लको बोदरा
लाको बोदरा हो भाषा के साहित्यकार थे। हो भाषा-साहित्य में इनका वही स्थान है जो संताली भाषा में रघुनाथ मुर्मू का है। उन्होंने १९४० के दशक में हो भाषा के लिए वारंग क्षिति नामक लिपि की खोज की व उसे प्रचलित किया।
जीवनी
[संपादित करें]लाको बोदरा का जन्म १९ सितम्बर १९१९ में झारखंड राज्य के पश्चिमी सिंहभूम ज़िले के खूंटपानी ब्लॉक में स्थित पासेया गाँव में पिता लेबेया बोदरा और माता जानो कुई के परिवार में हुआ। उनकी आरम्भिक शिक्षा बचोम हातु प्राथमिक विद्यालय में हुई और उसके बाद उन्होंने पुरुएया प्राथमिक विद्यालय में भर्ती ली। इसके पश्चात ८वीं कक्षा में उन्हें चक्रधरपुर में अपने मामाजी के घर भेजा गया जहाँ उन्होंने ग्रामर हाई स्कूल में ९वीं कक्षा में दाख़िला लिया। इसके बाद उन्होंने चाईबासा में ज़िला उच्च विद्यालय में भर्ती होकर १०वीं की परीक्षाएँ उत्तीर्ण करीं। इसके बाद उन्होंने जयपाल सिंह मुंडा की सहायता से पंजाब के जलंधर शहर के कॉलेज से होम्योपैथी में डिग्री करी। 29 जून 1986 में उन्होंने अपना देह त्याग दिया।
लिपि व शब्दकोश
[संपादित करें]लाको बोदरा ने चालीस के दशक में हो भाषा की लिपि ह्वारङ क्षिति का खोज दूसरे की लिपि से बिस्तार किया और उसके प्रचार-प्रसार के लिए "आदि संस्कृति एवं विज्ञान संस्थान"(एटे:ए तुर्तुङ सुल्ल पीटिका अक्हड़ा) की स्थापना की।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- पुरखा झारखंडी साहित्यकार और नये साक्षात्कार: वंदना टेटे (सं), प्यारा करेकेट्टा फाउंडेशन, रांची 2012
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