आनंद भवन

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आनंद भवन, इलाहाबाद में स्थित नेहरू-गाँधी परिवार का पूर्व आवास है जो अब एक संग्रहालय के रूप में है। वस्तुतः यह एक अपेक्षाकृत रूप से नया भवन है, जब मोतीलाल नेहरू ने इस नए भवन का निर्माण करवाया और अपने पुराने आवास को कांग्रेस के कार्यों हेतु स्थानीय मुख्यालय बना दिया, पुराने आनंद भवन का नाम स्वराज भवन कर दिया गया इस नए आवास को आनंद भवन कहा जाने लगा।

नेहरू और इंदिरा गांधी के जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनायें यहाँ घटित हुई। स्वतंत्रता आन्दोलन में इस स्थान का ऐतिहासिक महत्त्व रहा है।

    देश की आज़ादी से पहले आनंद भवन कांग्रेस मुख्यालय के रूप में रहा और उससे भी पहले राजनीतिक सरगर्मियों का केंद्र रहा.

पंडित नेहरू ने 1928 में पहली बार यहीं ‘पूर्ण स्वतंत्रता’ की घोषणा करने वाला भाषण लिखा. ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन का प्रारूप यहीं पर बना. यही नहीं तमाम ऐतिहासिक फ़ैसले या उनकी रूपरेखा यहाँ पर ही बनी.

        आनंद भवन की नींव और नेहरू परिवार से उसका जुड़ाव तारीखों में इस प्रकार है-

1857 के प्रथम विद्रोह में वफ़ादारी के लिए स्थानीय ब्रिटिश प्रशासन ने शेख़ फ़ैय्याज़ अली को 19 बीघा भूमि का पट्टा दिया जिसपर उन्होंने बंगला बनवाया. 1888 को यह ज़मीन और बंगला जस्टिस सैय्यद महमूद ने ख़रीदा और फिर 1894 में यह जायदाद राजा जयकिशन दास ने ख़रीद ली.

इनाम
  इलाहाबाद शहर के बूढ़े-बुज़ुर्गों तथा क़िस्से औक किवदंतियों के ज़रिए कुछ बातें पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रही हैं. वो यह, कि यह ज़मीन 1857 के विद्रोह में गद्दारी का इनाम है जबकि इस विद्रोह में शहर ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था और उसकी क़ीमत हज़ारों लोगों ने जान देकर दी थी. आधा शहर खंडहर हो गया था. इसका ज़िक्र जिले के ‘गज़ेटियर’ में भी है.
   बड़ी संख्या में आते हैं पर्यटक आनंद भवन

मोतीलाल नेहरू ने 7 अगस्त 1899 में 20 हज़ार रुपए में 19 बीघे का बंगला राजा जयकिशन दास से ख़रीदा, जिस पर एक मंज़िल का विशाल भवन था.

   इससे पूर्व नेहरू परिवार 9, एल्गिन रोड के बंगले में रहता था और इससे भी पहले इलाहाबाद शहर के पुराने मुहल्ले मीरगंज में यह परिवार रहता था.

14 नवंबर 1889 को मीरगंज स्थित कमान में जवाहर लाल नेहरू का जन्म हुआ. नेहरू जी जब 10 वर्ष के थे, तब आनंद भवन ख़रीदा गया और पूरा परिवार यहाँ आया. शहर के पुराने नक्शे में अब मीरगंज का वह मकान नहीं बचा क्योंकि 1931 में सफायी अभियान के तहत नगर पालिका ने उसे गिरा दिया था. ‘मेरी कहानी’ में नेहरू जी ने लिखा है कि ‘कड़ी मेहनत और लगन से वकालत करने का परिणाम यह हुआ कि मुक़दमें धड़ाधड़ आने लगे और ख़ूब रूपया कमाया.’ मोतीलाल जी ने आनंद भवन में और निर्माण कराया. आनंद भवन 1930 में स्वराज भवन बना दिया गया और नेहरू परिवार नए भवन यानी आनंद भवन में आ गया. अब स्वराज भवन कांग्रेस का घोषित दफ़्तर बन गया. स्वतंत्रता आंदोलन 1942 के आंदोलन में ब्रिटिश सरकार ने स्वराज भवन को ज़ब्त कर लिया और वह देश आज़ाद होने के बाद ही मुक्त हो सका. 1948 में कांग्रेस का मुख्यालय इलाहाबाद से दिल्ली चला आया. आज़ादी के बाद पंडित नेहरू ने स्वराज भवन में अनाथ बच्चों का बाल भवन बना दिया और अन्य सांस्कृतिक कार्यों के लिए न्यास बना दिया.

इंदिरा गाँधी का जन्म भी आनंद भवन में हुआ था विरासत में बचा आनंद भवन इंदिरा गाँधी ने भी प्रधानमंत्री बनने के बाद एक नवंबर, 1970 को जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि को सौंप दिया. 1971 में आनंद भवन को एक स्मारक संग्रहालय के रूप में दर्शकों के लिए खोल दिया गया. फ़िलहाल आनंद भवन और नेहरू परिवार के बारे में तमाम जानकारियाँ कहानी क़िस्सों के रूप में शहर के गली कूचों में पूछताछ करने पर मिलती है. जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोग एक दूसरे से सुनते आए हैं, लेकिन क़िस्सों से इतिहास नहीं बनता, जबकि आनंद भवन स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो चुका है. नेहरू परिवार आज भी इंदिरा गाँधी की कड़ी में गाँधी परिवार के नाम पर चल रहा है. समय का चक्र इतिहास बना रहा है. गाँधी परिवार आज भी उसका एक नायक है, लेकिन इलाहाबाद कहीं नींव का पत्थर भर रह गया है.