हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य
हिंदी पट्टी के रूप में भी जाना जाता है, उत्तरी, मध्य, पूर्वी और पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों को शामिल करने वाला एक भाषाई क्षेत्र है जहां विभिन्न केंद्रीय हिन्द-आर्य भाषाओं को 'हिंदी' शब्द के तहत सम्मिलित किया जाता है (उदाहरण के लिए, भारतीय जनगणना द्वारा) बोली जाने।[1][2][3][4][5] हिंदी बेल्ट का उपयोग कभी-कभी नौ भारतीय राज्यों को संदर्भित करने के लिए भी किया जाता है, जिनकी आधिकारिक भाषा हिंदी है, अर्थात् बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का क्षेत्र।[6][7][8][9]
हिन्दी की अनेक बोलियाँ का (उपभाषाएँ) है जिनमें अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, हड़ौती,खड़ी बोली, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, नागपुरी, खोरठा, पंचपरगनिया, कुमाउँनी, मगही, मेवाती,फ़ीजी हिन्दी आदि प्रमुख हैं। इनमें से कुछ में अत्यन्त उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना हुई है। ऐसी बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। यह बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परंपरा, इतिहास, सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतंत्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के खिलाफ भी उसका रचना संसार सचेत है।[10]
मोटे तौर पर हिन्द (भारत) की किसी भाषा को 'हिन्दी' कहा जा सकता है। भारत में अंग्रेजी शासन के पूर्व इसका प्रयोग इसी अर्थ में किया जाता था। पर वर्तमानकाल में सामान्यतः इसका व्यवहार उस विस्तृत भूखंड की भाषा के लिए होता है जो पश्चिम में जैसलमेर, उत्तर पश्चिम में अंबाला, उत्तर में शिमला, पूर्व में नवाडा, दक्षिण पूर्व में रायपुर तथा दक्षिण-पश्चिम में खंडवा तक फैली हुई है। हिन्दी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिंदी तथा पूर्वी हिंदी।
पश्चिमी और पूर्वी हिंदी
[संपादित करें]जैसा ऊपर कहा गया है, अपने सीमित भाषाशास्त्रीय अर्थ में हिंदी के दो उपरूप माने जाते हैं - पश्चिमी हिंदी और पूर्वी हिंदी।
पश्चिमी हिन्दी
[संपादित करें]पश्चिमी हिन्दी का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है। इसके अंतर्गत पाँच बोलियाँ हैं - खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रजभाषा, कन्नौजी और बुंदेली। खड़ी बोली अपने मूल रूप में मेरठ, रामपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बागपत के आसपास बोली जाती है। इसी के आधार पर आधुनिक हिंदी और उर्दू का रूप खड़ा हुआ। बांगरू को जाटू या हरियाणवी भी कहते हैं। यह पंजाब के दक्षिण पूर्व में बोली जाती है। कुछ विद्वानों के अनुसार बांगरू खड़ी बोली का ही एक रूप है जिसमें पंजाबी और राजस्थानी का मिश्रण है। ब्रजभाषा मथुरा के आसपास ब्रजमंडल में बोली जाती है। हिंदी साहित्य के मध्ययुग में ब्रजभाषा में उच्च कोटि का काव्य निर्मित हुआ। इसलिए इसे बोली न कहकर आदरपूर्वक भाषा कहा गया। मध्यकाल में यह बोली संपूर्ण हिंदी प्रदेश की साहित्यिक भाषा के रूप में मान्य हो गई थी। पर साहित्यिक ब्रजभाषा में ब्रज के ठेठ शब्दों के साथ अन्य प्रांतों के शब्दों और प्रयोगों का भी ग्रहण है। कन्नौजी गंगा के मध्य दोआब की बोली है। इसके एक ओर ब्रजमंडल है और दूसरी ओर अवधी का क्षेत्र। यह ब्रजभाषा से इतनी मिलती जुलती है कि इसमें रचा गया जो थोड़ा बहुत साहित्य है वह ब्रजभाषा का ही माना जाता है। बुंदेली बुंदेलखंड की उपभाषा है। बुंदेलखंड में ब्रजभाषा के अच्छे कवि हुए हैं जिनकी काव्यभाषा पर बुंदेली का प्रभाव है।
पूर्वी हिन्दी
[संपादित करें]पूर्वी हिंदी की तीन शाखाएँ हैं - अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी। अवधी अर्धमागधी प्राकृत की परंपरा में है। यह अवध में बोली जाती है। इसके दो भेद हैं - पूर्वी अवधी और पश्चिमी अवधी। अवधी को बैसवाड़ी भी कहते हैं। तुलसी के रामचरितमानस में अधिकांशत: पश्चिमी अवधी मिलती हैं और जायसी के पदमावत में पूर्वी अवधी। अवधी साहित्य की दृष्टि से बेहद ही समृद्ध है, सूफी काव्य का अधिकांश हिस्सा अवधी में ही रचा गया तथा सगुण भक्तिकाव्य भी प्रभूत मात्रा में अवधी में लिखा गया है। बघेली बघेलखंड में प्रचलित है। यह अवधी का ही एक दक्षिणी रूप है तथा इसमें लोकसहित्य भरपूर मात्रा में रचा गया है। छत्तीसगढ़ी पलामू (झारखण्ड) की सीमा से लेकर दक्षिण में बस्तर तक और पश्चिम में बघेलखंड की सीमा से उड़ीसा की सीमा तक फैले हुए भूभाग की बोली है। इसमें प्राचीन साहित्य नहीं मिलता। वर्तमान काल में कुछ लोकसाहित्य रचा गया है।
बिहारी, राजस्थानी और पहाड़ी हिन्दी
[संपादित करें]हिंदी प्रदेश की तीन उपभाषाएँ और हैं - बिहारी, राजस्थानी और पहाड़ी हिंदी।
बिहारी की तीन शाखाएँ हैं - भोजपुरी, मगही और मैथिली। बिहार के एक कस्बे भोजपुर के नाम पर भोजपुरी बोली का नामकरण हुआ। पर भोजपुरी का प्रसार बिहार से अधिक उत्तर प्रदेश में है। बिहार के शाहाबाद, चंपारन और सारन जिले से लेकर गोरखपुर तथा बनारस तक का क्षेत्र भोजपुरी का है। हिंदी प्रदेश की बोलियों में भोजपुरी बोलनेवालों की संख्या सबसे अधिक है। इसमें प्राचीन साहित्य तो नहीं मिलता पर ग्रामगीतों के अतिरिक्त वर्तमान काल में कुछ साहित्य रचने का प्रयत्न भी हो रहा है। मगही के केंद्र पटना और गया हैं। इसके लिए कैथी लिपि का व्यवहार होता है। पर आधुनिक मगही साहित्य मुख्यतः देवनागरी लिपि में लिखी जा रही है। मगही का आधुनिक साहित्य बहुत समृद्ध है और इसमें प्रायः सभी विधाओं में रचनाओं का प्रकाशन हुआ है।
राजस्थानी का प्रसार पंजाब के दक्षिण में है। यह पूरे राजपूताने और मध्य प्रदेश के मालवा में बोली जाती है। राजस्थानी का संबंध एक ओर ब्रजभाषा से है और दूसरी ओर गुजराती से। पुरानी राजस्थानी को डिंगल कहते हैं। जिसमें चारणों का लिखा हिंदी का आरंभिक साहित्य उपलब्ध है। राजस्थानी में गद्य साहित्य की भी पुरानी परंपरा है। राजस्थानी की चार मुख्य बोलियाँ या विभाषाएँ हैं- मेवाती, मालवी, जयपुरी और मारवाड़ी। मारवाड़ी का प्रचलन सबसे अधिक है। राजस्थानी के अंतर्गत कुछ विद्वान् भीली को भी लेते हैं।
पहाड़ी उपभाषा राजस्थानी से मिलती जुलती हैं। इसका प्रसार हिंदी प्रदेश के उत्तर हिमालय के दक्षिणी भाग में नेपाल से शिमला तक है। इसकी तीन शाखाएँ हैं - पूर्वी, मध्यवर्ती और पश्चिमी। पूर्वी पहाड़ी नेपाल की प्रधान भाषा है जिसे नेपाली और परंबतिया भी कहा जाता है। मध्यवर्ती पहाड़ी कुमायूँ और गढ़वाल में प्रचलित है। इसके दो भेद हैं - कुमाउँनी और गढ़वाली। ये पहाड़ी उपभाषाएँ नागरी लिपि में लिखी जाती हैं। इनमें पुराना साहित्य नहीं मिलता। आधुनिक काल में कुछ साहित्य लिखा जा रहा है। कुछ विद्वान् पहाड़ी को राजस्थानी के अंतर्गत ही मानते हैं। पश्चिमी पहाड़ी हिमाचल प्रदेश में बोली जाती है। इसकी मुख्य उपबोलियों में मंडियाली, कुल्लवी, चाम्बियाली, क्योँथली, कांगड़ी, सिरमौरी, बघाटी और बिलासपुरी प्रमुख हैं।
प्रयोग-क्षेत्र के अनुसार वर्गीकरण
[संपादित करें]हिन्दी भाषा का भौगोलिक विस्तार काफी दूर–दूर तक है जिसे तीन क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है:-
- (क) हिन्दी क्षेत्र – हिन्दी क्षेत्र में हिन्दी की मुख्यत: सत्रह बोलियाँ बोली जाती हैं, जिन्हें पाँच बोली वर्गों में इस प्रकार विभक्त कर के रखा जा सकता है- पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, राजस्थानी हिन्दी, पहाडी हिन्दी और बिहारी हिन्दी।
- (ख) अन्य भाषा क्षेत्र– इनमें प्रमुख बोलियाँ इस प्रकार हैं- दक्खिनी हिन्दी (गुलबर्गी, बीदरी, बीजापुरी तथा हैदराबादी आदि), बम्बइया हिन्दी, कलकतिया हिन्दी तथा शिलंगी हिन्दी (बाजार-हिन्दी) आदि।
- (ग) भारतेतर क्षेत्र – भारत के बाहर भी कई देशों में हिन्दी भाषी लोग काफी बड़ी संख्या में बसे हैं। सीमावर्ती देशों के अलावा यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, रुस, जापान, चीन तथा समस्त दक्षिण पूर्व व मध्य एशिया में हिन्दी बोलने वालों की बहुत बडी संख्या है। लगभग सभी देशों की राजधानियों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी एक विषय के रूप में पढी-पढाई जाती है। भारत के बाहर हिन्दी की प्रमुख बोलियाँ – ताजुज्बेकी हिन्दी, मारिशसी हिन्दी, फीज़ी हिन्दी, सूरीनामी हिन्दी आदि हैं।[11]
हिंदी प्रदेशों की हिंदी बोलियाँ
[संपादित करें]- खड़ी बोली-देहरादून,सहारनपुर,मुजफ्फरनगर,मेरठi,बिजनौर,रामपुर और मुरादाबाद।
- बृजभाषा-आगरा,मथुरा,अलीगढ़,मैनपुरी,एटा,हाथरस,बदायूं,बरेली,धौलपुर।
- हरियाणवी-हरियाणा और दिल्ली के देहाती प्रदेश।
- बुंदेली-झांसी,जालौन,हमीरपुर,ओरछा,सागर,नृसिंहपुर, सिवनी,होशंगाबादल
- कन्नौजी : उत्तर प्रदेश के इटावा, फ़र्रूख़ाबाद, शाहजहांपुर, कानपुर, हरदोई और पीलीभीत, जिलों के ग्रामीणांचल में बहुतायत से बोली जाती है।
- अवधी- कानपुर,लखनऊ,बाराबंकी,उन्नाव,रायबरेली,सीतापुर,फतेहपुर,अयोध्या,गोंडा,प्रयागराज,बलरामपुर, सिद्धार्थनगर,बस्ती,अमेठी,कौशाम्बी,चित्रकूट, भदोही,बहराइच, श्रावस्ती,अम्बेडकरनगर,लखीमपुर,जौनपुर,प्रतापगढ़,सुल्तानपुर जिले।
- बघेली- रीवा, सतना, सीधी, शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, सिंगरौली (वैढ़न), मऊगंज, मैहर
- छत्तीसगढ़ी-बिलासपुर,दुर्ग,रायपुर,रायगढ़,राजनन्दगांव,कांकेर,महासमुंद,सरगुजा,कोरिया।
राजस्थानी
[संपादित करें]- पूर्वी पहाड़ी, जिसमें नेपाली आती है
- मध्यवर्ती पहाड़ी, जिसमें कुमाऊंनी और गढ़वाली बोलियां आती है।
- पश्चिमी पहाड़ी, जिसमें हिमाचल प्रदेश की अनेक बोलियां आती हैं।
हिंदीतर प्रदेशों की हिंदी बोलियाँ
[संपादित करें]- बंबइया हिंदी
- कलकतिया हिंदी
- दक्खिनी
विदेशों में बोली जाने वाली हिंदी बोलियाँ
[संपादित करें]- उजबेकिस्तान
- मध्यपूर्व
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ B.L. Sukhwal (1985), Modern Political Geography of India, Stosius Inc/Advent Books Division, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780865906082,
... In the Hindi heartland ...
- ↑ Stuart Allan, Barbie Zelizer (2004), Reporting war: journalism in wartime, Routledge, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-415-33998-7,
... located in what is called the "Hindi heartland" or the "Hindi belt" of north and central India ...
- ↑ B.S. Kesavan (1997), Origins of printing and publishing in the Hindi heartland (Volume 3 of History of printing and publishing in India : a story of cultural re-awakening), National Book Trust, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-237-2120-X
- ↑ "Battle for the Hindi heartland: Will it favour the BJP again?". www.orfonline.org.
- ↑ "Congress' revival in Hindi patti". www.nationalheraldindia.com. 8 February 2019.
- ↑ "How languages intersect in India". Hindustan Times. 22 November 2018.
- ↑ "How many Indians can you talk to?". www.hindustantimes.com. अभिगमन तिथि 22 December 2019.
- ↑ "Hindi and the North-South divide". 9 October 2018.
- ↑ Pillalamarri, Akhilesh. "India's Evolving Linguistic Landscape". thediplomat.com. अभिगमन तिथि 22 December 2019.
- ↑ "अपने घर में कब तक बेगानी रहेगी हिन्दी" (एचटीएम). वेब दुनिया. अभिगमन तिथि 9 जून 2008.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ] - ↑ "हिन्दी". हिन्दी में लिनक्स. मूल (एचटीएमएल) से 23 मार्च 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 जून 2008.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- हिन्दी भाषा क्षेत्र (प्रोफेसर महावीर सरन जैन)
- हिंदी लोक शब्दकोश परियोजना
- हिन्दी की बोलियों के शब्दकोश
- हिन्दी की बोलियों की विस्तृत सूची (संस्कृति_यूके)
- हिंदी के टूटने से देश की भाषिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाएगी (करुणाशंकर उपाध्याय ; 27/07/2017)
- बोलियों को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का विरोध क्यों हो रहा है? (अमरनाथ ; 21/07/2017)