गया
गया Gaya | |
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गया का विष्णुपाद मंदिर, जिसमें विष्णु के चरण-चिन्ह होने की मान्यता है | |
निर्देशांक: 24°45′N 85°01′E / 24.75°N 85.01°Eनिर्देशांक: 24°45′N 85°01′E / 24.75°N 85.01°E | |
ज़िला | गया ज़िला |
प्रान्त | बिहार मगध |
देश | भारत |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 4,70,839 |
भाषा | |
• प्रचलित | मगही, मगही |
पिनकोड | 823001 - 13 |
दूरभाष कोड | 91-631 |
वाहन पंजीकरण | BR 02 |
रेल स्टेशन | गया जंक्शन |
हवाई अड्डा | गया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा |
वेबसाइट | www |
गया (Gaya) भारत के बिहार राज्य के गया ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय और बिहार राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। इस क्षेत्र के लोग मगही भाषा बोलते हैं। गया भारत के अतंरराष्ट्रीय पर्यटक स्थलों मे से एक है। यहाँ पर विदेशी पर्यटकों लाखों की संख्या मे आते हैं। इस नगर का हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों में गहरा ऐतिहासिक महत्व है। शहर का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। गया तीन ओर से छोटी व पथरीली पहाड़ियों से घिरा है, जिनके नाम मंगला-गौरी, शृंग स्थान, रामशिला और ब्रह्मयोनि हैं। नगर के पूर्व में फल्गू नदी बहती है।[1][2]
विवरण
[संपादित करें]वैदिक कीकट प्रदेश के धर्मारण्य क्षेत्र मे स्थापित नगरी है गया। वाराणसी की तरह गया की प्रसिद्धि मुख्य रूप से एक धार्मिक नगरी के रूप में है। पितृपक्ष के अवसर पर यहाँ हजारों श्रद्धालु पिंडदान के लिये जुटते हैं।[3][4] गया सड़क, रेल और वायु मार्ग द्वारा पूरे भारत से जुड़ा है। नवनिर्मित गया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा द्वारा यह थाइलैंड से भी सीधे जुड़ा हुआ है। गया से 13 किलोमीटर की दूरी पर बोधगया स्थित है जो बौद्ध तीर्थ स्थल है और यहीं बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
गया बिहार के महत्वपूर्ण तीर्थस्थानों में से एक है।[5] यह शहर खासकर हिन्दू तीर्थयात्रियों के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां का विष्णुपद मंदिर पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है।[6] पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के पांव के निशान पर इस मंदिर का निर्माण कराया गया है। हिन्दू धर्म में इस मंदिर को अहम स्थान प्राप्त है। गया पितृदान के लिए भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहां फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है।
गया, मध्य बिहार का एक महत्वपूर्ण शहर है, जो फल्गु नदी के तट पर स्थित है। यह बोधगया से 13 किलोमीटर उत्तर तथा राजधानी पटना से 100 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यहां का मौसम मिलाजुला है। गर्मी के दिनों में यहां काफी गर्मी पड़ती है और ठंड के दिनों में औसत सर्दी होती है। मानसून का भी यहां के मौसम पर व्यापक असर होता है। लेकिन वर्षा ऋतु में यहां का दृश्य काफी रोचक होता है।
कहा जाता है कि गयासुर नामक दैत्य जो की श्री हरी विष्णु का परम भक्त था उसने अपनी भक्ती से नारायण को प्रसन्न किया जिससे भगवान ने उसे मनचाहा वरदान को कहा पर उन्होंने स्वयं के लिए कुछ ना मांगकर कहा की यज्ञ करते समय मेरे दर्शन से कोई भी जंतु के सभी दोष क्षमा कर दिये जाये इसके उपरांत कै राक्षस पाप कर के उनके दर्शन करने लगे और पाप मुक्त हो गये जिसके बढ़ भगवान बिष्णु ने उन्हे धरती के भीतर यज्ञ करने को कहा ओर उन्हे धरती के भीतर अपने पैरो से भेज दिया यह करते समय भगवान विष्णु के पद चिह्न यहां पड़े थे जो आज भी विष्णुपद मंदिर में देखे जा सकते है।मुक्तिधाम के रूप में प्रसिद्ध गया (तीर्थ) को केवल गया न कह कर आदरपूर्वक 'गया जी' कहा जाता है।
इतिहास
[संपादित करें]गया का उल्लेख महाकाव्य रामायण में भी मिलता है। गया मौर्य काल में एक महत्वपूर्ण नगर था। खुदाई के दौरान सम्राट अशोक से संबंधित आदेश पत्र पाया गया है। मध्यकाल में बिहार मुगल सम्राटों के अधीन था।मुगलकाल के पतन के उपरांत गया पर अंग्रेजो ने राज किया। 1787 में होल्कर वंश की( बुंदेलखंड की) साम्राज्ञी महारानी अहिल्याबाई ने विष्णुपद मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। मेगास्थनीज़ की इण्डिका, फाह्यान तथा ह्वेनसांग के यात्रा वर्णन में गया का एक समृद्ध धर्म क्षेत्र के रूप मे वर्णन है।करीब ५०० ई॰पू. में गौतम बुद्ध फाल्गु नदी के तट पर पहुंचे और बोधि पेड़ के नीचे तपस्या कर्ने बैठे। तीन दिन और रात के तपस्या के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिस्के बाद से वे बुद्ध के नाम से जाने गए। इसके बाद उन्होंने वहां ७ हफ्ते अलग अलग जगहों पर ध्यान करते हुए बिताया और फिर सारनाथ जा कर धर्म का प्रचार शुरू किया। बुद्ध के अनुयायिओं ने बाद में उस जगह पर जाना शुरू किया जहां बुद्ध ने वैशाख महीने में पुर्णिमा के दिन ज्ञान की प्रप्ति की थी। धीरे धीरे ये जगह बोध्गया के नाम से जाना गया और ये दिन बुद्ध पुर्णिमा के नाम से जाना गया।
लगभग 528 ई॰ पू. के वैशाख (अप्रैल-मई) महीने में कपिलवस्तु के राजकुमार गौतम ने सत्य की खोज में घर त्याग दिया। गौतम ज्ञान की खोज में निरंजना नदी के तट पर बसे एक छोटे से गांव उरुवेला आ गए। वह इसी गांव में एक पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान साधना करने लगे। एक दिन वह ध्यान में लीन थे कि गांव की ही एक लड़की सुजाता उनके लिए एक कटोरा खीर तथा शहद लेकर आई। इस भोजन को करने के बाद गौतम पुन: ध्यान में लीन हो गए। इसके कुछ दिनों बाद ही उनके अज्ञान का बादल छट गया और उन्हें ज्ञान की प्राप्ित हुई। अब वह राजकुमार सिद्धार्थ या तपस्वी गौतम नहीं थे बल्कि बुद्ध थे। बुद्ध जिसे सारी दुनिया को ज्ञान प्रदान करना था। ज्ञान प्राप्ित के बाद वे अगले सात सप्ताह तक उरुवेला के नजदीक ही रहे और चिंतन मनन किया। इसके बाद बुद्ध वाराणसी के निकट सारनाथ गए जहां उन्होंने अपने ज्ञान प्राप्ित की घोषणा की। बुद्ध कुछ महीने बाद उरुवेला लौट गए। यहां उनके पांच मित्र अपने अनुयायियों के साथ उनसे मिलने आए और उनसे दीक्षित होने की प्रार्थना की। इन लोगों को दीक्षित करने के बाद बुद्ध राजगीर चले गए। इसके बुद्ध के उरुवेला वापस लौटने का कोई प्रमाण नहीं मिलता है। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के बाद उरुवेला का नाम इतिहास के पन्नों में खो जाता है। इसके बाद यह गांव सम्बोधि, वैजरसना या महाबोधि नामों से जाना जाने लगा। बोधगया शब्द का उल्लेख 18 वीं शताब्दी से मिलने लगता है।
विश्वास किया जाता है कि महाबोधि मंदिर में स्थापित बुद्ध की मूर्त्ति संबंध स्वयं बुद्ध से है। कहा जाता है कि जब इस मंदिर का निर्माण किया जा रहा था तो इसमें बुद्ध की एक मूर्त्ति स्थापित करने का भी निर्णय लिया गया था। लेकिन लंबे समय तक किसी ऐसे शिल्पकार को खोजा नहीं जा सका जो बुद्ध की आकर्षक मूर्त्ति बना सके। सहसा एक दिन एक व्यक्ित आया और उसे मूर्त्ति बनाने की इच्छा जाहिर की। लेकिन इसके लिए उसने कुछ शर्त्तें भी रखीं। उसकी शर्त्त थी कि उसे पत्थर का एक स्तम्भ तथा एक लैम्प दिया जाए। उसकी एक और शर्त्त यह भी थी इसके लिए उसे छ: महीने का समय दिया जाए तथा समय से पहले कोई मंदिर का दरवाजा न खोले। सभी शर्त्तें मान ली गई लेकिन व्यग्र गांववासियों ने तय समय से चार दिन पहले ही मंदिर के दरवाजे को खोल दिया। मंदिर के अंदर एक बहुत ही सुंदर मूर्त्ति थी जिसका हर अंग आकर्षक था सिवाय छाती के। मूर्त्ति का छाती वाला भाग अभी पूर्ण रूप से तराशा नहीं गया था। कुछ समय बाद एक बौद्ध भिक्षु मंदिर के अंदर रहने लगा। एक बार बुद्ध उसके सपने में आए और बोले कि उन्होंने ही मूर्त्ति का निर्माण किया था। बुद्ध की यह मूर्त्ति बौद्ध जगत में सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त मूर्त्ति है। नालन्दा और विक्रमशिला के मंदिरों में भी इसी मूर्त्ति की प्रतिकृति को स्थापित किया गया है।
बोधगया को बौद्ध धर्म में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। बुद्ध के समय में इसे उरुवेला के नाम से जाना जाता था, यह लीलाजन नदी के किनारे स्थित है। इस स्थल पर पहला मंदिर मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था।
महाबोधि विहार बोधगया (उरुवेला) में उस स्थान पर मुख्य बौद्ध मंदिर को संदर्भित करता है जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। विहार में प्रसिद्ध बोधि वृक्ष (फ़िकस रिलिजियोसा या पीपल का पेड़) और वज्रासन (हीरा सिंहासन) शामिल हैं। मूल मंदिर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित रेलिंग वाले वृक्ष मंदिर (बोधि-घर) के रूप में मौजूद था। इसका सबसे पहला चित्रण भरहुत और साँची स्तूप की नक्काशियों पर मिलता है। सम्राट अशोक ने ध्यान आसन के सटीक स्थान को चिह्नित करने के लिए तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में यहां रेलिंग के साथ एक लाल बलुआ पत्थर की संरचना बनवाई थी। बोधगया में पाए गए चीनी और बर्मी शिलालेख स्पष्ट रूप से बुद्धगया मंदिर को 84,000 मंदिरों में से एक मानते हैं, जिनके बारे में उन अभिलेखों में कहा गया है कि इसे राजा धर्मशोक(सम्राट अशोक) ने बनवाया था आगे विवरण है की जो जम्बूद्वीप के शासक, बुद्ध के निर्वाण के दो सौ अठारह वर्ष बाद पैदा हुवे।
पवित्र स्थल
[संपादित करें]विष्णुपद मंदिर
[संपादित करें]फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित यह मंदिर पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के पदचिन्हों पर किया गया है। यह मंदिर 30 मीटर ऊंचा है जिसमें आठ खंभे हैं। इन खंभों पर चांदी की परतें चढ़ाई हुई है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु के 40 सेंटीमीटर लंबे पांव के निशान हैं। इस मंदिर का 1787 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई ने नवीकरण करवाया था। पितृपक्ष के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है।
रामानुज मठ (भोरी)
[संपादित करें]स्वामी धरणीधराचार्य स्थापित भोरी का वैष्णव मठ वैदिक शिक्षा तथा हिन्दू आस्था का प्रमुख केन्द्र है।
बाबा सिद्धनाथ, बराबर
[संपादित करें]बराबर पर्वत पर सिद्ध नाथ तथा दशनाम परंपरा के नागाओं के प्रमुख आस्था का केन्द्र है सिद्धनाथ मंदिर, पास में ही नारद लोमस आदि ऋषियों की गुफायें हैं। माना जाता है कि इन गुफाओं मे प्राचीन ऋषियों ने तप किया था।
विश्व भर में बराबर की गुफाएं उन कुछ गुफाओं में एक है जिन्हे पत्थरों को प्राकृतिक रूप से तराश कर बनाया गया है। बराबर पर्वत माला लगभग 1100 फुट ऊंची है जिसे आमतौर पर मगध का हिमालय भी कहा जाता है।
इन्ही पर्वत माला के बीच बाबा सिद्धनाथ मंदिर अवस्थित है जिसे वाणेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। बाबा सिद्धनाथ मंदिर मूल रूप से सिध्देश्वर नाथ मंदिर के रूप में विख्यात है जो विश्व के प्राचीनतम शिव मंदिरों में एक है।
इस मंदिर को महाभारत काल का माना जाता है जिसके बारे में मान्यता है कि इसका निर्माण महान शिव भक्त वाणासुर द्वारा कराया गया था। वाणासुर मगध के राजा जरासंध के परम मित्र थे।[7]
जामा मस्जिद जो दिल्ली में है, वह अलग है। बोध गया मंदिर के पीछे जाम मस्जिद नामक एक मस्जिद है , बिहार की सबसे बडी मस्जिद यही है। यह तकरीबन २०० साल पुरानी है। इसमे हजारो लोग साथ नमाज अदा कर सकते हैं।
मुख्य नगर से १० कि॰मी॰ दूर गया पटना मार्ग पर स्थित एक पवित्र धर्मिक स्थल है। यहाँ नवी सदी हिजरी में चिशती अशरफि सिलसिले के प्रख्यात सूफी सन्त हजरत मखदूम सयद दर्वेश अशरफ ने खानकाह अशरफिया की स्थापना की थी। आज भी पूरे भारत से श्रदालू यहाँ दर्शन के लिये आते है। हर साल इस्लामी मास शाबान की १० तारीख को हजरत मखदूम सयद दर्वेश अशरफ का उर्स गया जी मनाया जाता है।[8]
बानाबर (बराबर) पहाड़
[संपादित करें]गया से लगभग 20 किलोमीटर उत्तर बेलागंज से 10 किलोमीटर पूरब में स्थित है| इसके ऊपर भगवान शिव का मन्दिर है, जहाँ हर वर्ष हजारों श्रद्धालू सावन के महीने में जल चढ़ते है। कहते हैं इस मन्दिर को बानासुर ने बनवाया था। पुनः सम्राट अशोक ने मरम्मत करवाया। इसके नीचे सतघरवा की गुफा है, जो प्राचीन स्थापत्य कला का नमूना है। इसके अतिरिक्त एक मार्ग गया से लगभग 30 किमी उत्तर मखदुमपुर से भी है। इस पर जाने हेतु पातालगंगा, हथियाबोर और बावनसीढ़ी तीन मार्ग है, जो क्रमशः दक्षिण, पश्चिम और उत्तर से है, पूरब में फलगू नदी है।
और गया से लगभग 25 किलोमीटर पूरब में टनकुप्पा प्रखंड में चोवार एक गाँव है जो की गया जिले में एक अलग ही बिशेषता रखता है!इस गाँव में एक प्राचीन शिव मंदिर है जो अपने आप में ही एक बहुत बड़ी महानता रखता है!इस मंदिर में भगवान शिव को चाहे जितना भी जल क्यों नहीं चढ़ाये पर आजतक इसका पता नहीं लग पाया है!और इसी गाँव में खुदाई में बहुत ही प्राचीन अष्टधातु की मूर्तियाँ और चाँदी के बहुतें सिक्के मिले है!इस गाँव में एक ताड़ का पेड़ भी है,जो की बहुत ही अद्भुत है। इस ताड़ के पेड़ की विशेषता यह है कि इस पेड़ में तिन डाल है जो की भगवान शिव की त्रिशूल की आकार का है,ये गाँव की शोभा बढ़ाता है जी हाँ ये चोवार गाँव की विशेषता है।
प्राचीन एबं अद्भुत शिव मंदिर (चोवार गाँव)
[संपादित करें]चोवार गया शहर से 35 किलोमीटर पूर्व में एक गाँव है चोवार जो की अपने आप में बहुत ही अद्भुत है इस गाँव में एक बहुत ही प्राचीन शिव मंदिर है जहा सैकड़ो श्रद्धालु बाबा बालेश्वरनाथ के ऊपर जल चढाते है पर आजतक ये जल कहाँ जाता है कुछ पता नहीं चलता है इसके पीछे के कारण किसी को नहीं पता चला। लगभग हजारो सालों से ये चमत्कार की जाँच करने आये सैकड़ो बैज्ञानिको ने भी ये दाबा किया है कि ये भगवान शिव का चमत्कार है।इसी गाँव में कुछ सालों पहले सड़क निर्माण के दौरान यहाँ एक बहुत ही बड़ा घड़ा निकला जिसमे हजारो शुद्ध चाँदी के सिक्के निकले थे।आज भी इस गाँव से अष्टधातु की अनेको मूर्तियाँ शिव मंदिर में देखने को मिलता है। . इस गाँव में एक अद्भूत ताड़ का पेड़ भी है जो इस चोवार गाँव की शोभा बढ़ाता है।इस ताड की खास बात ये है कि ताड का पेड़ भगवान के त्रिशुल के तरह त्रिशाखायुक्त है!दूर-दूर से लोग इस पेड़ को देखने के लिये आते हैं। यहां काफी प्राचीन एक कुआं भी है जिसमे कुछ-कुछ घंटों (समय) के बाद पानी का रंग बदलता रहता है। कुएं का पानी का रंग भिन्न भिन्न रंगो में परिवर्तित होते रहता है।
कोटेश्ववरनाथ
[संपादित करें]यह अति प्राचीन शिव मन्दिर मोरहर-दरधा नदी के संगम किनारे मेन-मंझार गाँव में स्थित है। यहाँ हर वर्ष शिवरात्रि में मेला लगता है। यहाँ पहुँचने हेतु गया से लगभग ३० किमी उत्तर पटना-गया मार्ग पर स्थित मखदुमपुर से पाईबिगहा समसारा होते हुए जाना होता है। गया से पाईबिगहा के लिये सीधी बस सेवा उपलब्ध है। पाईबिगहा से इसकी दूरी लगभग २ किमी है।गया से टिकारी होकर भी यहां पहुंचा जा सकता है। किवदन्ती है कि प्राचीन काल में बाण पुत्री उषा ने यह मंदिर बनवाया था।किन्तु प्राप्त लिखित इतिहास तथा पुरातात्विक विश्लेषण से ये सिद्ध है कि ६ सदी में नाथ परंपरा के ३५वे सहजयानी सिद्ध बाबा कुचिया नाथ द्वारा स्थापित मठ है।इसलिए इसे कोचामठ या बुढवा महादेव भी कहते है।माना जाता है कि मेन के पाठक बाबा तथा मंझार के रामदेव बाबू को यहाँ भगवान शिव का साक्षात्कार हुआ था।वर्तमान समय मे मठ के जीर्णोद्धार का स्वप्नादेश भगवान शिव ने उन्ही रामदेव बाबू के पुत्र भोलानाथ शर्मा जी को किया , जातिभेद के वैमनस्य से क्रंदन कर रहे क्षेत्र मे शिव जी के प्रेरणा से सांस्कृतिक साहित्यिक एकता का प्रयत्न भोलानाथ शर्मा छ्त्रवली शर्मा नित्यानन्द शर्मा आदि ने प्रारंभ किया। सांस्कृतिक एकता की यात्रा ने मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ बृहद् सांस्कृतिक केंद्र के रुप मे इसे स्थापित किया ।[[1]]
सूर्य मंदिर
[संपादित करें]सूर्य मंदिर प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर के 20 किलोमीटर उत्तर और रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। भगवान सूर्य को समर्पित यह मंदिर सोन नदी के किनारे स्थित है। दिपावली के छ: दिन बाद बिहार के लोकप्रिय पर्व छठ के अवसर पर यहां तीर्थयात्रियों की जबर्दस्त भीड़ होती है। इस अवसर पर यहां मेला भी लगता है।
ब्रह्मयोनि पहाड़ी
[संपादित करें]इस पहाड़ी की चोटी पर चढ़ने के लिए ४४० सीढ़ियों को पार करना होता है। इसके शिखर पर भगवान शिव का मंदिर है। यह मंदिर विशाल बरगद के पेड़ के नीचे स्थित हैं जहां पिंडदान किया जाता है। इस स्थान का उल्लेख रामायण में भी किया गया है। दंतकथाओं पर विश्वास किया जाए तो पहले फल्गु नदी इस पहाड़ी के ऊपर से बहती थी। लेकिन देवी सीता के शाप के प्रभाव से अब यह नदी पहाड़ी के नीचे से बहती है। यह पहाड़ी हिन्दुओं के लिए काफी पवित्र तीर्थस्थानों में से एक है। यह मारनपुर के निकट है।
ऊपर से दृश्य बिल्कुल मंत्रमुग्ध कर देने वाला है और एक मनोरम दृश्य प्रदान करता है।[9]
मंगला गौरी
[संपादित करें]पहाड पर स्थित यह मंदिर मां शक्ति को समर्पित है। यह स्थान १८ महाशक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि जो भी यहां पूजा कराते हैं उनकी मन की इच्छा पूरी होती है। इसी मन्दिर के परिवेश में मां काली, गणेश, हनुमान तथा भगवान शिव के भी मन्दिर स्थित हैं।
15वीं सदी में बना मंगला गौरी मंदिर, देवी सती को समर्पित उन 52 महाशक्तिपीठों में गिना जाता है जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे थे। पहाड़ी पे विराजमान माता को परोपकार की देवी माना जाता है। वर्षा-ऋतु में हर मंगलवार को यहां एक विशेष पूजा आयोजित की जाती है।[10]
इस मंदिर का वर्णन पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण, श्री देवी भगवत पुराण और मार्कंडेय पुराण में भी मिलता है। इस मंदिर परिसर में मां काली, गणपति, भगवान शिव और हनुमान के मंदिर भी हैं। मंगला गौरी मंदिर में नवरात्र के महीने में लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने हेतु आते है जो यहाँ के दृश्य को मनोरम बनाती है।[11]
दुन्गेश्वरी गुफा मंदिर
गया शहर से 11 km दुर दुन्गेश्वरी के शान पहाडियों के ऊपर बना हुआ है दुन्गेश्वरी का गुफ़ा मंदिर कहते हैं बद्ध जी ने गया में ज्ञान प्राप्ति से पूर्ण यहाँ कई साल बिताये थे. इस जगह को महाकाल की गुफाए भी कहा जाता है.
मुचालिंदा सरोवर
बोध गया के मोचारिम इलाके में बना हुआ है मुचालिंदा सरोवर, जिसका काफी पौराणिक महत्ब है. यहाँ पर सर्वर के बीचो बीच एक बद्ध जी की मूर्ति है. जिसको नाग के प्रतिमा ने ढका हुआ है. कहते है बद्ध जी को तूफ़ान से नाग देवता मुचालिंदा ने बचाया था जिसको ये प्रतिमा रुपान्द्रित करती है.
मुचलिंदा सरोवर, बोध गया में स्थित सबसे पावन जगहों में से एक है। यह वो स्थान जहाँ भगवान बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद लगातार छठा सप्ताह ध्यान में बिताया था।[12]
शाही भूटान मठ
शाही भूटान मठ गया में बना एक बौद्ध मठ है. इस मठ का नाम भूटान मठ इसीलिए पड़ा क्युकि इसे भूटान के राजा ने बनवाया था. इस बौद्ध मठ के अन्दर दीवारों पर की गयी कलाकृतिया देखने लायक है. जिसके द्वारा बौद्ध धर्म के बारे में दर्शाया गया है.[13]
बराबर गुफा
[संपादित करें]यह गुफा गया से 20 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इस गुफा तक पहुंचने के लिए 7 किलोमीटर पैदल और 10 किलोमीटर रिक्शा या तांगा से चलना होता है। यह गुफा बौद्ध धर्म के लिए महत्वपूर्ण है। यह बराबर और नागार्जुनी शृंखला के पहाड़ पर स्थित है। इस गुफा का निर्माण बराबर और नागार्जुनी पहाड़ी के बीच सम्राट अशोक और उनके पोते दशरथ के द्वारा की गई है। इस गुफा उल्लेख ई॰एम. फोस्टर की किताब 'ए पैसेज टू इंडिया' में भी किया गया है। इन गुफओं में से 7 गुफाएं भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरख में है।[14]
जहानाबाद जिले में ये गुफाएं स्थित है और चट्टानों को काटकर बनायीं गयी सबसे पुराणी गुफाएं हैं। इनमें से अधिकाँश गुफाओं का सम्बन्ध मौर्या काल (३२२-१८५ ईसा पूर्व ) से है और कुछ में अशोक के शिलालेखों को देखा जा सकता है।[15]
देवी मंदिर नियाजीपुर, गया बिहार
[संपादित करें]देवी मंदिर नियाजीपुर का निर्माण सन 1961 में हुई और इसका उद्घाटन फ़रवरी 1961 में किया गया, इसका निर्माण नियाजीपुर गया के मूल निवासी स्वर्गीय राम उग्रह सिंह द्वारा किया गया था।
इसका उद्घाटन एक बहुत बड़े यज्ञ से हुआ था|इस समय मंदिर की देखभाल एक ट्रस्ट के माध्यम से की जाती है जिसके ट्रस्टी राम उग्रह सिंह के सबसे छोटे पुत्र श्री राज नंदन सिंह हैं। यह मंदिर एक तालाब के किनारे स्थित है जो इसकी खूबसूरती मे चार चाँद लगा देता है।
बाबा जमुनेश्वर धाम
[संपादित करें]गया शहर से पास में ही दक्षिण बिहार विश्वविद्यालय के जाने वाली रोड SH 79 के पास में ही जमुने बसा हुआ है। यह पवित्र जमूने नदी के तट पर बसा हुआ है। यहां पर काफी पुराना शिव मंदिर हैं जो कहा जाता है की टेकारी नरेश गोपाल सरण के द्वारा निर्माण करवाया गया था। स्थानीय लोगो का मानना है की बाबा जमुनेश्वर का महिमा बहुत ही अपार है। महाशिवरात्रि और श्रवण में यह श्रद्धालु की काफी भीड़ जुटती है। पास में ही सूर्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है,जहा एक धाम बन गया है विवाह के लगन के समय यह विवाह और कार्यक्रम करने वालो को बहुत भीड़ होती है। छठ पूजा पर आप यहां अपने परिवार के साथ यहां के घाट पर जरूर पधारे आपको एक अपनापन का एहसास दिलाएगा बाबा जमुनेश्वर का ये धाम।
सूर्य मंदिर कुजापी
[संपादित करें]गया शहर में गया जंक्शन से पश्चिमी ओर करीब 3 किमी दूर कुजापी गांव में एक खूबसूरत और विशाल सूर्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर का निर्माण कार्य सन 2012 ईस्वी में पूरा हुआ एवं इस मंदिर का उद्घाटन सन 2013 ईस्वी में एक विशाल महायज्ञ से हुआ जिसमें लगभग 4000 श्रद्धालु भक्तजनों ने कलश यात्रा में भाग लिया था। इस मंदिर का निर्माण कुजापी के तत्कालीन मुखिया श्री अभय कुशवाहा के द्वारा करवाया गया था जोकि टिकारी विधानसभा से विधायक भी रह चुके हैं। इस मंदिर के ठीक सामने कृष्ण मंदिर है। इस मंदिर परिसर में एक विशाल सरोवर, मुंद्रा सरोवर का निर्माण करवाया गया है जिसमें प्रति वर्ष छठ के दिन श्रद्धालु भक्तजन अर्ध देते हैं।
ऐतिहासिक गांव ढीबर
[संपादित करें]गया-रजौली रोड पर गया से 20 किमी दूर ढीबर नामक गांव है| यहां के गढ़ पे हजारो साल पुराना भगवान बुद्ध की अनेक मूर्तियाँ हैं|ये मूर्तियां खंडित हैं| यहां एक बहुत पुराना देवी मंदिर भी है यह मंदिर किसने और कब बनवाया यह कोई नहीं जानता | यहां बांसी नाला हॉल्ट नाम का एक रेलवे स्टेशन भी है जो यात्रा को आसान और तेज़ बनाता है।
सूर्य मंदिर (पाई बिगहा)
[संपादित करें]मखदुमपुर से ६ किमी दूर स्थित पाईबिगहा मोरहर किनारे बसा टिकारी राज्य का प्रमुख बाजार रहा है, हैमिल्टन बुचनन को यहाँ ई. पू. प्रथम सदी के प्राचीन शिव मंदिर के जीर्ण अवशेष मिले थे , बाजार के बीचोबीच उसी स्थान पर नया महादेव स्थान स्थापित है। पाईबिगहा मंझार रोड पर स्थित है एक प्राचीन सूर्य मंदिर जो जन आस्था का केन्द्र है।प्रति वर्ष छठपूजा मे मंदिर प्रांगण मे बडा मेला लगता है।दूर दूर से आकर लोग यहाँ छ्ठ पर्व मनाते हैं।माई जी नाम से सुविख्यत महिला भगवान् सूर्य की प्रमुख भक्त थी जिनके विषय मे कहा जाता है कि उन्हें इसी मंदिर प्रांगण में नारायण रुप मे सूर्य देव ने दर्शन दिया था।
संत कारुदास मंदिर (कोरमत्थू)
[संपादित करें]एक प्रसिद्ध कहावत है गया के राह कोरमत्थू। जी वही कोरमत्थु जहाँ जमुने किनारे भगवान राम ने गया जाते समय विश्राम किया था तथा एक शिवलिंग स्थापित की थी। वही शिवलिंग जिसकी खोज मे सिद्ध संप्रदाय के बाबा कारुदास हिमालय छोड कोरमत्थु के चैत्यवन आ पहुंचे। यहाँ प्राचीन शिवलिंग ठाकुरबाडी तथा कारूदास जी का मंदिर है। गया त्रिवेणी अखाडा से कोरमत्थु के लिए सीधी बस सेवा है । यहाँ से मंझार होते हुए बाबा कोटेश्वर नाथ धाम भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।
माँ तारा मंदिर, केसपा
[संपादित करें]प्राचीन इतिहास मे मगध मे प्रमुख रूप से चैत्य वन तथा सिद्ध वन दो प्रमुख क्षेत्र थे। चैत्य वन मे मोरहर तथा पुनपुन का क्षेत्र केसपा कहा जाता था । पूर्व में माँ तारा के मंदिर के समीप से पुनपुन का प्रवाह था , तथा मंझार के पूर्व से मोरहर का । अर्थात मंझार से लेकर केसपा तक का संपूर्ण क्षेत्र केसपा के नाम से जाना जाता था। इस चैत्य वन के काश्यलपा क्षेत्र में मेन मंझार का क्षेत्र मंदार वन के नाम से जाना जाता था जहाँ कुचियानाथ का मठ था। कुचिया नाथ से भी बहुत पहले गया कश्यप नाम के बौद्ध संत का मठ था माँ तारा पीठ। बुचनन ने इसे बौद्ध - हिन्दु दोनो संप्रदायों का प्रमुख स्थान माना है।[[2]]
गया जिला मुख्यालय से लगभग 38 किमी और टिकारी से 13 किमी. उतर अवस्थित केसपा गांव में प्रसिद्ध मां तारा देवी का मंदिर स्थित है। यों तो यहाँ पूजा-अर्चना करने भक्तजन वर्ष भर आते हैं। परंतु आश्विन माह में शारदीय नवरात्र में मां तारा देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।[16]
दुर्लभ पीपल वृक्ष ( मेन-मंझार)
[संपादित करें]कोटेश्वरनाथ मंदिर से ३०० मीटर उत्तर में दुर्लभ प्रजाति का पीपल वृक्ष है।दूर देश से वैज्ञानिक इस पर शोध करने आते हैं। श्रद्धालुओं के लिए यह कौतुक का विषय है क्योंकि वृक्ष की सभी शाखाएँ दक्षिण के तरफ उपर से नीचे आ जमीन को छूती हैं (मानो भगवान शिव को प्रणाम कर रही हों )फिर ऊपर जाती है।
बोधगया
[संपादित करें]बोधगया बौद्ध धर्म की राजधानी है।जिस पीपल वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध सिद्धर्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ था वो बोधिवृक्ष बौद्ध आस्था का केन्द्र है।
माँ काली मंदिर (बेलागंज)
[संपादित करें]गुप्तकालीन काली मंदिर मगध क्षेत्र मे शाक्त परंपरा का प्रमुख धरोहर है।
प्राचीन विष्णु मंदिर (घेजन)
[संपादित करें]पाई बिगहा से २ किमी पश्चिम घेजन प्रमुख पुरातात्विक रुचि का केन्द्र है।यहाँ से प्राप्त भगवान् बुद्ध की २५० ई पू की भगवान् बुद्ध तथा भगवान विष्णु की प्रतिमा पटना संग्रहालय मे सुरक्षित है।यहाँ का मंदिर अति प्राचीन है, बेलगार ने इसे गुप्त कालीन बताया है।
कोचेश्वरनाथ
[संपादित करें]कोच स्थित कोचेश्वरनाथ मठ अति प्राचीन शैव आस्था का केंद्र है।[[3]]
खेतेश्वर महादेव (मेन)
[संपादित करें]मेन मंझार शैव परंपरा का जागृत स्थान है जहाँ प्रतिवर्ष छोटे बडे एक या एक से अधिक शिवलिंग स्वयम् प्रकट हो ही जाते हैं।इस पूरे क्षेत्र में छोटे बडे १२७ शिवलिंग हैं जो स्वयं प्रकट हुए हैं , जिनमें ११ प्रमुख हैं। इन ११ में कोटेश्वरनाथ खेतेश्वर महादेव तथा गौरी शंकर तीन अति प्रमुख हैं। खेतेश्वर महादेव मोरहर नदी के उफान और बाढ मे भी नही डूबता जबकि ये न तो ऊँचाई पर स्थित है न हीं इनका आकार बहुत बडा है। आस पास के सभी ऊँचे टीले डूब जाते हैं पर उन सब से काफी कम ऊँचाई का यह स्वयंभू शिवलिंग कभी नही डूबता।
अक्षय वट
[संपादित करें]प्रसिद्ध अक्षय वट विष्णु पाद मंदिर के पास के क्षेत्र में स्थित है। अक्षय वट को सीता देवी ने अमर होने का वरदान दिया था और कभी भी किसी भी मौसम में इसके पत्तों को नहीं बहाया जाता है।
रामशिला पहाडी
[संपादित करें]गया के दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित रामशिला हिल को सबसे पवित्र स्थान माना जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि भगवान राम ने पहाड़ी पर ’पिंडा’ की पेशकश की थी।पहाड़ी का नाम भगवान राम से जुड़ा है। प्राचीन काल से संबंधित कई पत्थर की मूर्तियां पहाड़ी के आसपास और आसपास के स्थानों पर देखी जा सकती हैं, जो कि बहुत पहले के समय से कुछ पूर्व संरचनाओं या मंदिरों के अस्तित्व का सुझाव देती हैं। पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर जिसे रामेश्वरा या पातालेश्वर मंदिर कहा जाता है, मूल रूप से 1014 A.D में बनाया गया था, लेकिन सफल अवधि में कई बहाली और मरम्मत से गुजरा।मंदिर के सामने हिंदू भक्तों द्वारा अपने पूर्वजों के लिए पितृपक्ष के दौरान "पिंड" चढ़ाया जाता है।
प्रेतशिला पहाडी
[संपादित करें]रामशिला पहाड़ी से लगभग 10 किलोमीटर दूर है। पहाड़ी के नीचे ब्रह्म कुंड स्थित है।इस तालाब में स्नान करने के बाद लोग 'पिंड दान' के लिए जाते हैं।पहाड़ी की चोटी पर, इंदौर की रानी, अहिल्या बाई, ने 1787 में एक मंदिर बनाया था जिसे अहिल्या बाई मंदिर के नाम से जाना जाता था।यह मंदिर हमेशा अपनी अनूठी वास्तुकला और शानदार मूर्तियों के कारण पर्यटकों के लिए एक आकर्षण रहा है।
यह हिंदुओं के लिए एक सम्मानित स्थान है जहां वे पिंड दान (दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए किया जाने वाला एक धार्मिक अनुष्ठान) करते हैं। यह सदियों से चली आ रही एक परंपरा है और लोगों का मानना है की इस जगह पे पूजा करने के बाद आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।[17]
सीताकुंड
[संपादित करें]विष्णु पद मंदिर के विपरीत तरफ, सीता कुंड फल्गु नदी के दूसरे किनारे पर स्थित है।उस स्थान को दर्शाते हुए एक छोटा सा मंदिर है जहाँ माता सीता ने अपने ससुर के लिए पिंडदान किया था।
सीता कुण्ड रामायण काल से जुड़ा है, और ऐसा मन जाता है की सीता माता ने अपने ससुर दशरथ जी का पिंड दान किया था। सीता कुण्ड एक छोटा सा मंदिर है जो विष्णुपद मंदिर से ठीक विपरीत दिशा में फल्गु नदी के दूसरे किनारे पर स्थित है।[18]
डूंगेश्वरी मंदिर / डुंगेश्वरी हिल
[संपादित करें]माना जाता है कि गौतम सिद्धार्थ ने अंतिम आराधना के लिए बोधगया जाने से पहले 6 साल तक इस स्थान पर ध्यान किया था।बुद्ध के इस चरण को मनाने के लिए दो छोटे मंदिर बनाए गए हैं।कठोर तपस्या को याद करते हुए एक स्वर्ण क्षीण बुद्ध मूर्तिकला गुफा मंदिरों में से एक में और एक बड़ी (लगभग 6 'ऊंची) बुद्ध की प्रतिमा दूसरे में विहित है। गुफा मंदिर के अंदर एक हिंदू देवी देवता डुंगेश्वरी को भी रखा गया है।
थाई मठ, बोधगया
[संपादित करें]थाई मोनास्ट्री बोधगया का सबसे पुराना विदेशी मठ है।जो कि सजावटी रीगल थाई स्थापत्य शैली में निर्मित है।बाहरी और साथ ही आंतरिक की भव्यता बेहद विस्मयकारी है। मंदिर सामने आँगन में एक शांत पूल के ऊपर लाल और सुनहरे मणि की तरह दिखाई देता है।बुद्ध के जीवन को दर्शाती भित्ति चित्रों के साथ शानदार बुद्ध की मूर्ति और कुछ आधुनिक घटनाओं जैसे कि शैली में चित्रित पेड़ लगाने का महत्व पूरी तरह से अद्भुत है।यह बोधगया में महाबोधि मंदिर के बगल में स्थित है।घूमने का समय: सुबह 7:00 से दोपहर 12:00, दोपहर 02:00 से शाम 06:00 तक।
धर्म चक्र
[संपादित करें]200 क्विंटल लोहे से बना धर्म चक्र पर्यटको में चर्चा का विषय रहा है।कहा जाता है कि इस चक्र को घुमाने पर पापो से मुक्ती मिल जाती है।
जनसंख्या
[संपादित करें]2011 की जनगणना के अनुसार इस जिले की जनसंख्या:[19]
- शहरी क्षेत्र:- 3863888
- देहाती क्षेत्र:- 575495
- कुल:- 4379383
गम्यता
[संपादित करें]हवाई मार्ग
[संपादित करें]बिहार एवं झारखण्ड के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा, गया विमानक्षेत्र, है। अब झारखंड[देवघर] में भी हवाईअड्डा बन गया है।
रेल मार्ग
[संपादित करें]गया जन्कशन बिहार का दूसरा बड़ा रेलस्टेशन है। यह एक विशाल परिसर में स्थित है। इसमे ९ प्लेटफार्म है। गया से पटना, रांची,धनबाद,कोलकाता, पुरी, बनारस, चेन्नई, मुम्बई, नई दिल्ली, नागपुर, गुवाहाटी, जयपुर, अजमेरशरीफ, हरिद्वार, ऋषिकेश, जम्मू-तवी आदि के लिए सीधी ट्रेनें है।
सड़क मार्ग
[संपादित करें]गया राजधानी पटना और राजगीर, रांची, धनबाद,बनारस आदि के लिए बसें जाती हैं। गया में दो बस स्टैंड हैं। दोनों स्टैंड फल्गु नदी के तट पर स्थित है। गांधी मैदान बस स्टैंड नदी के पश्चिमी किनार पर स्थित है। यहां से बोधगया के लिए नियमित तौर पर बसें जाती हैं।
इंजीनियरिंग कॉलेज
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- पितृपक्ष (गया एवं अन्य धार्मिक स्थलों के बारे में)
- सोन भण्डार गुफा, राजगीर
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Bihar Tourism: Retrospect and Prospect," Udai Prakash Sinha and Swargesh Kumar, Concept Publishing Company, 2012, ISBN 9788180697999
- ↑ "Revenue Administration in India: A Case Study of Bihar," G. P. Singh, Mittal Publications, 1993, ISBN 9788170993810
- ↑ "पितरों के लिए गया". Dainik Jagran. मूल से 2 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 दिसंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 दिसंबर 2014.
- ↑ "बिहार की यात्रा का नक्शा | बिहार की यात्रा - पर्यटन, गंतव्य, होटल, परिवहन". मूल से 2 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "सुबोध कुमार नंदन का आलेख- महातीर्थ गया". www.abhivyakti-hindi.org. मूल से 11 मार्च 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.
- ↑ "Baba Sidhnath Mandir".
- ↑ http://www.mdashrafbitho.faithweb.com Archived 2019-06-07 at the वेबैक मशीन बिथो शरीफ का जालस्थल
- ↑ "Destinations in Gaya - Brahmayoni Temple".[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "Mangala-Gauri".[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "Destinations in Gaya - Mangla Gauri".[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "Destinations in Gaya - Muchalinda Sarovar".[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "अगर पिंडदान के लिए गया आएं तो जरूर जाएं इन जगहों पर". प्रभात खबर. अभिगमन तिथि 30 अप्रैल 2024.
- ↑ Lost In Time: Unveiling The Ancient Barabar Caves Near Bodh Gaya
- ↑ "Barabar-Caves". मूल से 21 सितंबर 2024 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 सितंबर 2024.
- ↑ "Maa Tara Devi - Kespa -Bihar".
- ↑ "Destinations in Gaya - PretShila".[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "Destinations in Gaya - Sita Kund".[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "Bihar Districts: Gaya". gov.bih.nic.in. मूल से 26 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2019.