रसायन विज्ञान

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रसायन से भरी बोतलें

रसायन शास्त्र, रसतन्त्र, रसक्रिया, रसविद्या या रासायनिकी पदार्थ के गुणों और व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है। यह प्राकृतिक विज्ञान के तहत एक भौतिक विज्ञान है जो परमाण्वों, अण्वों और आयनों से बने यौगिकों को बनाने वाले तत्वों को शामिल करता है: उनकी संरचना, गुण, व्यवहार और अन्य पदार्थों के साथ प्रतिक्रिया के दौरान होने वाले परिवर्तन।[1] रासायनिकी रासायनिक यौगिकों में रासायनिक बन्धों की प्रकृति को भी सम्बोधित करता है।

अपने विषय के दायरे में, रासायनिकी भौतिकी और जैविकी के बीच एक मध्यवर्ती स्थान रखता है। इसे कभी-कभी केन्द्रीय विज्ञान कहा जाता है क्योंकि यह मौलिक स्तर पर मूलभूत और अनुप्रयुक्त वैज्ञानिक विषयों दोनों को समझने हेतु एक आधार प्रदान करता है। उदाहरणार्थ, रासायनिकी पादप वृद्धि (वानस्पतिकी), आग्नेय शैलों के निर्माण (भूविज्ञान), वायुमण्डलीय ओज़ोन का निर्माण, पर्यावरण प्रदूषकों का क्षरण (पारिस्थितिकी), चन्द्रमा पर मृदा के गुण (खगोल-रासायनिकी), औषधों के निर्माण (भेषज विज्ञान), और अपराध स्थल पर डीएनए साक्ष्य का एकत्रीकरण (न्यायिकी)।

इतिहास[संपादित करें]

भारत में रासायनिकी[संपादित करें]

रसायन का अध्ययन केवल इसके ज्ञान हेतु नहीं किया गया अपितु यह दो रोचक वस्तुओं की खोज के कारण उभरा, ये निम्नलिखत थीं:

प्राचीन भारत में लोगों को आधुनिक विज्ञान के उदय से बहुत पहले से अनेकों वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी थी। वह उस ज्ञान का उपयोग जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में करते थे। इनमें धातुकर्म, औषधनिर्माण, सौन्दर्य प्रसाधन उत्पादन, काच निर्माण, रंजक इत्यादि सम्मिलित थे। सिन्ध में मुअनजो-दड़ो और पंजाब में हड़प्पा में की गई योजनाबद्ध उत्खनन से सिद्ध होता है कि भारत में रासायनिकी के विकास की कहानी अत्यधिक पुरातन है। पुरातत्विक परिणामों से पता चलता है कि निर्माण हेतु पक्की ईंटों का प्रयोग होता था और मिट्टी के बर्तनों का उत्पादन अधिक मात्रा में किया जाता था। इसे प्राचीनतम रासायनिक प्रक्रम माना जा सकता है जिसमें वांछनीय गुण प्राप्त करने के लिए पदार्थों को मिलाकर डाला और अग्नि द्वारा गरम किया जाता था। मुअनजो-दड़ो में काचलेपित मृदा बर्तनों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। निर्माण कार्य में जिप्सम सीमेंट का प्रयोग किया गया है जिसमें चूना, बालू और सूक्ष्म मात्रा में कैल्सियम कार्बोनेट मिलाया गया है। हड़प्पा के लोग टिन लेपित बर्तन बनाते थे। वह सीसा, रजत, स्वर्ण और ताम्र जैसी धात्वों को पिघलाकर साँचों में ढालकर विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाते थे। वह टिन और आर्सेनिक मिलाकर शिल्प बनाने के लिए ताम्र की काठुर्य सुधारते थे। दक्षिण भारत में मस्की (1000 -900 ईपू) तथा उत्तर भारत में हस्तिनापुर और तक्षशिला (1000 - 200 ईपू) में काच की वस्तुएँ प्राप्त हुई है। काच को लेपित कर रंजन हेतु धात्वों के ऑक्साइड मिलाए जाते थे। अजन्ता और एलोरा की दीवारों पर पाई गई चित्रकारी, जो अनेकों वर्षों के पश्चात् भी नूतन जैसी लगती है, पुरातन भारत में विज्ञान का ज्ञान शिखर पर होना सिद्ध करती हैं।

ऋग्वेद के अनुसार 1000 - 400 ईपू में चर्मशोधन और कपास रंजन का कार्य होता था। उत्तर भारत के काली पॉलिश वाले मृदा बर्तनों की स्वर्णिम चमक को दोहराया नहीं जा सका और यह अब भी एक रासायनिक रहस्य हैं। इन बर्तनों से पता चलता है कि भट्टियों का ताप कितनी दक्षता से नियन्त्रित किया जाता था। अथर्व वेद में रंजकों का वर्णन है जिनमें हल्दी, मदार, सूर्यमुखी, हरिताल, कोषिनील और लाक्षा शामिल हैं। रंजन के गुण वाले कुछ अन्य पदार्थ जैसे कम्पलसिका, पत्रंग, जतुका भी प्रयोग में आते थे। रसोपनिषद् में बारूद बनने का विवरण है। तमिल साहित्य में भी गन्धक, चार्कोल, पोटैसियम नाइट्रेट, पारा और कर्पूर के उपयोग से पटाखे बनने का विवरण है।

चाणक्य के अर्थशास्त्र में समुद्र से लवणोत्पादन का वर्णन है। पुराने वैदिक साहित्य में वर्णित अनेकों पदार्थ और कथन आधुनिक विज्ञान की खोजों से मेल खाते है। ताम्र के बर्तन, लोहा, स्वर्ण, रजत के आभूषण और टेराकोटा थालियाँ तथा चित्रित मिट्टी के धूसर बर्तन, उत्तर भारत के बहुत से पुरातत्व स्थलों से प्राप्त हुए हैं।

चरक संहिता भारत का सबसे पुरातन आयुर्वेद का ग्रन्थ है। इसमें प्राचीन काल के उन भारतीयों का उल्लेख है जिन्हें गन्धकाम्ल, नाइट्रिक अम्ल और ताम्र, टिन, लोहा, सीसा और जस्ते के ऑक्साइड, सल्फेट एवं कार्बोनेट बनना आता था। इसमें रोगोपचार का विवरण दिया है। कणों के आकार को छोटा करने की संकल्पना की विवेचना इसमें स्पष्ट रूप से की गई है। कणों के आकार को अत्यधिक सूक्ष्म (परासूक्ष्म) करने को परासूक्ष्मप्रौद्योगिकी कहते हैं। इसमें धातुओं की भस्मों का उपयोग रोगोपचार में किए जाने का वर्णन है। अब यह सिद्ध हो चुका है कि भस्मों में धात्वों के नैनो कण होते हैं।

नागार्जुन एक महान भारतीय रसायनज्ञ हुए हैं। वह एक विख्यात खैमिकीज्ञ तथा धातुविज्ञानी थे। उनकी रचना रसरत्नाकर पारे के यौगिकों से सम्बन्धित है। उन्होंने धात्वो, जैसे स्वर्ण, रजत, टिन और ताम्र के निष्कर्षण की भी विवेचना की है। 800 CE के निकटस्थ एक पुस्तक रसार्णव आई। इसमें विभिन्न प्रकार की भट्टियों के अलग-अलग उद्देश्यों हेतु प्रयोगों की विवेचना की गई है। इसमें उन विधियों का विवरण दिया है जिनसे ज्वाला के रंग धातु को पहचाना जाता था। चक्रपाणि ने पारा सल्फाइड की खोज की। साबुन की खोज का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उन्होंने साबुन बनाने हेतु सर्सों का तेल और कुछ क्षार प्रयोग किए। भारतीयों ने अष्टदशम शताब्दी में साबुन बनाना प्रारम्भ कर दिया था। साबुन बनाने हेतु अरण्डी का तेल, मह्वा के बीज और कैल्सियम कार्बोनेट का उपयोग किया जाता था।

वराह मिहिर की बृहत्संहिता जिसे षष्ठ शताब्दी में लिखा गया था एक प्रकार का विश्वकोश है। इसमें दीवारों, छतों घरों और मन्दिरों पर लगाए जाने वाले लसदार पदार्थ को बनाने की जानकारी है। इसे केवल पौधों, फलों, बीजों और छालों के रस से बनाया जाता था जिनके क्वाथों को सान्द्रण के बाद उनमें कई प्रकार के रेज़िन मिलाए जाते थे। इसमें इत्र तथा सौन्दर्य प्रसाधनों का भी उल्लेख है। केश रंजक बनाने हेतु पौधे, जैसे नील तथा खनिज जैसे लौह चूर्ण, काला लोहा या इस्पात तथा चावल के खट्टे दलिए का अम्लीय सत्व उपयोग किया जाता था। गन्धयुक्ति में इत्र, मुख सुवासित करने के द्रव, स्नान चूर्ण, अगरबत्ती एवं टाल्क का उल्लेख है। सुश्रुत संहिता में क्षारकों का महत्व समझाया गया है।

खैमिया के क्षीण हो जाने के पश्चात्, रसायन चिकित्सा स्थिर अवस्था में पहुँच गया परन्तु विंश शताब्दी में पाश्चात्य चिकित्साशास्त्र के आगमन और उसका प्रचलन होने से यह भी क्षीण हो गया। इस प्रगतिरोधक काल में भी आयुर्वेद पर आधारित औषधोद्योग का अस्तित्व बना रहा, परन्तु यह भी धीरे-धीरे क्षीण होता गया। नूतन तकनीकों की शिक्षा और अंगीकरण में भारतीयों को 100-150 वर्ष का समय लगा। इस समय - बाह्योत्पाद देश में प्रवेश कर गए। परिणामस्वरूप देशज पारम्परिक तकनीक धीरे-धीरे कम होती गई। भारतीय पटल पर आधुनिक विज्ञान उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में उभरा। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक यूरोपीय वैज्ञानिक भारत में आने लगे तथा आधुनिक रसायनिकी का विकास होने लगा ।

यूरोप में रसायन[संपादित करें]

  • यूरोप में रसायन विज्ञान का प्रारम्भ 12वीं शताब्दी में थियोफिलस से हुआ।
  • 15वीं-16वीं शताब्दी में पैरासेलस (1493-1541 ई.) ने औषधि रसायन के क्षेत्र में कार्य किया।
  • 16वीं-17वीं शताब्दी में फ्रांसिस बैकन (1561-1636 ई.) ने आधुनिक रसायन विज्ञान की आधारशिला रखी।

रासायनिकी के शाखाएँ[संपादित करें]

रासायनिकी को सामान्यतः कई प्रमुख उप-विषयों में विभाजित किया जाता है। रासायनिकी के कई मुख्य पार-वैषयिक और अधिक विशिष्ट क्षेत्र भी हैं।

अन्य उपविभागों में फ़ेम्टोरासायनिकी, सुवास रासायनिकी, प्रवाह रासायनिकी, इम्यूनोहिस्टोकेमिस्ट्री, हाइड्रोजनेशन केमिस्ट्री, मैथमेटिकल केमिस्ट्री, मॉलिक्यूलर मैकेनिक्स, नेचुरल प्रोडक्ट केमिस्ट्री, ऑर्गोनोमेटिक केमिस्ट्री, पेट्रोकेमिस्ट्री, फोटोकैमिस्ट्री, फिजिकल ऑर्गेनिक केमिस्ट्री, पॉलीमर केमिस्ट्री, रेडियोकैमिस्ट्री, सोनोकेमिस्ट्री, सुपरमॉलेक्यूलर केमिस्ट्री, सिंथेटिक शामिल हैं। रसायन शास्त्र, और कई अन्य।

अन्तर्वैषयिक[संपादित करें]

अन्तर्वैषयिक क्षेत्रों में एग्रोकेमिस्ट्री, एस्ट्रोकेमिस्ट्री (और कॉस्मोकेमिस्ट्री), वायुमंडलीय रसायन विज्ञान, केमिकल इंजीनियरिंग, केमिकल बायोलॉजी, कीमो-इंफॉर्मेटिक्स, पर्यावरण रसायन विज्ञान, जियोकेमिस्ट्री, ग्रीन केमिस्ट्री, इम्यूनोकैमिस्ट्री, मरीन केमिस्ट्री, मैटेरियल्स साइंस, मैकेनोकेमिस्ट्री, मेडिसिनल केमिस्ट्री, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, नैनो टेक्नोलॉजी शामिल हैं। ओनोलॉजी, फार्माकोलॉजी, फाइटोकेमिस्ट्री, सॉलिड-स्टेट केमिस्ट्री, सरफेस साइंस, थर्मोकैमिस्ट्री और कई अन्य।


रसायन विज्ञान और हमारा जीवन[संपादित करें]

मानव जीवन को समुन्नत करने में रसायन विज्ञान का अक्षुण्ण योगदान है। मानव जाति के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए रसायन विज्ञान का विकास अनिवार्य है। यह तभी संभव होगा जब आम जन इस विज्ञान के प्रति आकर्षित होगा। इस विज्ञान का विवेकपूर्ण उपयोग करना ही समय की मांग है।

  • सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड रसायनों का विषद् भण्डार है। जिधर भी हमारी दृष्टि जाती है, हमें विविध आकार-प्रकार की वस्तुएं नजर आती हैं। समूचा संसार ही रसायन विज्ञान की प्रयोगशाला है। यह विज्ञान अनेकों आश्चर्यचकित रसायनों से परिपूर्ण है। ब्रह्माण्ड में रासायनिक अभिक्रियाओं के द्वारा ही तारों की उत्पत्ति, ग्रहों का प्रादुर्भाव तथा ग्रहों पर जीवन सम्भव हुआ हैं।
  • रसायन विज्ञान को जीवनोपयोगी विज्ञान की संज्ञा भी दी गई है, क्योंकि हमारे शरीर की आंतरिक गतिविधियों में इस विज्ञान की महती भूमिका हैं।
  • पृथ्वी पर समस्त ऊर्जा का एकमेव स्रोत सूर्य है जो विगत लगभग 5 अरब वर्षो से प्रकाश तथा ऊष्मा दे रहा है, पेड़-पौधे उग रहे हैं, जीव-जंतु चल फिर रहे हैं, बादल घुमड़ रहे हैं, कहीं आकाशीय विद्युत् की चमक तथा कड़क है, कहीं आँधी तो कहीं तूफान अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं, कहीं भूकम्प तो कहीं सुनामी की घटनाएं घटित हो रही हैं।
  • इन सभी घटनाओं में रसायन ही अपना करतब दिखा रहे हैं।
  • ये सभी किसी न किसी पदार्थ से निर्मित हैं, जो ठोस, द्रव या गैस रूप में होते हैं परन्तु हैं ये भी रसायन।
  • हमारे जीवन का कोई भी पक्ष रसायनों से अछूता नहीं है।
  • वैज्ञानिकों ने हमारे जीवन को भी 'रासायनिक क्रिया' की संज्ञा दी है।
  • जीवन के समस्त लक्षण रासायनिक प्रक्रियाओं की अनुगूंज हैं।
  • सजीवों में पोषण, वृद्धि, पाचन, उत्सर्जन, प्रजनन की प्रक्रियाएं रासायनिक अभिक्रियाएं ही है।
  • मानव के संवेदी अनुभवों जैसे, शब्द स्पर्श, रूप, रस तथा गंध, इन सभी के पीछे रासायनिक क्रियाएं उत्तरदायी हैं।
  • वस्तुतः रसायन विज्ञान का संबंध हमारे दैनिक जीवन से है।
  • शुरुआत हम सुबह की चाय से करते हैं जो कि दूध, चीनी, चाय-पत्ती के साथ उबला हुआ जलीय घोल है।
  • रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी आवश्यकताएं पूरी करने में रसायनों की भूमिका है।
  • हम जहाँ कहीं भी देखते हैं, रसायनें के नजारे ही दिखते हैं।
  • दैनिक उपयोग की चीजें, जैसे - साबुन, तेल, ब्रश, मंजन, कंघी, शीशा, कागज, कलम, स्याही, दवाइयां, प्लास्टिक आदि रसायन विज्ञान की ही देन हैं।
  • धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, स्नान, धूप-दीप, नैवेद्य, अगरबत्ती, रोली, रक्षा तथा कपुर इत्यादि सब में रसायन व्याप्त हैं।
  • उत्सवों तथा तीज त्यौहारों में दीये, मोमबत्ती तथा पटाखों के पीछे भी रसायन व्याप्त हैं।
  • यातायात, दूरसंचार, परिवहन तथा ऊर्जा के विविध स्रोत जैसे - कोयला, पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल, नैप्था एवं भोजन पकाने की गैस भी विविध रासायनिक यौगिकों के उदाहरण हैं।
  • मानव जीवन को आरामदायक बनाने में रसायन विज्ञान ने अप्रतिम भूमिका निभाई है।
  • हमारे दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले औजार, उपकरण तथा युक्तियाँ जैसे - कुर्सी, मेज, टी.वी. फ्रिज, घड़ी, कुकर, इस्तरी, मिक्सर, ए.सी., चूल्हा, बर्तन, रंग-रोगन (पेंट्स), कपड़े, वर्णक (पिगमेंट्स) तथा रंजक (डाइज) अपमार्जक (डिटर्जेंट्स), कीटनाशक, विविध सौन्दर्य प्रसाधन अपमार्जक (डिटर्जेंट्स), कीटनाशक, विविध सौन्दर्य प्रसाधन सामग्रियां आदि सभी में रसायन विज्ञान का ही अवदान हैं।
  • वस्तुतः रसायनों का संबंध प्रत्येक गैस, द्रव या ठोस पदार्थ से है। जिस वातावरण में हम रहते हैं तथा सांस लेते हैं वह विविध रसायनों से ही निर्मित है। वायुमंडल में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, आर्गन आदि गैसें विद्यमान रहती हैं।

रोगोपचार में रसायन विज्ञान[संपादित करें]

चिकित्सा विज्ञान की प्रगति रसायन विज्ञान की ही देन है। वर्तमान में 75 प्रतिशत औषधियों का संश्लेषण रासायनिक पदार्थो से हुआ है। आज लगभग 4000 ज्ञात औषधियाँ हैं परंतु रोगों की संख्या 30,000 के लगभग है। अतः भविष्य में रोगशमन हेतु रसायन विज्ञान का प्राधान्य है।

औषधियों का वर्गीकरण[संपादित करें]

  • 1. सिरदर्द एवं अन्य वेदनानाशक
  • 2. जलने की दवाएं
  • 3. जुकाम खाँसी रोधक
  • 4. निर्जर्मीकारक (Antiseptic)
  • 5. मृदुविरेचक (Laxatives)
  • 6. मूर्च्छाकारी, संवेदनहारी औषधियां
  • 7. उत्तेजक (Stimulants)

सिरदर्द : ऐस्पिरिन (C9H8O4) - alicylic Acid का ऐसीटिक एस्टर

जलने की दवाएं - त्वचा जलन जले भाग पर टैनिक अम्ल तथा बर्नोल

जुकाम खाँसी - देश के 75 प्रतिशत लोग ग्रसित

कुल्लिया - थाइमाल, मेंथाल
टिकिया - ऐसीटनीलाइड
नाक से लेने वाली - मेंथाल, कर्पूर, प्रोपिलीन ग्लाइकाल की फुहार

निर्जर्मीकारक (Antiseptic) - डेटॉल, मरक्यूरोक्रोम, बोरिक अम्ल

मृदुरेचक - एप्सम लवण, फीनाप्थैलीन स्ट्रिकनीन

यातना निवारक - निष्चेतक - ईथर, एथिलीन, नाइट्रस ऑक्साइड

सम्मोहक या निद्राकारी - फीनोबार्बिटल

एंटीबायोटिक - डॉ॰ अलेक्जेडर फ्लेमिंग ने 1928 में पेनिसिलियम कवकों से पेनिसिलीन प्राप्त की । स्ट्रेप्टोमाइसीन, टेट्रामाइसिन, बायोमाइसिन, एरिथ्रोमाइसिन - एंटीबायोटिक शृंखला का संश्लेषण

घरेलू तथा खाद्य पदार्थो में रसायन[संपादित करें]

  • पीतल (ब्रास) के बर्तन - कॉपर और जिंक मिश्र धातु से बने बर्तन
  • काँसा (ब्रॉन्ज) के बर्तन - कीमती मिश्र धातु जो 88% कॉपर, 10% टिन तथा 2 प्रतिशत जिंक ; खेलों में गोल्ड, सिल्वर एवं ब्रॉन्ज मैडल
  • एलुमिनियम के बर्तन - बॉक्साइट (Al2O3)
  • चाँदी (सिल्वर) के बर्तन - मुलायम धातु, इसमें कॉपर या निकल मिला दिया जाता है।
  • रबड़ - पेट्रोलियम के हाइड्रोकार्बन और ब्यूटाडाइन स्टाइटीन के यौगिक को अन्य रासायनिक पदार्थो के साथ मिलाने पर बने नये पदार्थ को 'कृत्रिम रबड़' कहते हैं।
भारी वाहनों के टायर - क्लोरोप्रोन रबड़
वायुयान के टायर - सुचालक बहुलक
  • खाद्यों में भरा रसायन - आहार के 6 मुख्य रासायनिक घटक - कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, लिपिड, विटामिन, खनिज, जल
  • घरों में तरह-तरह के रसायनों का प्रयोग
  • खाने का नमक - NaCl
  • सेंधा नमक - KCl
  • बैटरियों में - 38 percent aqueos solution of H2SO4
  • बुझा चूना - Ca(OH)2
  • ऐल्कोहॉलिक पेय पदार्थो में इथेनॉल
  • फूलों की सुगंध - फ्लेवोन्स तथा फ्लेवोनाइड।
  • रास्पबेरी की गंध - आयोनिन
  • केले की गंध - आइसोएमाइल एसीटेट
  • नींबू की ताजगी - लिमोनिन यौगिक खट्टापन - सिट्रिक अम्ल
  • अम्लता (एसिडिटी) होने पर एटांसिड दवाइयां - Mg(OH)2। इससे आमाशय MgCl2 तथा पानी बनाता है जिससे अम्लता में कमी आती है।
  • संगमरमर तथा खड़िया मिट्टी में - CaCO3 यौगिक।
  • टूथपेस्ट का मुख्य घटक Al2O3
  • माउथवॉश में आयोडीन के यौगिक - कीटाणुरोधी
  • रसायन विज्ञान के द्वारा खाद्य पदार्थो, यथा - दूध, देशी घी, सरसों के तेल, हरी सब्जी, दाल, आटा, चाय तथा मसालों में मिलावट की भी सरल विधियों द्वारा घर पर ही जाँच की जा सकती है।
  • रंग-रोगन तथा वार्निश में टाइटेनियम ऑक्साइड तथा पॉलियूरीथेन का प्रयोग किया जाता है। मकानों में प्रयोग किए जाने वाले पेंट का आधार एक्रीलिक लैटेक्स होता है।

कांच के निर्माण में रसायन[संपादित करें]

  • कांच विश्व का पहला संश्लिष्ट थर्मोप्लास्टिक है। इसे किसी भी रूप में ढाला जा सकता है। रेत (SiO2), चूने का पत्थर (CaO), सोडियम ऑक्साइड (Na2O) और अन्य खनिज तथा धातुओं को परस्पर पिघलाकर कांच बनाया जाता है तथा इसके विभिन्न बर्तन आदि बनाये जाते है। आजकल कांच का कई प्रकार से उपयोग होता है।
  • रंगीन कांच बनाने हेतु इसमें विभिन्न प्रकार के रासायनिक लवण मिलाए जाते हैं -
पीला नीला या हरा - Fe2O3
पीला - Fe(OH)3
हल्का पीला - लेड
गुलाबी या हल्का पीला गुलाबी - सेलिनियम
नीला - कॉपर
हरा - अधिक मात्रा में कॉपर
लाल - कॉपर ऑक्साइड

प्लास्टिक के साथ कांच[संपादित करें]

  • कांच के फाइबर जब प्लास्टिक के साथ संयोग करते है तो अत्यधिक मजबूत पदार्थ बनता है जिसे प्रबलित प्लास्टिक (Reinforced plastic) कहते हैं इनका छत, नौका, खेल के सामान, सूटकेस तथा ऑटोमोबाइल की बॉडी बनाने में उपयोग किया जाता है।
  • ग्लास वुल - ठीले ग्लास फाइबर का बंडल, अच्छा ऊष्मारोधी, इसका उपयोग - फ्रिज, अवन, कुकर तथा गरम पानी की बोतलों में होता है।

साबुन और अपमार्जक[संपादित करें]

  • साफ-सफाई के लिए साबुन का इस्तेमाल लगभग 2800 ई.पूर्व का है। दूसरी सदी मे यूनानी चिकित्सक गालेन ने क्षारीय घोल से साबुन निर्माण का उल्लेख किया है।
  • साबुन वसा अम्ल का सोडियम लवण है। स्टीएरिक एसिड, पामिटिक एसिड, ओलिक एसिड तथा लिनोलेइक एसिड का सोडियम या पोटैशियम लवण।
  • सोडियम वाले साबुन ठोस व कठोर होते हैं जबकि पोटैशियम वाले मृदु तथा द्रव। साबुन का सूत्र : C17H35COONa
  • शैम्पू भी ऐल्कोहल मिश्रित साबुन। इसमें तेल को गंधक के अम्ल से अभिकृत करके जलविलेय बनाया जाता है।
  • अपमार्जक (डिटर्जेट) पर पानी की प्रकृति का प्रभाव नही पड़ता। अतः अघिक लोकप्रिय है।

स्टेशनरी[संपादित करें]

  • रासायनिक प्रक्रिया से ही लकड़ी से कागज की प्राप्ति होती है। कागज की प्राप्ति में सैंकड़ों लीटर पानी के साथ रासायनिक उपचार किया जाता है। पेंसिल, कटर, शार्पनर, रबर, इरेजर, ह्वाइटनर, स्याही आदि सभी रसायन है।

फोटोग्राफी[संपादित करें]

  • रसायन विज्ञान पर आधारित फोटोग्राफी प्रक्रिया। निगेटिव से पॉजिटिव चित्र सोडियम थायोसल्फेट से लेपित कागज

कीटाणुनाशक दवाइयां[संपादित करें]

  • डेटॉल - प्रचलित कीटाणुनाशक - घरों मे प्रयोग (क्लोरोजाइलीनॉल)
  • घाव तथा शल्य क्रिया में जीवाणुनाशक रसायन (ऐल्कोहॉल) 60-90 प्रतिशत तथा बोरिक एसिड- सर्वतोसुलभ
  • चोट की मरहमपट्टी के लिए पूर्व में H2O2 से सफाई; आयोडीन के टिंचर का भी प्रयोग
  • फीनॉल या कार्बोलिक एसिड - जीवाणुनाशक - सर्जन द्वारा शल्य क्रिया के पूर्व हाथों की सफाई
  • ब्लींचिग पाउडर (CaOCl2) का प्रयोग जल स्रोतों व नालियों, परनालों, की सफाई में प्रयुक्त।

सौन्दर्य प्रसाधनों में छिपे रसायन[संपादित करें]

  • क्रीम या कोल्डक्रीम - जैतून का कोई खनिज तेल, मोम, पानी और बोरेक्स के मिश्रण से चेहरे की क्रीम बनती है। सुगंध हेतु इत्र, एल्कोहॉल, एल्डिहाइड, कीटोन, फीनॉल।
  • पाउडर - खडिया, टैलकम, जिंक ऑक्साइड, चिकनी मिट्टी का चूर्ण, स्टार्च, रंगने का पदार्थ सुगंध
  • लिपिस्टिक - मोम तथा तारकोल से निर्मित रंग सामग्री। मिश्रण में चिकनाई हेतु कोई तेल मिलाया जाता है।
  • शेविंग क्रीम - स्टियरिक अम्ल, तेल, ग्रीस तथा पोटैशियम हाइड्रोक्साइड
  • नेलपॉलिश - जल्दी सूखने वाला एक प्रकार का रोगन जिसमें रंग लाने के लिए टाइटेनियम ऑक्साइड (TiO2) मिलाया जाता है। आजकल नाइट्रोसेल्युलोज, एसीटोन, एमाइल ऐसीटेट आदि। रंग मिटाने हेतु एथिल एसीटेट, ऐसीटोन तथा जैतुन का तेल।

कृषि रसायन[संपादित करें]

  • मिट्टीविहीन कृषि - जल कृषि (Hydrophonics)


उद्योगों में प्रयुक्त रसायन[संपादित करें]

  • रसायन विज्ञान की भूमिका के बिना उद्योग संभव नही। प्लास्टिक, कपड़ा, उर्वरक, कांच, धातु, कागज, चमड़ा, कोयला, धातु, कागज, चमड़ा, कोयला, गैस, पेट्रोरसायन, गंधक एवं क्लोरीन से प्राप्त रसायन, चूने से प्राप्त रसायन आदि।
  • विस्फोटक पदार्थ : (खान खोदने, इमारत गिराने, तेल और गैस के कुंए खोदने में प्रयुक्त) अनेक नाइट्रेट यथा- सेल्युलोज नाइट्रेट तथा नाइट्रोग्लिसरीन, पोटैशियम नाइट्रेट आदि विस्फोटक है।

नाभिकीय रसायन विज्ञान[संपादित करें]

  • इस रसायन विज्ञान की शाखा के अन्तर्गत रेडियोधर्मिता, तथा नाभिकीय प्रक्रमों का अध्ययन किया जाता है।

हरित रसायन[संपादित करें]

  • यह नवीनतम शाखा है जिसे 'टिकाऊ रसायन विज्ञान' (Green and sustainable Chemistry) भी कहते है। ग्रीन या हरित रसायन का तात्पर्य ऐसे रासायनिक उत्पादों या रासायनिक प्रक्रियाओं के डिजाइन से है जो हानिकारक अपशिष्ट के उत्पादन या इस्तेमाल को कम या समाप्त करता है।
  • ड्राइक्लीनिंग में परक्लोरोइथीलिन (कैंसरकारक) की जगह द्रवित कार्बनडाइ ऑक्साइड का प्रयोग।
  • आइबूप्रोफिन नामक दवा - पीड़ा व ज्वरनाशक का निर्माण 10 से 6 चरणों में संभव, प्रदूषण में 30 प्रतिशत कमी।
  • पेपर मिलों में सेलुलोस विरंजित करने हेतु क्लोरीन के स्थान पर सुरक्षित विकल्प विकसित।
  • रेत के कणों पर ग्रेफाइट ऑक्साइड की नैनों परत चढाकर पानी छानने का एक अत्यंत सरल व प्रभावकारी फिल्टर विकसित।
  • उद्योगों में हरित एंजाइमों का प्रयोग।
  • कृषि संबंधी रसायन, प्लास्टिक फाइबर आदि जैव-उत्प्रेरकों के द्वारा कम लागत पर उपलब्ध।
  • उद्योगों में हरित एंजाइमों का प्रयोग।
  • कार्बनिक रसायन विज्ञान, जैव कार्बनिक रसायन विज्ञान तथा जैव रसायन विज्ञान के मेल से औषधि क्षेत्र में अप्रत्याशित लाभ - हरित रसायन विज्ञान की ही देन।
  • पॉलिलैक्टिक एसिड जो जैव-सुसंगत फाइबेरा, जैव अपघटनीय सीवन और पैकेजिंग में उपयेग।
  • भारत में आई.आई.टी. गुवाहाटी, कानपुर व दिल्ली में हरित उत्प्रेरक विधि विकसित। औषधि उद्योग में कारगर।
  • कार्न सिरप का खाद्य उद्योग में उपयोग

विभिन्न रहस्यों में छुपे रसायन[संपादित करें]

  • आतिशबाजी में रसायनों का करिश्मा - आतिशबाजी के निर्माण तथा उपयोग की तकनीक - पायरोटैक्नीक या अग्निक्रीड़ा। प्रयुक्त रसायन डेक्सट्रिन, चारकोल, रेडगम, एलुमिनियम, पोटैषियम परक्लोरेट तथा अमोनियम परक्लोरेट।
  • जैसे ही आतिशबाजियों में कवच पर आग लगाई जाती है, ईंधन व ऑक्सीकारक 2200 से 36000 से तापमान के बीच क्रिया करते हैं, जिससे आवाज उत्पन्न होती है।
  • आतिशबाजियों को रंगीन बनाने में SrCO3, नाइट्रेट तथा क्लोरेट से हरा रंग आतिशबाजी में प्रयुक्त कागज टच पेपर को KnO3 में भिगोने पर आतिशबाजी-ज्वलनशील।

मेंहदी के रंग में रसायन[संपादित करें]

  • लॉसोन, जो नेफ्थाक्यूनोन वर्ग का रसायन है, हाथों की त्वचा में विद्यमान प्रोटीन की झाल से हाथों की त्वचा में विद्यमान प्रोटीन की झाल से क्रिया करके लाल रंग देता है।
  • गिरगिट के रंग बदलने का कारण : गिरगिट की विशेष रंजक कोशिकाएं मैलेनोफोर - ताप बढ़ने तथा घटने के साथ-साथ सिकुड़ती है। ये कोशिकाएं, इनके शरीर में स्रावित होने वाले हारमोनों - इंटरमेडिन, एसीटिलकोलीन आदि से उत्तेजित होकर रंग बदलती है।
  • फूलों का रंग भगाना - हरे, पीले, नीले व लाल फूलों की पंखुड़ियों को जब सल्फर डाइ ऑक्साइड तथा क्लोरीन से संपर्क करवाया जाता है तो ये गैसे फूलों का रंग उड़ा देती हैं।
  • वृद्धावस्था की झुर्रियाँ भी रसायनों की देन - झुर्रियाँ चमड़ी की ऊपरी सतह में उपस्थित कोलेजन तथा इलास्टिन प्रोटीन फाइबर में हुई कमी के कारण।
  • कलाई घड़ी का सेल - लीथियम - कलाई घड़ी का सेल बटन आकार का होने से 'बटन सेल' कहलाता है। इसमें लीथियम ऋणात्मक इलेक्ट्रोड का कार्य करता है, धनात्मक कोई ऑक्सीकारक।
  • हंसाने तथा रूलाने वाली गैसें - नाइट्रस ऑक्साइड गैस तथा नाइट्रिल ब्रोमाइड ; एथिल आयोडोएसिटेट अश्रु गैस के रूप में पुलिस द्वारा उपयोग।
  • आँसू की संरचना में रसायन - हमारे आँसुओं के द्रव में प्रोटीन, नाइट्रोजन, यूरिया, ग्लूकोज, सोडियम, पोटैषियम के ऑक्साइड, अमोनिया, क्लोरीन, सोडियम क्लोराइड, लाइसोजाइम एंजाइम आदि विद्यमान।
  • पानी में कुबड़ापन एवं बिगड़े दांत - मनुष्य के कुबड़े होने में पानी भी करिश्मा दिखाता है। अधिक समय तक फ्लोराइड युक्त जल का सेवन हड्डियों में तथा दाँत में विकृति प्रदान करता है जिससे कुबड़ापन एवं दाँतों में विकृतियां उत्पन्न होतीं हैं।
  • पानी में आग लगाने वाली धातु - सोडियम की पानी से घनिष्ठ मित्रता है।
2Na + 2H2 -> 2NaOH + H2
  • जुगनू की चमक का राज : लूसीफेरिन C13H12N2S2O3 प्रकाश उत्पादक जुगनू की धड़ में विद्यमान + Mg = प्रकाश।
  • विश्व का सबसे मीठा पदार्थ : तालीम प्रोटीन जो शक्कर से पाँच हजार गुना मीठा।
  • धूप-छाँव का चश्मा रसायनों से भरा : फोटोक्रोमेटिक चश्मों में सिल्वर आयोडाइड एवं सिल्वर ब्रोमाइड के कण। धूप में अलग एवं छाया में पुनः युग्मित।
  • खाना पकाने की गैस द्रव : एलपीजी (Liquified petroleum gas) में मुख्य रूप से प्रोपेन एवं ब्यूटेन गैस गंधयुक्त थायोएल्कोहल मिश्रित। घरों में उपयोग के लिये इस गैस का अधिक दाब पर भरा गया होता है।
  • फूलों की सुगंध - टर्पीन तथा बैंजीन के व्युत्पन्न
  • कटा सेब बदरंग : काटने के बाद सफेद भाग बादामी - कैफीटेनिन, एपिकैटीचिन नामक टेनिन - हवा के संपर्क से ऑक्सीकरण।
  • मिर्च खाने से जलन में कैप्सिसिन का योगदान।
  • फलों को पकाने में इथिलीन गैस की भूमिका - हरे रंग के फल लाल-पीले रंग के हो जाते हैं।
  • ओजोन छिद्र - पृथ्वी से 15-50 किमी की ऊँचाई पर ओजोन की पतली परत पृथ्वी को घेरे रहती है। यह पृथ्वी को सूर्य की उच्च ऊर्जा वाली पराबैंगनी किरणों से बचाती है और हमारी जीवन रक्षा करती है। 1987 में पहली बार अंटार्कटिका में इस परत को गिरते देखा गया। इसके छिद्र बनने में क्लोरोफ्लोरो कार्बन की भूमिका।
  • नॉन-स्टिक बर्तनों की परत में टेफ्लॉन (पॉलिटेट्राफ्लुरोइथिलीन)
  • पान का रंग - कटेचूनिक अम्ल के कारण।
  • हाइड्रोपॉनिक्स - बिना मिट्टी से कृषि।
  • स्याहियों के राज में रसायन : बॉल प्वांइट पेन की स्याही - रंगीन रंजकों को ओलिक अम्ल, अरंडी का तेल तथा सल्फोनामाइड के साथ मिलाना।
  • चीटिंयों को रास्ता दिखाते रसायन : रानी, पंखयुक्त नर एवं पंखरहित मादा - तीन प्रजातियां चीटिंयां लगातार गंध फीरोमोन को छोड़ती है जिसे रास्ता पता लगता है।
  • स्टैंप पैड स्याही - इंडियुलिन नामक रंग को ग्लिसरीन, फीनोल या क्रीसॉल में घोलकर बनाई जाती है।
  • प्रिटिंग स्याही - मिनरल ऑयल, एनीलोन रंग तथा चुनाव में प्रयुक्त स्याही में सिल्वर साल्ट एवं एनीलीन यौगिक का प्रयोग।
  • महिलाओं की सहेली - बगैर स्टेरायडल, गैर हारमोनल गर्भ निरोधक गोली में सेंटक्रोमेन (Resorcinol से संष्लेषण) का योगदान।

धब्बे छुड़ाने वाले रसायन[संपादित करें]

  • वनस्पति के धब्बे - (घास, चाय, सब्जी, कॉफी, फल) गरम पानी, साबुन तथा सुहागा।
  • जैवीय धब्बे - खून, थूक, कफ, अंडे, म्यूककस के दाग हेतु अमोनिया, नमक, नींबू, कार्बन टेट्राक्लोराइड।
  • रसायनजनित धब्बे - लोहा, स्याही, वार्निश, पेंट हेतु ऑक्सेलिक अम्ल एवं H2O2 का प्रयोग, वैसलीन, तेल के धब्बों के लिए सोडियम परबोरेट व क्लोरोफार्म
  • सभी प्रोटीन वाले धब्बे - अंडा , रक्त, इत्यादि के धब्बों के लिए विशिष्ठ रसायन Archived 2022-12-20 at the वेबैक मशीन का उपयोग करें.

घातक रसायन[संपादित करें]

  • आँखों में सुरमा में Sb2S3 के बदले PbS का प्रयोग - ऑख के लिए घातक। सीसा शरीर के लिए अत्यधिक विषालु धातु।
  • सौंदर्य प्रसाधनों में फार्मेल्डीहाइड का अत्यधिक उपयोग। यह शैंपू, परिरक्षक आदि में प्रयुक्त होने से घातक।
  • एलुमीनियम के बर्तन हानिकारक (हल्के, सस्ते, जंगरहित एवं प्रचुर उपलब्ध)। एलुमीनियम के बर्तनों में खट्टी वस्तुएं, नमक व सोडा, दही, चाय, चटनी, सिरका फलों का रस, टमाटर का रस आदि कभी नहीं रखने चाहिए।
  • उच्च एलुमीनियम युक्त भोजन या चाय लगातार सेवन से मस्तिष्क की कोशिकाओं की क्षति।

सारांश :

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "What is Chemistry". web.archive.org. 2018-10-03. मूल से 3 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-04-02.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]