काशी विश्वनाथ मन्दिर
काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह भारत के उत्तर प्रदेश के प्राचीन शहर बनारस के विश्वनाथ गली में स्थित है। यह हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है और भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। यह मंदिर पिछले कई हजारों सालों से पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। मंदिर के मुख्य देवता को श्री विश्वनाथ और विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ब्रह्मांड के भगवान। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।[1] सदियों से काशी विश्वनाथ मंदिर का संचालन काशी नरेशों के द्वारा किया जाता रहा है लेकिन सन् 1983 ईस्वी में ऊतर प्रदेश सरकार ने इस मंदिर को तत्कालीन काशी नरेश महाराजा विभूति नारायण सिंह के प्रबंधन से छीनकर अपने अधीन ले लिया। वाराणसी को प्राचीन काल में काशी कहा जाता था, और इसलिए इस मंदिर को लोकप्रिय रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। मंदिर को हिंदू शास्त्रों द्वारा शैव संस्कृति में पूजा का एक केंद्रीय हिस्सा माना जाता है।

इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है। यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशीनरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गयी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।
विश्वनाथ मंदिर को इतिहास में कई मुस्लिम शासकों द्वारा बार बार तोड़ा गया। मुगल शासक औरंगज़ेब इस मंदिर को गिराने वाला अंतिम मुस्लिम शासक था जिसने मंदिर के स्थान पर वर्तमान ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया। मंदिर की वर्तमान संरचना १७८० में इंदौर के मराठा शासक अहिल्याबाई होल्कर द्वारा तत्कालीन काशी नरेश महाराजा चेत सिंह के सहयोग से निकटवर्ती स्थान पर बनाई गई थी। काशी नरेश महाराजा चेत सिंह ने सभी मराठा सैनिकों एवं कारीगरों को सुरक्षा प्रदान किया था जिसके कारण काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कार्य आसानी से पूरा हो पाया।[2]
निर्माण
[संपादित करें]काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण के लिए काशी नरेश महाराजा बलवंत सिंह ने "काशी मुक्ति अभियान" चलाकर काशी को अवध के नवाब के नियंत्रण से मुक्त करवा दिया था। काशी में सनातन संस्कृति के पुनर्निर्माण के लिए काशी नरेश महाराजा बलवंत सिंह को उत्तर भारत का शिवाजी कहा जाता था। सनातन संस्कृति को स्वतंत्र कराने में महाराजा बलवंत सिंह का मुख्य योगदान था। वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन् 1780 में करवाया गया था।[3]. तत्कालीन काशी नरेश महाराजा चेत सिंह ने मंदिर निर्माण कार्य में लगे सभी कारीगरों को सुरक्षा प्रदान करवाया था। मंदिर निर्माण में महाराजा चेत सिंह ने भी धन का योगदान दिया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा 1835 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा बनवाया गया था।[4].
काशी विश्वनाथ का इतिहास
[संपादित करें]उत्तर प्रदेश के वाराणसी धरती की सबसे पवित्र नदी गंगा के तट पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. भगवान के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक इस मंदिर को विश्वेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है।
जब देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं जहां उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था. देवी पार्वती ने एक दिन भगवान शिव से उन्हें अपने घर ले जाने के लिए कहा. भगवान शिव ने देवी पार्वती की बात मानकर उन्हें काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया.
जिसका जीर्णोद्धार 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था। जिसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में पुनं इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। सन् 1740 ईस्वी में महाराजा बलवंत सिंह ने काशी को मुगलों एवं अवध के नवाब के नियंत्रण से मुक्त कराकर एक विशुद्ध हिन्दू राज्य की स्थापना किया जिसे " नारायण राजवंश" के नाम से जाना जाता है। अभी तक बनारस राज्य पर नारायण राजवंश का ही शासन कायम है। वर्तमान काशी नरेश अनंत नारायण सिंह इस राजवंश के दसवें शासक के रूप में सनातन परंपरा का निर्वाहन कर रहे हैं। नारायण राजवंश के शासकों को महादेव का उत्तराधिकारी एवं बनारस शहर का धार्मिक अध्यक्ष माना जाता है। हिन्दू धर्म पर लागू होने वाला "पंचांग" काशी नरेश के हस्ताक्षर के बाद ही प्रकाशित होता रहा है । सनातन संस्कृति का संचालन काशी नरेश के द्वारा ही किया जाता है। बनारस के रामनगर किले में काशी नरेश का निवास है। बनारस के रामनगर किले को काशी नरेश महाराजा बलवंत सिंह ने सन् 1750 ईस्वी में बनवाया करवाया था।
धारणा
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विकिमीडिया कॉमन्स पर काशी विश्वनाथ मन्दिर से सम्बन्धित मीडिया है। |
हिन्दू धर्म में कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने सारे संसार की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठजी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Kashi Vishwanath Mandir: काशी विश्वनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग के स्थापना की कहानी जानिए, कितने शिवलिंग हैं और उनकी उत्पत्ति कैसे हुई?". ABP News (in hindi).
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: CS1 maint: unrecognized language (link) - ↑ "Kashi Vishwanath: हज़ारों साल पुराना है काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास, पढ़ें मंदिर बनने और टूटने की दिलचस्प कहानी". News18 (in hindi).
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: CS1 maint: unrecognized language (link) - ↑ "श्री काशि विश्वनाथ मंदिर - एक संक्षेप इतिहास". Archived from the original on 10 फ़रवरी 2007. Retrieved 27 जुलाई 2008.
- ↑ "श्री काशि विश्वनाथ मंदिर". Archived from the original on 7 अक्तूबर 2006. Retrieved 27 जुलाई 2008.
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बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- आधिकारिक साइट
- काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
- विकिमैपिया पर
- जानिए काशी-विश्वनाथ मंदिर पर किसने किया था आक्रमण, फिर क्या हुआ? (भास्कर)
- काशी विश्वनाथ मंदिर - दा डिवाइन इंडिया
निर्देशांक: 25°18′38.79″N 83°0′38.21″E / 25.3107750°N 83.0106139°E