अल-माऊन

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सूरा अल-माऊन (इंग्लिश: Al-Ma'un) इस्लाम के पवित्र ग्रन्थ कुरआन का 107 वां सूरा (अध्याय) है। इसमें 7 आयतें हैं।

नाम[संपादित करें]

इस सूरा के अरबी भाषा के नाम को क़ुरआन के प्रमुख हिंदी अनुवाद में सूरा अल्-माऊ़न [1]और प्रसिद्ध किंग फ़हद प्रेस के अनुवाद में भी सूरा अल्-माऊ़न[2] नाम दिया गया है।

नाम अंतिम आयत के अंतिम शब्द 'अल-माऊन' (साधारण ज़रूरत की चीजें) को इसका नाम दिया गया है।

अवतरणकाल[संपादित करें]

मक्की सूरा अर्थात् पैग़म्बर मुहम्मद के मदीना के निवास के समय हिजरत से पहले अवतरित हुई।

इब्ने मरदूयह ने इब्ने अब्बास (रजि.) और इब्ने जुबैर (रजि.) का कथन उद्धृत किया है कि यह सूरा मक्की है और यही कथन अता और जाबिर का भी है। लेकिन अबू हैयान ने 'अल - बहरुल - मुहीत' में इब्ने अब्बास (रजि.) और क़दातह (रजि.) और ज़हाक का यह कथन उद्धृत किया है कि यह मदीना में अवतरित हुई है। स्वयं इस सूरा में एक आन्तरिक साक्ष्य ऐसा विद्यमान है जो इसके मदनी होने की पुष्टि करता है और वह यह है कि इसमें उन नमाज़ पढ़ने वालों को विनष्ट होने की धमकी दी गई है जो अपनी नमाज़ों से ग़फ़लत बरतते और दिखाने के लिए नमाज़ पढ़ते हैं। इस प्रकार के मुनाफ़िक़ (कपटाचारी) मदीना ही में पाए जाते थे, मक्का में नहीं।

विषय और वार्ता[संपादित करें]

इस्लाम के विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी लिखते हैं कि इसका विषय यह बताना है कि परलोक पर ईमान न लाना मनुष्य में किस प्रकार के नैतिक आचरण पैदा करता है। आयत 2 और 3 में उन काफ़िरों(इन्कार करने वालों( की हालत बयान की गई है जो खुल्लम-खुल्ला परलोक को झुठलाते हैं और अन्तिम चार आयतों में उन कपटाचारियों की दशा पर प्रकाश डाला गया है जो देखने में तो मुसलमान हैं, परन्तु मन में परलोक और उसके प्रतिदान और दण्ड और उसके फल और बुरे बदले की कोई धारणा नहीं रखते। कुल मिलाकर दोनों प्रकार के गिरोहों की नीति को बयान करने का उद्देश्य यह तथ्य लोगों के मन में बिठाना है कि मनुष्य में और स्थायी विशुद्ध आचरण परलोक की धारणा के बिना पैदा नहीं हो सकता।

सुरह "अल-माऊन का अनुवाद[संपादित करें]

बिस्मिल्लाह हिर्रह्मा निर्रहीम अल्लाह के नाम से जो दयालु और कृपाशील है।

इस सूरा का प्रमुख अनुवाद:

क़ुरआन की मूल भाषा अरबी से उर्दू अनुवाद "मौलाना मुहम्मद फ़ारूक़ खान", उर्दू से हिंदी [3]"मुहम्मद अहमद" ने किया:

بسم الله الرحمن الرحيم

۝ क्या तुमने उसे देखा जो दीन को झुठलाता है? (107:1)

۝ वही तो है जो अनाथ को धक्के देता है, (107:2)

۝ और मुहताज के खिलाने पर नहीं उकसाता (107:3)

۝ अतः तबाही है उन नमाज़ियों के लिए, (107:4)

۝ जो अपनी नमाज़ से ग़ाफिल (असावधान) हैं, (107:5)

۝ जो दिखावे के लिए कार्य करते हैं, (107:6) 

۝ और साधारण बरतने की चीज़ भी किसी को नहीं देते (107:7)

बाहरी कडियाँ[संपादित करें]

इस सूरह का प्रसिद्ध अनुवादकों द्वारा किया अनुवाद क़ुरआन प्रोजेक्ट पर देखें

पिछला सूरा:
क़ुरैश
क़ुरआन अगला सूरा:
अल-कौथर
सूरा 107 - अल-माऊन

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सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. सूरा अल्-माऊ़न,(अनुवादक: मौलाना फारूक़ खाँ), भाष्य: मौलाना मौदूदी. अनुदित क़ुरआन - संक्षिप्त टीका सहित. पृ॰ 1028 से.
  2. "सूरा अल्-माऊ़न का अनुवाद (किंग फ़हद प्रेस)". https://quranenc.com. मूल से 22 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)
  3. "Al-Ma'un सूरा का अनुवाद". http://tanzil.net. मूल से 25 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जुलाई 2020. |website= में बाहरी कड़ी (मदद)
  4. "Quran Text/ Translation - (92 Languages)". www.australianislamiclibrary.org. मूल से 30 जुलाई 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 March 2016.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]