देव सूर्य मंदिर
देव सूर्य मंदिर | |
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देवार्क | |
![]() देव सूर्य मंदिर | |
स्थान | देव, बिहार, भारत |
निर्देशांक | 24°39′32″N 84°26′13″E / 24.658791°N 84.437026°Eनिर्देशांक: 24°39′32″N 84°26′13″E / 24.658791°N 84.437026°E |
निर्माण | ASI. अनुसार पांचवी से छठी सताब्दी में निर्मित |
वस्तुशास्त्री | गुप्त कालीन |
वास्तुशैली | पत्थर से निर्मित |
दर्शक-पर्यटक | 15-18 लाख से अधिक (in प्रत्येक वर्ष) |
देव सूर्य मंदिर, देवार्क सूर्य मंदिर या केवल देवार्क के नाम से प्रसिद्ध, यह भारतीय राज्य बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित एक हिंदू मंदिर है जो देवता सूर्य को समर्पित है। यह सूर्य मंदिर अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।[1]
देवार्क मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए भी जाना जाता है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। इतिहासकार इस मंदिर के निर्माण का काल छठी - आठवीं सदी के मध्य होने का अनुमान लगाते हैं जबकि अलग-अलग पौराणिक विवरणों पर आधारित मान्यताएँ और जनश्रुतियाँ इसे त्रेता युगीन अथवा द्वापर युग के मध्यकाल में निर्मित बताती हैं।
परंपरागत रूप से इसे हिंदू मिथकों में वर्णित, कृष्ण के पुत्र, साम्ब द्वारा निर्मित बारह सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के साथ साम्ब की कथा के अतिरिक्त, यहां देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया। अतिरिक्त पुरुरवा ऐल, और शिवभक्त राक्षसद्वय माली-सुमाली की अलग-अलग कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं जो इसके निर्माण का अलग-अलग कारण और समय बताती हैं। एक अन्य विवरण के अनुसार देवार्क को तीन प्रमुख सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है, अन्य दो लोलार्क (वाराणसी) और कोणार्क हैं।
मंदिर में सामान्य रूप से वर्ष भर श्रद्धालु पूजा हेतु आते रहते हैं। हालाँकि, यहाँ बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में विशेष तौर पर मनाये जाने वाले छठ पर्व के अवसर पर भारी भीड़ उमड़ती है। यहाँ लगभग प्रत्येक दिन श्रद्धालु के भीड़ का जमावड़ा लगा होता है पर खास कर रविवार को यहाँ दूर दूर से हवन और पूजन करने हेतु श्रद्धालु आते रहते हैं। मान्यता है की आज तक इस मंदिर से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटा और अपने मनोवांछित फल की प्राप्ति करने के तत्पश्चात वो यहाँ की कार्तिक या चैत्र के छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ भी समर्पण करते हैं।
मान्यताएँ
[संपादित करें]प्राथमिक
[संपादित करें]- देव के बारे में एक अन्य लोककथा भी है। एक बार भगवान शिव के भक्त माली व सोमाली सूर्यलोक जा रहे थे। यह बात सूर्य को रास नहीं आयी। उन्होंने दोनों शिवभक्तों को जलाना शुरू कर दिया। अपनी अवस्था खराब होते देख माली व सोमाली ने भगवान शिव से बचाने की प्रार्थना की। फिर, शिव ने सूर्य को मार गिराया। सूर्य तीन टुकड़ों में पृथ्वी पर गिरे। कहते हैं कि जहां-जहां सूर्य के टुकड़े गिरे, उन्हें देवार्क देव, बिहार के पास, लोलार्क सूर्य मंदिर काशी के पास और कोणार्क सूर्य मंदिर कोणार्क के पास के नाम से जाना जाता था। यहां तीन सूर्य मंदिर बने। देव का सूर्य मंदिर उन्हीं में से एक है। मंदिर निर्माण के कुछ वर्ष बाद ही एक घटना घटी की जब देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया। हजारों वर्षों से बिहार के सभी सूर्य मंदिरों पर भूमिहार ( बामन) जाति के व्यक्तियों का नियंत्रण था। हाल के कुछ वर्षों में भूमिहार जाति के व्यक्तियों ने मंदिर व्यवस्था के महंथी कार्यों से अपने आप को अलग कर लिया है। एक अन्य मान्यता के अनुसार सभी स।[2][3] [4]
देव नाम को लेकर
[संपादित करें]- एक अनुश्रुति यह भी है कि इस जगह का नाम कभी यहां के राजा रहे वृषपर्वा के पुरोहित शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के नाम पर देव पड़ा था।
शक्ति की प्रदर्शन
[संपादित करें]- जनश्रुति है कि एक बार औरंगजेब काला पहाड़ मूर्तियों एवं मंदिरों को तोड़ता हुआ यहां पहुंचा तो देव मंदिर के पुजारियों ने उससे काफी विनती की कि इस मंदिर को न तोडें क्योंकि यहां के भगवान का बहुत बड़ा महात्म्य है। इस पर वह हंसा और बोला यदि सचमुच तुम्हारे भगवान में कोई शक्ति है तो मैं रात भर का समय देता हूं तथा यदि इसका मुंह पूरब से पश्चिम हो जाए तो मैं इसे नहीं तोडूंगा।[5] पुजारियों ने सिर झुकाकर इसे स्वीकार कर लिया और वे रातभर भगवान से प्रार्थना करते रहे। सबेरे उठते ही हर किसी ने देखा कि सचमुच मंदिर का मुंह पूरब से पश्चिम की ओर हो गया था और तब से इस मंदिर का मुंह पश्चिम की ओर ही है। हर साल चैत्र और कार्तिक के छठ मेले में लाखों लोग विभिन्न स्थानों से यहां आकर भगवान भास्कर की आराधना करते हैं भगवान भास्कर का यह त्रेतायुगीन मंदिर सदियों से लोगों को मनोवांछित फल देने वाला पवित्र धर्मस्थल रहा है। यूं तो सालों भर देश के विभिन्न जगहों से लोग यहां मनौतियां मांगने और सूर्यदेव द्वारा उनकी पूर्ति होने पर अर्ध्य देने आते हैं [6] [7]
अन्य
[संपादित करें]- मान्यता है कि सतयुग में इक्ष्वाकु के पुत्र व अयोध्या के निर्वासित राजा ऐल एक बार देवारण्य (देव इलाके के जंगलों में) में शिकार खेलने गए थे। वे कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। शिकार खेलने पहुंचे राजा ने जब यहां के एक पुराने पोखर के जल से प्यास बुझायी और स्नान किया, तो उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। वे इस चमत्कार पर हैरान थे। बाद में उन्होंने स्वप्न देखा कि त्रिदेव रूप आदित्य उसी पुराने पोखरे में हैं, जिसके पानी से उनका कुष्ठ रोग ठीक हुआ था। इसके बाद राजा ऐल ने देव में एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। उसी पोखर में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु व शिव की मूर्तियां मिलीं, जिन्हें राजा ने मंदिर में स्थान देते हुए त्रिदेव स्वरूप आदित्य भगवान को स्थापित कर दिया। इसके बाद वहां भगवान सूर्य की पूजा शुरू हो गयी, जो कालांतर में छठ के रूप में विस्तार पाया।
मंदिर का निर्माण
[संपादित करें]प्रचलित मान्यता के अनुसार इसका निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्माने सिर्फ एक रात में किया है।[8][9][10][11][12]</ref>[13] इस मंदिर के बाहर पाली लिपि मेंं लिखित अभिलेख मिलने से पुरातत्वविद इस मंदिर का निर्माण काल आठवीं-नौवीं सदी के बीच का मानते हैं। मंदिर के नामकरण व निर्माण को लेकर अनुश्रुतियां अपनी जगह हैं, पुरातात्विक प्रमाण भी इसकी प्राचीनता की ओर इशारा करते हैं।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगे शिलालेख से ज्ञात होता है कि इसकी शिल्प कला नागर शैली, द्रविड़ शैली, वेसर शैली का मिश्रित प्रभाव वाली है। शिल्प कला से स्पष्ट होता है कि यह छठी - आठवीं सदी के बीच के बीच हुआ है। [13] | website=News18 | date=22 अक्टूबर 2017 | url=https://hindi.news18.com/news/bihar/aurangabad-bihar-sun-temple-at-aurangabad-in-bihar-1143850.html | accessdate=23 अक्टूबर 2017}}
स्थापत्य
[संपादित करें]कहा जाता है कि सूर्य मंदिर के पत्थरों में विजय चिन्ह व कलश अंकित हैं। विजय चिन्ह यह दर्शाता है कि शिल्प के कलाकार ने सूर्य मंदिर का निर्माण कर के ही शिल्प कला पर विजय प्राप्त की थी। देव सूर्य मंदिर के स्थापत्य कला के बारे में कई तरह की किंवदंतियाँ है। मंदिर के स्थापत्य से प्रतीत होता है कि मंदिर के निर्माण में उड़िया स्वरूप नागर शैली का समायोजन किया गया है। नक्काशीदार पत्थरों को देखकर भारतीय पुरातत्व विभाग के लोग मंदिर के निर्माण में नागर शैली एवं द्रविड़ शैली का मिश्रित प्रभाव वाली वेसर शैली का भी समन्वय बताते है।
प्रतिमाएँ
[संपादित करें]मंदिर के प्रांगण में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल, मध्याचल तथा अस्ताचल के रूप में विद्यमान हैं। इसके साथ ही वहाँ अद्भुत शिल्प कला वाली दर्जनों प्रतिमाएं हैं। मंदिर में शिव के जांघ पर बैठी पार्वती की प्रतिमा है। सभी मंदिरों में शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसलिए शिव पार्वती की यह दुर्लभ प्रतिमा श्रद्धालुओं को खासी आकर्षित करती है।
मंदिर का स्वरूप
[संपादित करें]मंदिर का शिल्प उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मंदिर से मिलता है। देव सूर्य मंदिर दो भागों में बना है। पहला गर्भगृह जिसके ऊपर कमल के आकार का शिखर है और शिखर के ऊपर सोने का कलश है। दूसरा भाग मुखमंडप है जिसके ऊपर पिरामिडनुमा छत और छत को सहारा देने के लिए नक्काशीदार पत्थरों का बना स्तम्भ है। तमाम हिन्दू मंदिरों के विपरीत पश्चिमाभिमुख देव सूर्य मंदिर देवार्क माना जाता है जो श्रद्धालुओं के लिए सबसे ज्यादा फलदायी एवं मनोकामना पूर्ण करने वाला है।
शिल्प कला
[संपादित करें]नक्काशीदार पत्थरों को जोड़कर बनाया गया यह सूर्य मंदिर दो भागो में है। पहला भाग गर्भ गृह है, जिसके ऊपर कमलनुमा शिखर बना है। दूसरा भाग सामने का मुख मंडप है, जिसके ऊपर पिरामिडनुमा छत है। ऐसा नियोजन नागर शैली की प्रमुख विशिष्टता है। उड़ीसा के मंदिरो में अधिकांश शिल्प कला इसी प्रकार की है। हालांकि, उडि़सा के मंदिरो की तरह गर्भगृह की बाहरी भाग में रथिकाओं का नियोजन देव सूर्य मंदिर में नही है। देव मंदिर के मुख्य मंडप के दोनो पार्श्वों में बने छज्जेदार गवाक्ष आंतरिक एवं ब्राह्य भाग में संतुलन स्थापित करते हैं। ऐसा निर्माण विकसित कोटि के मंदिरों मे ही देखा जाता है। देव मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त शिल्प कला उड़ीसा के भुवनेश्र्वर मंदिर व मुक्तेश्र्वर मंदिर में नजर आती है। देव मंदिर में जाने के लिए सामान्य ऊंचाई की सीढि़यां तय कर मुख मंडप मे प्रवेश किया जाता है। मुख मंडप आयताकार है, जिसकी पिरामिडनुमा छत को सहारा देने के लिए विशालकाय पत्थरों को तराशकर बनाया गया स्तंभ हैं।
मेले में श्रद्धालुओं की संख्या
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Approx devotees in Coming New Year |
# | Year | कार्तिक मेले में श्रद्धालुओं की संख्या | चैत मेले में श्रद्धालुओं की संख्या | अद्रा मेले में श्रद्धालुओं की संख्या | अन्य समय में श्रद्धालुओं की संख्या | Ref. |
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1 | 2016 | 7 लाख से अधिक | 4 लाख से अधिक | 2 लाख से अधिक | 1 लाख से अधिक | [14] |
2 | 2017 | 10 लाख से अधिक | 6 लाख से अधिक | 2.5 लाख से अधिक | 1.5 लाख से अधिक | [15] |
3 | 2018 | 10 लाख से अधिक | 7 लाख से अधिक | 4 लाख से अधिक | 2 लाख से अधिक | [16] |
4 | 2019 | 15 लाख से अधिक | 9 लाख से अधिक | 6 लाख से अधिक | 3 लाख से अधिक | [17] |
5 | 2020 | कोरोनावायरस | कोरोनावायरस | कोरोनावायरस | 1.5 लाख से अधिक | |
6 | 2021 | कोरोनावायरस | कोरोनावायरस | कोरोनावायरस | 1 लाख से अधिक |
देव सूर्य महोत्सव
[संपादित करें]देव सूर्य महोत्सव के नाम से विश्व प्रख्यात सूर्य जन्मोत्सव 1998 से लागातार प्रशासनिक स्तर पर दो दिवसीय देव सूर्य महोत्सव आयोजन किया जाता है जिसमें हर वर्ष सूर्य देव की जन्म के अवसर पर मनाया जाता है। यह बसंत पंचमी के दूसरे दिन मतलब सप्तमी को पूरे शहर वासी नमक को त्याग कर बड़े ही धूम धाम से मानते हैं। इस दिन के अवसर पर कई तरह की कार्यक्रम भी भी कराया जाता है। बसंत सप्तमी के दिन में देव के कुंड मतलब ब्रह्मकुंड में भव्य गंगा आरती भी होती है जिसे देखने देश के कोने कोने से आते है इसी दिन देव शहर वर्ष की पहली दिवाली मानती है। और रात्रि में बॉलीवुड, तथा भोजीवुड के कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है और पूरा देव झूम उठता है। [18] [19]
रथ यात्रा देव
[संपादित करें]रथ यात्रा देव सूर्य नगरी देव में सर्वप्रथम २०१८ में सूर्य सप्तमी के दिन जिसे प्रारंभ हुआ था जो संज्ञा समिति के द्वारा एक दिवसीय त्रिकोण सूर्य रथयात्रा रविवार को भानू सप्तमी या यूँ कहें अचला भानु सूर्य सप्तमी को ऐतिहासिक उदयाचलगामी सूर्य मंदिर उमगा से प्रारंभ हुआ था। जो उमगा से देव-देवकुंड होते हुए पुन: उदयाचलगामी उमगा पहुंचकर सूर्य यात्रा का समापन किया गया था। लेकिन सूर्य देव की रथ यात्रा शन २०१९ से देव में कार्य कर रहे संस्था एवम शहरवासी के द्वारा आयोजित किया जाता है। जो एक भव्य सूर्य रथ यात्रा निकलती है।[20][21]
रख-रखाव
[संपादित करें]देव सूर्य मंदिर न्यास समिति
[संपादित करें]इस मंदिर के देखभाल का दायित्व देव सूर्य मंदिर न्यास समिति का है। [22] देव सूर्य मंदिर न्यास समिति के अध्यक्ष सुरेंद्र प्रसाद है। देव छठ मेला 2018 से तीन माह पूर्व डीएम राहुल रंजन महिवाल व एसपी डॉ. सत्य प्रकाश ने देव सूर्य मंदिर न्यास समिति के सौजन्य से एप बनवाई। ताकि देव छठ मेला में देशभर से आनेवाले छठ व्रती व श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा दी जा सके। आप अपने स्मार्टफोन के गूगल प्ले स्टोर पर जाएं। आप अंग्रेजी में Deo Chhath Puja लिखकर सर्च करें। आप इसे इंस्टाॅल कर लें। इसके बाद आप अपनी सुविधा के अनुसार मोबाइल से घर बैठे इसका आनंद उठा सकते हैं। [23][24]
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- बिहार के पर्यटन स्थल - भारत सरकार के आधिकारिक पोर्टल पर
- बिहार सरकार का आधिकारिक जालपृष्ठ (अंग्रेज़ी)
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- देव
- देव छठ मेला
- देव सूर्य महोत्सव
- राजा किला देव
- रथ यात्रा देव
- बिहार के महत्वपूर्ण स्थलों की सूची
- बिहार की एतिहासिक जगह
- बिहार
- कोणार्क सूर्य मंदिर
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ {{cite web | last=Sharma | first=Sunil | title=खुद को बचाने के लिए सूर्य मंदिर ने बदल ली थी दिशा | website=www.patrika.com | date=3 जनवरी 2015 | url=https://www.patrika.com/news/temples/ancient-surya-temple-changed-direction-from-east-to-west-to-save-itself-1001498 Archived 2018-01-10 at the वेबैक मशीन
- ↑ "Lord Vishwakarma himself built the Deo Sun temple of Aurangabad". Jagran.com. 4 नवंबर 2016. 28 नवंबर 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 29 नवंबर 2018.
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(help) - ↑ "छठ पर्व: सिर्फ एक रात में बना था ये सूर्य मंदिर, छठ पर लगती है श्रद्धालुओं की भीड़". Abpnews.abplive.in. 23 अक्टूबर 2017. मूल से से 28 अप्रैल 2019 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 29 नवंबर 2018.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". 31 अक्तूबर 2019 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 31 अक्तूबर 2019.
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(help) - ↑ "पश्चिमाभिमुख है देव द्वार". www.jagran.com. 20 अक्तूबर 2017 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 22 अक्टूबर 2017.
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(help) - ↑ "विश्वकर्मा ने किया है देव के सूर्यमंदिर का निर्माण". www.ucnews.in. मूल से से 2 मार्च 2019 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 1 मार्च 2019.
- ↑ "खुद को बचाने के लिए सूर्य मंदिर ने बदल ली थी दिशा". www.patrika.com. 29 सितंबर 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 1 मार्च 2019.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". 31 अक्तूबर 2019 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 31 अक्तूबर 2019.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". 29 सितंबर 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 30 नवंबर 2018.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". 1 नवंबर 2019 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 4 नवंबर 2019.
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(help) - ↑ अ आ "Chhath Puja 2017: भगवान विश्वकर्मा ने किया था इस सूर्य मंदिर का निर्माण, पूजा से पूरी होतीं मनोकामनाएं". NDTVIndia. 9 जनवरी 2018. मूल से से 10 जनवरी 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 10 जनवरी 2018.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से से 28 नवंबर 2018 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 3 नवंबर 2019.
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(help) - ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से से 5 नवंबर 2019 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 3 नवंबर 2019.
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(help) - ↑ "दो दिवसीय सूर्य महोत्सव 24 से". Dainik Jagran. 29 नवंबर 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 1 मार्च 2019.
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(help) - ↑ "औरंगाबाद में दो दिवसीय देव सूर्य महोत्सव का हुआ आगाज". Dainik Bhaskar. 27 जन॰ 2015. 29 नवंबर 2018 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 1 मार्च 2019.
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(help) - ↑ "बैंड बाजे के साथ भगवान के रथ का हुआ स्वागत". Dainik Jagran. 9 फ़रवरी 2019 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 1 मार्च 2019.
- ↑ Automation, Bhaskar (8 फ़र॰ 2019). "सूर्य सप्तमी 12 फरवरी काे, निकलेगी रथयात्रा, होगा सामूहिक यज्ञोपवित". Dainik Bhaskar. 9 फ़रवरी 2019 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 1 मार्च 2019.
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(help) - ↑ "एसडीओ ने सूर्य मंदिर में किया दर्शन". Dainik Jagran. 11 अप्रैल 2019 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 1 मार्च 2019.
- ↑ sheikh, sajid (10 नव॰ 2018). "देव सूर्य मंदिर का घर बैठे कर सकते हैं लाइव दर्शन, छठ पूर्व एप लाॅन्च". Dainik Bhaskar. 11 अप्रैल 2019 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 1 मार्च 2019.
- ↑ "Deosuryamandir.org". www.deosuryamandir.org. मूल से से 18 सितंबर 2017 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 1 मार्च 2019.