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== फुले का पोवाड़ा ==
== फुले का पोवाड़ा ==
महात्मा जोतिबा फुले ने छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि ढूंढ निकाली और 1869 में उन्होंने [[पूना]] में पहली बार शिवाजी महाराज की [[जयंती]] मनाई। उन्होंने ही शिवाजी की समाधि की मरम्मत करवाई तथा अपनी पहली पुस्तक लिखी ‘ए बलाड ऑन शिवाजी’ (शिवाजी की महागाथा के गीत), जिसे अंग्रेजों ने रिकार्ड किया। फुले को यह अहसास था कि इतिहास के साक्षी के रूप में पोवाड़ा का बहुत महत्व है। गीत और गद्य दोनो होने के कारण, पोवाड़ा के माध्यम से मनोरंजन और प्रचार दोनों संभव हैं। फुले ने अशिक्षित जनता को पोवाड़ा के माध्यम से शिवाजी के कार्यों के बारे में बताया. उन्होंने मात्र व्यक्ति-आधारित पोवाड़ा नहीं लिखे बल्कि उपमा देकर लिखा. शिवाजी के कार्यों से प्रेरणा लेने के लिए उनके बारे में सरल पोवाड़ा के माध्यम से अशिक्षित जनता को जानकारी देते थे।
महात्मा जोतिबा फुले ने छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि ढूंढ निकाली और 1869 में उन्होंने [[पूना]] में पहली बार शिवाजी महाराज की [[जयंती]] मनाई। उन्होंने ही शिवाजी की समाधि की मरम्मत करवाई तथा अपनी पहली पुस्तक लिखी ‘ए बलाड ऑन शिवाजी’ (शिवाजी की महागाथा के गीत), जिसे अंग्रेजों ने रिकार्ड किया। फुले को यह अहसास था कि इतिहास के साक्षी के रूप में पोवाड़ा का बहुत महत्व है। गीत और गद्य दोनो होने के कारण, पोवाड़ा के माध्यम से मनोरंजन और प्रचार दोनों संभव हैं। फुले ने अशिक्षित जनता को पोवाड़ा के माध्यम से शिवाजी के कार्यों के बारे में बताया. उन्होंने मात्र व्यक्ति-आधारित पोवाड़ा नहीं लिखे बल्कि उपमा देकर लिखा. शिवाजी के कार्यों से प्रेरणा लेने के लिए उनके बारे में सरल पोवाड़ा के माध्यम से अशिक्षित जनता को जानकारी देते थे।

== ब्रिटिश काल ==
बाद में ब्रिटिश राज के खिलाफ भी कई पोवाड़ा लिखे गए। यह भी बड़े आश्चर्य की बात है कि ब्रिटिशों ने ही पोवाड़ा को संग्रहित करने का काम भी किया। सबसे बड़ा उदाहरण हैरी अर्बुथनोट अक्वर्थ का है। उन्होंने शंकर तुकाराम शालीग्राम के साथ मिलकर करीब 60 पोवाडा इकट्ठा किए, जिन्हें १८९१ में ‘इतिहास प्रसिद्ध पुरूषांची वा स्त्रियांचे पोवाड़ा’ नाम से प्रकाशित किया गया। उसके बाद, अक्वर्थ ने १८९४ में ‘बलाड ऑफ़ मराठा’ नाम से पुस्तक लिखी। अंग्रेजों ने शाहू महाराज के समय के 5-6 पोवाड़ा खोजे, 150 पोवाड़ा पेशवा के समय के तथा ब्रिटिश काल के 150 पोवाड़ा मिले। 1947 तक अंग्रेज़ एक हजार से ज्यादा पोवाड़ा इकठ्ठा कर चुके थे ।

कई शाहिरों के नाम पता नहीं चले। डाक्टर एसपी गोस्वामी ने शुरूआती पोवाड़ा प्रकाशित किए, जिनमें राव बर्वे ज्ञानप्रकाश के पोवाड़ा शामिल थे। इन पोवाड़ा में ब्रिटिश राज के खिलाफ आक्रोश प्रकट हुआ था। यशवंत नरसिंहा केलकर ने तीन भागों में पोवाड़ा प्रकाशित किये, जिससे पोवाड़ा विधा को आगे बढ़ाने में मदद मिली। गोंधळ जाति ने महाराष्ट्र के इतिहास को बचाया तो पोवाड़ा को संकलित व प्रकाशित कर इस मौखिक परंपरा को विलुप्त होने से बचाया गया।

== शाहिर साहित्य==
शाहिर साहित्य ने कई महान लेखकों को पैदा किया जिनमें श्रीपाद महादेव वर्दे, एमवी धोंध तथा अन्य शामिल थे। वर्दे ने कई पोवाडा एकत्रित कर उन्हें ‘विविधवार्ता’ नाम से प्रकाशित किया। उन्होंने ‘मराठी कविताचा उषाकाल किंवा मराठीं साहित्य’ नाम से पुस्तक भी लिखी। एम एन सहस्त्रबुद्धे का ‘मराठी शाहिरी- वागंमय’ 1950 के दशक में मुंबई मराठी साहित्य संघ ने प्रकाशित किया। इन सभी लेखकों ने पोवाड़ा को संग्रहित कर प्रकाशित करवाकर बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


==प्रसिद्ध पोवाड़े==
==प्रसिद्ध पोवाड़े==
शाहिर साहित्य के चलन का आरम्भ छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल (१६३०-१६८०) में हुआ। इनके काल में प्रथम पोवाड़ा ‘अफजल खानाचा वध’(अफजल खान का वध) १६५९ में अग्निदास द्वारा गाया गया था। इसमें शिवाजी द्वारा अफजल खान के वध का वर्णन किया गया था।(चित्रित) इसकी जानकारी महाराष्ट्र के तत्कालीन गजट में भी दर्ज है। दूसरा महत्वपूर्ण पोवाडा तानाजी मालसुरे द्वारा सिंहगढ़ पर हमला करने एवं अधिकार करने के बारे में था। इसे तुलसीदास ने गाया था। इसके बाद प्रसिद्ध पोवाड़े की गिनती में बाजी पासालकर का यमजी भास्कर द्वारा गाया हुआ पोवाड़ा। बाद में भी शिवाजी के अनेक पोवाड़ा गाए गए, जैसे शिवाजी अवतारी पुरूष, शिव प्रतिज्ञा, प्रतापगढचा रणसंग्राम, शाहिस्ताखान चा पराभव, शिवाजी महाराज पोवाड़ा, छत्रपति राजमाता जीजाबाई, शिवरांयाचे पुण्य स्मरण, सिंहगढ़, शिवराज्याभिषेक, समाजवादी शिव छत्रपति, शिव-गौरव, शिवदर्शन, पुरोगामी शिवाजी, शिवसंभव, शिवकाव्य इत्यादि।<ref name="प्रेस"/> इसके बाद पेशवाकाल (१७६२-१८१२) में पोवाड़ा-गायक रामजोशी थे जिन्होंने अनेक प्रसिद्ध पोवाड़े गाये। इनके अलावा अनंतफादी (१७४४-१८१९), होनाजी बाला(१७५४-१८४४) एवं प्रभाकर (१७६९-१८४३) जैसे अनेक पोवाड़ा गायक हुए हैं, जिन्होंने कई पोवाड़ा गाए। कालान्तर में यह कला पिछड़ती चली गई किन्तु लोककला के रूप में, मराठी साहित्य के विकास में पोवाड़ा की भूमिका थी।
शाहिर साहित्य के चलन का आरम्भ छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल (१६३०-१६८०) में हुआ। इनके काल में प्रथम पोवाड़ा ‘अफजल खानाचा वध’ (अफजल खान का वध) १६५९ में अग्निदास द्वारा गाया गया था। इसमें शिवाजी द्वारा अफजल खान के वध का वर्णन किया गया था।(चित्रित) इसकी जानकारी महाराष्ट्र के तत्कालीन गजट में भी दर्ज है। दूसरा महत्वपूर्ण पोवाडा तानाजी मालसुरे द्वारा सिंहगढ़ पर हमला करने एवं अधिकार करने के बारे में था। इसे तुलसीदास ने गाया था। इसके बाद प्रसिद्ध पोवाड़े की गिनती में बाजी पासालकर का यमजी भास्कर द्वारा गाया हुआ पोवाड़ा। बाद में भी शिवाजी के अनेक पोवाड़ा गाए गए, जैसे शिवाजी अवतारी पुरूष, शिव प्रतिज्ञा, प्रतापगढचा रणसंग्राम, शाहिस्ताखान चा पराभव, शिवाजी महाराज पोवाड़ा, छत्रपति राजमाता जीजाबाई, शिवरांयाचे पुण्य स्मरण, सिंहगढ़, शिवराज्याभिषेक, समाजवादी शिव छत्रपति, शिव-गौरव, शिवदर्शन, पुरोगामी शिवाजी, शिवसंभव, शिवकाव्य इत्यादि।<ref name="प्रेस"/>


==संदर्भ==
==संदर्भ==

04:31, 29 मार्च 2017 का अवतरण

पोवाड़ा
मराठी गद्य की विधा
शिवाजी द्वारा अफ़ज़ल खां का वध
शिवाजी द्वारा अफ़ज़ल खां का वध, १६५९ ई.
गायन शैली शौर्य गाथा
नायक शिवाजी
क्षेत्र महाराष्ट्र
काल १७वीं शताब्दी
गीतकार शाहिर
मूल गायक गोंधल (गोंधिया) दलित जाति के लोग
पुनरोद्धार महात्मा फुले
पुनर्प्रयोग राष्ट्रीय आन्दोलन और जनान्दोलनों का गीत

पोवाड़ा महाराष्ट्र का प्रसिद्ध लोक गायन है। मुख्यतः यह शिवाजी महाराज के युद्ध कौशल का यशोगान तथा स्तुति है।[1] पोवाडा वीर रस के गायन एवं लेखन प्रकार है जो महाराष्ट्र में लोकप्रिय है। मूल रूप से दलित समुदायों द्वारा गाये जाने वाले गाथागीतों की इस विधा ने शिवाजी महाराज को युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। पोवाडा का प्राचीन मराठी भाषा में अर्थ होता है गुणगान करना। मराठी में पोवाड़ा गाने वालों को शाहिर कहा जाता है। शाहिर शब्द उतना ही पुराना है जितनी कि मराठी संस्कृति। शाहिर साहित्य को मराठी कविताओं का उदयकाल कहा जाता है। मराठी भाषिको को यह स्फूर्ति देणे वाला गीत प्रकार है। भारत में इसका उदय १७वी शताब्धि में हुआ। इसमें ऐतिहासिक घटना सामने रखकर गीत की रचना की जाती है। इस गीत प्रकार की रचना करनेवाले गीतकारों को शाहिर कहां जाता है।[2]

इसी दौरान यह व्यवसाय करनेवाले जो गायक सामने आये है उन्हें गोंधली कहते है। पोवाडा मराठी साहित्य की एक प्रमुख विधा है पोवाडा जिसे गोंधल (गोंधिया) दलित जाति के लोग गाते थे पर आगे चलकर, शिवाजी के बाद, सभी जातियों के लोगों ने इसे अपना लिया। युद्धों का वर्णन पोवाडा गायकों का प्रमुख विषय होता था जिसका वे बेहद सजीव और ओजपूर्ण वर्णन करते थे, वह भीतरी कलहों और बाहरी आक्रमणों का काल था। अतः अपने आश्रयदाताओं को उनकी पूरी ताकत से युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करना, उस काल के कवि का प्रमुख कर्तव्य-सा बन गया था। लेकिन महात्मा फुले ने पोवाडा का जनजागृति के लिए इस्तेमाल किया. आजादी की लड़ाई के दिनों में और आजादी के बाद पोवाडा क्रमशः राष्ट्रीय आन्दोलन और जनान्दोलनों का गीत बन गया।

इतिहास

पोवाड़ा को समकालीन मराठा इतिहास का विश्वसनीय साक्षी माना गया है। यूं तो पोवाड़ा का इतिहास 17वीं शताब्दी से शुरू होता है पर शिवाजी के राज्याभिषेक के पहले, यादव काल में, ज्ञानेश्वरी में जो भक्ति गीत गाए जाते थे, वे पोवाड़ा का ही एक रूप थे। शिवाजी महाराज के काल में क्लासिक पोवाड़ा के बीज बोए गए। शाहिर साहित्य की परम्परा की शुरूआत छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल (1630-1680) में हुई। शिवाजी के काल में प्रथम पोवाड़ा ‘अफजल खानाचा वध’ (अफजल खान का वध) 1659 में अग्निदास द्वारा गाया गया, जिसमें शिवाजी द्वारा अफजल खान के वध का वर्णन किया गया था। यह महाराष्ट्र के गजट में दर्ज है। दूसरा महत्वपूर्ण पोवाडा था तानाजी मालसुरे द्वारा सिंहगढ़ पर कब्जा करने के बारे में, जिसे तुलसीदास ने गया। उतना ही महत्वपूर्ण है बाजी पासालकर के बारे में यमजी भास्कर द्वारा गाया गया पोवाड़ा। शिवाजी के अनेक पोवाड़ा गाए गए जैसे शिवाजी अवतारी पुरूष, शिव प्रतिज्ञा, प्रतापगढचा रणसंग्राम, शाहिस्ताखान चा पराभव, शिवाजी महाराज पोवाड़ा, छत्रपति राजमाता जीजाबाई, शिवरांयाचे पुण्य स्मरण, सिंहगढ़, शिवराज्याभिषेक, समाजवादी शिव छत्रपति, शिव-गौरव, शिवदर्शन, पुरोगामी शिवाजी, शिवसंभव, शिवकाव्य इत्यादि।

पेशवाकाल

शिवाजी काल के बाद, पेशवाकाल (1762-1812) के गायक रामजोशी थे। अनंतफादी (1744-1819), होनाजी बाला (1754-1844) व प्रभाकर (1769-1843) ने भी कई पोवाड़ा गाए। आगे चलकर यह कला पिछड़ गई पर लोककला बतौर, मराठी साहित्य के विकास में पोवाड़ा की भूमिका बनी रही।

फुले का पोवाड़ा

महात्मा जोतिबा फुले ने छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि ढूंढ निकाली और 1869 में उन्होंने पूना में पहली बार शिवाजी महाराज की जयंती मनाई। उन्होंने ही शिवाजी की समाधि की मरम्मत करवाई तथा अपनी पहली पुस्तक लिखी ‘ए बलाड ऑन शिवाजी’ (शिवाजी की महागाथा के गीत), जिसे अंग्रेजों ने रिकार्ड किया। फुले को यह अहसास था कि इतिहास के साक्षी के रूप में पोवाड़ा का बहुत महत्व है। गीत और गद्य दोनो होने के कारण, पोवाड़ा के माध्यम से मनोरंजन और प्रचार दोनों संभव हैं। फुले ने अशिक्षित जनता को पोवाड़ा के माध्यम से शिवाजी के कार्यों के बारे में बताया. उन्होंने मात्र व्यक्ति-आधारित पोवाड़ा नहीं लिखे बल्कि उपमा देकर लिखा. शिवाजी के कार्यों से प्रेरणा लेने के लिए उनके बारे में सरल पोवाड़ा के माध्यम से अशिक्षित जनता को जानकारी देते थे।

ब्रिटिश काल

बाद में ब्रिटिश राज के खिलाफ भी कई पोवाड़ा लिखे गए। यह भी बड़े आश्चर्य की बात है कि ब्रिटिशों ने ही पोवाड़ा को संग्रहित करने का काम भी किया। सबसे बड़ा उदाहरण हैरी अर्बुथनोट अक्वर्थ का है। उन्होंने शंकर तुकाराम शालीग्राम के साथ मिलकर करीब 60 पोवाडा इकट्ठा किए, जिन्हें १८९१ में ‘इतिहास प्रसिद्ध पुरूषांची वा स्त्रियांचे पोवाड़ा’ नाम से प्रकाशित किया गया। उसके बाद, अक्वर्थ ने १८९४ में ‘बलाड ऑफ़ मराठा’ नाम से पुस्तक लिखी। अंग्रेजों ने शाहू महाराज के समय के 5-6 पोवाड़ा खोजे, 150 पोवाड़ा पेशवा के समय के तथा ब्रिटिश काल के 150 पोवाड़ा मिले। 1947 तक अंग्रेज़ एक हजार से ज्यादा पोवाड़ा इकठ्ठा कर चुके थे ।

कई शाहिरों के नाम पता नहीं चले। डाक्टर एसपी गोस्वामी ने शुरूआती पोवाड़ा प्रकाशित किए, जिनमें राव बर्वे ज्ञानप्रकाश के पोवाड़ा शामिल थे। इन पोवाड़ा में ब्रिटिश राज के खिलाफ आक्रोश प्रकट हुआ था। यशवंत नरसिंहा केलकर ने तीन भागों में पोवाड़ा प्रकाशित किये, जिससे पोवाड़ा विधा को आगे बढ़ाने में मदद मिली। गोंधळ जाति ने महाराष्ट्र के इतिहास को बचाया तो पोवाड़ा को संकलित व प्रकाशित कर इस मौखिक परंपरा को विलुप्त होने से बचाया गया।

शाहिर साहित्य

शाहिर साहित्य ने कई महान लेखकों को पैदा किया जिनमें श्रीपाद महादेव वर्दे, एमवी धोंध तथा अन्य शामिल थे। वर्दे ने कई पोवाडा एकत्रित कर उन्हें ‘विविधवार्ता’ नाम से प्रकाशित किया। उन्होंने ‘मराठी कविताचा उषाकाल किंवा मराठीं साहित्य’ नाम से पुस्तक भी लिखी। एम एन सहस्त्रबुद्धे का ‘मराठी शाहिरी- वागंमय’ 1950 के दशक में मुंबई मराठी साहित्य संघ ने प्रकाशित किया। इन सभी लेखकों ने पोवाड़ा को संग्रहित कर प्रकाशित करवाकर बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रसिद्ध पोवाड़े

शाहिर साहित्य के चलन का आरम्भ छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल (१६३०-१६८०) में हुआ। इनके काल में प्रथम पोवाड़ा ‘अफजल खानाचा वध’ (अफजल खान का वध) १६५९ में अग्निदास द्वारा गाया गया था। इसमें शिवाजी द्वारा अफजल खान के वध का वर्णन किया गया था।(चित्रित) इसकी जानकारी महाराष्ट्र के तत्कालीन गजट में भी दर्ज है। दूसरा महत्वपूर्ण पोवाडा तानाजी मालसुरे द्वारा सिंहगढ़ पर हमला करने एवं अधिकार करने के बारे में था। इसे तुलसीदास ने गाया था। इसके बाद प्रसिद्ध पोवाड़े की गिनती में बाजी पासालकर का यमजी भास्कर द्वारा गाया हुआ पोवाड़ा। बाद में भी शिवाजी के अनेक पोवाड़ा गाए गए, जैसे शिवाजी अवतारी पुरूष, शिव प्रतिज्ञा, प्रतापगढचा रणसंग्राम, शाहिस्ताखान चा पराभव, शिवाजी महाराज पोवाड़ा, छत्रपति राजमाता जीजाबाई, शिवरांयाचे पुण्य स्मरण, सिंहगढ़, शिवराज्याभिषेक, समाजवादी शिव छत्रपति, शिव-गौरव, शिवदर्शन, पुरोगामी शिवाजी, शिवसंभव, शिवकाव्य इत्यादि।[1]

संदर्भ

  1. त्रिपाठी, कुसुम (०३-०२-२०१६). "पोवाडा : वीर रस की मराठी कविता". फ़ॉर्वर्ड प्रेस. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. "महाराष्ट्रीयन लोकगीते एक संग्रहण". पोवाडे.कॉम. २५-०७-२०१६. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)

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