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शहादा

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शहादा
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शहादा (अरबी: [الشهادة] Error: {{Lang}}: text has italic markup (help)लुआ त्रुटि मॉड्यूल:Lang में पंक्ति 1670 पर: attempt to index field 'engvar_sel_t' (a nil value)। audio सहायता·सूचना "गवाही देना"; और भी अश-शहादतन (الشَهادَتانْ, "दो गवाहियाँ, एक इस्लामी बुनियादी प्रथा है, इस बात का एलान करना कि अल्लाह (ईश्वर) एक है और मुहम्मद अल्लाह (ईश्वर) के भेजे गए प्रेषित (पैगम्बर) हैं। अधिकांश पारंपरिक स्कूलों के अनुसार एक व्यक्ति को मुस्लिम बनने के लिए शहादा का एक ही ईमानदार पाठ आवश्यक है।[1] यह एलान सूक्ष्म रूप से इस तरह है:

لَا إِلٰهَ إِلَّا الله مُحَمَّدٌ رَسُولُ الله
ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह
कोई भी पूज्य नहीं है, अल्लाह के सिवा, मुहम्मद उस के पैगम्बर हैं।[2]

हर मुसलमान इस बात को प्रकट करता है कि "अल्लाह एक है, और मुहम्मद, अल्लाह के रसूल हैं", यही विशवास का मूल धातू और स्तंभ है।[3]

शब्द और उच्छारण

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शहादा (شَهادة) गवाही को कहते हैं, ग्नान कोष में, न्याय कोष में भी इस शब्द को इस्तेमाल किया जाता है, जो के गवाही के लिए इस्तेमाल होता है, चाहे वह कर्जा, हादिसे, बुराई, या तलाक के वक्त में हो। [4]

इस्लामी पद कोष में और कुरआन के सन्दर्भ में यह शब्द "विशवास प्रकट" के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शहादा पढना या बोलना, या प्रकट करना हर मुस्लिम के लिए ज़रूरी है। इसी से ईमान या विशवास स्वीकार और प्रकट होता है।

चित्र मालिका

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इन चित्रों में, बहुत सारे ध्वज हैं जिन पर "शहादा" लिखा हुआ है।

सन्दर्भ

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  1. "ला-इलाहा इल्लल्लाह की शर्तों (ज्ञान, यक़ीन...अन्त तक) की व्याख्या". islamqa.info.
  2. N Mohammad (1985), The doctrine of jihad: An introduction, Journal of Law and Religion, 3(2): 381-397
  3. "प्रथम स्तम्भ: 'ला इलाहा इल्लल्लाह और 'मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह की गवाही". knowingallah.com. अभिगमन तिथि 17 मार्च 2023. |accessdate= में 4 स्थान पर line feed character (मदद); |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  4. The New Encyclopedia of Islam, Cyril hi tom Alta Mira Press, 2001, p. 416.

बाहरी कड़ियाँ

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