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अल-मुर्सलात

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कुरआन का सूरा क्र.- 77

वर्गीकरण मक्की

सूरा अल-मुरसलात (अरबी: سورة المرسلات‎) (भेजी गईं हवाएं) कुरान का 77 वां सूरा है। इसमें 50 आयतें हैं।

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल-मुर्सलात[1]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में सूरा अल्-मुर्सलात[2] नाम दिया गया है।

नाम पहली ही आयत के शब्द “अल-मुर्सलात” (क़सम है उनकी जो भेजी जाती हैं) को इस सूरा का नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

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मक्की सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

इस सूरा का पूरा विषय ज़ाहिर कर रहा है कि यह मक्का मुअज़्ज़मा के आरम्भिक काल में अवतरित हुई है।

विषय और वार्ता

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इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसका विषय क़ियामत और आख़िरत (प्रलय और परलोक) की पुष्टि और उन परिणामों से लोगों को सावधान करना है जो इन तथ्यों के इनकार और स्वीकार से अन्ततः सामने आएँगे । पहली सात आतयों में हवाओं की (आश्चर्यजनक एवं युक्तिपूर्ण) व्यवस्था को इस वास्तविकता पर गवाह ठहराया गया है कि कुरआन और मुहम्मद (सल्ल.) जिस क़ियामत के आने की ख़बर दे रहे हैं, वह अवश्य ही घटित होकर रहेगी। मक्कावाले बार - बार कहते थे कि जिस क़ियामत से हमें डरा रहे हो, उसे लाकर दिखाओ , तब हम उसे मानेंगे। आयत 8 से 15 तक उनकी इस माँग का उल्लेख किए बिना इसका उत्तर दिया गया है कि वह कोई खेल या तमाशा तो नहीं है कि जब कोई मस्ख़रा उसे दिखाने की माँग करे तो उसी समय वह तुरन्त दिखा दिया जाए। वह तो सम्पूर्ण मानव - जाति और उसके सभी व्यक्तियों के मुक़द्दमे के फैसले का दिन है। उसके लिए अल्लाह ने विशेष समय निश्चित कर रखा है। उसी वक्त पर वह आएगा, और जब आएगा तो (इन इनकार करनेवालों के लिए विनाश का सन्देश ही सिद्ध होगा।) आयत 16 से 28 तक निरन्तर क़ियामत और आख़िरत के घटित होने और उसकी अवश्यम्भाविता के प्रमाण दिए गए हैं। उनमें बताया गया है कि मनुष्य का अपना इतिहास , उसका अपना जन्म और जिस धरती पर वह जीवन व्यतीत कर रहा है उसकी अपनी बनावट गवाही दे रही है कि क़ियामत का आना और परलोक का स्तापित होना सम्भव भी है और अल्लाह की तत्त्वदर्शिता को अपेक्षित भी। इसके बाद आयत 28 से 40 तक आख़िरत के इनकार करनेवालों का और 41 से 45 तक उन लोगों के परिणाम का उल्लेख किया गया है जिन्होंने उसपर ईमान लाकर दुनिया में अपना परलोक संवारने की कोशिश की है।

अन्त में आख़िरत को न माननेवालों और ईश्वर की दासता से मुँह मोड़नेवालों को सावधान किया गया है कि संसार के अल्पकालीन जीवन में जो कुछ मज़े उड़ाने हैं, उड़ा लो। अन्ततः तुम्हारा परिणाम अत्यन्त विनाशकारी होगा। और बात इस पर समाप्त की गई है कि इस कुरआन से भी जो व्यक्ति मार्गदर्शन न पाए , उसे फिर संसार में किसी चज़ से मार्गदर्शन प्राप्त नहीं हो सकता।

सूरा "अल-मुरसलात" का अनुवाद

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बिस्मिल्ला हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [3]"मुहम्मद अहमद" ने किया।

इन्हें भी देखें

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पिछला सूरा:
अल-इंसान
क़ुरआन अगला सूरा:
अन-नबा
सूरा 77

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सन्दर्भ

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  1. सूरा अल-मुर्सलात,(अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ), भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन - संक्षिप्त टीका सहित. p. 933 से.
  2. "सूरा अल्-मुर्सलात का अनुवाद (किंग फ़हद प्रेस)". https://quranenc.com. Archived from the original on 22 जून 2020. Retrieved 16 जुलाई 2020. {{cite web}}: External link in |website= (help)
  3. "Al-Mursalat सूरा का अनुवाद". http://tanzil.net. Archived from the original on 25 अप्रैल 2018. Retrieved 15 जुलाई 2020. {{cite web}}: External link in |website= (help)


बाहरी कडिंयां

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विकिस्रोत में इस लेख से सम्बंधित, मूल पाठ्य उपलब्ध है:

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें


आधार क़ुरआन
यह लेख क़ुरआन से सम्बंधित आधार है। आप इसे बढाकर विकिपीडिया की सहायता कर सकते हैं। इसमें यदि अनुवाद में कोई भूल हुई हो तो सम्पादक क्षमाप्रार्थी हैं, एवं सुधार की अपेक्षा रखते हैं। हिन्दी में कुरान सहायता : कुरानहिन्दी , अकुरान , यह भी

  1. "Quran Text/ Translation - (92 Languages)". www.australianislamiclibrary.org. Archived from the original on 30 जुलाई 2020. Retrieved 15 March 2016.