बिस्मिल्लाह

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सादा अक्षरांकन रूप "बसमला" या "बिस्मिल्लाह"।
फल "बेरी" के रूप में लिखा "बिस्मिल्लाह"।
सुलुस शैली।
मुगल दौर का अक्षरांकन।

बिस्मिल्लाह Bismillah (अरबी: بِسْمِ ٱللَّٰهِ‎ इसका मतलब है "अल्लाह के नाम से" या "ईश्वर के नाम से" ("In the name of God")[1] , इस्लाम धर्म में कोई भी काम शुरू करते समय "बिस्मिल्लाह-हिर्रहमा-निर्रहीम" b-ismi-llāhi r-raḥmāni r-raḥīmi بِسْمِ ٱللَّٰهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ पढते हैं, जिस का शाब्दिक अर्थ है, "परम कृपामय अपार दयालु अल्लाह के नाम से"।

कुछ लोग "बिस्मिल्लाह-हिर्रहमा-निर्रहीम" का मतलब "शुरु करता हूँ अल्लाह के नाम से दयालु और कृपाशील है" इस तरह कहते हैं जो गलत है। क्योंकी (शुरु करता हूँ)यह अरबी سوف تبدأ "सौफ तब्द्उ" कहा जाता है, जो "बिस्मिल्लाह-हिर्रहमा-निर्रहीम" में नही है। क़ुरान पढते समय भी, हर सूरा से पहले इसको पढते है। सिर्फ सूरह अत-तौबा में यह नहीं है। [Notes 1][2] हर काम के शुरू करते समय भी इस को पढा जाता है।

यूनीकोड में "बसमला" का कोड codepoint U+FDFD है। हिंदुओं मे जिस प्रकार शुभ है या शुभारम्भ!

नाम[संपादित करें]

Hasbuddin बिस्मिल्लाह या बसमला, बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम के प्ररंभिक शब्द को लेकर बनाया गया है। [3] ब-स-म-ल इन चार अक्षररों का शब्द है। जैसे "अल्लाहु अक्बर" "अल्हम्दुलिल्लाह" "अऊदुबिल्लाह" शब्द बने हैं, उसी तरह यह "बसमला" या "बिस्मिल्लाह" बना है। [3]

बिस्मिल्लाह या बसमला पढने को "तस्मिया" (تسمية) भी कहते हैं।

उपयोगिता और आवश्यकता[संपादित करें]

अरबी ग्रान्धिक रूप अनुसार, इस शब्द का अर्थ बहुत दयालु है, वे चाहे विश्वासी (मुसलिम) हों कि अविश्वासी (गैर मुस्ल्लिम)

क़ुरान में इस का प्रयोग हर सूरे में हुवा है। सूरा अलहम्द (पहला सूरा) में प्रारंभिक आयत (श्लोक) के रूप में प्रयोग हुवा है। मगर नवें सूरे अत-तौबा में उपयोग ही नहीं हुवा है। [Notes 1] २७ वां सूर अन-नमल में ३० वीं आयत के बाद भी इस का प्रयोग हुवा है। जिस में सुलेमान और शेबा की रानी बिल्क़ीस का ज़िक्र है।

मुसलमान अपने दैनंदिन जीवन में "बिस्मिल्लाह" का प्रयोग अकसर करता है। हर काम के शुरू करने से पहले अल्लाह की प्रशंशा करता है और अल्लाह का अनुग्रह प्राप्त करने की कोशिश करता है।[4] जब ज़बीहा करके जंतुओं के मांस को हलाल करने की प्रक्रिया में बिस्मिल्लाह ज़रूरी माना जाता है।

बिस्मिल्लाह ख़्वानी एक ऐसी रस्म है, जिस मे इसलामी आचार के अनुसार बच्चे को विद्या बुद्धी प्रदान करने की शुरुआत करने का आचार हो। इस रस्म पर भी बिस्मिल्लाह बहुत अहम माना जाता है।

"बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम" वाक्य में उपयोगित तीन नामवाचक "अल्लाह", "अर-रहमान" और "अर-रहीम", अल्लाह के ९९ नामों में से तीन हैं। इस का अर्थ है, अल्लाह "दयालु" और "कृपाशील" है। .

तौहीद या शहादा पढने से पहले "बिस्मिल्लाह" पढना अति आवश्यक माना जाता है।

हदीस[संपादित करें]

कई हदीसों से यह साबित है कि, खाने और पीने से पहले "बिस्मिल्लाह" पढा करें। उदाहरण के तौर पर:

जाबिर की रिवायत (उल्लेख) : मैं ने अल्लाह के रसूल (प्रेशित) यह कहते सुना : अगर कोई व्यक्ती घर में प्रवेश करते समय बिस्मिल्लाह पढेगा, तो शैतान अपने अनुयाइयों से कहेगा कि "आज तुमहारे लिये न खाना है न रहने के लिये जगह मिलेगे"। अगर कोई व्यक्ती बिस्मिल्लाह कहे बिना घर में प्रवेश करता है तो शैतान अपने अनुयाइयों से कहता है "अब तुम्हें खाना भी मिला और सोने के लिये जगह भी। - हदीस मुसलिम से।
आइशा का उल्लेख : "पैगंबर ने कहा, “जब आप में से कोई खाना खाना चाहता है तो उसे चाहिये कि खाने से पहले "बिस्मिल्लाह" पढ कर खाना शुरू करें। अगर किसी वजह से भूल गया हो, तो दरमियान में "बिस्मिल्लाह अव्वलहू व आखिरहू" पढ लिया करें। — तिर्मिजी और अबू दाऊद
उमय्या बिन मक़्शी का उल्लेख : "एक आदमी खाना खारहा था, पैगंबर बाज़ू ही बैठे थे। वह आदमी खाना खाने से पहले बिस्मिल्लाह नहीं पढा, खाने का एक ही निवाला बच गया था, उस आदमी ने कहा "बिस्मिल्लाह अव्वलुहू व आखिरहू"। तो पैगंबर ने कहा "जब तू बगैर बिस्मिल्लाह पढे के खाना खारहा था, शैतान भी तेरे साथ खारहा था, जैसे ही तूने "बिस्मिल्लाह" पढा, शैतान तेरे साथ खा न सका, जो खाना उसने खाया था सब का सब उसने उल्टी कर डाली। - अबू दाऊद और अन-नसाई
वाशी बिन हर्ब का उल्लेख : "चंद सहाबी (अनुयाई) ने कहा "हम ने खाना तो खाया मगर संतुश्ट नहीं हुवे", तो पैगंबर ने जवाब दिया "ऐसा लगता है तुम लोगों ने अलग अलग होकर खाना खाया", तो सहाबा ने कहा बी "जी हां"। तो पैगंबर ने कहा "मिल कर खाइये, और बिस्मिल्लाह पढ कर खाइये, इस में बरकत है"। — अबू दाऊद
एक परंपरा के अनुसार मुहम्मद ने कहा:[5]
"जो आसमानी किताबें हैं, उनमें लिखी सभी तालीम क़ुरान में मौजूद है, और जो क़ुरान में मौजूद है उसका निचोड सूरा ए-फ़ातिहा में है। और इस सूरत का निचोड "बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम" में मौजूद है।"
इमाम अली से सम्बंधित उल्लेख के अनुसार :[5] बिस्मिल्लाह के तात्पर्य में पहला अक्षर, ब, जो कि एकत्व के प्रतीक रूप को ज़ाहिर करता है।

तफ़्सीर[संपादित करें]

क़ुरान की तफ़सीर करते हुवे अल-तबरी लिखते हैं।:

अल्लाह के प्रेषित (मुहम्मद) कहते हैं कि ईसा की मां मरियम (मेरी) अपने बेटे (ईसा) को एक पाठशाला में दाखिल कराते हैं कि उनकी पढाई हो। गुरू उनसे कहते हैं 'लिखो "बिस्म (के नाम से)"' और ईसा कहते हैं कि '"बिस्म" क्या है"? तब गुरू जवाब देते हैं मुझे मालूम नहीं, तो ईसा ने कहा: 'ब' का मतलब "अल्लाह की बढाई" "सिन" का मतलब है "स्तोत्र" और "मीम" है उसकी ममलक (साम्राज्य/समस्त ब्रह्मांड) [6]

न्यूमरालजी[संपादित करें]

यह भी देख गया कि "बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम" को अंकशास्त्र जो अरबी इलाक़ों में व्यावहारिक है, कुछ लोगों का कहना है कि यह प्रमाणित है, इनके अनुसार, 786 से भी प्रकट करते हैं।

कुछ लोग यह भी विश्वास (प्रामाणिक नहीं) रखते हैं कि, बिस्मिल्लाह को 786 बार पढ कर पानी पर फूंक कर पीने से कुछ बीमारियां दूर होजाती हैं। यह श्रद्धा सिरिया में देखी जासक्ती है। [7]

ऐसा विश्वास दक्षिण एशियाई देशों के मुस्लिम समूह में भी देखा जाता है, जो इसलामी धर्म अनुसार प्रामाणित नहीं है।

ईसाइयों के अनुसार[संपादित करें]

अरबी भाषा बोलने वाले ईसाई भी कभी कभी बसमला शब्द का प्रयोग करते हैं, जो "ट्रिनिटी" के अर्थ में उपयोग होता है, यानी "पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से" (باسم الآب والابن والروح القدس) मेथ्यू के गोस्पेल 28:19 के अनुसार। [8]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

नोट्स[संपादित करें]

  1. See, however, the discussion of the eighth and ninth suras at Al-Anfal (the eighth sura).

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Shelquist, Richard (2008-01-03). "Bismillah al rahman al rahim". Living from the Heart. Wahiduddin. मूल से 5 दिसंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-06-21.
  2. Ali, Kecia; Leaman, Oliver (2008). Islam: the key concepts (Repr. संस्करण). London: Routledge. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-415-39638-7.
  3. A New Arabic Grammar of the Written Language by J.A. Haywood and H.M. Nahmad (London: Lund Humphries, 1965), ISBN 0-85331-585-X, p. 263.
  4. "Islamic-Dictionary.com Definition". मूल से 8 दिसंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 नवंबर 2015.
  5. Titus Burckhardt (2008) [1959]. An Introduction to Sufi Doctrine World Wisdom Inc., Bloomington IN, USA. ISBN 1933316500. pp.36.
  6. Momen, M. (2000). Islam and the Bahá'í Faith. Oxford, UK: George Ronald. पृ॰ 242. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-85398-446-8. In note 330 on page 274 of the same book Dr. Momen states the following: "At-Tabarí, Jámi’-al-Bayán, vol. 1, p.40. Some of the abbreviated editions of this work (such as the Mu’assasah ar-Risálah, Beirut, 1994 edition) omit this passage as does the translation by J. Cooper (Oxford University Press, 1987). Ibn kathír records this tradition, Tafsír, vol. 1, p. 17. As-Suyútí in ad-Durr al-Manthúr, vol. 1, p. 8, also records this tradition and gives a list of other scholars who have cited it including Abú Na’ím al-Isfahání in Hilyat al-Awliya’ and Ibn ‘Asákir in Taríkh Dimashq."
  7. Katja Sündermann, Spirituelle Heiler im modernen Syrien: Berufsbild und Selbstverständnis - Wissen und Praxis, Hans Schiler, 2006, p. 371 Archived 2015-11-25 at the वेबैक मशीन.
  8. Dictionary of Modern Written Arabic by Hans Wehr, edited by J.M. Cowan, 4th edition 1979 (ISBN 0-87950-003-4), p. 73. C.f. Matthew 28:19 (Arabic) Archived 2006-02-12 at the वेबैक मशीन Retrieved 2011-07-25.

बाहरी कडियां[संपादित करें]