किन्नर कैलाश
किन्नौर कैलाश | |
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उच्चतम बिंदु | |
ऊँचाई | 6,050 मी॰ (19,850 फीट) [1] |
निर्देशांक | 31°31′14″N 78°21′49″E / 31.52056°N 78.36361°Eनिर्देशांक: 31°31′14″N 78°21′49″E / 31.52056°N 78.36361°E |
भूगोल | |
मातृ श्रेणी | हिमालय |
किन्नर कैलाश हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में तिब्बत सीमा के समीप स्थित ६०५० मीटर ऊँचा[2] एक पर्वत है जो हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए विशेष धार्मिक महत्त्व रखता है।[3] इस पर्वत की विशेषता है इसकी एक चोटी पर स्थित प्राकृतिक शिवलिंग।[4] किन्नौर कैलाश परिक्रमा जहाँ आस्थावान हिंदुओं के लिए हिमालय पर होनेवाले अनेक हिन्दू तीर्थों में से एक है, वहीं देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए एक आकर्षक एवं चुनौतीपूर्ण ट्रेकिंग भी।[5] हिमालय पर्वत का संबंध न केवल हिंदू पौराणिक कथाओं से है वरन हिंदू समाज की आस्था से भी इसका गहरा लगाव है। यह वही हिमालय है जहां से पवित्रतम नदी गंगा का उद्भव गोमुख से होता है। 'देवताओं की घाटी' कुल्लू भी इसी हिमालय रेंज में आता है। इस घाटी में 350 से भी ज्यादा मंदिरें स्थित हैं। इसके अलावा अमरनाथ और मानसरोवर झील भी हिमालय पर ही स्थित है। हिमालय अनेक तरह के एडवेंचर के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है। अगर धर्म की दृष्िट से देखा जाए तो यह बौद्ध और सिक्ख धर्मों के लिए भी बहुत महत्पूर्ण है। हिमालय विश्व का सबसे बड़ा 'स्नोफिल्ड' है, जिसका कुल क्षेत्रफल 45,000 कि॰मी॰ से भी ज्यादा है।
पौराणिक संदर्भ
[संपादित करें]भगवान श्री कृष्ण ने हिमालय पर्वत के बारे में भगवद् गीता में कहा है,
"मेरा निवास पर्वतों के राजा हिमालय में है।"
उसी तरह हिमालय को महिमामंडित करते हुए स्वामी विवेकानंद ने एकबार कहा था कि, 'हिमालय प्रकृति के काफी समीप है।..वहां अनेक देवी-देवताओं का निवास है।..महान हिमालय...देवभूमि।' यही कारण है कि भारतवासियों, खासकर हिंदू समाज में हिमालय को देवत्व के काफी करीब माना जाता है।
किन्नौर कैलाश परिक्रमा
[संपादित करें]पुरातन काल में लिखित सामग्रियों के अनुसार किन्नौर के वासी को किन्नर कहा जाता है। जिसका अर्थ है- आधा किन्नर और आधा ईश्वर है। आम लोगों के लिए निषेध इस क्षेत्र को 1993 में पर्यटकों के लिए खोल दिया गया, जो 19,849 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहां 79 फूट ऊंचे चट्टान को हिंदू धर्म वाले शिवलिंग मानते हैं, लेकिन यह हिंदू और बौद्ध दोनों के लिए समान रूप से पूजनीय है। दोनों समुदायों के लोगों की इसमें गहरी आस्था है। इस शिवलिंग के चारों ओर परिक्रमा करने की इच्छा लिए हुए भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पर आते हैं।
किन्नर कैलाश जाने का मार्ग काफी कठिन है। यहां के लिए जानेवाला मार्ग दो बेहद ही मुश्किल दर्रों से होकर गुजरता है। पहला, लालांति दर्रा जो 14,501 फीट की ऊँचाई पर मिलता है और दूसरा चारंग दर्रा है जो 17,218 फीट की ऊँचाई पर है। किन्नर कैलाश पर स्थित शिवलिंग जिसका श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं, का प्रारंभ कल्पा और त्रिउंग घाटी से होती है जो पुन: कल्पा से होते हुए सांगला घाटी की ओर मुड़ती है। पारंपरिक रूप से तीर्थयात्री परिक्रमा के लिए सावन के महीने में यात्रा प्रारंभ करते हैं। यह आमतौर पर परिक्रमा के लिए सबसे उपयुक्त समय समझा जाता है। क्योंकि इसी अवधि में हिंदुओं का महत्वपूर्ण त्यौहार जन्माष्टमी भी मनाया जाता है। यात्रा शुरू होने पर तीर्थयात्रियों के लिए विभिन्न तरह की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। कुछ तो शुल्क के साथ होती है और कुछ सुविधाएं मुफ्त में भी मुहैया कराई जाती हैं। इनमें से कुछ सरकार की ओर से और कुछ निजी संस्थाओं के द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं। आमतौर पर तीर्थयात्रियों को यह सलाह दी जाती है कि वे अपने साथ कम से कम स्लिपींग बैग जरूर लेकर आएं।
यात्रा
[संपादित करें]पहला दिन
[संपादित करें]सबसे पहले सभी यात्रियों को इंडो तिब्बत बार्डर पुलिस (आई.टी.बी.पी.) पोस्ट पर यात्रा के लिए अपना पंजीकरण कराना होता है। यह पोस्ट 8,727 फीट की ऊँचाई पर स्थित है जो किन्नौर के जिला मुख्यालय रेकांग प्यो से 41 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। उसके बाद लांबार के लिए प्रस्थान करना होता है। यह 9,678 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। जो 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां जाने के लिए खच्चरों का सहारा लिया जा सकता है।
दूसरा दिन
[संपादित करें]इसके उपरांत 11,319 फीट की ऊँचाई पर स्थित चारांग के लिए चढ़ाई करनी होती है। जिसमें कुल 8 घंटे लगते हैं। लांबार के बाद ज्यादा ऊँचाई के कारण पेड़ों की संख्या कम होती जाती है। चारांग गांव के शुरू होते ही सिंचाई और स्वास्थ्य विभाग का गेस्ट हाउस मिलता है, जिसके आसपास टेंट लगाकर भी विश्राम किया जा सकता है। इसके बाद 6 घंटे की चढ़ाई वाला ललांति (14,108) के लिए चढ़ाई शुरू हो जाती है।
तीसरा दिन
[संपादित करें]चारांग से 2 किलोमीटर की ऊँचाई पर रंग्रिक तुंगमा का मंदिर स्थित है। इसके बारे में यह कहा जाता है कि बिना इस मंदिर के दर्शन किए हुए परिक्रमा अधुरी रहती है। इसके बद 14 घंटे लंबी चढ़ाई की शुरुआत हो जाती है।
चौथा दिन
[संपादित करें]इस दिन एक ओर जहां ललांति दर्रे से चारांग दर्रे के लिए लंबी चढ़ाई करनी होती है, वहीं दूसरी ओर चितकुल देवी की दर्शन हेतु लंबी दूरी तक उतरना होता है।
भौगोलिक स्थिति
[संपादित करें]किन्नर कैलाश हिमाचल प्रदेश के पुर्वी हिस्से में स्थित है, जो किन्नौर जिला में है।
आवागमन
[संपादित करें]शिमला से किन्नौर जिला के मुख्यालय रेकांग प्यो जाने के लिए बस या टैक्सी उपलब्ध रहता है (231 कि.मी., 9 घंटे)। यहां से काल्पा सिर्फ 17 कि.मी.है। इसके बाद थांगी आता है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Deepak Sanan, Dhanu Swadi (2002). Exploring Kinnaur in the Trans-Himalaya. Indus Publishing. मूल से 10 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 अगस्त 2018.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 19 अगस्त 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अगस्त 2015.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 22 अगस्त 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अगस्त 2015.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 13 अगस्त 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अगस्त 2015.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 10 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अगस्त 2015.