लंदन घोषणा

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लंदन घोषणा, 1949 के राष्ट्रमंडल प्रधानमंत्रियों के सम्मेलन में, भारत के एक गणतंत्र संविधान परवर्तित करने के बाद राष्ट्रमंडल में सदस्यता के मुद्दे पर जारी की गयी एक घोषणा थी। 28 अप्रैल 1949 को प्रकाशित इस घोषणा ने आधुनिक राष्ट्रमंडल के रूप को जन्म दिया था।[1][2] भारतीय राजनेता वी के कृष्ण मेनन द्वारा प्रारूपित इस घोषणा में दो मुख्य प्रावधान थे:[3] इसने राष्ट्रमंडल को ऐसे सदस्यों, जो ब्रिटिश डोमिनियन नहीं थे, को भी शामिल करने का रास्ता खोल दिया अतः गणराज्य और स्वदेशी राजतंत्र भी अब राष्ट्रमंडल में शामिल हो सकते थे, तथा इसने "ब्रिटिश राष्ट्रमंडल" के नाम को बदल कर "राष्ट्रों का राष्ट्रमंडल" कर दिया। इस घोषणा ने राजा जॉर्ज षष्ठम् को राष्ट्रमंडल के प्रमुख के रूप में मान्यता दी।[4][5] तत्पश्चात उनकी मृत्यु के बाद, राष्ट्रमंडल नेताओं ने उस क्षमता में रानी एलिजाबेथ द्वितीय को भी इस पद की पहचान प्रदान किया।

पृष्टभूमि व प्रभाव[संपादित करें]

पूर्वतः राष्ट्रमण्डल के सारे देश एक दूसरे से स्वतंत्र होने के बावजूद, ब्रिटिश संप्रभु के प्रजाभूमि हुआ करते थे, अर्थात सरे देश स्वतंत्र रूप से नामात्र रूप से ब्रिटिश संप्रभु को अपना शासक मानते थे। परंतु १९५० में भारत ने स्वतंत्रता के पश्चात स्वयं को गणराज्य घोषित किया, और ब्रिटिश राजसत्ता की राष्ट्रप्रमुख के रूप में संप्रभुता को भी खत्म कर दिया। परंतु भारत ने राष्ट्रमण्डल की सदस्यता बरक़रार राखी।

इसने राष्ट्रमंडल के संसथान में ऐसे परिवर्तनों के लिए रास्ता बनाया जोकी विकासशील राजनीतिक स्वतंत्रता और राष्ट्रमंडल देशों के गणराज्य होने के अधिकार के साथ-साथ निष्ठा की समानता को दर्शाता था, जोकी 1926 के बालफोर घोषणा एवं वेस्टमिंस्टर की संविधि, १९३१ की आधारशिला थी। इस विषय पर प्रमुख चिंता, कनाडा के प्रधान मंत्री, लुईस सेंट लॉरेंट द्वारा प्रकट की गयी थी, जिन्होंने ही समझौता के रूप में "राष्ट्रमंडल के प्रमुख" के पद का प्रस्ताव रखा था। ब्रिटिश संप्रभु के लिए "राष्ट्रमंडल के प्रमुख" का पद बनने के वजह से, किसी भी राज्य को राष्ट्रमंडल का हिस्सा होने के लिए नाममात्र के लिए भी ब्रिटिश राजमुकुट के अधीन होने की आवश्यकता नहीं थी।[1]

इसके बाद से, राष्ट्रमण्डल देशों में, ब्रिटिश संप्रभु को (चाहे राष्ट्रप्रमुख हों या नहीं) "राष्ट्रमण्डल के प्रमुख" का पद भी दिया जाता है, जो राष्ट्रमण्डल के संगठन का नाममात्र प्रमुख का पद है। इस पद का कोई राजनैतिक अर्थ नहीं था।[6]

परिणाम[संपादित करें]

भारत के सन्दर्भ में इस घोषणा में यह कहा गया है:

The Government of India have ... declared and affirmed India's desire to continue her full membership of the Commonwealth of Nations and her acceptance of the King as the symbol of the free association of its independent member nations and as such the Head of the Commonwealth.[1]

इसी बात को भविष्य के सभी गणतांत्रिक व राजतांत्रिक देशों की सदस्यता के लिए काफी समझा जाता है।

राष्ट्रमंडल में सम्मिलित होने के सन्दर्भ में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में यह बयान दिया था:

We join the Commonwealth obviously because we think it is beneficial to us and to certain causes in the world that we wish to advance. The other countries of the Commonwealth want us to remain there because they think it is beneficial to them. It is mutually understood that it is to the advantage of the nations in the Commonwealth and therefore they join. At the same time, it is made perfectly clear that each country is completely free to go its own way; it may be that they may go, sometimes go so far as to break away from the Commonwealth...Otherwise, apart from breaking the evil parts of the association, it is better to keep a co-operative association going which may do good in this world rather than break it.[7]

भारत 1950 में एक गणराज्य बन गया एवं राष्ट्रमंडल में बना रहा। जबकि, आयरलैंड, जो उसी स्थिति में था, ने संसदीय अधिनियम के तहत 18 अप्रैल 1949 को खुद को एक गणतंत्र घोषित किया और राष्ट्रमंडल छोड़ दिया।[8]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. de Smith, S.A. (July 1949). "The London Declaration of the Commonwealth Prime Ministers, April 28, 1949". The Modern Law Review. 12 (3): 351–354. JSTOR 1090506. डीओआइ:10.1111/j.1468-2230.1949.tb00131.x.
  2. Marshall, Peter (April 1999). "Shaping the 'New Commonwealth', 1949". The Round Table Journal. 88 (350): 185–197. डीओआइ:10.1080/003585399108108.
  3. Brecher cites the negotiations that led to the creation of the modern Commonwealth, Page 20 in Brecher’s India and World Politics: Krishna Menon’s View of the World, Oxford University Press, London 1968.
  4. "The London Declaration" (PDF). The Commonwealth. 26 April 1949. मूल (PDF) से 27 September 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 July 2014.
  5. The Modern Commonwealth Archived 4 अगस्त 2009 at the वेबैक मशीन
  6. London Declaration (PDF), Commonwealth Secretariat, 1949, मूल से 27 सितंबर 2012 को पुरालेखित (PDF), अभिगमन तिथि 29 July 2013
  7. "Constituent Assembly Debates (India)". दिल्ली: भारतीय संसद. 16 May 1949. मूल से 9 November 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 July 2014.
  8. "The Republic of Ireland Act, 1948 (Commencement) Order, 1949". मूल से 5 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 मार्च 2020.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]