धनबाद
धनबाद ᱫᱷᱟᱱᱵᱟᱫᱽ | |||||||
— महानगर — | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | भारत | ||||||
राज्य | झारखंड | ||||||
जनसंख्या • घनत्व |
1,196,214 (2011 के अनुसार [update]) | ||||||
क्षेत्रफल | 577 km² (223 sq mi) | ||||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: dhanbad.nic.in | |||||||
निर्देशांक: 18°10′N 85°25′E / 18.16°N 85.42°E धनबाद भारत के झारखंड में स्थित एक शहर है जो कोयले की खानों के लिये मशहूर है। यह शहर भारत में कोयला व खनन में सबसे अमीर है। पुर्व में यह मानभुम जिला के अधीन था। यहां कई ख्याति प्राप्त औद्योगिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य संस्थान हैं। यह नगर कोयला खनन के क्षेत्र में भारत में सबसे प्रसिद्ध है। कई ख्याति प्राप्त औद्योगिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य संस्थान यहाँ पाए जाते हैं। यहां का वाणिज्य बहुत व्यापक है।
झारखंड में स्थित धनबाद को भारत की कोयला राजधानी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर कोयले की अनेक खदानें देखी जा सकती हैं। कोयले के अलावा इन खदानों में विभिन्न प्रकार के खनिज भी पाए जाते हैं। खदानों के लिए धनबाद पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यह खदानें धनबाद की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। पर्यटन के लिहाज से भी यह खदानें काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि पर्यटक बड़ी संख्या में इन खदानों को देखने आते हैं। खदानों के अलावा भी यहां पर अनेक पर्यटक स्थल हैं जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। इसके प्रमुख पर्यटक स्थलों में पानर्रा, पंचेत डैम, बिरसा मुंडा पार्क, तोपचांची झील, पारसनाथ पहाड़ और मैथन डैम प्रमुख हैं। पर्यटकों को यह पर्यटक स्थल और खदानें बहुत पसंद आती है और वह इनके खूबसूरत दृश्यों को अपने कैमरों में कैद करके ले जाते हैं।
शहर का नामांकरण
[संपादित करें]व्युत्पत्ति कोई भी प्रमाणित रिकार्ड नहीं है, जो बता सके कि धनबाद का नाम धनबाद ही क्यों पड़ा। कुछ लोगो के अनुसार यह क्षेत्र कभी बैद धान के लिये जाना जाता था। दो प्रकार के धान की खेती होती थी। एक बैद जो कार्तिक में तैयार होती थी। अन्य मतान्तर के अनुसार धनबाद नाम धन शब्द से आया है, जो कि एक कोलारियन आदिवासी होते थे। इस क्षेत्र में निवास करते थे।
इतिहास
[संपादित करें]पुर्व में धनबाद मानभुम जिलें का एक सबडिवीजन हुआ करता था। 1928 में पुराने धनबाद और चंदनकियारी डिवीजन को मिला कर धनबाद बनाने की बात रखी गयी थी। 24.10.1956 को राज्य पुनःनिर्माण आयोग के नोटिफिकेशन से धनबाद जिला 01.11.1956 को अस्तित्व में आया। इस नोटिफिकेशन के तहत बिहार के पुर्व जिला मधुबन के पुरुलिया सवडिवीजन के चास और चंदनकियारी थाना क्षेत्र को पं बंगाल को स्थानांतरित कर दिया गया। धनबाद के उपजिला स्थिती को जिला स्तर में परिवर्तित हो गयी, साथ ही उपायुक्त पद का निर्माण हुआ। पुर्व में धनबाद का नाम धनबाइद हुआ करता था। आई.सी.एस. अफसर मिस्टर लुबी के पहल पर अधिकारिक रूप से इसका नाम धनबाद (Dhanbad) कर दिया गया।
जनसांख्यिकी
[संपादित करें]2011 में, धनबाद की जनसंख्या 2,684,487 थी, जिसमें पुरुष और महिला क्रमशः 1,405,956 और 1,278,531 थे। 2024 में धनबाद जिले की अनुमानित जनसंख्या 3,020,000 है | [1]पुरुष और महिलाओं का प्रतिशत 47% तथा 53% है। इसका लिंग अनुपात 908 है। 75.71% धनबाद की औसत साक्षरता दर है। जो 59.5% के राष्ट्रीय औसत की तुलना में अधिक है। पुरुष साक्षरता 85.78 प्रतिशत है और महिला साक्षरता 64.70 प्रतिशत है। धनबाद में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे जनसंख्या का 10.57% है। जनसंख्या में अधिकांश झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोग हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के अलावा, बंगाली, मारवाड़ी और पंजाबी भी धनबाद में बसे है।[2][3]
मुख्य पर्यटन स्थल
[संपादित करें]- पानर्रा
धनबाद के निरसा-कम-चिरकुण्डा खण्ड में स्थित पानर्रा बहुत खूबसूरत स्थान है। स्थानीय निवासियों के अनुसार यह माना जाता है कि पांच पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय यहीं बिताया था। यहां पर भगवान शिव को समर्पित एक मन्दिर भी बना हुआ है जो बहुत खूबसूरत है। इस मन्दिर का नाम पाण्डेश्वर महादेव हैं। इसका निर्माण एक हिन्दू राजा ने कराया था। स्थानीय निवासियों में इस मन्दिर के प्रति बहुत श्रद्धा है और वह पूजा करने के लिए प्रतिदिन यहां आते हैं।
- चारक-खुर्दचारक खुर्द
अपने गर्म पानी के झरनों के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। यह झरने पर्यटकों को बहुत आकर्षित करते हैं। पर्यटकों को इन झरनों की सैर करना बहुत अच्छा लगता हैं क्योंकि शहर की भागती-दौड़ती जिंदगी से दूर इन झरनों के पास पिकनिक मनाना उन्हें ताजगी से भर देता है।
- तोपचांची
यह गोमो से मात्र ३-४ किमी की दुरी पर स्थित है। गोमो रेल्वे स्टेशन धनबाद से २३ किमी की दुरी पर है। धनबाद में पर्यटक पारसनाथ पहाड़ी और तोपचांची तालाब के मनोहारी दृश्य देख सकते हैं। पारसनाथ पहाड़ियों पर पर्यटक रोमांचक यात्रा का आनंद ले सकते हैं। पारसनाथ की चोटियों से पूरे धनबाद के शानदार दृश्य देखे जा सकते हैं। पहाड़ियों की सैर के बाद तोपचांची तालाब के पास बेहतरीन पिकनिक का आंनद लिया जा सकता है। यह तालाब लगभग 214 एकड़ में फैला हुआ है।
- पंचेत
मैथन-जमाडोबा-पंचेत: यह तीनों स्थान अपने पानी के संयंत्र और बांध के लिए प्रसिद्ध है। इन संयंत्रों और बांध के बनने से धनबाद के निवासियों की जीवन शैली में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। पंचेत में पर्यटक पंचेत बांध देख सकते हैं। इस बांध के पास एक सुन्दर शहर भी बसा दिया गया है। पंचेत की सैर करने के बाद पर्यटक मैथन घूमने जा सकते हैं। यह अपने बांध और पनबिजली संयंत्र के लिए जाना जाता है। इन दोनों के अलावा जमाडोबा की सैर की जा सकती है। जमादोबा में जल आपूर्ति संयंत्र लगाया गया है जिससे धनबाद को जलापूर्ति की जाती है।
धनबाद से लगभग 20 किलोमीटर की दुरी पर टुंडी एक विधानसभा क्षेत्र है, यह गोविंदपुर गिरीडीह मार्ग पर अव्स्थित है। ग्रामीण आदिवासी परिवेश यहाँ देखने मिलती है। जंगली हाथियों के कहर से टुंडीवासी परेशान है। यहां पर बहुत से कॉलेज हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी टुंडी का काफी नाम है।
भटिंडा फॉल्स
धनबाद में घूमने वाली जगहें में भटिंडा फॉल्स एक आकर्षित झरना हैं। भटिंडा फाल्स को मूनडीह के झरने के नाम से भी जाना जाता हैं। यह झरना धनबाद रेलवे स्टेशन से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।[4]
- मैथन डैम
मैथन डैम बराकर नदी पर स्थित एक बांध है। उस नदी के बीचोबीच एक खूबसूरत द्वीप है, जो लोगों को अपनी और आकर्षित करता है। पास ही एक हिरण पार्क (Deer Park) और बर्ड सैंक्चुअरी (Bird Sanctuary) भी है। दामोदर परियोजना के आधार पर यहाँ जल विद्युत परियोजना स्थापित की गयी है।
धनबाद से 30 किलोमीटर दूर सिंदरी अपने खाद कारखाना के लिए प्रसिद्ध है और दामोदर नदी के किनारे स्थित है।
आवागमन
[संपादित करें]शहर के बीच से नेशनल हाईवे (NH-2) गुजरती है। जो कि जिले को लगभग दो समान उत्तरी-दक्षिणी भागो में बांटती है, नेशनल हाईवे (NH-32) जो कि धनबाद का मुख्य मार्ग है, धीरे-धीरे व्यावसायिक केन्द्र बनती जा रही है। रैलमार्ग के माध्यम से धनबाद पूरे भारत से जुडा है। दिल्ली कोलकाता मार्ग पर होने के कारण शहर बहुत महत्वपुर्ण है।
- वायु मार्ग
फिलहाल धनबाद में वायु सेवाएं उपलब्ध नहीं है। दिल्ली और मुंबई समेत देश के कई भागों से रांची और पटना के लिए वायु सेवाएं हैं। रांची और पटना हवाई अड्डे से बसों व टैक्सियों द्वारा पर्यटक आसानी से धनबाद तक पहुंच सकते हैं। यहाँ बरवाअड्डा में एक हवाई पट्टी का निर्माण किया गया है। धनबाद का सबसे निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नेताजी सुभाष चन्द्र बोसे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, कोलकत्ता है।
- रेल मार्ग
पर्यटकों की सुविधा के लिए धनबाद और गोमो में रेलवे स्टेशन का निर्माण किया गया है। भुवनेश्वर-राजधानी एक्सप्रेस, कालका मेल और नीलांचल एक्सप्रैस द्वारा आसानी से इन स्टेशनों तक पहुंचा जा सकता है।
धनबाद से चुने गये सांसद
[संपादित करें]1952- पीसी बोस 1957-पीसी बोस, 1960- डीसी मल्लिक 1962- पीआर चक्रवर्ती 1967- रानी ललिता राजलक्ष्मी 1971- राम नारायण शर्मा 1977-1980 एके राय 1984- शंकर दयाल सिंह 1989- एके राय 1991-1996-1998-199 प्रो॰ रीता वर्मा 2004- चंद्रशेखर दुबे 2009- पशुपतिनाथ सिंह 2014- पशुपतिनाथ सिंह (2019) पशुपतिनाथ सिंह, वर्तमान में ढुल्लू महतो (2024)
"अशोक-चक्र" रणधीर वर्मा
[संपादित करें]धनबाद के जांबाज पुलिस अधीक्षक रणधीर वर्मा 3 जनवरी 1991 की सुबह धनबाद शहर में बैंक ऑफ इंडिया की हीरापुर शाखा लूटने गए पंजाब के दुर्दांत आतंकवादियों से जूझते हुए शहीद हो गए थे। भारत के राष्ट्रपति ने 26 जनवरी 1991 को मरणोपरांत उन्हें अशोक-चक्र से सम्मानित किया और सन् 2008 में भारतीय डाक विभाग ने उस अमर शहीद की याद में डाक टिकट जारी किया था। शहीद रणधीर वर्मा 1974 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी थे। शहीद रणधीर वर्मा का जन्म 3 फ़रवरी 1952 को बिहार के सहरसा जिले में हुआ था। उनके पिता बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे। शहीद वर्मा की शादी न्यायिक सेवा के अधिकारी जस्टिस रामनन्दन प्रसाद की द्वितीय पुत्री रीता वर्मा के साथ हुई थी। उनकी शहादत के बाद भाजपा ने रीता वर्मा को धनबाद संसदीय क्षेत्र से चुनावी दंगल में उतारा था। रणधीर वर्मा की लोकप्रियता रंग लाई और रीता वर्मा 1991 के मध्यावधि चुनाव में विजयी रहीं। लगातार चार बार सांसद निर्वाचित होने वाली रीता वर्मा भारत सरकार में मंत्री भी रहीं। शहीद रणधीर वर्मा के दो पुत्र हैं। प्रथम पुत्र दिल्ली आईआईटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद अमरीका स्थित मैकेंजी में सलाहकार हैं। द्वितीय पुत्र नेशनल लॉ स्कूल यूनिर्वसिटी, बंगलुरू से विधि स्नातक हैं और सर्वोच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करते हैं।
रणधीर वर्मा स्टेडियम
[संपादित करें]रणधीर वर्मा की शहादत के बाद बिहार सरकार ने धनबाद स्थित गोल्फ ग्राउंड का नामकरण रणधीर वर्मा स्टेडियम कर दिया था। अब इस स्टेडियम को आधुनिक लुक दिया जा चुका है। धनबाद शहर का यह एकमात्र बड़ा स्टेडियम है। कोहिनुर मैदान, रेलवे मैदान, जिला परिषद् मैदान जैसे अन्य खेल के स्थान धनबाद में मौजूद है।
रेलवे ग्राउंड
[संपादित करें]धनबाद रेलवे के अंतर्गत आने वाला रेलवे ग्राउंड करीब 9 दशक पुराना मैदान है। धनबाद में होने वाले कई खेलों का गवाह है यह मैदान। धनबाद कल्ब और रेलवे स्टेशन की स्थापना के साथ ही इस स्थान को भी सुरक्षित रखा गया था। 80-90 के दशक में इसे स्टेडियम के तौर पर विकसित किया गया। वर्तमान में राज्य के कुछ गिनें चुने मैदानों में है, जहां रणजी ट्राफी के मैच होते है।
रणधीर वर्मा चौक
[संपादित करें]रणधीर वर्मा चौक धनबाद शहर के बीचो-बीच जिला मुख्यालय से कोई 500 गज की दूरी पर है। इसी चौक के पास बैंक ऑफ इंडिया में 3 जनवरी 1991 में हुई आतंकवादी मुठभेड़ में रणधीर वर्मा शहीद हो गए थे। इस चौक पर शहीद रणधीर वर्मा की आदमकद प्रतिमा है, जहां प्रत्येक वर्ष श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाता है। यह प्रतिमा धनबाद शहर में आकर्षण का केंद्र है।
रणधीर वर्मा मेमोरियल सोसाइटी
[संपादित करें]रणधीर वर्मा की याद में झारखंड में एक गैर सरकारी संगठन संचालित है, जो मुख्य रूप से समाज के वंचित वर्ग के लोगों को अनौपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण देने का काम करता है। इस संगठन का नाम है रणधीर वर्मा मेमोरियल सोसाइटी। इसके प्रमोटर हैं वरिष्ठ पत्रकार श्री किशोर कुमार। रणधीर वर्मा मेमोरियल सोसाइटी का कार्यक्षेत्र फिलहाल धनबाद, बोकारो और गिरिडीह है। धनबाद में उर्दू भाषी छात्र-छात्राओं के लिए सस्ती दरों पर कंप्यूटर शिक्षा की व्यवस्था है, जिसे मान्यता दे रखी है नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज (एनसीपीयूएल) ने। यह भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय का स्वायत्तशासी संगठन है। बोकारो में 32 से ज्यादा ट्रेडों में अनौपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जो भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रायोजित है। रणधीर वर्मा मेमोरियल सोसाइटी माइक्रोसॉफ्ट का इंडियन पार्टनर ताराहाट से संबद्ध है, जो अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन डेवलपमेंट अल्टरनेटिव का एक अनुभाग है।
भूगोल
[संपादित करें]24 अक्टूबर 1956 को जब धनबाद की स्थापना हुई थी, तब इसकी लंबाई ऊपर से नीचे 43 मील और पूर्व से पश्चिम चौड़ाई 47 मील थी। 1991 में धनबाद से निकालकर बोकारो जिला का निर्माण किया गया, जिसके बाद अब धनबाद का कुल क्षेत्रफल 2995 स्कवायर किलोमीटर रह गया। धनबाद की सीमा उत्तर और उत्तरी-पुर्वी सीमा बराकर नदी द्वारा निर्धारित होती है, जो इसे गिरीडीह और जामताड़ा से (पुर्व में हजारीबाग) से अलग करती है। दक्षिणी सीमा का निर्धारण दामोदर नदी करती है।
डांगी पहाडी़ जिसकी शृंख्ला प्रधानखंटा से गोविंदपुर तक फैली हुई है। इसकी स्थिती पुर्व मध्य रेलवे की ग्रांड कॉर्ड लाईन और ग्रांड ट्रंक (GT) रोड के बीच है। इन पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी गोविंदपुर के अंतर्गत डांगी के पास है, जो लगभग 1265 फीट ऊंची है। डांगी पहाडी़ लगभग पूरे साल सूखी रहती है, परन्तु बारिश में कुछ घास और झाड़ियाँ उग आती है।
दामोदर नदी बेसिन क्षेत्र में औसत वर्षा 127 मि.ली./ मीटर है।
धनबाद की प्रमुख नदियाँ
[संपादित करें]प्राकृतिक ढाल के अनुरुप जिले की अधिकांश नदियों का मार्ग पूर्व और दक्षिणी-पूर्व की ओर है। ये प्राय: बरसाती नदियाँ ही होती है। दामोदर नदी के अलावा कोई अन्य नदी नौगम्य नहीं है, बरसात को छोड़ सालभर जलअभाव होता है। नदियों के किनारे जलोढ़ मिट्टी का जमाव नाममात्र ही होता है। कुछ जलोढ़ मिट्टी दामोदर और बराकर के मिलनस्थल पर देखने को मिल जाता है। वर्षाकाल में इन नदियों में बाढ़ की स्थिती देखी जाती है।
बराकर नदी जिले की सीमानिर्धारक नदी जो उत्तरी, उत्तरी-पूर्वी तथा पूर्वी सीमा का निर्धारण करती है। बराकर नदी की जिले में लंबाई 48 किलोमीटर है, यह चिरकुंडा-बराकर क्षेत्र में कुछ मील दक्षिण की ओर बहती है। पश्चिम से इसकी एकमात्र सहायक नदी खुदिया है, जो कि पारसनाथ और टुंडी से होते हुए आती है। चिरकुंडा में दामोदर नदी से मिल जाती है।
दामोदर नदी दामोदर नदी के हजारीबाग से जिले में प्रवेश से पुर्व इसमें जमुनिया नदी मिलती है। दामोदर नदी के 48 किलोमीटर बहने के क्रम में उत्तर से प्रमुख सहायक नदी कतरी नदी है। बराकर नदी के मिलने के बाद यह दक्षिण पूर्व की ओर बहने लगती है। 563 किलोमीटर बहने के बाद जेम्स-मेरी बालु स्तुप के ठीक पहले हुगली नदी से मिल जाती है। कभी दामोदर नदी को इसकी उग्रता के कारण बंगाल का शोक भी कहा जाता था। 1943 के बाढ़ के कारण नदी अमीरपुर के पास तट को तोड़ती हुई, ग्रैण्ड ट्रन्क / जी.टी. रोड के ऊपर बहते हुए, रेलवे को भी क्षतिग्रस्त कर दी थी। जिससें द्वितीय विश्वयुद्ध के समय कोलकाता का संपर्क पूरे उत्तर भारत से कट गया था। सरकार को दामोदर नदी की विनाशक शक्त्ति का आभास हुआ, दामोदर नदी को बाँधने की तैयारी शुरु हो गयी। अमेरिका के टेंनेसी परियोजना के तर्ज पर दामोदर वैली कार्पोरेशन की स्थापना 1948 में की गई। परियोजना संबंध में अमेरिकी इंजिनीयर डब्लु एल वुर्दुइन (W L Voorduin) ने अपनी रिपोर्ट 1945 में रखी। इनकें अनुसार आठ जलाशयों का निर्माण किया जायेगा, नहरो का एक नेटवर्क जो 7.6 लाख एकड़ भूमि को सिंचित करेगा पर इसका मुख्य कार्य बाढ़ नियंत्रण होगा।
तोपचांची डैम का निर्माण सन् 1915 में किया गया था। जो कि 1924 को पूर्ण हुआ। डैम का क्षेत्रफल 5 लाख स्केवयर किलोमीटर है, तथा धारण क्षमता 1295 मिलियन गैलन है। जमा जल का प्रयोग झरिया जल बोर्ड द्वारा कोलफील्ड क्षेत्रों को पानी उपलब्ध कराना होता है। 24 घंटे में 2.4 मिलियन गैलन जल गुरुत्वाकर्षण की आपूर्ति प्रणाली द्वारा शहर को भेजा जाता है। धीमी गति से रेत निस्पंदन और वहाँ आठ फिल्टर बेड हैं। कुल फ़िल्टरिंग क्षमता 2.4 millon गैलन है शोधन के बाद पानी की आपूर्ति की जाती है। तोपचांची डैम में जल लाल्की तथा धोलकट्टा क्षेत्र से आता है।
धनबाद की जलवायु सुखद विशेषकर शीतकाल के नवम्बर से फरवरी के महीने में रहता है। वर्षाकाल के मध्य जून से मध्य अक्टूबर तक महीने में 55 सेमी. वर्षा होती है।
शिक्षा संस्थान
[संपादित करें]1.विश्वविख्यात भारतीय खनि विद्यापीठ विश्वविद्यालय, 1926, इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स दुनिया भर में खनन संकाय में अपनी अनूठी प्रशिक्षण के लिए जाना जाता है। 2.बिरसा प्रौद्योगिकी संस्थान, सिंदरी, (बी.आई.टी.) सिंदरी, 1949 (पुर्व में बिहार इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी) 3.सरायढेला में पाटलीपुत्र मेडीकल कालेज, 1969
कई निजी संस्थान भी कर्यारत है।
आदर्श स्थल
[संपादित करें]बैंक मोड़, झरिया, भुली, स्टील गेट, सरायढेला, सिजुआ, भदरीचक, कतरास, पार्क मार्केट, बिरसा मुंडा पार्क, लुबी सर्कुलर रोड, कोयला नगर, राजगंज, बरवड्डा, निरसा, चिरकुण्डा, तेतुलमारी, सिंदरी, टुंडी, तोपचांची, वासेपुर
27 दिसम्बर 1975 को भारत के इतिहास के सबसे बडी़ खान दुर्घटना धनबाद से 20 किलोमीटर दूर चासनाला में घटी, सरकारी आँकडों के अनुसार लगभग 375 लोग मारे गये थे। कोल इण्डिया लिमिटेड के चासनाला कोलियरी के पिट संख्या 1 और 2 के ठीक ऊपर स्थित एक बडे़ जलागार (तालाब) में जमा करीब पाँच करोड़ गैलन पानी, खदान की छत को तोड़ता हुआ अचानक अंदर घुस गया ओर इस प्रलयकालीन बाढ़ में वहां काम कर रहे सभी लोग फँस गये। आनन-फानन में मंगाये गये पानी निकालने वाले पम्प छोटे पड़ गये, कलकत्ता स्थित विभिन्न प्राइवेट कंपनियों से संपर्क साधा गया, तब तक काफीं समय बीत गया, फँसें लोगों को निकाला नहीं जा सका। कंपनी प्रबंधक ने नोटिस बोर्ड में मारे गये लोग की लिस्ट लगा दी। परिवारजन पिट के मुहाने की तरफ उदास मन से कुछ आशा लिये देखते रहे। उस समय केन्द्र और राज्य दोनो जगह सत्ताधारी कांग्रेस का अधिवेशन चंडीगढ में चल रहा था। जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, बिहार के मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्र, खान मंत्री चंद्रदीप यादव, श्रम मंत्री रघुनाथ राव आदि भाग ले रहे थे। खान दुर्घटना की बात आग की तरह फैली, उस समय देश-विदेशों के अखबारों व समाचार तंत्रो ने प्रश्नों की बौछार कर दी। सरकार ने जांच की आदेश देकर समितियां बना दी। इधर चासनाला में पीडि़त परिवारजन के हिंसा की आंशका से जिले के आरक्षी आधीक्षक तारकेश्वर प्रसाद सिन्हा तथा उपायुक्त लक्ष्म्ण शुक्ला ने स्वयं कानून व्यवस्था की कमान संभाल ली थी।
चासनाला खान दुर्घटना पर यश चोपड़ा ने 1979 में काला पत्थर (1979 फ़िल्म) नामक फिल्म बनाई थी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और धनबाद
[संपादित करें]धनबाद के गोमो से नेताजी ने 17 जनवरी 1941 को कालका मेल पकड़ कर पेशावर चलें गये। नेताजी का धनबाद के पुटकी के निकट बीच बलिहारी से जुड़ाव रहा है, यहां उनका आना जाना लगातार बना रहता था। पुटकी में नेताजी के भाई अशोक बोस एक कोयले के कंपनी में कार्यरत थे। यह घर अब खंडहर में तब्दील हो गया है। 16 जनवरी 1941 नेताजी कोलकाता से इंश्योरेंस एजेंट जियाउद्दीन के भेष में बीच बलिहारी पंहुचे और 17 जनवरी 1941 की मध्य रात्रि को गोमो से कालका मेल पकड़ ली।
असंरूपित मूल यहाँ निवेश करें
- "अशोक-चक्र" रणधीर वर्मा चौक
यह चौक धनबाद शहर के बीचो-बीच जिला मुख्यालय से कोई 500 गज की दूरी पर है। इसी चौक के पास बैंक ऑफ इंडिया में 3 जनवरी 1991 में हुई आतंकवादी मुठभेड़ में जांबाज आरक्षी अधीक्षक रणधीर वर्मा शहीद हो गए थे। भारत के राष्ट्रपति ने 26 जनवरी 1991 को मरणोपरांत उन्हें अशोक-चक्र से सम्मानित किया था। सन् 2008 में भारतीय डाक विभाग ने उस अमर शहीद की याद में डाक टिकट जारी किया था। रणधीर वर्मा की याद में झारखंड में एक गैर सरकारी संगठन संचालित है, जो मुख्य रूप से समाज के वंचित वर्ग के लोगों को अनौपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण देने का काम करता है। इस संगठन का नाम है रणधीर वर्मा मेमोरियल सोसाइटी। इसके प्रमोटर हैं वरिष्ठ पत्रकार श्री किशोर कुमार। इसी रणधीर वर्मा मेमोरियल सोसाइटी ने 1993 में सरकार द्वारा प्रदत्त स्थल पर रणधीर वर्मा की आदमकद प्रतिमा की स्थापना की थी, जिसका अनावरण लोकसभा के तत्कालीन विपक्ष के नेता श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने किया था। यह प्रतिमा धनबाद शहर में आकर्षण का केंद्र है।
खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार (MADA)
[संपादित करें]खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार यानि माडा (MADA) का पुर्ण रूप मिनरल एरिया डेवेलपमेंट आथोरिटी खनिज प्रधान जिला धनबाद के विकास में मुख्य भुमिका निभाता है। माडा का साम्राज्य धनबाद से लेकर बोकारो के चास तक के 16 अंचलो में फैला है। 1993 में बिहार सरकार द्वारा गठित माडा पहले दो हिस्सों में बंटा था। झरिया वाटर बोर्ड और झरिया माइंस बोर्ड को मिलाकर खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार का गठन किया गया। यह लगभग 25 लाख लोगों की प्यास बुझाता है। इसके अंतर्गत तोंपचाची झील और जामाडोबा झील आता है। माडा का मुख्यालय शहर के बीचों बीच लुबी सर्कुलर रोड में स्थित है। प्रशासन ने खनिज क्षेत्र विकास प्राधिकार के धनबाद नगर निगम में विलय की घोषणा कर चुकी है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Dhanbad District Population Census 2011 - 2021 - 2024, Jharkhand literacy sex ratio and density". www.census2011.co.in. अभिगमन तिथि 2024-10-18.
- ↑ "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 17 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 सितंबर 2011.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 17 अक्तूबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 सितंबर 2011.
- ↑ "धनबाद ट्रैवल करने के दौरान जरूर घूमें इन जगहों पर". प्रभात खबर. अभिगमन तिथि 30 अप्रैल 2024.