उत्तर पूर्व में स्थित यह मंदिर श्री वराहस्वामी मंदिर के ठीक सामने है। यह मंदिर हनुमान जी को समर्पित है। यहां स्थापित भगवान की प्रतिमा के हाथ प्रार्थना की अवस्था हैं। अभिषेक रविवार के दिन होता है और यहां हनुमान जयंती बड़े धूमधाम से मनाई जाती है।
टीटीडी गार्डन[संपादित करें]
इस गार्डन का कुल क्षेत्रफल 460 एकड़ है। तिरुमला और तिरुपति के आस-पास बने इन खूबसूरत बगीचों से तिरुमला के मंदिरों के सभी जरुरतों को पुरा किया जाता है। इन फूलों का प्रयोग भगवान और मंडप को सजाने, पंडाल निर्माण में किया जाता है।
ध्यान मंदिरम[संपादित करें]
मूल रूप से यह श्री वैंकटेश्वर संग्रहालय था। जिसकी स्थापना 1980 में की गई थी। पत्थर और लकड़ी की बनी वस्तुएं, पूजा सामग्री, पारंपरिक कला और वास्तुशिल्प से संबंधित वस्तुओं का प्रदर्शन किया गया है।
खानपान[संपादित करें]
तिरुमला में[संपादित करें]
नित्य अन्ना दाना हॉल (मंदिर से एक किमी दूर, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के पास) में शाकाहारी खाना, चटनी, चावल, सांभर, रसम नि:शुल्क मिलता है। रोजाना 25 हजार लोग यहां खाना खाते हैं। दक्षिण भारतीय भोजन के लिए सप्तगिरी वुडलैंड्स रेस्टोरेंट (सप्तगिरी गेस्टहाउस के पास) एक अच्छा विकल्प है। सस्ते खाने के लिए आप स्वामीपुष्कर्नी तीर्थ के पास स्थित ढाबों का मजा ले सकते है। तिरुमला के सभी रेस्टोरेंट्स में खाने की कीमत टीटीडी द्वारा निर्धारित की जाती है।
तिरुपति में[संपादित करें]
रामी गेस्टलाइन होटल के रेस्टोरेंट में शाकाहारी मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन मिलता है। तिरुपति रेलवे स्टेशन के पास सेल्फ सर्विस उपलब्ध कराने वाला दीपम फूड प्लाजा में बड़ी संख्या में यात्री आते हैं। यहां सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। एपीटीडीसी द्वारा संचालित पुन्नमी रेस्टोरेंट में सस्ता, स्वादिष्ट और स्वच्छ भोजन मिलता है।
खरीदारी[संपादित करें]
तिरुपति में चंदन की लकड़ी से बनाई गई भगवान वेंकटेश्वर और पद्मावती की मूर्तियां प्रसिद्ध हैं। यहां पर वैसे कलाकार भी है जिससे आप चावल के दानों पर अपना नाम लिखवा सकते है। यह वास्तव में एक अनोखी चीज है जिसे यादगार के तौर पर अपने पास रखा जा सकता है। आंध्र प्रदेश सरकार के लिपाक्षी इंपोरियम में पारंपरिक हस्तशिल्प और वस्त्रों की बुनाई के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। मंदिर में भगवान वैंकटेश्वर की तस्वीर वाले सोने से सिक्के भी बेचे जाते हैं।
केशदान[संपादित करें]
इसके अंतर्गत श्रद्धालु प्रभु को अपने केश समर्पित करते हैं जिससे अभिप्राय है कि वे केशों के साथ अपना दंभ व घमंड छोड़ देते है ओर मानव योनी मे जन्म ओर सम्सत पिढी की तरफ से कृतज्ञता हेतु केश समर्पिण किया जाता हैं ।
पुराने समय में यह संस्कार घरों में ही नाई के द्वारा संपन्न किया जाता था, पर समय के साथ-साथ इस संस्कार का भी केंद्रीकरण हो गया और मंदिर के पास स्थित 'कल्याण कट्टा' नामक स्थान पर यह सामूहिक रूप से संपन्न किया जाने लगा। अब सभी नाई इस स्थान पर ही बैठते हैं। केशदान के पश्चात यहीं पर स्नान करते हैं और फिर पुष्करिणी में स्नान के पश्चात मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते हैं।
सर्वदर्शनम[संपादित करें]
सर्वदर्शनम से अभिप्राय है 'सभी के लिए दर्शन'। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम काम्प्लेक्स है। वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहाँ कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। यहाँ पर निःशुल्क व सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है। साथ ही विकलांग लोगों के लिए 'महाद्वारम' नामक मुख्य द्वार से प्रवेश की व्यवस्था है, जहाँ पर उनकी सहायता के लिए सहायक भी होते हैं।
प्रसादम[संपादित करें]
यहाँ पर प्रसाद के रूप में अन्न प्रसाद की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत चरणामृत, मीठी पोंगल, दही-चावल जैसे प्रसाद तीर्थयात्रियों को दर्शन के पश्चात दिया जाता है।
लड्डू[संपादित करें]
पनयारम यानी लड्डू मंदिर के बाहर बेचे जाते हैं, जो यहाँ पर प्रभु के प्रसाद रूप में चढ़ाने के लिए खरीदे जाते हैं। इन्हें खरीदने के लिए पंक्तियों में लगकर टोकन लेना पड़ता है। श्रद्धालु दर्शन के उपरांत लड्डू मंदिर परिसर के बाहर से खरीद सकते हैं।
उत्सव[संपादित करें]
ब्रह्मोत्सव[संपादित करें]
तिरुपति का सबसे प्रमुख पर्व 'ब्रह्मोत्सवम' है जिसे मूलतः प्रसन्नता का पर्व माना जाता है। नौ दिनों तक चलने वाला यह पर्व साल में एक बार तब मनाया जाता है, जब कन्या राशि में सूर्य का आगमन होता है (सितंबर, अक्टूबर)। इसके साथ ही यहाँ पर मनाए जाने वाले अन्य पर्व हैं - वसंतोत्सव, तपोत्सव, पवित्रोत्सव, अधिकामासम आदि।
विवाह संस्कार[संपादित करें]
यहाँ पर एक 'पुरोहित संघम' है, जहाँ पर विभिन्न संस्कारों औऱ रिवाजों को संपन्न किया जाता है। इसमें से प्रमुख संस्कार विवाह संस्कार, नामकरण संस्कार, उपनयन संस्कार आदि संपन्न किए जाते हैं। यहाँ पर सभी संस्कार उत्तर व दक्षिण भारत के सभी रिवाजों के अनुसार संपन्न किए जाते हैं।
रहने की व्यवस्था[संपादित करें]
तिरुमाला में मंदिर के आसपास रहने की काफी अच्छी व्यवस्था है। विभिन्न श्रेणियों के होटल व धर्मशाला यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। इनकी पहले से बुकिंग टीटीडी के केंद्रीय कार्यालय से कराई जा सकती है। यह केन्द्रीय कार्यालय सुबह ६ बजे खुलता है। कमरे की बुकिंग के लिए लंबी लाइनें लगती हैं। सामान्यतः पूर्व बुकिंग के लिए अग्रिम धनराशि के साथ एक पत्र व सौ रुपए का एक ड्राफ्ट यहाँ पर भेजना पड़ता है। टीटीडी के स्वामित्व वाले भवनों में रहने की व्यवस्था केवल २४ घंटे के लिए दी जाती है।
भाषा[संपादित करें]
यहां के लोग मुख्यत:तेलुगु बोलते हैं। लेकिन तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी समझने वाले लोगों की भी बड़ी संख्या हैं। हिंदी भाषा बोलने वाले और हिंदी में किये प्रश्न का जवाब हिंदी में देने वाले कम हैं तिरुपति शहर में।
तापमान[संपादित करें]
गर्मियों में अधिकतम 43 डि. और न्यूनतम 22 डि., सर्दियों में अधिकतम 32 डि. और न्यूनतम 14 डि. तापमान रहता है।
मौसम[संपादित करें]
तिरुपति में आमतौर पर वर्षभर गर्मी होती है। तिरुमला की पहाड़ियों में वातावरण ठंडा होता है।
आवागमन[संपादित करें]
- हवाई मार्ग
यहां से निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति है। इंडियन एयरलाइंस की हैदराबाद, दिल्ली और तिरुपति के बीच प्रतिदिन सीधी उडा़न उपलब्ध है। तिरुपति पर एक छोटा-सा हवाई अड्डा भी है, जहाँ पर मंगलवार और शनिवार को हैदराबाद से फ्लाइट मिल सकती है। तत्पश्चात एपीएसआरटीसी की बस सेवा भी उपलब्ध है जो परिसर तक पहुँचाने में केवल ३० मिनट का समय लेती है।
- रेल मार्ग
यहां से सबसे पास का रेलवे स्टेशन तिरुपति है। यहां से बैंगलोर, चेन्नई और हैदराबाद के लिए हर समय ट्रेन उपलब्ध है। तिरुपति से रेनिगुंटा जंक्शन जो कि तिरुपति से केवल १० किलोमीटर दूर है और गुटूंर तक भी ट्रेन चलती है। रेनिगुंटा जंक्शन से ट्रेन के विकल्प ज्यादा मौजूद हैं।
- सड़क मार्ग
राज्य के विभिन्न भागों से तिरुपति और तिरुमला के लिए एपीएसआरटीसी की बसें नियमित रूप से चलती हैं। टीटीडी भी तिरुपति और तिरुमला के बीच थोड़ी-बहुत नि:शुल्क बस सेवा उपलब्ध कराती है। यहां के लिए टैक्सी भी मिलती है।
- भ्रमण समय
मौसम के हिसाब से यहां आने का उपयुक्त समय सितंबर से फरवरी के बीच है।
वैंकटेश्वर मंदिर की श्रंखला[संपादित करें]
भारत में[संपादित करें]
- कुरुक्षेत्र ( हरयाणा )
- देहरादून (उत्तराखंड )
- चेन्नई (तमिलनाडु )
- नई दिल्ली [4]
- मुजफ्फरपुर[5]
- पटना[5]
- गया[5]
- नालंदा[5]
- वैशाली[5]
- भागलपुर[5]
- इंदौर (मध्यप्रदेश)
विदेश में[संपादित करें]
- ऑहियो (यू ० एस ० )[6]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ Alexandra Mack. Spiritual Journey, Imperial City: Pilgrimage to the Temples of Vijayanagara. Vedams eBooks (P) Ltd, 2002 - Hindu pilgrims and pilgrimages - 227 pages. पृ॰ 80.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 1 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अक्तूबर 2018.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अगस्त 2018.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 5 जनवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अक्तूबर 2015.
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ "संग्रहीत प्रति". मूल से 28 मार्च 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 मार्च 2018.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 27 जुलाई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अक्तूबर 2015.