सामग्री पर जाएँ

भारत में महिलाएँ

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
ताज परिसर में भारतीय महिलाएँ

भारत में महिलाओं की स्थिति ने पिछली कुछ सदियों में कई बड़े बदलावों का सामना किया है।[1][2] प्राचीन काल[3] में पुरुषों के साथ बराबरी की स्थिति से लेकर मध्ययुगीन काल[4] के निम्न स्तरीय जीवन और साथ ही कई सुधारकों द्वारा समान अधिकारों को बढ़ावा दिए जाने तक, भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है। आधुनिक भारत में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, प्रतिपक्ष की नेता आदि जैसे शीर्ष पदों पर आसीन हुई हैं।

विशेष रूप से महिलाओं की भूमिका की चर्चा करने वाले साहित्य के स्रोत बहुत ही कम हैं ; 1730 ई. के आसपास तंजावुर के एक अधिकारी त्र्यम्बकयज्वन का स्त्रीधर्मपद्धति इसका एक महत्वपूर्ण अपवाद है। इस पुस्तक में प्राचीन काल के अपस्तंभ सूत्र (चौथी शताब्दी ई.पू.) के काल के नारी सुलभ आचरण संबंधी नियमों को संकलित किया गया है।[5] इसका मुखड़ा छंद इस प्रकार है:

मुख्यो धर्मः स्मृतिषु विहितो भार्तृशुश्रुषानम हि :
स्त्री का मुख्य कर्तव्य उसके पति की सेवा से जुडा हुआ है।

जहाँ सुश्रूषा शब्द (अर्थात, “सुनने की चाह”) में ईश्वर के प्रति भक्त की प्रार्थना से लेकर एक दास की निष्ठापूर्ण सेवा तक कई तरह के अर्थ समाहित हैं।[6]

प्राचीन भारत

[संपादित करें]

विद्वानों का मानना है कि प्राचीन भारत में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था।[7] हालांकि कुछ अन्य विद्वानों का नज़रिया इसके विपरीत है।[8] पतंजलि और कात्यायन जैसे प्राचीन भारतीय व्याकरणविदों का कहना है कि प्रारम्भिक वैदिक काल[9][10] में महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी। ऋग्वेदिक ऋचाएं यह बताती हैं कि महिलाओं की शादी एक परिपक्व उम्र में होती थी और संभवतः उन्हें अपना पति चुनने की भी आजादी थी।[11] ऋग्वेद और उपनिषद जैसे ग्रंथ कई महिला साध्वियों और संतों के बारे में बताते हैं जिनमें गार्गी और मैत्रेयी के नाम उल्लेखनीय हैं।[12]

प्राचीन भारत के कुछ साम्राज्यों में नगरवधु (“नगर की दुल्हन”) जैसी परंपराएं मौजूद थीं। महिलाओं में नगरवधु के प्रतिष्ठित सम्मान के लिये प्रतियोगिता होती थी। आम्रपाली नगरवधु का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण रही है।

अध्ययनों के अनुसार प्रारंभिक वैदिक काल में महिलाओं को बराबरी का दर्जा और अधिकार मिलता था।[13] हालांकि बाद में (लगभग 500 ईसा पूर्व में) स्मृतियों (विशेषकर मनुस्मृति) के साथ महिलाओं की स्थिति में गिरावट आनी शुरु हो गयी और बाबर एवं मुगल साम्राज्य के इस्लामी आक्रमण के साथ और इसके बाद ईसाइयत ने महिलाओं की आजादी और अधिकारों को सीमित कर दिया। [4]

हालांकि जैन धर्म जैसे सुधारवादी आंदोलनों में महिलाओं को धार्मिक अनुष्ठानों में शामिल होने की अनुमति दी गयी है, भारत में महिलाओं को कमोबेश दासता और बंदिशों का ही सामना करना पड़ा है।[13] माना जाता है कि बाल विवाह की प्रथा छठी शताब्दी के आसपास शुरु हुई थी।[14]

मध्ययुगीन काल

[संपादित करें]
चित्र:Pastimes15.jpg
देवी राधारानी के चरणों में कृष्ण

समाज में भारतीय महिलाओं की स्थिति में मध्ययुगीन काल के दौरान और अधिक गिरावट आयी[4][7] जब भारत के कुछ समुदायों में सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह पर रोक, सामाजिक जिंदगी का एक हिस्सा बन गयी थी। भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों की जीत ने परदा प्रथा को भारतीय समाज में ला दिया। राजस्थान के राजपूतों में जौहर की प्रथा थी। भारत के कुछ हिस्सों में देवदासियां या मंदिर की महिलाओं को यौन शोषण का शिकार होना पड़ा था। बहुविवाह की प्रथा हिन्दू क्षत्रिय शासकों में व्यापक रूप से प्रचलित थी।[14] कई मुस्लिम परिवारों में महिलाओं को जनाना क्षेत्रों तक ही सीमित रखा गया था।

इन परिस्थितियों के बावजूद भी कुछ महिलाओं ने राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्रों में सफलता हासिल की। [4] रज़िया सुल्तान दिल्ली पर शासन करने वाली एकमात्र महिला सम्राज्ञी बनीं। गोंड की महारानी दुर्गावती ने 1564 में मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था। चांद बीबी ने 1590 के दशक में अकबर की शक्तिशाली मुगल सेना के खिलाफ़ अहमदनगर की रक्षा की। जहांगीर की पत्नी नूरजहाँ ने राजशाही शक्ति का प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल किया और मुगल राजगद्दी के पीछे वास्तविक शक्ति के रूप में पहचान हासिल की। मुगल राजकुमारी जहाँआरा और जेबुन्निसा सुप्रसिद्ध कवियित्रियाँ थीं और उन्होंने सत्तारूढ़ प्रशासन को भी प्रभावित किया। शिवाजी की माँ जीजाबाई को एक योद्धा और एक प्रशासक के रूप में उनकी क्षमता के कारण क्वीन रीजेंट के रूप में पदस्थापित किया गया था। दक्षिण भारत में कई महिलाओं ने गाँवों, शहरों और जिलों पर शासन किया और सामाजिक एवं धार्मिक संस्थानों की शुरुआत की। [14]

भक्ति आंदोलन ने महिलाओं की बेहतर स्थिति को वापस हासिल करने की कोशिश की और प्रभुत्व के स्वरूपों पर सवाल उठाया।[13] एक महिला संत-कवयित्री मीराबाई भक्ति आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में से एक थीं। इस अवधि की कुछ अन्य संत-कवयित्रियों में अक्का महादेवी, रामी जानाबाई और लाल देद शामिल हैं। हिंदुत्व के अंदर महानुभाव, वरकारी और कई अन्य जैसे भक्ति संप्रदाय, हिंदू समुदाय में पुरुषों और महिलाओं के बीच सामाजिक न्याय और समानता की खुले तौर पर वकालत करने वाले प्रमुख आंदोलन थे।

भक्ति आंदोलन के कुछ ही समय बाद सिक्खों के पहले गुरु, गुरु नानक ने भी पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता के संदेश को प्रचारित किया। उन्होंने महिलाओं को धार्मिक संस्थानों का नेतृत्व करने; सामूहिक प्रार्थना के रूप में गाये जाने वाले वाले कीर्तन या भजन को गाने और इनकी अगुआई करने; धार्मिक प्रबंधन समितियों के सदस्य बनने; युद्ध के मैदान में सेना का नेतृत्व करने; विवाह में बराबरी का हक और अमृत (दीक्षा) में समानता की अनुमति देने की वकालत की। अन्य सिख गुरुओं ने भी महिलाओं के प्रति भेदभाव के खिलाफ उपदेश दिए।

ऐतिहासिक प्रथाएं

[संपादित करें]

कुछ समुदायों में सती, जौहर और देवदासी जैसी परंपराओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और आधुनिक भारत में ये काफ़ी हद तक समाप्त हो चुकी हैं। हालांकि इन प्रथाओं के कुछ मामले भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी देखे जाते हैं। कुछ समुदायों में भारतीय महिलाओं द्वारा परदा प्रथा को आज भी जीवित रखा गया है और विशेषकर भारत के वर्तमान कानून के तहत एक गैरकानूनी कृत्य होने के बावजूद बाल विवाह की प्रथा आज भी प्रचलित है।

सती प्रथा एक प्राचीन और काफ़ी हद तक विलुप्त रिवाज है, कुछ समुदायों में विधवा को अपने पति की चिता में अपनी जीवित आहुति देनी पड़ती थी। हालांकि यह कृत्य विधवा की ओर से स्वैच्छिक रूप से किये जाने की उम्मीद की जाती थी, ऐसा माना जाता है कि कई बार इसके लिये विधवा को मजबूर किया जाता था। 1829 में अंग्रेजों ने इसे समाप्त कर दिया। आजादी के बाद से सती होने के लगभग चालीस मामले प्रकाश में आये हैं।[15] 1987 में राजस्थान की रूपकंवर का मामला सती प्रथा (रोक) अधिनियम का कारण बना। [16]

जौहर का मतलब सभी हारे हुए (सिर्फ राजपूत) योद्धाओं की पत्नियों और बेटियों के शत्रु द्वारा बंदी बनाये जाने और इसके बाद उत्पीड़न से बचने के लिये स्वैच्छिक रूप से अपनी आहुति देने की प्रथा है। अपने सम्मान के लिए मर-मिटने वाले पराजित राजपूत शासकों की पत्नियों द्वारा इस प्रथा का पालन किया जाता था। यह कुप्रथा केवल भारतीय राजपूतों शासक वर्ग तक सीमित थी प्रारंभ में और राजपूतों ने या शायद एक-आध किसी दूसरी जाति की स्त्री ने सति (पति/पिता की मृत्यु होने पर उसकी चिता में जीवित जल जाना) जिसे उस समय के समाज का एक वर्ग पुनीत धार्मिक कार्य मानने लगा था। कभी भी भारत की दूसरी लडाका कोमो या जिन्हे ईन्गलिश में "मार्शल कौमे" माना गया उनमें यह कुप्रथा कभी भी कोई स्थान न पा सकी। गुर्जरों व जाटों की स्त्रीयां युद्ध क्षेत्र में पति के कन्धे से कन्धा मिला दुश्मनों के दान्त खट्टे करते हुए शहीद हो जाती थी। मराठा महिलाएँ भी अपने योधा पति की युधभूमि में पूरा साथ देती रही हैं।

परदा वह प्रथा है जिसमें कुछ समुदायों में महिलाओं को अपने तन को इस प्रकार से ढंकना जरूरी होता है कि उनकी त्वचा और रूप-रंग का किसी को अंदाजा ना लगे।

देवदासी

[संपादित करें]
देवदासी दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में एक धार्मिक प्रथा है जिसमें देवता या मंदिर के साथ महिलाओं की “शादी” कर दी जाती है। यह परंपरा दसवीं सदी ए.डी. तक अच्छी तरह अपनी पैठ जमा जुकी थी।[17] बाद की अवधि में देवदासियों का अवैध यौन उत्पीडन भारत के कुछ हिस्सों में एक रिवाज बन गया।

अंग्रेजी शासन

[संपादित करें]

यूरोपीय विद्वानों ने 19वीं सदी में यह महसूस किया था कि हिंदू महिलाएं “स्वाभाविक रूप से मासूम” और अन्य महिलाओं से “अधिक सच्चरित्र” होती हैं।[18] अंग्रेजी शासन के दौरान राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फ़ुले, आदि जैसे कई सुधारकों ने महिलाओं के उत्थान के लिये लड़ाइयाँ लड़ीं. हालांकि इस सूची से यह पता चलता है कि राज युग में अंग्रेजों का कोई भी सकारात्मक योगदान नहीं था, यह पूरी तरह से सही नहीं है क्योंकि मिशनरियों की पत्नियाँ जैसे कि मार्था मौल्ट नी मीड और उनकी बेटी एलिज़ा काल्डवेल नी मौल्ट को दक्षिण भारत में लडकियों की शिक्षा और प्रशिक्षण के लिये आज भी याद किया जाता है – यह एक ऐसा प्रयास था जिसकी शुरुआत में स्थानीय स्तर पर रुकावटों का सामना करना पड़ा क्योंकि इसे परंपरा के रूप में अपनाया गया था। 1829 में गवर्नर-जनरल विलियम केवेंडिश-बेंटिक के तहत राजा राम मोहन राय के प्रयास सती प्रथा के उन्मूलन का कारण बने। विधवाओं की स्थिति को सुधारने में ईश्वर चंद्र विद्यासागर के संघर्ष का परिणाम विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1956 के रूप में सामने आया। कई महिला सुधारकों जैसे कि पंडिता रमाबाई ने भी महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य को हासिल करने में मदद की।

कर्नाटक में कित्तूर रियासत की रानी, कित्तूर चेन्नम्मा ने समाप्ति के सिद्धांत (डाक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स) की प्रतिक्रिया में अंग्रेजों के खिलाफ़ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया। तटीय कर्नाटक की महारानी अब्बक्का रानी ने 16वीं सदी में हमलावर यूरोपीय सेनाओं, उल्लेखनीय रूप से पुर्तगाली सेना के खिलाफ़ सुरक्षा का नेतृत्व किया। झाँसी की महारानी रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ़ 1857 के भारतीय विद्रोह का झंडा बुलंद किया। आज उन्हें सर्वत्र एक राष्ट्रीय नायिका के रूप में माना जाता है। अवध की सह-शासिका बेगम हज़रत महल एक अन्य शासिका थी जिसने 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किया था। उन्होंने अंग्रेजों के साथ सौदेबाजी से इनकार कर दिया और बाद में नेपाल चली गयीं। भोपाल की बेगमें भी इस अवधि की कुछ उल्लेखनीय महिला शासिकाओं में शामिल थीं। उन्होंने परदा प्रथा को नहीं अपनाया और मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण भी लिया।

चंद्रमुखी बसु, कादंबिनी गांगुली और आनंदी गोपाल जोशी कुछ शुरुआती भारतीय महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने शैक्षणिक डिग्रियाँ हासिल कीं।

1917 में महिलाओं के पहले प्रतिनिधिमंडल ने महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों की माँग के लिये विदेश सचिव से मुलाक़ात की जिसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन हासिल था। 1927 में अखिल भारतीय महिला शिक्षा सम्मेलन का आयोजन पुणे में किया गया था।[13] 1929 में मोहम्मद अली जिन्ना के प्रयासों से बाल विवाह निषेध अधिनियम को पारित किया गया जिसके अनुसार एक लड़की के लिये शादी की न्यूनतम उम्र चौदह वर्ष निर्धारित की गयी थी।[13][19] हालांकि महात्मा गाँधी ने स्वयं तेरह वर्ष की उम्र में शादी की, बाद में उन्होंने लोगों से बाल विवाहों का बहिष्कार करने का आह्वान किया और युवाओं से बाल विधवाओं के साथ शादी करने की अपील की। [20]

भारत की आजादी के संघर्ष में महिलाओं ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। भिकाजी कामा, डॉ॰ एनी बेसेंट, प्रीतिलता वाडेकर, विजयलक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर, अरुना आसफ़ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गाँधी कुछ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं। अन्य उल्लेखनीय नाम हैं मुथुलक्ष्मी रेड्डी, दुर्गाबाई देशमुख आदि। सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की झाँसी की रानी रेजीमेंट कैप्टेन लक्ष्मी सहगल सहित पूरी तरह से महिलाओं की सेना थी। एक कवियित्री और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनने वाली पहली भारतीय महिला और भारत के किसी राज्य की पहली महिला राज्यपाल थीं।

स्वतंत्र भारत

[संपादित करें]
इंदिरा गांधी

भारत में महिलाएं अब सभी तरह की गतिविधियों जैसे कि शिक्षा, राजनीति, मीडिया, कला और संस्कृति, सेवा क्षेत्र, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि में हिस्सा ले रही हैं।[4] इंदिरा गांधी जिन्होंने कुल मिलाकर पंद्रह वर्षों तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में सेवा की, दुनिया की सबसे लंबे समय तक सेवारत महिला प्रधानमंत्री हैं।[21]

भारत का संविधान सभी भारतीय महिलाओं को सामान अधिकार (अनुच्छेद 14), राज्य द्वारा कोई भेदभाव नहीं करने (अनुच्छेद 15 (1)), अवसर की समानता (अनुच्छेद 16), समान कार्य के लिए समान वेतन (अनुच्छेद 39 (घ)) की गारंटी देता है। इसके अलावा यह महिलाओं और बच्चों के पक्ष में राज्य द्वारा विशेष प्रावधान बनाए जाने की अनुमति देता है (अनुच्छेद 15(3)), महिलाओं की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का परित्याग करने (अनुच्छेद 51(ए)(ई)) और साथ ही काम की उचित एवं मानवीय परिस्थितियाँ सुरक्षित करने और प्रसूति सहायता के लिए राज्य द्वारा प्रावधानों को तैयार करने की अनुमति देता है। (अनुच्छेद 42)].[22]

भारत में नारीवादी सक्रियता ने 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध के दौरान रफ़्तार पकड़ी. महिलाओं के संगठनों को एक साथ लाने वाले पहले राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों में से एक मथुरा बलात्कार का मामला था। एक थाने (पुलिस स्टेशन) में मथुरा नामक युवती के साथ बलात्कार के आरोपी पुलिसकर्मियों के बरी होने की घटना 1979-1980 में एक बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों का कारण बनी। विरोध प्रदर्शनों को राष्ट्रीय मीडिया में व्यापक रूप से कवर किया गया और सरकार को साक्ष्य अधिनियम, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड संहिता को संशोधित करने और हिरासत में बलात्कार की श्रेणी को शामिल करने के लिए मजबूर किया गया।[22] महिला कार्यकर्ताएं कन्या भ्रूण हत्या, लिंग भेद, महिला स्वास्थ्य और महिला साक्षरता जैसे मुद्दों पर एकजुट हुईं.

प्रतिभा देवीसिंह पाटिल

चूंकि शराब की लत को भारत में अक्सर महिलाओं के खिलाफ हिंसा से जोड़ा जाता है,[23] महिलाओं के कई संगठनों ने आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में शराब-विरोधी अभियानों की शुरुआत की। [22] कई भारतीय मुस्लिम महिलाओं ने शरीयत कानून के तहत महिला अधिकारों के बारे में रूढ़िवादी नेताओं की व्याख्या पर सवाल खड़े किये और तीन तलाक की व्यवस्था की आलोचना की। [13]

1990 के दशक में विदेशी दाता एजेंसियों से प्राप्त अनुदानों ने नई महिला-उन्मुख गैरसरकारी संगठनों (एनजीओ) के गठन को संभव बनाया। स्वयं-सहायता समूहों एवं सेल्फ इम्प्लॉयड वुमेन्स एसोसिएशन (सेवा) जैसे एनजीओ ने भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए एक प्रमुख भूमिका निभाई है। कई महिलाएं स्थानीय आंदोलनों की नेताओं के रूप में उभरी हैं। उदाहरण के लिए, नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर.

भारत सरकार ने 2001 को महिलाओं के सशक्तीकरण (स्वशक्ति) वर्ष के रूप में घोषित किया था।[13] महिलाओं के सशक्तीकरण की राष्ट्रीय नीति 2001 में पारित की गयी थी।[24]

2006 में बलात्कार की शिकार एक मुस्लिम महिला इमराना की कहानी मीडिया में प्रचारित की गयी थी। इमराना का बलात्कार उसके ससुर ने किया था। कुछ मुस्लिम मौलवियों की उन घोषणाओं का जिसमें इमराना को अपने ससुर से शादी कर लेने की बात कही गयी थी, व्यापक रूप से विरोध किया गया और अंततः इमराना के ससुर को 10 साल की कैद की सजा दी गयी। कई महिला संगठनों और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा इस फैसले का स्वागत किया गया।[25]

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के एक दिन बाद, 9 मार्च 2010 को राज्यसभा ने महिला आरक्षण बिल को पारित कर दिया जिसमें संसद और राज्य की विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की व्यवस्था है।[26]

समय रेखा

[संपादित करें]

उनकी स्थिति में लगातार परिवर्तन को देश में महिलाओं द्वारा हासिल उपलब्धियों के माध्यम से उजागर किया जा सकता है:

  • 1879: जॉन इलियट ड्रिंकवाटर बिथयून ने 1849 में बिथयून स्कूल स्थापित किया, जो 1879 में बिथयून कॉलेज बनने के साथ भारत का पहला महिला कॉलेज बन गया।
  • 1883: चंद्रमुखी बसु और कादम्बिनी गांगुली ब्रिटिश साम्राज्य और भारत में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाली पहली महिलायें बनीं।
  • 1886: कादम्बिनी गांगुली और आनंदी गोपाल जोशी पश्चिमी दवाओं में प्रशिक्षित होने वाली भारत की पहली महिलायें बनीं।
  • 1905: कार चलाने वाली पहली भारतीय महिला सुज़ान आरडी टाटा थीं।[27]
  • 1916: पहला महिला विश्वविद्यालय, एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय की स्थापना समाज सुधारक धोंडो केशव कर्वे द्वारा केवल पांच छात्रों के साथ 2 जून 1916 को की गई।
  • 1917: एनी बेसेंट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली अध्यक्ष महिला बनीं।
  • 1919: पंडिता रामाबाई, अपनी प्रतिष्ठित समाज सेवा के कारण ब्रिटिश राज द्वारा कैसर-ए-हिंद सम्मान प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं।
  • 1925: सरोजिनी नायडू भारतीय मूल की पहली महिला थीं जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं।
  • 1927: अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना की गई।
  • 1944: आसिमा चटर्जी ऐसी पहली भारतीय महिला थीं जिन्हें किसी भारतीय विश्वविद्यालय द्वारा विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया।
  • 1947: 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के बाद, सरोजिनी नायडू संयुक्त प्रदेशों की राज्यपाल बनीं और इस तरह वे भारत की पहली महिला राज्यपाल बनीं।
  • 1951: डेक्कन एयरवेज की प्रेम माथुर प्रथम भारतीय महिला व्यावसायिक पायलट बनीं।
  • 1953: विजय लक्ष्मी पंडित यूनाइटेड नेशंस जनरल एसेम्बली की पहली महिला (और पहली भारतीय) अध्यक्ष बनीं।
  • 1959: अन्ना चान्डी, किसी उच्च न्यायालय (केरल उच्च न्यायालय) की पहली भारतीय महिला जज बनीं। [28]
  • 1963: सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, किसी भी भारतीय राज्य में यह पद सँभालने वाली वे पहली महिला थीं।
  • 1966: कैप्टेन दुर्गा बनर्जी सरकारी एयरलाइन्स, भारतीय एयरलाइंस, की पहली भारतीय महिला पायलट बनीं।
  • 1966: कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने समुदाय नेतृत्व के लिए रेमन मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त किया।
  • 1966: इंदिरा गाँधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।
  • 1970: कमलजीत संधू एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला थीं।
  • 1972: किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा (इंडियन पुलिस सर्विस) में भर्ती होने वाली पहली महिला थीं।[29]
  • 1979: मदर टेरेसा ने नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त किया और यह सम्मान प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला नागरिक बनीं।
  • 1984: 23 मई को, बचेन्द्री पाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।
  • 1989: न्यायमूर्ति एम॰ फातिमा बीबी भारत के उच्चतम न्यायालय की पहली महिला जज बनीं। [30]
  • 1997: कल्पना चावला, भारत में जन्मी ऐसी प्रथम महिला थीं जो अंतरिक्ष में गयीं। [31]
  • 1992: प्रिया झिंगन भारतीय थलसेना में भर्ती होने वाली पहली महिला कैडेट थीं (6 मार्च 1993 को उन्हें कमीशन किया गया)[32]
  • 1994: हरिता कौर देओल भारतीय वायु सेना में अकेले जहाज उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला पायलट बनी।
  • 2000: कर्णम मल्लेश्वरी ओलिंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं (सिडनी में 2000 के समर ओलिंपिक में कांस्य पदक)
  • 2002: लक्ष्मी सहगल भारतीय राष्ट्रपति पद के लिए खड़ी होने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं।
  • 2004: पुनीता अरोड़ा, भारतीय थलसेना में लेफ्टिनेंट जनरल के सर्वोच्च पद तक पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं।
  • 2007: प्रतिभा पाटिल भारत की प्रथम भारतीय महिला राष्ट्रपति बनीं।
  • 2009: मीरा कुमार भारतीय संसद के निचले सदन, लोक सभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं।
  • 2016: [पी वी सिंधु ने रियो ओलंपिक में रजत पदक जीतकर इतिहास रचा।

संस्कृति

[संपादित करें]

पूरे भारत में महिलाएं साड़ी (शरीर के चारों और घेरकर पहना जाने वाला एक लंबा कपड़े का टुकड़ा) और सलवार कमीज पहनती हैं। बिंदी महिलाओं के श्रृंगार का एक हिस्सा है। परंपरागत रूप से विवाहित हिंदू महिलाएं लाल बिंदी और सिंदूर लगाती हैं लेकिन अब ये महिलाओं के फैशन का हिस्सा बन गयी हैं।[33]

रंगोली (या कोलम) एक परंपरागत कला है जो भारतीय महिलाओं में बहुत लोकप्रिय है।

शिक्षा और आर्थिक विकास

[संपादित करें]

1992-93 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में केवल 9.2% घरों में ही महिलाएं मुखिया की भूमिका में हैं। हालांकि गरीबी की रेखा से नीचे के परिवारों में लगभग 35% को महिला-मुखिया द्वारा संचालित पाया गया है।[34]

गुजरात में कंप्यूटर क्लास

हालांकि भारत में महिला साक्षरता दर धीरे-धीरे बढ़ रही है लेकिन यह पुरुष साक्षरता दर से कम है। लड़कों की तुलना में बहुत ही कम लड़कियाँ स्कूलों में दाखिला लेती हैं और उनमें से कई बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देती हैं।[22] 1997 के नेशनल सैम्पल सर्वे डेटा के मुताबिक केवल केरल और मिजोरम राज्यों ने सार्वभौमिक महिला साक्षरता दर को हासिल किया है। ज्यादातर विद्वानों ने केरल में महिलाओं की बेहतर सामाजिक और आर्थिक स्थिति के पीछे प्रमुख कारक साक्षरता को माना है।[22]

अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम (एनएफई) के तहत राज्यों में 40% केंद्र और केन्द्र शासित प्रदेशों में 10% केंद्र विशेष रूप से महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।[उद्धरण चाहिए] वर्ष 2000 तक लगभग 0.3 मिलियन (तीन लाख) एनएफई केन्द्रों द्वारा तकरीबन 7.42 मिलियन (70 लाख 42 हज़ार) बच्चों को सेवा दी जा रही थी जिनमें से से लगभग 0.12 मिलियन (12 लाख) विशेष रूप से लड़कियों के लिए थे।[उद्धरण चाहिए] शहरी भारत में लड़कियाँ शिक्षा के मामले में लड़कों के लगभग साथ-साथ चल रही हैं। हालांकि ग्रामीण भारत में लड़कियों को आज भी लड़कों की तुलना में कम शिक्षित किया जाता है।

अमेरिका के वाणिज्य विभाग की 1998 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में महिलाओं की शिक्षा की एक मुख्य रुकावट अपर्याप्त स्कूली सुविधाएं (जैसे कि स्वच्छता संबंधी सुविधाएं), महिला शिक्षकों की कमी और पाठ्यक्रम में लिंग भेद हैं (ज्यादातर महिला चरित्रों को कमजोर और असहाय दर्शाया गया है।[35]

श्रमशक्ति की भागीदारी

[संपादित करें]

आम धारणा के विपरीत महिलाओं का एक बड़ा प्रतिशत कामकाजी है।[36] राष्ट्रीय आंकड़ा संग्रहण एजेंसियाँ इस तथ्य को स्वीकार करती हैं कि श्रमिकों के रूप में महिलाओं की भागीदारी को लेकर एक गंभीर न्यूनानुमान है।[22] हालांकि पारिश्रमिक पाने वाले महिला श्रमिकों की संख्या पुरुषों की तुलना में बहुत ही कम है। शहरी भारत में महिला श्रमिकों की एक बड़ी संख्या मौजूद है। एक उदाहरण के तौर पर सॉफ्टवेयर उद्योग में 30% कर्मचारी महिलाएं हैं। वे पारिश्रमिक और कार्यस्थल पर अपनी स्थिति के मामले में अपने पुरुष सहकर्मियों के साथ बराबरी पर हैं।

ग्रामीण भारत में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में कुल महिला श्रमिकों के अधिक से अधिक 89.5% तक को रोजगार दिया जाता है।[34] कुल कृषि उत्पादन में महिलाओं की औसत भागीदारी का अनुमान कुल श्रम का 55% से 66%% तक है। 1991 की विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में डेयरी उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी कुल रोजगार का 94% है। वन-आधारित लघु-स्तरीय उद्यमों में महिलाओं की संख्या कुल कार्यरत श्रमिकों का 51% है।[34]

श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़ सबसे प्रसिद्ध महिला व्यापारिक सफलता की कहानियों में से एक है। 2006 में भारत की पहली बायोटेक कंपनियों में से एक - बायोकॉन की स्थापना करने वाली किरण मजूमदार-शॉ को भारत की सबसे अमीर महिला का दर्जा दिया गया था। ललिता गुप्ते और कल्पना मोरपारिया (दोनों भारत की केवल मात्र ऐसी महिला व्यवासियों में शामिल हैं जिन्होंने फ़ोर्ब्स की दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में अपनी जगह बनायी है) भारत के दूसरे सबसे बड़े बैंक, आईसीआईसीआई बैंक को संचालित करती हैं।[37]

भूमि और संपत्ति संबंधी अधिकार

[संपादित करें]

अधिकांश भारतीय परिवारों में महिलाओं को उनके नाम पर कोई भी संपत्ति नहीं मिलती है और उन्हें पैतृक संपत्ति का हिस्सा भी नहीं मिलता है।[22] महिलाओं की सुरक्षा के कानूनों के कमजोर कार्यान्वयन के कारण उन्हें आज भी ज़मीन और संपत्ति में अपना अधिकार नहीं मिल पाता है।[38] वास्तव में जब जमीन और संपत्ति के अधिकारों की बात आती है तो कुछ क़ानून महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं।

1956 के दशक के मध्य के हिन्दू पर्सनल लॉ (हिंदू, बौद्ध, सिखों और जैनों पर लिए लागू) ने महिलाओं को विरासत का अधिकार दिया। हालांकि बेटों को पैतृक संपत्ति में एक स्वतंत्र हिस्सेदारी मिलती थी जबकि बेटियों को अपने पिता से प्राप्त संपत्ति के आधार पर हिस्सेदारी दी जाती थी। इसलिए एक पिता अपनी बेटी को पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से को छोड़कर उसे अपनी संपत्ति से प्रभावी ढंग से वंचित कर सकता था लेकिन बेटे को अपने स्वयं के अधिकार से अपनी हिस्सेदारी प्राप्त होती थी। इसके अतिरिक्त विवाहित बेटियों को, भले ही वह वैवाहिक उत्पीड़न का सामना क्यों ना कर रही हो उसे पैतृक संपत्ति में कोई आवासीय अधिकार नहीं मिलता था। 2005 में हिंदू कानूनों में संशोधन के बाद महिलाओं को अब पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाते हैं।[39]

1986 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक वृद्ध और तलाकशुदा मुस्लिम महिला, शाहबानो के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्हें गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। हालांकि कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं ने इस फैसले का जोर-शोर से विरोध किया और उन्होंने यह आरोप लगाया कि अदालत उनके निजी कानून में हस्तक्षेप कर रही है। बाद में केंद्र सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक संबंधी अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम को पारित किया।[40]

इसी तरह ईसाई महिलाओं ने तलाक और उत्तराधिकार के समान अधिकारों के लिए वर्षों तक संघर्ष किया है। 1994 में सभी गिरजाघरों ने महिला संगठनों के साथ संयुक्त रूप से एक कानून का मसौदा तैयार किया जिसे ईसाई विवाह और वैवाहिक समस्याओं का क़ानून (क्रिस्चियन मैरेज एंड मैट्रिमोनियल काउजेज बिल) कहा गया। हालांकि सरकार ने प्रासंगिक कानूनों में अभी तक कोई संशोधन नहीं किया है।[13]

महिलाओं के विरुद्ध अपराध

[संपादित करें]

पुलिस रिकॉर्ड में महिलाओं के खिलाफ भारत में अपराधों का उच्च स्तर दिखाई पड़ता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने 1998 में यह जानकारी दी थी कि 2010 तक महिलाओं के विरुद्ध अपराधों की विकास दर जनसंख्या वृद्धि दर से कहीं ज्यादा हो जायेगी.[22] पहले बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों को इनसे जुड़े सामाजिक कलंक की वजह से कई मामलों को पुलिस में दर्ज ही नहीं कराया जाता था। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के खिलाफ दर्ज किये गए अपराधों की संख्या में नाटकीय वृद्धि हुई है।[22]

यौन उत्पीड़न

[संपादित करें]

1990 में महिलाओं के विरुद्ध दर्ज की गयी अपराधों की कुल संख्या का आधा हिस्सा कार्यस्थल पर छेड़छाड़ और उत्पीड़न से संबंधित था।[22] लड़कियों से छेड़छाड़ (एव टीजिंग) पुरुषों द्वारा महिलाओं के यौन उत्पीड़न या छेड़छाड़ के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक चालबाज तरकीब (युफेमिज्म) है। कई कार्यकर्ता (एक्टिविस्ट) महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं के लिए "पश्चिमी संस्कृति" के प्रभाव को दोषी ठहराते हैं। विज्ञापनों या प्रकाशनों, लेखनों, पेंटिंग्स, चित्रों या किसी ऐसे तरीके से महिलाओं के अश्लील प्रतिनिधित्व को रोकने के लिए 1987 में महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम पारित किया गया था।[41] 1997 में एक ऐतिहासिक फैसले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थल में महिलाओं के यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक मजबूत पक्ष लिया। न्यायालय ने शिकायतों से बचने और इनके निवारण के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश भी जारी किया। बाद में राष्ट्रीय महिला आयोग ने इन दिशा-निर्देशों को नियोक्ताओं के लिए एक आचार संहिता के रूप में प्रस्तुत किया।[22]

1961 में भारत सरकार ने वैवाहिक व्यवस्थाओं में दहेज़ की मांग को अवैध करार देने वाला दहेज निषेध अधिनियम पारित किया।[42] हालांकि दहेज-संबंधी घरेलू हिंसा, आत्महत्या और हत्या के कई मामले दर्ज किये गए हैं। 1980 के दशक में कई ऐसे मामलों की सूचना दी गयी थी।[36]

1985 में दहेज निषेध (दूल्हा और दुल्हन को दिए गए उपहारों की सूचियों के रख-रखाव संबंधी) नियमों को तैयार किया गया था।[43] इन नियमों के अनुसार दुल्हन और दूल्हे को शादी के समय दिए गए उपहारों की एक हस्ताक्षरित सूची बनाकर रखा जाना चाहिए। इस सूची में प्रत्येक उपहार, उसका अनुमानित मूल्य, जिसने भी यह उपहार दिया है उसका नाम और संबंधित व्यक्ति से उसके रिश्ते एक संक्षिप्त विवरण मौजूद होना चाहिए। हालांकि इस तरह के नियमों को शायद ही कभी लागू किया जाता है।

1997 की एक रिपोर्ट[44] में यह दावा किया गया था कि दहेज़ के कारण प्रत्येक वर्ष कम से कम 5,000 महिलाओं की मौत हो जाती है और ऐसा माना जाता है कि हर दिन कम से कम एक दर्जन महिलाएं जान-बूझकर लगाई गयी "रसोईघर की आग" में जलाकर मार दी जाती हैं। इसके लिए उपयोग किया जाने वाला शब्द है "दुल्हन की आहुति" (ब्राइड बर्निंग) और स्वयं भारत में इसकी आलोचना की जाती है। शहरी शिक्षित समुदाय के बीच इस तरह के दहेज़ उत्पीड़न के मामलों में काफी कमी आई है।

बाल विवाह

[संपादित करें]

भारत में बाल विवाह परंपरागत रूप से प्रचलित रही है और यह प्रथा आज भी जारी है। ऐतिहासिक रूप से कम उम्र की लड़कियों को यौवनावस्था तक पहुँचने से पहले अपने माता-पिता के साथ रहना होता था। पुराने जमाने में बाल विधवाओं को एक बेहद यातनापूर्ण जिंदगी देने, सर को मुंडाने, अलग-थलग रहने और समाज से बहिष्कृत करने का दंड दिया जाता था।[20] हालांकि 1860 में बाल विवाह को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था लेकिन आज भी यह एक आम प्रथा है।[45]

यूनिसेफ की "स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रेन-2009" की रिपोर्ट के अनुसार 20-24 साल की उम्र की भारतीय महिलाओं के 47% की शादी 18 साल की वैध उम्र से पहले कर दी गयी थी जिसमें 56% महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों से थीं।[46] रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया कि दुनिया भर में होने वाले बाल विवाहों का 40% अकेले भारत में ही होता है।[47]

कन्या भ्रूण हत्या और लिंग के अनुसार गर्भपात

[संपादित करें]

भारत में पुरुषों का लिंगानुपात बहुत अधिक है जिसका मुख्य कारण यह है कि कई लड़कियां वयस्क होने से पहली ही मर जाती हैं।[22] भारत के जनजातीय समाज में अन्य सभी जातीय समूहों की तुलना में पुरुषों का लिंगानुपात कम है। ऐसा इस तथ्य के बावजूद है कि आदिवासी समुदायों के पास बहुत अधिक निम्न स्तरीय आमदनी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद हैं।[22] इसलिए कई विशेषज्ञों ने यह बताया है कि भारत में पुरुषों का उच्च स्तरीय लिंगानुपात कन्या शिशु हत्या और लिंग परीक्षण संबंधी गर्भपातों के लिए जिम्मेदार है।

जन्म से पहले अनचाही कन्या संतान से छुटकारा पाने के लिए इन परीक्षणों का उपयोग करने की घटनाओं के कारण बच्चे के लिंग निर्धारण में इस्तेमाल किये जा सकने वाले सभी चिकित्सकीय परीक्षणों पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया है। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में कन्या शिशु हत्या(कन्या शिशु को मार डालना) आज भी प्रचलित है।[22] भारत में दहेज परंपरा का दुरुपयोग लिंग-चयनात्मक गर्भपातों और कन्या शिशु हत्याओं के लिए मुख्य कारणों में से एक रहा है।

घरेलू हिंसा

[संपादित करें]

घरेलू हिंसा की घटनाएं निम्न स्तरीय सामाजिक-आर्थिक वर्गों (एसईसी) में अपेक्षाकृत अधिक होती हैं।[48] घरेलू हिंसा कानून, 2005 से महिलाओं का संरक्षण 26 अक्टूबर 2006 को अस्तित्व में आया।[48]

अनैतिक तस्करी (रोक) अधिनियम 1956 में पारित किया गया था।[49] हालांकि युवा लड़कियों और महिलाओं की तस्करी के कई मामले दर्ज किये गए हैं। इन महिलाओं को वेश्यावृत्ति, घरेलू कार्य या बाल श्रम के लिए मजबूर किया जाता रहा है।

अन्य चिंताएं

[संपादित करें]
वस्त्र प्रतिबंध


राजपूत, भारत के कुछ हिस्सों, विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में रहने वाले एक पितृसत्तात्मक कबीले ने पारंपरिक रूप से घूँघट का अभ्यास किया है, और कई लोग आज भी करते हैं। हालांकि हाल के वर्षों में, अधिक महिलाओं ने ऐसे सामाजिक मानदंडों को चुनौती देना शुरू कर दिया है। ग्रामीण हरियाणा की कई महिलाओं ने घूंघट को खारिज करना शुरू कर दिया है।


स्वास्थ्य

भारत में महिलाओं की औसत आयु की प्रत्याशा आज कई देशों की तुलना में कहीं कम है लेकिन इसमें पिछले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे सुधार देखा जा रहा है। कई परिवारों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों और महिलाओं को परिवार में पोषण संबंधी भेदभाव का सामना करना पड़ता है और ये कमजोर एवं कुपोषित होती हैं।[22]

भारत में मातृत्व संबंधी मृत्यु दर दुनिया भर में दूसरे सबसे ऊंचे स्तर पर है।[13] देश में केवल 42% जन्मों की निगरानी पेशेवर स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा की जाती है। ज्यादातर महिलाएं अपने बच्चे को जन्म देने के लिए परिवार की किसी महिला की मदद लेती हैं जिसके पास अक्सर ना तो इस कार्य की जानकारी होती है और ना ही माँ की जिंदगी खतरे में पड़ने पर उसे बचाने की सुविधाएं मौजूद होती हैं।[22] यूएनडीपी मानव विकास रिपोर्ट (1997) के अनुसार 88% गर्भवती महिलाएं (15-49 वर्ष के आयु वर्ग में) रक्ताल्पता (एनीमिया) से पीड़ित पायी गयी थीं।[34]

परिवार नियोजन

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में औसत महिलाओं के पास अपनी प्रजनन क्षमता पर थोड़ा या कोई नियंत्रण नहीं होता है। महिलाओं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के पास गर्भनिरोध के सुरक्षित एवं आत्म-नियंत्रित तरीके उपलब्ध नहीं होते हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली नसबंदी जैसे स्थायी तरीकों या आईयूडी जैसे लंबी-अवधि के तरीकों पर जोर देती है जिसके लिए बार-बार निगरानी की जरूरत नहीं होती है। कुल गर्भनिरोधक उपायों में 75% से अधिक नसबंदी होती है जिसमें महिला नसबंदी कुल नसबंदी में तकरीबन 95% तक होती है।[22]

स्वच्छता

भारत के ग्रामीण हिस्से में शौचालयों की भारी कमी है। भारत के सांस्कृतिक मानदंडों को देखते हुए, महिलाएं लड़कों की तरह खुले तौर पर शौच नहीं कर सकती हैं। महिलाओं को शौच करते समय दूसरों की नजरों से बचने के लिए रात का इंतजार करना पड़ता है। बिहार में स्वच्छता की पहुंच पर चर्चा की गई है। 2013 के एक अनुमान के अनुसार, बिहार में लगभग 85% ग्रामीण परिवारों के पास शौचालय नहीं है; और यह उन महिलाओं और लड़कियों के लिए एक खतरनाक स्थिति पैदा करता है जिनका खेतों में पीछा किया जाता है, उन पर हमला किया जाता है और उनके साथ बलात्कार किया जाता है।


2011 में भारत के सबसे बड़े शहर मुंबई में "पेशाब करने का अधिकार" (जैसा कि मीडिया द्वारा कहा जाता है) अभियान शुरू हुआ। इस अभ्यास के खिलाफ नियमों के बावजूद, महिलाओं को, लेकिन पुरुषों को नहीं, मुंबई में पेशाब करने के लिए भुगतान करना पड़ता है। खेतों में पेशाब करने के दौरान महिलाओं का यौन उत्पीड़न भी किया गया है।

उल्लेखनीय भारतीय महिलाएं

[संपादित करें]
कला और मनोरंजन

एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी, गंगूबाई हंगल, लता मंगेशकर और आशा भोंसले जैसी गायिकाएं एवं वोकलिस्ट और ऐश्वर्या राय जैसी अभिनेत्रियों को भारत में काफी सम्मान दिया जाता है। आंजोली इला मेनन प्रसिद्ध चित्रकारों में से एक हैं।

खेल

हालांकि भारत में सामान्य खेल परिदृश्य बहुत अच्छा नहीं है, कुछ भारतीय महिलाओं ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। भारत की कुछ प्रसिद्ध महिला खिलाड़ियों में पी.टी. उषा, जे. जे. शोभा (एथलेटिक्स), कुंजरानी देवी (भारोत्तोलन), डायना एडल्जी (क्रिकेट), साइना नेहवाल (बैडमिंटन), कोनेरू हम्पी (शतरंज) और सानिया मिर्जा (टेनिस) शामिल हैं। कर्णम मल्लेश्वरी (भारोत्तोलक) ओलंपिक पदक (वर्ष 2000 में कांस्य पदक) जीतने वाली भारतीय महिला हैं।

राजनीति

भारत में पंचायत राज संस्थाओं के माध्यम से दस लाख से अधिक महिलाओं ने सक्रिय रूप से राजनीतिक जीवन में प्रवेश किया है।[38] 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियमों के अनुसार सभी निर्वाचित स्थानीय निकाय अपनी सीटों में से एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित रखते हैं। हालांकि विभिन्न स्तर की राजनीतिक गतिविधियों में महिलाओं का प्रतिशत काफी बढ़ गया है, इसके बावजूद महिलाओं को अभी भी प्रशासन और निर्णयात्मक पदों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है।[22]

साहित्य

भारतीय साहित्य में कई सुप्रसिद्ध लेखिकाएं, कवियित्रियों और कथा-लेखिकाओं के रूप में जानी जाती हैं। इनमें से कुछ मशहूर नाम हैं सरोजनी नायडू, कमला सुरैया, शोभा डे, अरुंधति रॉय, अनीता देसाई. सरोजिनी नायडू को भारत कोकिला कहा जाता है। अरुंधति रॉय को उनके उपन्यास द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स के लिए बुकर पुरस्कार (मैन बुकर प्राइज) से सम्मानित किया गया था।

वाणिज्य

2013 अक्टूबर/नवंबर में भारत की लगभग आधे बैंक व वित्त उद्योग की अध्यक्षता महिलाओं के हाथ में थी।

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  1. "Rajya Sabha passes Women's Reservation Bill". द हिन्दू. Archived from the original on 25 दिसंबर 2018. Retrieved 25 अगस्त 2010. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  2. [hindu.com/2010/03/10/stories/2010031050880100.htm "Rajya Sabha passes Women's Reservation Bill"]. द हिन्दू. Retrieved 25 अगस्त 2010. {{cite web}}: Check |url= value (help)
  3. Jayapalan (2001). Indian society and social institutions. Atlantic Publishers & Distri. p. 145. ISBN 9788171569250. Archived from the original on 27 सितंबर 2013. Retrieved 26 नवंबर 2010. {{cite book}}: Check date values in: |access-date= (help)
  4. "Women in History". National Resource Center for Women. Archived from the original on 19 जून 2009. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)
  5. आदर्श पत्नी: त्रियम्बकयाज्वन द्वारा स्त्रीधर्मंपद्धति (महिलाओं के कर्त्तव्यों में सहायक) (अनुवादक जूलिया लेसली), पेंग्विन 1995 आईएसबीएन 0-14-043598-0.
  6. see extensive excerpts from strIdharmapaddhati at http://www.cse.iitk.ac.in/~amit/books/tryambakayajvan-1989-perfect-wife-stridharmapaddhati.html
  7. Mishra, R. C. (2006). Towards Gender Equality. Authorspress. ISBN 81-7273-306-2. Archived from the original on 29 अक्तूबर 2010. Retrieved 26 नवंबर 2010. {{cite book}}: Check date values in: |access-date= and |archive-date= (help)
  8. Pruthi, Raj Kumar; Rameshwari Devi and Romila Pruthi (2001). Status and Position of Women: In Ancient, Medieval and Modern India. Vedam books. ISBN 81-7594-078-6. Archived from the original on 14 फ़रवरी 2012. Retrieved 26 नवंबर 2010. {{cite book}}: Check date values in: |access-date= (help)
  9. कात्यायन द्वारा वर्त्तिका, 125, 2477
  10. पतंजलि द्वारा अष्टध्यायी के लिए टिप्पणियां 3.3.21 और 4.1.14
  11. आर.सी. मजूमदार और ए.डी. पुसल्कर (संपादक): भारतीय लोगों का इतिहास और संस्कृति. वॉल्यूम I, वैदिक युग. मुंबई: भारतीय विद्या भवन 1951, पी.394
  12. "Vedic Women: Loving, Learned, Lucky!". Archived from the original on 20 नवंबर 2006. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |archive-date= (help)
  13. "InfoChange women: Background & Perspective". Archived from the original on 24 जुलाई 2008. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)
  14. Jyotsana Kamat (2006-1). "Status of Women in Medieval Karnataka". Archived from the original on 1 जनवरी 2011. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |date= (help)
  15. Vimla Dang (19 जून 1998). "Feudal mindset still dogs women's struggle". The Tribune. Archived from the original on 19 दिसंबर 2006. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |archive-date= (help)
  16. "The Commission of Sati (Prevention) Act, 1987". Archived from the original on 21 नवंबर 2006. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |archive-date= (help)
  17. K. L. Kamat (19 दिसंबर 2006). "The Yellamma Cult". Archived from the original on 7 जुलाई 2018. Retrieved 25 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |date= (help)
  18. दुबोईस, जीन अंटोनी और बौचंप, हेनरी किंग, हिन्दू मैनर्स, कस्टम्स और सेरेमनिज़, कलेरेंडन प्रेस, 1897
  19. इयान ब्रायंट वेल्स, हिन्दू मुस्लिम यूनिटी का राजदूत
  20. Jyotsna Kamat (19 दिसंबर 2006). "Gandhi and Status of Women". Archived from the original on 9 दिसंबर 2010. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate=, |date=, and |archive-date= (help)
  21. "Oxford University's famous south Asian graduates#Indira Gandhi". BBc News. 5 मई 2010. Archived from the original on 19 मई 2010. Retrieved 26 नवंबर 2010. {{cite news}}: Check date values in: |access-date= (help); Italic or bold markup not allowed in: |publisher= (help)
  22. Kalyani Menon-Sen, A. K. Shiva Kumar (2001). "Women in India: How Free? How Equal?". संयुक्त राष्ट्र. Archived from the original on 11 सितंबर 2006. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)
  23. Victoria A. Velkoff and Arjun Adlakha (1998). "Women of the World: Women's Health in India" (PDF). U.S. Department of Commerce. Archived (PDF) from the original on 4 फ़रवरी 2007. Retrieved 25 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help); Unknown parameter |month= ignored (help)
  24. "National Policy For The Empowerment Of Women (2001)". Archived from the original on 5 फ़रवरी 2014. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)
  25. "OneWorld South Asia News: Imrana". Archived from the original on 27 सितंबर 2007. Retrieved 25 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)
  26. "Rajya Sabha passes Women's Reservation Bill". Archived from the original on 25 दिसंबर 2018. Retrieved 25 अगस्त 2010. {{cite web}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  27. "Mumbai Police History". Archived from the original on 23 दिसंबर 2006. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |archive-date= (help)
  28. "High Court of Kerala: Former Chief Justices / Judges". Archived from the original on 14 दिसंबर 2006. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |archivedate= (help)
  29. "Kiran Bedi Of India Appointed Civilian Police Adviser". Archived from the original on 15 फ़रवरी 2011. Retrieved 25 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)
  30. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 14 दिसंबर 2006. Retrieved 26 नवंबर 2010. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= and |archive-date= (help)
  31. http://www.funlok.com/modules.php?name=News&file=article&sid=1498[मृत कड़ियाँ]
  32. "Army'S First Lady Cadet Looks Back". Archived from the original on 5 फ़रवरी 2007. Retrieved 30 मार्च 2007.
  33. "कामतस पॉटपुरी: दी सिग्निफिकेंस ऑफ दी होली डॉट (बिंदी)". Archived from the original on 16 जून 2009. Retrieved 26 नवंबर 2010. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  34. "Asia's women in agriculture, environment and rural production: India". Archived from the original on 30 जून 2014. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)
  35. Victoria A. Velkoff (1998). "Women of the World: Women's Education in India" (PDF). U.S. Department of Commerce. Archived (PDF) from the original on 3 फ़रवरी 2007. Retrieved 25 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help); Unknown parameter |month= ignored (help)
  36. "Women of India: Frequently Asked Questions". 19 दिसंबर 2006. Archived from the original on 24 नवंबर 2010. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate=, |date=, and |archive-date= (help)
  37. इंडियाज़ मोस्ट पावरफुल बिजनेसवूमन. Forbes.com.
  38. Carol S. Coonrod (1998). "Chronic Hunger and the Status of Women in India". Archived from the original on 10 सितंबर 2014. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help); Unknown parameter |month= ignored (help)
  39. "दी हिंदू सक्सेशन (अमेन्ड्मेन्ट) एक्ट, 2005". Archived from the original on 16 जुलाई 2011. Retrieved 26 नवंबर 2010. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  40. "The Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act". 1986. Archived from the original on 27 दिसंबर 2007. Retrieved 14 फरवरी 2008. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |archivedate= (help); Unknown parameter |month= ignored (help)
  41. "The Indecent Representation of Women (Prohibition) Act, 1987". Archived from the original on 21 नवंबर 2006. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |archive-date= (help)
  42. "The Dowry Prohibition Act, 1961". Archived from the original on 9 सितंबर 2015. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)
  43. "The Dowry Prohibition (maintenance of lists of presents to the bride and bridegroom) rules, 1985". Archived from the original on 21 नवंबर 2006. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |archive-date= (help)
  44. रसोईघर की आग अपर्याप्त दहेज लाने वाली भारतीय दुल्हनों की मृत्यु का कारण बनती है, 23 जुलाई 1997, नई दिल्ली, यूपीआई
  45. "Child marriages targeted in India". बीबीसी न्यूज़. 24 अक्टूबर 2001. Archived from the original on 5 मई 2009. Retrieved 26 नवंबर 2010. {{cite news}}: Check date values in: |access-date= (help)
  46. "संग्रहीत प्रति" (PDF). Archived (PDF) from the original on 19 जून 2009. Retrieved 26 नवंबर 2010. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  47. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 15 जून 2009. Retrieved 26 नवंबर 2010. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  48. सोमाद्रि शर्मा (१९ जून २०१२). "अब तक तेरी यही कहानी". राजस्थान पत्रिका. p. २. Archived from the original on 17 अक्तूबर 2014. Retrieved ११ अक्टूबर २०१४. {{cite news}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  49. "The Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956". Archived from the original on 27 सितंबर 2007. Retrieved 24 दिसंबर 2006. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)

संदर्भग्रन्थ

[संपादित करें]
  • क्लेरिस्स बदर द्वारा वूमन इन ऐन्शन्ट इण्डिया . ट्रबनर्स ओरिएंटल सीरीज. रौत्लेदगे, 2001. आईएसबीएन 978-0-415-24489-3.

बाहरी कड़ियाँ

[संपादित करें]