औरंगाबाद, महाराष्ट्र
औरंगाबाद C Aurangabad | |
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महानगर | |
औरंगाबाद | |
ऊपर-से-नीचे, बाएँ-से-दाएँ: क्रान्ती चौक, बीबी का मक़बरा, घृष्णेश्वर मन्दिर, औरंगाबाद गुफाएँ, अजंता गुफाएँ, दौलताबाद दुर्ग | |
निर्देशांक: 20°05′17″N 75°25′05″E / 20.088°N 75.418°Eनिर्देशांक: 20°05′17″N 75°25′05″E / 20.088°N 75.418°E | |
देश | ![]() |
प्रान्त | महाराष्ट्र |
ज़िला | औरंगाबाद ज़िला |
शासन | |
• प्रणाली | नगर निगम |
क्षेत्रफल | |
• महानगर | 139 किमी2 (54 वर्गमील) |
ऊँचाई | 568 मी (1,864 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• महानगर | 11,75,116 |
• महानगर | 11,93,167 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | मराठी |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 431001 |
दूरभाष कोड | 0240 |
वाहन पंजीकरण | MH-20 |
औरंगाबाद (Aurangabad) भारत के महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद ज़िले में स्थित एक महानगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है और मराठवाड़ा क्षेत्र का सबसे बड़ा नगर है। यह एक महत्वपूर्ण पर्यटक केन्द्र है और नगर के बाह्यक्षेत्रों में अजंता गुफाएँ व एलोरा गुफाएँ हैं, जहाँ 200 ईसा पूर्व से लेकर 650 ई. तक हिन्दू-बौद्ध कला की कृति हुई था। आज यह गुफाएँ एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। भारतीय कलाकृतियों की धरोहर हैं[1][2][3]
इतिहास[संपादित करें]
मध्यकाल में औरंगाबाद (छत्रपति संभाजीनगर) भारत में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता था। औरंगजेब ने अपने जीवन का उत्तरार्द्ध यहीं व्यतीत किया था और यहीं औरंगजेब की मृत्यु भी हुई थी। औरंगजेब की पत्नी रबिया दुरानी का मकबरा भी यही हैं। इस मकबरे का निर्माण ताजमहल की प्रेरणा से किया गया था। इसीलिए इसे 'पश्चिम का ताजमहल' भी कहा जाता है।
पर्यटन स्थल[संपादित करें]
बीबी का मकबरा[संपादित करें]
इस सुंदर इमारत को स्थानीय लोग ताजमहल का जुड़वा रूप मानते हैं। लेकिन बाहर के लोग इसे ताजमहल की फूहड़ नकल मानते हैं। इसे औरंगजेब के बेटे आजमशाह ने अपनी माता रबिया दुर्रानी की याद में बनवाया था। यह इमारत अभी भी पूर्णत: सुरक्षित अवस्था में है। इसी शहर में एक और भवन है जिसे सुनहरी महल कहा जाता है। प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए 15 रु. तथा विदेशी पर्यटकों के लिए 100 रु। समय: सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक।
पनचक्की[संपादित करें]
इस पनचक्की का निर्माण सरदार मलिक अंबर ने करवाया था। इस पनचक्की में पानी 6 किलोमीटर की दूरी से मिट्टी के पाइप से आता था। इसके चैंबर में लोहे का पंखा घूमता था जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती थी। इस ऊर्जा का उपयोग आटा के मिल को चलाने में किया जाता था। इस मिल में तीर्थयात्रियों के लिए अनाज पीसा जाता था। इसी स्थान पर कुम नदी के बाएं तट पर बाबा शाह मुसाफिर का मजार है। औरंगजेब बाबा शाह का बहुत आदर करते थे। यह मकबरा लाल रंग के साधारण पत्थर का बना हुआ है। यह मकबरा संत के सादगी का प्रतीक है। प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए 5 रु. तथा विदेशियों के लिए 100 रु। समय: सूर्योदय से सूर्यास्त तक।
लेटे हुए हनुमान[संपादित करें]
ध्वंस अवशेष[संपादित करें]
छत्रपती संभाजीनगर शहर में बहुत से दरवाजों का अवशेष भी हैं। इन ध्वंस अवशेषों में दिल्ली, जालना, पैठन तथा मक्का रोशन दरवाजा शामिल है। इसके अलावा बहुत से भवनों के अवशेष भी हैं। नकोंडा पैलेस, किला अर्क तथा दामरी महल आदि का अवशेष यहां है। रोशन दरवाजा में एक महान हसति रह् ति ह जिस का नाम "अ ह् म द् अलश्हाब " ह।
पूजास्थल[संपादित करें]
पुराने शहर में फैले ये मस्जिद और दरगाह लगातार उपयोग में आने के कारण अच्छी अवस्था में हैं। इन भवनों में जामा मस्जिद प्रमुख है जो निज़ाम और मुगल के शासन काल में अपना महत्व रखता था। जामा मस्जिद के अलावा शाह गंज मस्जिद, चौकी की मस्जिद (इस मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के चाचा ने करवाया था) आदि इमारतें भी देखने के योग्य है। शहर के उत्तर में पीर इस्लाम की दरगाह है। इस दरगाह में औरंगजेब के शिक्षक की समाधि है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
बनी बेगम बाग[संपादित करें]
यह सुंदर बाग औरंगाबाद से 24 किलोमीटर दूर खुल्दाबाद में स्थित है। इसी बाग में बानी बेगम की समाधि बनी हुई है। बानी बेगम औरंगजेब की पत्नी थीं। इस मकबरे में भव्य गुंबद, पिलर तथा फव्बारे हैं। यह मकबरा दक्कन प्रभावित मुगल वास्तुशैली का सुंदर नमूना है।
छत्रपती संभाजीनगर की गुफाएं[संपादित करें]
ये गुफाएं शहर से कई किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित हैं। इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकारी की गई है। यहां कुल दस गुफाएं हैं जो कि पूर्व और पश्िचमी भाग में बटा हुआ है। इन गुफाओं में चौथी गुफा सबसे पुरानी है। इस गुफा की बनावट हीनयान सम्प्रदाय से संबंधित वास्तुशैली में की गई है। इन गुफाओं में जातक कथाओं से संबंधित चित्रकारी की गई है। पांचवी गुफा में बुद्ध को एक जैन तीर्थंकर के रूप में दर्शाया गया है। प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए 10 रु. तथा विदेशियों के लिए 100 रु.। समय: सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक।
निकटवर्ती आकर्षण[संपादित करें]
दौलताबाद (देवगिरी)[संपादित करें]
दौलताबाद में एक किला है । यह शहर हमेशा शक्ततिशाली बादशाहों के लिए आकर्षण का केंद्र साबित हुआ है। वास्तव में दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण थी। यह उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य में पड़ता था। यहां से पूरे भारत पर शासन किया जा सकता था। इसी कारणवश बादशाह मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। उसने दिल्ली की समस्त जनता को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था। लेकिन वहां की खराब स्थिति तथा आम लोगों की तकलीफों के कारण उसे कुछ वर्षों बाद राजधानी पुन: दिल्ली लाना पड़ा। दौलताबाद में बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें हैं जिन्हें जरुर देखना चाहिए। इन इमारतों में जामा मस्जिद, चांद मीनार तथा चीनी महल शामिल है। औरंगाबाद से दौलताबाद जाने के लिए प्राइवेट तथा सरकारी बसें मिल जाती हैं। प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए 5 रु. तथा विदेशियों के लिए 5 डालर। समय: सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक।
खुलदाबाद[संपादित करें]
औरंगजेब ने खुल्दाबाद के बाहरी छोर में स्थित राउजा में अपने को दफनाने की इच्छा व्यक्त की थी। यहां स्थित औरंगजेब का मूल मकबरा बहुत सादगी के साथ बनाया गया था। इस मकबरे का निर्माण औरंगजेब के खुद के कमाए पैसे से हुआ था। औरंगजेब ने टोपी बनाकर तथा कुरान की हस्तलिपि तैयार कर पैसे कमाए थे। इस मकबरे को बाद में भव्य रूप दिया गया। यह काम अंग्रेजों और हैदराबाद के निज़ाम ने किया था। मकबरे के बाहर स्थित दुकानों से इस मकबरे की छोटी अनुकृति प्राप्त की जा सकती है।
पैठण[संपादित करें]
पैठण जोकि पहले प्रतिष्ठान के नाम से जाना जाता था, मराठवाड़ा का सबसे प्राचीन शहर है। ईसा मसीह के जन्म के पूर्व ही एक बार ग्रीक व्यापारी यहां आए थे। पुराने पैठण शहर की कुछ ऐतिहासिक भवनें अभी भी शेष है। इन भवनों में एकनाथ मंदिर तथा मुक्तेश्वर मंदिर शामिल हैं। एकनाथ मंदिर का भग्नावशेष गोदावरी नदी के तट पर है। यहां आने पर उस छोटे से कुंड को जरुर देखना चाहिए जहां एकनाथ ने 1598 ई. में जल समाधि ली थी। पैठण शहर महाराष्िट्रयन साड़ी के लिए भी प्रसिद्ध है। इस साड़ी को बनाने की प्रेरणा अजन्ता गुफा में की गई चित्रकारी से मिली थी। इस साड़ी के संबंध में एक अनुश्रुति भी है। इस अनुश्रुति के अनुसार एक बार पार्वती को एक अप्सरा की शादी में पहनने के लिए नई साड़ी नहीं थी। इस बात को जानकर शिव ने अपने बुनकर को पार्वती के लिए एक नए प्रकार की साड़ी बनाने का आदेश दिया। तभी से इस साड़ी का प्रचलन माना जाता है। अगर आप महाराष्िट्रयन साड़ी खरीदना चाहते हैं तो पैठण डिजायन सह प्रदर्शनी केंद्र' जाएं। यहां रेडीमेड साडि़यां मिलती है और ऑर्डर पर भी साड़ी बनाई जाती है।
अजन्ता तथा एलोरा[संपादित करें]
(बुध्द गुफाएं छत्रपती संभाजीनगर शहर ) अजन्ता (अजिंठा) गुफा की खोज अंग्रेज जॉन स्मिथ ने 19वीं शताब्दी में की थी। ये गुफाएं चारकोलिथ पत्थरों की बनी हुई हैं। इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकारी की गई है। ये चित्र अभी सुरक्षित अवस्था में हैं। एक चित्र में मरणाशन्न राजकुमारी को चित्रित किया गया है। एक अन्य चित्र में लोगों को बुद्ध से दीक्षा लेते हुए दिखाया गया है। कुछ चित्रों में आम लोगों को भी दिखाया गया है। इन चित्रों को देखने से उस समय के समाज को समझने में भी मदद मिलती है। अजन्ता के समान एलोरा (वेरूळ) की गुफाएं भी महत्वपूर्ण हैं। लेकिन इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकारी नहीं मिलती है। इन गुफाओं में मुख्यत: हिंदू धर्म से संबंधित चित्रकारी की गई है। यहां रामायण और महाभारत से संबंधित चित्र मिलते हैं। एलोरो का संबंध छत्रपती शिवाजी महाराज से भी है। यह छत्रपती शिवाजी महाराज का पैतृक स्थान है। छत्रपती शिवाजी महाराज के दादाजी मालोजी भोंसले वेरुल (वेरूळ) गाँव (जोकि अब ऐलोरो के नाम से जाना जाता है) में रहते थे। महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम प्रति वर्ष मार्च महीने के तीसरे सप्ताह में नृत्य और संगीत से संबंधित एक उत्सव का आयोजन यहां करता है।
लोनार देवी[संपादित करें]
माना जाता है कि 50,000 वर्ष पहले आकाश से 20 लाख टन का एक उल्कापिंड गिरने से एक विशाल गढ़ढे का निर्माण हुआ था। आज यह जगह एक झील का रूप ले चुका है। इस क्षेत्र को स्थानीय लोग लोनार देवी का क्षेत्र मानते हैं। स्थानीय लोग लोनार देवी की उपासना करते हैं। यहां पर कई अन्य मंदिर भी है। इनमें गणपति, नरसिम्हा तथा रेणुकादेवी मंदिर शामिल है। गायमुख तथा दैत्यासुदाना मंदिर लगभग नष्ट ही हो गया है। लेकिन इन मंदिरों में अभी भी पूजा की जाती है। अगर आप यहां आएं तो इन मंदिरों को जरुर देखें। इस झील के कई रहस्यमय सवालों का उत्तर खोजा जाना अभी बाकी है। उदाहरणस्वरुप, कोई नहीं जानता कि बुलदाना के सुखाग्रस्त होने के बावजूद इस झील में कैसे सालोंभर पानी रहता है? माना जाता है किसी स्रोत से इस झील में पानी आता है लेकिन उस स्रोत का अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है। इससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि इस झील के पानी का पीएच मान एक समान नहीं, बल्कि भिन्न-भिन्न है। अगर आपको विश्वास नहीं हो तो आप इसे लिटमस पेपर के माध्यम से चेक कर सकते हैं। इस झील के बारें में एक अनुश्रुति भी प्रचलित है। इस अनुश्रुति के अनुसार इस झील की प्रसिद्वि को सुनकर अकबर ने इस झील के हरे पानी से साबुन बनाने का निर्देश दिया था जिससे वह स्नान करता था।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
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विकिमीडिया कॉमन्स पर औरंगाबाद से सम्बन्धित मीडिया है। |
- औरंगाबाद जिले का शासकीय जाल-स्थल
- औरंगाबाद नगर निगम
- डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय
- सरकारी यांत्रिकी एवं तंत्रशास्त्र संस्थान
- मराठवाडा इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी औरंगाबाद
- औरंगाबाद की खबरे (मराठी में)
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ "RBS Visitors Guide India: Maharashtra Travel Guide Archived 2019-07-03 at the Wayback Machine," Ashutosh Goyal, Data and Expo India Pvt. Ltd., 2015, ISBN 9789380844831
- ↑ "Mystical, Magical Maharashtra Archived 2019-06-30 at the Wayback Machine," Milind Gunaji, Popular Prakashan, 2010, ISBN 9788179914458
- ↑ Hunter, William Wilson, Sir, et al. (1908). Imperial Gazetteer of India, Volume 18, pp 398–409. 1908-1931; Clarendon Press, Oxford