"बुद्ध जयंती": अवतरणों में अंतर

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'''बुद्ध जयन्ती ''' (बुद्ध पूर्णिमा, वेसाक या हनमतसूरी) [[बौद्ध धर्म]] में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। बुद्ध जयन्ती [[वैशाख]] [[पूर्णिमा]] को मनाया जाता हैं। पूर्णिमा के दिन ही [[गौतम बुद्ध]] का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। इस दिन ५६३ ई.पू. में बुद्ध स्वर्ग से संकिसा मे अवतरित हुए थे। इस पूर्णिमा के दिन ही ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में, [[देवरिया]] जिले के [[कुशीनगर]] में निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात [[वैशाख]] [[पूर्णिमा]] के दिन ही हुए थे।<ref name="अभिव्यक्ति">{{cite web |url= http://www.abhivyakti-hindi.org/parva/alekh/2008/budhpurnima.htm|title= बुद्ध पूर्णिमा |accessmonthday=[[१५ जून]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher= अभिव्यक्ति|author= मनोहर पुरी|language=हिन्दी}}</ref> ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ आज तक नही हुआ है। इस प्रकार भगवान बुद्ध दुनिया के सबसे महान महापुरुष है। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में ५० करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। [[हिन्दू]] धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध [[विष्णु]] के नौवें [[अवतार]] हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार [[भारत]], [[नेपाल]], [[सिंगापुर]], [[वियतनाम]], [[थाइलैंड]], [[कंबोडिया]], [[मलेशिया]], [[श्रीलंका]], [[म्यांमार]], [[इंडोनेशिया]] तथा [[पाकिस्तान]] में मनाया जाता है।<ref>{{citebook|title=वर्ल्ड रिलीजन्स: एन इंट्रोडक्शन फ़ॉर स्टूडेन्ट्स|first=जिनीन डी |last=फ़ाओलर|publisher= सुसेक्स ऐकॆडेमिक प्रेस|year= १९९७|isbn=1898723486}}</ref>
'''बुद्ध जयन्ती ''' (बुद्ध पूर्णिमा, वेसाक या हनमतसूरी) [[बौद्ध धर्म]] में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। बुद्ध जयन्ती [[वैशाख]] [[पूर्णिमा]] को मनाया जाता हैं। पूर्णिमा के दिन ही भगवान [[गौतम बुद्ध]] का [[महापरिनिर्वाण]] समारोह भी मनाया जाता है। इस दिन [[५६३]] ई.पू. में बुद्ध का जन्म [[लुंबिनी]], [[भारत]] (आज का [[नेपाल]]) में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही [[४८३]] ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में, [[देवरिया]] जिले के [[कुशीनगर]] में [[निर्वाण]] प्राप्त किया था। भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधी) और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात [[वैशाख]] [[पूर्णिमा]] के दिन ही हुए थे।<ref name="अभिव्यक्ति">{{cite web |url= http://www.abhivyakti-hindi.org/parva/alekh/2008/budhpurnima.htm|title= बुद्ध पूर्णिमा |accessmonthday=[[१५ जून]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher= अभिव्यक्ति|author= मनोहर पुरी|language=हिन्दी}}</ref> ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ आज तक नही हुआ है। अपने मानवतावादी एवं विज्ञानवादी बौद्ध धम्म दर्शन से भगवान बुद्ध दुनिया के सबसे महान महापुरुष है। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में १८० करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। [[हिन्दू]] धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध [[विष्णु]] के नौवें [[अवतार]] हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार [[भारत]], [[चीन]], [[नेपाल]], [[सिंगापुर]], [[वियतनाम]], [[थाइलैंड]], [[जापान]], [[कंबोडिया]], [[मलेशिया]], [[श्रीलंका]], [[म्यांमार]], [[इंडोनेशिया]], [[पाकिस्तान]] तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है।<ref>{{citebook|title=वर्ल्ड रिलीजन्स: एन इंट्रोडक्शन फ़ॉर स्टूडेन्ट्स|first=जिनीन डी |last=फ़ाओलर|publisher= सुसेक्स ऐकॆडेमिक प्रेस|year= १९९७|isbn=1898723486}}</ref>


बुद्ध के ही [[बिहार]] स्थित [[बोधगया]] नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।<ref name="अभिव्यक्ति"/> बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली [[कुशीनगर]] में स्थित '''महापरिनिर्वाण मंदिर''' पर एक माह का मेला लगता है।<ref name="नूतन सवेरा"/> यद्यपि यह तीर्थ महात्मा बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है और यहां के मंदिरों में पूजा-अर्चना करने वे बड़ी श्रद्धा के साथ आते हैं। इस मंदिर का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से है। इस मंदिर का स्थापत्य [[अजंता]] की गुफाओं से प्रेरित है। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) ६.१ मीटर लंबी मूर्ति है। जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है। यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां से यह मूर्ति निकाली गयी थी।<ref name="नूतन सवेरा">{{cite web |url= http://www.nutansavera.com/new/index.php?view=article&catid=1:latest-news&id=148:2009-02-21-06-53-22&tmpl=component&print=1&page=|title= बुद्ध पूर्णिमा |accessmonthday=[[२१ फरवरी]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher= नूतन सवेरा|author= लिखित कुमार आनंद|language=हिन्दी}}</ref> मंदिर के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है। यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है।
बुद्ध के ही [[बिहार]] स्थित [[बोधगया]] नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ [[सत्य]] की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में [[बोधिवृक्ष]] के नीचे उन्हें [[बुद्धत्व]] ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।<ref name="अभिव्यक्ति"/> बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली [[कुशीनगर]] में स्थित '''[[महापरिनिर्वाण विहार]]''' पर एक माह का मेला लगता है।<ref name="नूतन सवेरा"/> यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है और यहां के [[विहार]]ों में पूजा-अर्चना करने वे बड़ी श्रद्धा के साथ आते हैं। इस [[विहार]] का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से है। इस मंदिर का स्थापत्य [[अजंता]] की गुफाओं से प्रेरित है। इस [[विहार]] में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) ६.१ मीटर लंबी मूर्ति है। जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है। यह [[विहार]] उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां से यह मूर्ति निकाली गयी थी।<ref name="नूतन सवेरा">{{cite web |url= http://www.nutansavera.com/new/index.php?view=article&catid=1:latest-news&id=148:2009-02-21-06-53-22&tmpl=component&print=1&page=|title= बुद्ध पूर्णिमा |accessmonthday=[[२१ फरवरी]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher= नूतन सवेरा|author= लिखित कुमार आनंद|language=हिन्दी}}</ref> [[विहार]] के पूर्व हिस्से में एक [[स्तूप]] है। यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है।


[[श्रीलंका]] व अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है।<ref name="वेब दुनिया"/> इस दिन बौद्ध अनुयायी घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाते हैं। विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी [[बोधगया]] आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। मंदिरों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाते हैं और दीपक जलाकर पूजा करते हैं। बोधिवृक्ष की भी पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं को हार व रंगीन पताकाओं से सजाते हैं।
[[श्रीलंका]] व अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है।<ref name="वेब दुनिया"/> इस दिन बौद्ध अनुयायी घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाते हैं। विश्व भर से [[बौद्ध धर्म]] के अनुयायी [[बोधगया]] आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। विहारों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाते हैं और दीपक जलाकर पूजा करते हैं। [[बोधिवृक्ष]] की भी पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं को हार व रंगीन पताकाओं से सजाते हैं।
[[चित्र:Buddha-little.statue.jpg|thumb|left|गौतम बुद्ध]]वृक्ष के आसपास दीपक जलाकर इसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है।। इस पूर्णिमा के दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। पिंजरों से पक्षियॊं को मुक्त करते हैं व गरीबों को भोजन व वस्त्र दान किए जाते हैं। दिल्ली स्थित बुद्ध संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।<ref name="वेब दुनिया">{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/buddha/0905/06/1090506117_1.htm|title= बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती|accessmonthday=[[१५ जून]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher= वेब दुनिया|language=हिन्दी}}</ref>
[[चित्र:Buddha-little.statue.jpg|thumb|left|गौतम बुद्ध]]वृक्ष के आसपास दीपक जलाकर इसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है।। इस पूर्णिमा के दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। पिंजरों से पक्षियॊं को मुक्त करते हैं व गरीबों को भोजन व वस्त्र दान किए जाते हैं। दिल्ली स्थित बुद्ध संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।<ref name="वेब दुनिया">{{cite web |url= http://hindi.webdunia.com/religion/occasion/buddha/0905/06/1090506117_1.htm|title= बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती|accessmonthday=[[१५ जून]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher= वेब दुनिया|language=हिन्दी}}</ref>
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== यह भी देखें ==
== यह भी देखें ==
* [[गौतम बुद्ध]]
* [[गौतम बुद्ध]]

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बुद्ध पूर्णिमा
वेसाक
बुद्ध पूर्णिमा वेसाक
आधिकारिक नाम बुद्ध पूर्णिमा
वैशाख पूजा
वैशाख
वेसाक
विसाख बुचा
सागा दाव
佛誕 (फो दैन)
फैट डैन
วิสาขบูชา
अन्य नाम बुद्ध की जयंती
मनाने वाले बौद्ध, हिन्दू
प्रकार बौद्ध
महत्व बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण
तिथि वैशाख पूर्णिमा
मनाते हैं ध्यान, अष्ट-योग पालन, शाकाहार, दान, स्नान, तीर्थ
संबंधित हनमतसुरी
बौद्ध धर्म

की श्रेणी का हिस्सा

बौद्ध धर्म का इतिहास
· बौद्ध धर्म का कालक्रम
· बौद्ध संस्कृति
बुनियादी मनोभाव
चार आर्य सत्य ·
आर्य अष्टांग मार्ग ·
निर्वाण · त्रिरत्न · पँचशील
अहम व्यक्ति
गौतम बुद्ध · बोधिसत्व
क्षेत्रानुसार बौद्ध धर्म
दक्षिण-पूर्वी बौद्ध धर्म
· चीनी बौद्ध धर्म
· तिब्बती बौद्ध धर्म ·
पश्चिमी बौद्ध धर्म
बौद्ध साम्प्रदाय
थेरावाद · महायान
· वज्रयान
बौद्ध साहित्य
त्रिपतक · पाळी ग्रंथ संग्रह
· विनय
· पाऴि सूत्र · महायान सूत्र
· अभिधर्म · बौद्ध तंत्र

बुद्ध जयन्ती (बुद्ध पूर्णिमा, वेसाक या हनमतसूरी) बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। बुद्ध जयन्ती वैशाख पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। पूर्णिमा के दिन ही भगवान गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण समारोह भी मनाया जाता है। इस दिन ५६३ ई.पू. में बुद्ध का जन्म लुंबिनी, भारत (आज का नेपाल) में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में, देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधी) और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे।[1] ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ आज तक नही हुआ है। अपने मानवतावादी एवं विज्ञानवादी बौद्ध धम्म दर्शन से भगवान बुद्ध दुनिया के सबसे महान महापुरुष है। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में १८० करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है।[2]

बुद्ध के ही बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।[1] बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है।[3] यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है और यहां के विहारों में पूजा-अर्चना करने वे बड़ी श्रद्धा के साथ आते हैं। इस विहार का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से है। इस मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है। इस विहार में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) ६.१ मीटर लंबी मूर्ति है। जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है। यह विहार उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां से यह मूर्ति निकाली गयी थी।[3] विहार के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है। यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है।

श्रीलंका व अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है।[4] इस दिन बौद्ध अनुयायी घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाते हैं। विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। विहारों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाते हैं और दीपक जलाकर पूजा करते हैं। बोधिवृक्ष की भी पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं को हार व रंगीन पताकाओं से सजाते हैं।

गौतम बुद्ध

वृक्ष के आसपास दीपक जलाकर इसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है।। इस पूर्णिमा के दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। पिंजरों से पक्षियॊं को मुक्त करते हैं व गरीबों को भोजन व वस्त्र दान किए जाते हैं। दिल्ली स्थित बुद्ध संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।[4]

वर्ष २००९ में बुद्ध पूर्णिमा की तिथि ९ मई थी। भारत के अलावा कुछ अन्य देशों में यह ८ मई को भी मनाया गया। थाईलैंड के महानिकाय और धम्मयुतिका मतों ने ८[5]; श्रीलंका में ८ मई[6] को मनाया गया। जबकि सिंगापुर में ९ मई[7] को मनाया गया।



यह भी देखें

चित्र दीर्घा

सन्दर्भ

  1. मनोहर पुरी. "बुद्ध पूर्णिमा" (एचटीएम). अभिव्यक्ति. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  2. फ़ाओलर, जिनीन डी (१९९७). वर्ल्ड रिलीजन्स: एन इंट्रोडक्शन फ़ॉर स्टूडेन्ट्स. सुसेक्स ऐकॆडेमिक प्रेस. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1898723486. 
  3. लिखित कुमार आनंद. "बुद्ध पूर्णिमा" (एचटीएम). नूतन सवेरा. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  4. "बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती" (एचटीएम). वेब दुनिया. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  5. कैलेंडर ऑफ उपोसथ डेज़
  6. श्रीलंका पब्लिक हॉलिडेज़-२००९
  7. सिंगापुर पब्लिक हॉलिडेज़-२००९

बाहरी कड़ियाँ