"बिहार की संस्कृति": अवतरणों में अंतर

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बिहार का मेला के बारे में अपडेट
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==पर्व-त्योहार==
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प्रमुख पर्वों में [[छठ पूजा|छठ]], [[होली]], [[दीपावली|दिवाली]], [[दशहरा]], [[रामनवमी]] ,[[महाशिवरात्रि]], [[नाग पंचमी|नागपंचमी]], [[श्री पंचमी]] ([[वसन्त पञ्चमी]], [[सरस्वती पूजा]]) , [[मुहर्रम]], [[ईद]] तथा [[क्रिसमस]] हैं। सिक्खों के दसवें गुरु [[गुरु गोविन्द सिंह|गोविन्द सिंह जी]] का जन्म स्थान होने के कारण [[पटना]] में उनकी जयन्ती पर भी भारी श्रद्धार्पण देखने को मिलता है।
प्रमुख पर्वों में [[छठ पूजा|छठ]], [[होली]], [[दीपावली|दिवाली]], [[दशहरा]], [[रामनवमी]] ,[[महाशिवरात्रि]], [[नाग पंचमी|नागपंचमी]], [[श्री पंचमी]] ([[वसन्त पञ्चमी]], [[सरस्वती पूजा]]) , [[मुहर्रम]], [[ईद]] तथा [[क्रिसमस]] हैं। सिक्खों के दसवें गुरु [[गुरु गोविन्द सिंह|गोविन्द सिंह जी]] का जन्म स्थान होने के कारण [[पटना]] में उनकी जयन्ती पर भी भारी श्रद्धार्पण देखने को मिलता है।

[[बिहार]] सरस मेला राज्य की राजधानी [[पटना]] के गांधी मैदान में लगने वाला एक शानदार आयोजन है, जो [[बिहार]] की संस्कृति, कला, शिल्प और स्वयं सहायता समूहों के सशक्तिकरण को दर्शाता है। इस मेले का आयोजन ग्रामीण विकास विभाग के बिहार ग्रामीण आजीविका संवर्धन समिति (जीविका) द्वारा किया जाता है।<ref>{{Cite news|url=https://www.prabhatkhabar.com/state/bihar/patna/bihar-saras-fair-products-from-17-states-will-be-available-at-500-stalls-axs|title=बिहार सरस मेला में 500 से अधिक स्टॉल पर मिलेंगे 17 राज्यों के प्रोडक्ट, संस्कृति और हस्तशिल्प की दिखेगी झलक|date=14 दिसंबर 2023|work=प्रभात खबर|access-date=18 दिसंबर 2023}}</ref>

[[पटना]] के गांधी मैदान में आयोजित होने वाले इस सरस मेला में [[बिहार]] के अलावा झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, केरल, लद्दाख, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, असम, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और मणिपुर के प्रतिभागी भाग ले रहे हैं. इस मेला में सहायता समूह की महिला उद्यमियों एवं स्वरोजगारियों ने अपने उत्पादों, व्यंजनों एवं शिल्प के स्टॉल लगाये हैं।


==शादी-विवाह==
==शादी-विवाह==

15:33, 19 दिसम्बर 2023 का अवतरण

बिहार की संस्कृति किसी छेत्र विशेष की विशिष्टता को प्रकट करती है।संस्कृति का निरुपण बौद्धिक विरासत,कला,मेले, उत्सव,रहन-सहन आदि से होता है। बिहार की संस्कृति प्राचीन काल से ही बहुआयामी और समृद्ध रही है।भोजपुरी, मैथिली, मगही, तिरहुत तथा अंग संस्कृतियों का मिश्रण है। नगरों तथा गाँवों की संस्कृति में अधिक फर्क नहीं है। नगरों में भी लोग पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते है तथा उनकी मान्यताएँ रुढिवादी है। बिहारी समाज पुरूष प्रधान है और यहां के बच्चे अपने माता पिता के श्रवणकुमार हैं। हिंदू और मुस्लिम यद्यपि आपसी सहिष्णुता का परिचय देते हैं लेकिन कई अवसरों पर यह तनाव का रूप ले लेता है। दोनों समुदायों में विवाह को छोड़कर सामाजिक एवं पारिवारिक मूल्य लगभग समान है। जैन एवं बौद्ध धर्मों की जन्मस्थली होने के बावजूद यहाँ दोनों धर्मों के अनुयाईयों की संख्या कम है। पटना सहित अन्य शहरों में सिक्ख धर्मावलंबी अच्छी संख्या में हैं।

पर्व-त्योहार

प्रमुख पर्वों में छठ, होली, दिवाली, दशहरा, रामनवमी ,महाशिवरात्रि, नागपंचमी, श्री पंचमी (वसन्त पञ्चमी, सरस्वती पूजा) , मुहर्रम, ईद तथा क्रिसमस हैं। सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म स्थान होने के कारण पटना में उनकी जयन्ती पर भी भारी श्रद्धार्पण देखने को मिलता है।

शादी-विवाह

शादी विवाह के दौरान ही प्रदेश की सांस्कृतिक प्रचुरता स्पष्ट होती है। जातिगत आग्रह के कारण शत-प्रतिशत शादियाँ माता-पिता या रिश्तेदारों द्वारा तय परिवार में ही होता है। शादी में बारात तथा जश्न की सीमा समुदाय तथा उनकी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है। लगभग सभी जातियों में दहेज़ का चलन महामारी के रूप में है। दहेज के लिए विवाह का टूटना या बहू की प्रताड़्ना समाचार की सुर्खियाँ बनती है। कई जातियों में विवाह के दौरान शराब और नाच का प्रचलन खूब दिखता है। लोकगीतों के गायन का प्रचलन लगभग सभी समुदाय में हैं। आधुनिक तथा पुराने फिल्म संगीत भी इन समारोहों में सुनाई देते हैं। शादी के दौरान शहनाई का बजना आम बात है। इस वाद्ययंत्र को लोकप्रिय बनाने में बिस्मिल्ला खान का नाम सर्वोपरि है, उनका जन्म बिहार में ही हुआ था।

खानपान

बिहार अपने खानपान की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनो व्यंजन पसंद किये जाते हैं। मिठाईयों की विभिन्न किस्मों के अतिरिक्त अनरसा की गोली, खाजा, मोतीचूर का लड्डू, तिलकुट यहाँ की खास पसंद है। सत्तू, चूड़ा-दही और लिट्टी-चोखा जैसे स्थानीय व्यंजन तो यहाँ के लोगों की कमजोरी है। लहसुन की चटनी भी बहुत पसंद करते हैं। सुबह के नाश्ते में चूड़ा-दही या पूड़ी-जलेबी खूब खाये जाते है। दिन में चावल-दाल-सब्जी और रात में रोटी-सब्जी सामान्य भोजन है।

जातिवाद

जातिवाद बिहार की राजनीति तथा आमजीवन का अभिन्न अंग रहा है। वर्तमान में काफी हद तक यह भेदभाव कम हो गया है फिर भी चुनाव के समय जातीय समीकरण एवं जोड़-तोड़ हर जगह दिखाई पड़ता है। पिछले कुछ वर्षों में इसका विराट रूप सामने आया था। इस जातिवाद के दौर की एक ख़ास देन है - अपना उपनाम बदलना। जातिवाद के दौर में कई लोगों ने जाति स्पष्ट न हो इसके लिए अपने तथा बच्चों के उपनाम बदल कर एक संस्कृत नाम रखना आरंभ कर दिया। इसके फलस्वरूप कई लोगों का वास्तविक उपनाम यादव, शर्मा, मिश्र, वर्मा, झा, सिन्हा, श्रीवास्तव, राय इत्यादि से बदलकर प्रकाश, सुमन, प्रभाकर, रंजन, भारती इत्यादि हो गया। जातिसूचक उपनाम के बदले कई लोग 'कुमार' लिखना पसंद करते हैं।

खेलकूद एवं मनोरंजन

भारत के कई जगहों की तरह क्रिकेट यहाँ भी सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसके अलावा फुटबॉल, हॉकी, टेनिस और गोल्फ भी पसन्द किया जाता है। बिहार का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण होने के कारण पारंपरिक भारतीय खेल जैसे कबड्डी,गिल्ली डंडा,कंचे बहुत लोकप्रिय हैं।
बिहार के शहर, कस्बों तथा गाँवों में फिल्मों की लोकप्रियता बहुत अधिक है। हिंदी फिल्मों के संगीत बहुत पसन्द किये जाते हैं। मुख्य धारा की हिन्दी फिल्मों के अलावा भोजपुरी फिल्मों ने भी अपना प्रभुत्व जमाया है। मैथिली तथा अन्य स्थानीय सिनेमा भी लोकप्रिय हैं। अंग्रेजी फिल्म पटना जैसे नगरों में ही देखा जाता है। उच्चस्तरीय पसंद वाले लोग नृत्य, नाटकीय मंचन या चित्रकला में अपना योगदान देना पसंद करते हैं वहीं अशिक्षित या अर्धशिक्षित लोग ताश या जुए खेलकर अपना समय काटते हैं।

सन्दर्भ