बुद्ध पूर्णिमा

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(बुद्ध जयन्ती से अनुप्रेषित)
बुद्ध पूर्णिमा
वेसाक
बुद्ध पूर्णिमा वेसाक
आधिकारिक नाम बुद्ध पूर्णिमा
वैशाख पूजा
वैशाख
वेसाक
विसाख बुचा
सागा दाव
佛誕 (फो दैन)
फैट डैन
วิสาขบูชา
अन्य नाम बुद्ध की जयंती
मनाने वाले बौद्ध
प्रकार बौद्ध
महत्व बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण
तिथि वैशाख पूर्णिमा
मनाते हैं ध्यान, अष्ट-योग पालन, शाकाहार, दान, स्नान, तीर्थ
संबंधित हनमतसुरी
बौद्ध धर्म

की श्रेणी का हिस्सा

बौद्ध धर्म का इतिहास
· बौद्ध धर्म का कालक्रम
· बौद्ध संस्कृति
बुनियादी मनोभाव
चार आर्य सत्य ·
आर्य अष्टांग मार्ग ·
निर्वाण · त्रिरत्न · पँचशील
अहम व्यक्ति
गौतम बुद्ध · बोधिसत्व
क्षेत्रानुसार बौद्ध धर्म
दक्षिण-पूर्वी बौद्ध धर्म
· चीनी बौद्ध धर्म
· तिब्बती बौद्ध धर्म ·
पश्चिमी बौद्ध धर्म
बौद्ध साम्प्रदाय
थेरावाद · महायान
· वज्रयान
बौद्ध साहित्य
त्रिपतक · पाळी ग्रंथ संग्रह
· विनय
· पाऴि सूत्र · महायान सूत्र
· अभिधर्म · बौद्ध तंत्र

बुद्ध पूर्णिमा (वेसक या हनमतसूरी) बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह बैसाख माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था।[1] ५६३ ई.पू. बैसाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध का जन्म लुंबिनी, शाक्य राज्य (आज का नेपाल) में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में 'कुशनारा' में में उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। वर्तमान समय का कुशीनगर ही उस समय 'कुशनारा' था। इस वर्ष 2023 में बुद्ध पूर्णिमा 5 मई को है। [2]

परिचय[संपादित करें]

भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधि) और महापरिनिर्वाण ये तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे।[3] इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में १८० करोड़ से अधिक लोग है तथा इसे धूमधाम से मनाते हैं। त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है।[4]

बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।[3] बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है।[5] यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है जो विहारों में पूजा-अर्चना करने वे श्रद्धा के साथ आते हैं। इस विहार का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से है। इस मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है। इस विहार में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) ६.१ मीटर लंबी मूर्ति है। जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है। यह विहार उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां से यह मूर्ति निकाली गयी थी।[5] विहार के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है। यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है।

श्रीलंका व अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है।[6] इस दिन बौद्ध अनुयायी घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाते हैं। विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। विहारों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाते हैं और दीपक जलाकर पूजा करते हैं। बोधिवृक्ष की भी पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं को हार व रंगीन पताकाओं से सजाते हैं। वृक्ष के आसपास दीपक जलाकर इसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। पिंजरों से पक्षियॊं को मुक्त करते हैं व गरीबों को भोजन व वस्त्र दान किए जाते हैं। दिल्ली स्थित बुद्ध संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।[6]

वर्ष २००९ में बुद्ध पूर्णिमा की तिथि ९ मई थी। भारत के अलावा कुछ अन्य देशों में यह ८ मई को भी मनाया गया। थाईलैंड के महानिकाय और धम्मयुतिका मतों ने ८[7] और श्रीलंका में भी ८ मई को मनाया गया।[8] जबकि सिंगापुर में ९ मई को मनाया गया।[9]

गृहत्याग[संपादित करें]

एक दिन महात्मा बुद्ध को कपिलवस्तु की सैर की इच्छा हुई और वे अपने सारथी को साथ लेकर सैर पर निकले। मार्ग में चार दृश्यों को देखकर घर त्याग कर सन्यास लेने का प्रण लिया।[10]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

चित्र दीर्घा[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "बुद्ध पूर्णिमा 2020: इस दिन मनाई जाएगी बुद्ध जयंती". पत्रिका.
  2. "बुद्ध पूर्णिमा 2020: क्या था महात्मा बुद्ध के गृहत्याग का कारण?". SA News Channel.
  3. मनोहर पुरी. "बुद्ध पूर्णिमा". अभिव्यक्ति. मूल (एचटीएम) से 3 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १५ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  4. फ़ाओलर, जिनीन डी (१९९७). वर्ल्ड रिलीजन्स: एन इंट्रोडक्शन फ़ॉर स्टूडेन्ट्स. सुसेक्स ऐकॆडेमिक प्रेस. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1898723486. 
  5. लिखित कुमार आनंद. "बुद्ध पूर्णिमा" (एचटीएम). नूतन सवेरा. अभिगमन तिथि २१ फरवरी २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]
  6. "बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती". वेब दुनिया. मूल (एचटीएम) से 8 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १५ जून २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  7. "कैलेंडर ऑफ उपोसथ डेज़". मूल से 4 फ़रवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अप्रैल 2018.
  8. "श्रीलंका पब्लिक हॉलिडेज़-२००९". मूल से 1 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अप्रैल 2018.
  9. "सिंगापुर पब्लिक हॉलिडेज़-२००९". मूल से 30 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 अप्रैल 2018.
  10. Webdunia. "वैशाख पूर्णिमा : बुद्ध जयंती की 11 बातें, जानिए क्यों बनाती है इसे खास, ऐसे करें पूजन". hindi.webdunia.com. अभिगमन तिथि 2022-05-10.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]