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अल-काफ़िरून

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सूरा अल-काफ़िरून (इंग्लिश: Al-Kafirun) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 109 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 6 आयतें हैं।

سورة الكافرون

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल-काफ़िरून [1]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में भी सूरा अल्-काफ़िरून [2] नाम दिया गया है।

नाम पहली ही आयत “कह दो कि ऐ काफ़िरो (अल-काफ़िरून)!" के शब्द 'अल काफ़िरून' को इस सूरा का नाम दिया गया है।

अवतरणकाल

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मक्की सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रजि.) आदि कहते हैं कि यह सूरा मक्की है । हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर (रजि.) कहते हैं कि यह मदनी है। लेकिन सामान्यतः सभी टीकाकारों की दृष्टि में यह मक्की सूरा है और इसकी वार्ता स्वयं इसके मक्की होने की पुष्टि कर रही है।

पृष्ठभूमि

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मक्का मुअज़्ज़मा में एक ऐसा समय गुज़रा है जब नबी (सल्ल.) के इस्लामी आह्वान के विरूद्ध कुरैश के बहुदेववादी समाज में विरोध का तुफ़ान तो उठ चुका था, किन्तु अभी कुरैश के सरदार इस बात से बिलकुल निराश नहीं हुए थे कि नबी (सल्ल.) को किसी -न- किसी तरह समझौते पर तैयार किया जा सकेगा। इसलिए समय समय पर वे आपके पास समझौते के विभिन्न प्रस्ताव ले-लेकर आते रहते थे, ताकि आप उसमें से किसी को मान लें और वह झगड़ा समाप्त हो जाए जो आप किसी के और उनके बीच पैदा हो चुका था। इस सम्बन्ध में कई एक उल्लेख हदीसों में उद्धृत हुए हैं: (किसी में कुरैश का यह प्रस्ताव उल्लिखित है कि) “ हम आपको इतना धन दिए देते हैं कि आप मक्का के सबसे अधिक धनवान व्यक्ति बन जाएँ, आप जिस स्त्री को पसन्द करें उससे आपका विवाह किए देते हैं, हम आपके पीछे चलने के लिए तैयार हैं; आप बस हमारी यह बात मान लें कि हमारे पूज्य देवताओं का खंडन करने से बाज़ रहें।” (किसी में उनका यह प्रस्ताव उल्लिखित है कि ) एक वर्ष आप हमारे उपास्यों लात और उज़्ज़ा की उपासना करें और एक वर्ष हम आपके उपास्य की उपासना करें। इस पर यह सूरा अवतरित हुई।

विषय और वार्ता

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इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इस पृष्ठभूमि को दृष्टि में रखकर देखा जाए तो मालूम होता है कि यह सूरा धार्मिक उदारता के लिए नहीं उतरी थी, (अर्थात् इसलिए नहीं उतरी है कि प्रचलित समस्त धर्मों को इस बात का प्रमाणपत्र दे दिया जाए कि वे सब अपनी-अपनी जगह पर सत्य हैं।) जैसा कि आजकल के कुछ लोग समझते हैं , बल्कि इसलिए अवतरित हुई थी कि इसकी घोषणा कर दी जाए कि काफ़िरों (इन्कार करनेवाक़े, कुफ़्र करने वालों) के धर्म और उनकी पूजा-पाठ और उनके उपास्यों से हम बिलकुल बरी और विरक्त हैं। उनसे हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है और उन्हें बता दिया जाए कि कुफ़्र का धर्म और इस्लाम का धर्म दोनों एक-दूसरे से बिलकुल अलग हैं। उनके परस्पर मिल जाने का सिरे से कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता। यह बात यद्यपि आरम्भ में कुरैश के काफ़िरों को सम्बोधित करके समझौते के उनके प्रस्ताव के प्रत्युत्तर में कही गई थी , लेकिन यह उन्हीं तक सीमित नहीं है , बल्कि इसे कुरआन में अंकित करके समस्त मुसलमानों को क़ियामत तक के लिए यह शिक्षा दे दी गई है कि कुफ़्र का धर्म जहाँ जिस रूप में भी है, उन्हें उससे कथन और कर्म दोनों से असम्बद्धता प्रकट करनी चाहिए। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की दृष्टि में इस सूरा का क्या महत्त्व था, इसका अनुमान निम्नांकित हदीसों से किया जा सकता है:

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रजि.) से उल्लिखित है कि मैंने कितनी ही बार नबी (सल्ल.) को फ़ज्र की नमाज़ से पहले और मग़रिब की नमाज़ के बाद की दो 'रकअतों' में 'सूरा अल-काफ़िरून' और सूरा ‘अल- इख़लास' पढ़ते देखा है। हज़रत ख़ब्बाब (रजि.) कहते हैं कि नबी (सल्ल.) ने मुझसे कहा कि जब तुम सोने के लिए अपने बिस्तर पर लेटो तो सूरा 'अल-काफ़िरून' पढ़ लिया करो। और नबी (सल्ल.) का अपना भी यही तरीक़ा था कि जब सोने के लिए लेटते तो यह सूरा पढ़ लिया करते थे। (हदीस : बज़्ज़ार , तबरानी , इब्ने मरदूयह )

सुरह "अल-काफ़िरून का अनुवाद

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बिस्मिल्लाह हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है। 🏴󠁧󠁢󠁳󠁣󠁴󠁿

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [3]"मुहम्मद अहमद" ने किया:

بسم الله الرحمن الرحيم

۝ कह दो, "ऐ इनकार करने वालो!" (109:1)

۝ मैं वैसी बन्दगी नहीं करूँगा जैसी बन्दगी तुम करते हो, (109:2)

۝ और न तुम वैसी बन्दगी करने वाले हो जैसी बन्दगी में करता हूँ (109:3)

۝ और न मैं वैसी बन्दगी करने वाला हूँ जैसी बन्दगी तुमने की है (109:4)

۝ और न तुम वैसी बन्दगी करने वाला हुए जैसी बन्दगी मैं करता हूँ(109:5)

۝ तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म है और मेरे लिए मेरा धर्म!" (109:6)

बाहरी कडियाँ

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इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें

पिछला सूरा:
अल-कौथर
क़ुरआन अगला सूरा:
अन-नस्र
सूरा 109 - अल-काफ़िरून

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सन्दर्भ

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  1. सूरा अल-काफ़िरून,(अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ), भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन - संक्षिप्त टीका सहित. p. 1033 से.
  2. "सूरा अल्-काफ़िरून का अनुवाद (किंग फ़हद प्रेस)". https://quranenc.com. Archived from the original on 22 जून 2020. Retrieved 16 जुलाई 2020. {{cite web}}: External link in |website= (help)
  3. "Al-Kafirun सूरा का अनुवाद". http://tanzil.net. Archived from the original on 25 अप्रैल 2018. Retrieved 15 जुलाई 2020. {{cite web}}: External link in |website= (help)
  4. "Quran Text/ Translation - (92 Languages)". www.australianislamiclibrary.org. Archived from the original on 30 जुलाई 2020. Retrieved 15 March 2016.

इन्हें भी देखें

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