तमाशा

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तमाशा महाराष्ट्र का प्रसिध्द लोकनाटक है।17वीं सदी से यह महाराष्ट्र में लोकप्रिय है। महाराष्ट्र में इस कला के स्थापित होने से पहले, जागरण, वाघ्यामुरली, दशावतार, पोतराज आदि लोककला रूप प्रचलित थे। तकनीकी और संगीत पहलुओं के संदर्भ में कुछ हद तक ये सभी नाटकीय लोक कला रूप और तमाशा मे समानता हैं। इस कला को प्रस्तुत करने के लिए किसी मंच इत्यादि की आवश्यकता नहीं होती है। इसे किसी भी खुले स्थान पर किया जा सकता है। पहले ईसे गावो मे पेड के नीचे भी प्रस्तुत किया जाता था| सबसे पहले भगवान गणेश की वंदना की जाती है। इसके बाद गवळण गाए जाते हैं। मराठी धर्म-साहित्य में ये कृष्णलीला के रूप हैं, जिसमें भगवान कृष्ण के जन्म की विभिन्न घटनाओं को दर्शाया जाता है। अंत मे वगनाट्य प्रस्तुत किया जाता हे| तमाशा पाँच भागों अर्थात् गण, गौळण, लावणी, बतावणी और वागनाट्य से समृद्ध है।इसमें ढोलकी, ड्रम, तुनतुनी, मंजीरा, डफ, हलगी, कड़े, हारमोनियम और घुँघरुओं का प्रयोग किया जाता है।

उत्पत्ती[संपादित करें]

'तमाशा' शब्द अरबी है और इसका अर्थ है 'शानदार दृश्य'। तमाशा के लिए गीत लिखाणे आलो को 'शाहीर' काही जात हे जो शब्द भी अरबी शब्द 'शायर' से लिया गया है। कुछ विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि तमाशा का नाम और इसके उत्पत्ती अरबी हैं, और हो सकता है कि यह कला मुसलमानों के प्रभाव में उभरा हो।

मौजुदा परिस्थिती[संपादित करें]

महाराष्ट्र में कई तमाशा मंडल (कलापथक/ संच ) आज भी मजबुती से एस कला को आज बढा रहे हैंl रघुवीर खेडकर, मंगला बंसोडे, काळू-बाळू, दत्ता महाडिक पुणेकर, चंद्रकांत धवळपुरीकर के संच सक्रिय और बहुत प्रसिद्ध हैं। यात्रा के दौरान गांव-गांव में तमाशा का आयोजन किया जाता है और बाकी दिनो मे यह तमाशा संच व्यवसायिक तौर पर अपने शो बडे से कपड़े के तंबू/कनात मे करते हैं। जाने माने साहित्यिक और लोकगीतकार श्री. बशीर मोमीन कवठेकर[1][2]ने महाराष्ट्र कि इस लोकप्रिय तमाशा कला को समृद्ध करणे वाले विभिन्न प्रकारो (वगनाट्य, लावणी, लोकगीत, सवाल-जवाब, गण-गवलण) का लेखण किया हें[3]और इसे महाराष्ट्र के सभी प्रमुख तमाशा मंडलों को मुफत मे उपलब्ध कर दिया था। उनके लिखे गीत और वगनाट्य को १९७० के दशक से महाराष्ट्र मे काफी सराहा गया हें और काफी लोकप्रियता मिली है। [4]

सम्मान[संपादित करें]

तमाशा कला के क्षेत्र में लंबे समय तक योगदान के लिये वरिष्ठ कलाकार/ लेखक को महाराष्ट्र सरकार द्वारा "विठाबाई नारायणगांवकर जीवन गौरव पुरस्कार" से सम्मानित किया जाता हैं। इस पुरस्कार कि शुरुआत सण २००६ मे हुई और इसका स्वरूप 5 लाख रुपये और सम्मान पत्र हैं।

  1. "बशीर मोमीन (कवठेकर)", दै.महाराष्ट्र टाइम्स, 2-March-2019
  2. [लोकाश्रय लाभलेले लोकशाहीर बी. के. मोमीन - कवठेकर], “दै. पुढारी, पुणे”, २३-एप्रिल-२०१५
  3. Dr. Sheshrao Patahde. "लोकमान्य लोकशाहीर मोमीन कवठेकर Lokamnya Lokshahir Momin Kavathekar", "Punya Nagari- a Marathi Daily", Mumbai, 28-Nov-2021
  4. खंडूराज गायकवाड, लेखणीतून ग्रामीण लोककला संपन्न करणारे- बशीर मोमीन कवठेकर!, “दै नवाकाळ", 20-Jan-2019”