सामग्री पर जाएँ

अल-वाक़िया

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

अल-वाक़िया : क़ुरआन का 56 वां अध्याय (सूरा) है।

सूरा अल-वाक़िया[1]या सूरा अल्-वाक़िआ़[2] पहली ही आयत के शब्द 'अल-वाक़िआ' (वह होने वाली घटना) को इस सूरा का नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

[संपादित करें]

मक्की सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मक्का के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रजि.) ने सूरतों के अवतरण का जो क्रम वर्णित किया है , उसमें वे कहते हैं कि पहले सूरा 20 (ता. हा.) अवतरित हुई , फिर अल वाक़िआ और उसके पश्चात् सूरा 26 (अश - शुअरा) (अल- इतक़ान-सुयूती) यही क्रम इक्रमा ने भी बयान किया है ( बैहक़ी , दलाइलुन- नुबूवत)। इसकी पुष्टि उस क़िस्से से भी होती है जो हज़रत उमर (रजि.) के ईमान लाने के विषय में इब्ने-हिशाम ने इब्ने इसहाक़ से उद्धृत किया है। उसमें यह उल्लेख आता है कि जब हज़रत उमर (रजि.) अपनी बहन के घर में दाख़िल हुए तो सूरा 20 (ता. हा.) पढ़ी जा रही थी। और जब उन्होंने कहा था कि अच्छा मुझे वह लिखित पृष्ठ दिखाओ जिसे तुमने छिपा लिया है , तो बहन ने कहा, “आप अपने बहुदेववाद के कारण अपवित्र हैं, और इस लिखित पृष्ठ को केवल् शुद्ध व्यक्ति ही हाथ लगा सकता है।" अतएव हज़रत उमर (रजि.) ने उठकर स्नान किया और फिर उस पृष्ठ को लेकर पढ़ा। इससे मालूम हुआ कि उस समय सूरा वाक़िआ अवतरित हो चुकी थी , क्योंकि उसी में आयत “ इसे पवित्रों के सिवा कोई छू नहीं सकता" (आयत 79) आई है और यह इतिहास से सिद्ध है कि हज़रत उमर (रजि.) हबशा की हिजरत के पश्चात् सन् 5 नबवी में ईमान लाए हैं।

विषय और वार्ताएँ

[संपादित करें]

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसका विषय परलोक , एकेश्वरवाद और कुरआन के सम्बन्ध में मक्का के काफ़िरों के संदेहों का खण्डन है । सबसे अधिक जिस चीज़ को वे अविश्वसनीय ठहराते थे, वह (क़ियामत और आख़िरत थी, उनका कहना) यह था कि ये सब काल्पनिक बातें हैं जिसका वास्तविक लोक में घटित होना असम्भव है। इसके जवाब में कहा कि जब वह घटना घटित होगी तो उस समय कोई यह झूठ बोलनेवाला न होगा कि वह घटित नहीं हुई है, न किसी में यह शक्ति होगी कि उसे आते-आते रोक दे या घटना को असत्य कर दिखाए। उस वक्त अनिवार्यतः सभी मनुष्य तीन श्रेणियों में विभ्कत हो जाएँगे। एक , आगेवाले ; दूसरे , सामान्य ने लोग ; तीसरे वे लोग जो आख़िरत (परलोक) का इनकार करते रहे और मरते दम तक इनकार और बहुदेववाद और बड़े गुनाह पर जमे रहे। इन तीनों श्रेणियों के लोगों के साथ जो मामला होगा उसे सविस्तार आयत 7-56 तक बयान किया गया है।

इसके बाद आयत 57-74 तक इस्लाम की उन दोनों आधारभूत धारणाओं की सत्यता पर निरन्तर प्रमाण दिए गए हैं, जिनको मानने से काफ़िर इनकार कर रहे थे , अर्थात् एकेश्वरवाद और परलोकवाद ।

फिर आयत 75-82 तक कुरआन के विषय में उनके सन्देहों का खण्डन किया गया है और कुरआन के विषय की सत्यता पर दो संक्षिप्त वाक्यों में अतुल्य प्रमाण प्रस्तुत किया गया है कि इसपर कोई विचार करे तो इसमें ठीक वैसी ही सुदृढ़ व्यवस्था पाएगा , जैसी जगत् के तारों और नक्षत्रों की व्यवस्था सुदृढ़ है , और यही इस बात का प्रमाण है कि इसका रचयिता वही है जिसने ब्रह्माण्ड की यह व्यवस्था निर्मित की है। फिर काफ़िरों से कहा गया है कि यह किताब उस नियति- पत्र में अंकित है जो सृष्ट प्राणियों की पहुँच से परे है । तुम समझते हो कि इसे मुहम्मद (सल्ल.) के पास शैतान लाते हैं , जबकि सुरक्षित पट्टिका से मुहम्मद (सल्ल.) तक जिस माध्यम से यह पहुँचती है उसमें पवित्र आत्मा फ़रिश्तों के सिवा किसी को तनिक भी हस्तक्षेप की सामर्थ्य नहीं है। अन्त में मानव को बताया गया है कि तू अपनी स्वच्छन्दता के घमण्ड में कितना ही आधारभूत तथ्यों की ओर से अन्धा हो जाए, किन्तु मृत्युकाल तेरी आँखें खोल देने के लिए पर्याप्त है। (तेरे सगे- सम्बन्धी) तेरी आँखों के सामने मरते हैं और तू देखता रह जाता है। यदि कोई सर्वोच्च सत्ता तेरे ऊपर शासन नहीं कर रही है और तेरा यह दम्भ अनुचित नहीं है कि संसार में तू - ही - तू है, कोई ईश्वर नहीं है , तो किसी मरनेवाले के निकलते हुए प्राण को पलटा क्यों नहीं लाता? जिस तरह तू इस मामले में बेबस है उसी तरह ईश्वर की पूछगछ और उसके प्रतिदान या दण्ड को भी रोक देना तेरे वश में नहीं है, तू चाहे माने या न माने मृत्यु के पश्चात् प्रत्येक मरनेवाला अपने परिणाम को देखकर रहेगा।

सुरह "अल-वाक़िया का अनुवाद

[संपादित करें]

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी "मुहम्मद अहमद" [3] ने किया।



पिछला सूरा:
अर-रहमान
क़ुरआन अगला सूरा:
अल-हदीद
सूरा 56 - अल-वाक़िया

1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114


इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  1. सूरा अर-रहमान, (अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ), भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन - संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 801 से.
  2. "सूरा अल्-वाक़िआ़ का अनुवाद (किंग फ़हद प्रेस)". https://quranenc.com. मूल से 22 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)
  3. "Al-Waqi'a सूरा का अनुवाद". http://tanzil.net. मूल से 25 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]