भारतीय वायुसेना
भारतीय वायुसेना (इंडियन एयरफोर्स) भारतीय सशस्त्र सेना का एक अंग है जो वायु युद्ध, वायु सुरक्षा, एवं वायु चौकसी का महत्वपूर्ण काम देश के लिए करती है। इसकी स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को की गयी थी।[8] स्वतन्त्रता (1950 में पूर्ण गणतंत्र घोषित होने) से पूर्व इसे रॉयल इंडियन एयरफोर्स के नाम से जाना जाता था और 1945 के द्वितीय विश्वयुद्ध में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आजादी (1950 में पूर्ण गणतंत्र घोषित होने) के पश्च्यात इसमें से "रॉयल" शब्द हटाकर सिर्फ "इंडियन एयरफोर्स" कर दिया गया।
आज़ादी के बाद से ही भारतीय वायुसेना पडौसी मुल्क पाकिस्तान के साथ चार युद्धों व चीन के साथ एक युद्ध में अपना योगदान दे चुकी है। अब तक इसने कईं बड़े मिशनों को अंजाम दिया है जिनमें ऑपरेशन विजय - गोवा का अधिग्रहण, ऑपरेशन मेघदूत, ऑपरेशन कैक्टस व ऑपरेशन पुमलाई शामिल है। ऐसें कई विवादों के अलावा भारतीय वायुसेना संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन का भी सक्रिय हिसा रही है। भारत के राष्ट्रपति भारतीय वायु सेना के कमांडर इन चीफ के रूप में कार्य करते है। वायु सेनाध्यक्ष, एयर चीफ मार्शल (ACM), एक चार सितारा कमांडर है और वायु सेना का नेतृत्व करते है। भारतीय वायु सेना में किसी भी समय एक से अधिक एयर चीफ मार्शल सेवा में कभी नहीं होते। इसका मुख्यालय नयी दिल्ली में स्थित है एवं 2006 के आंकडों के अनुसार इसमें कुल मिलाकर 170,000 जवान एवं 1,350 लडाकू विमान हैं जो इसे दुनिया की चौथी सबसे बडी वायुसेना होने का दर्जा दिलाती है।[9]
उद्देश्य
[संपादित करें]भारतीय वायुसेना के मिशन, सशस्त्र बल अधिनियम 1947 के द्वारा परिभाषित किया गया है भारत के संविधान और सेना अधिनियम 1950, हवाई युद्धक्षेत्र में:
"भारत और सहित हर भाग की रक्षा, उसके बचाव के लिए तैयारी और ऐसे सभी कृत्यों के रूप में अपनी अभियोजन पक्ष और इसके प्रभावी वियोजन को समाप्ति के बाद युद्ध के समय में अनुकूल किया जा सकता है।"
इस प्रकार, भारतीय वायु सेना के सभी खतरों से भारतीय हवाई क्षेत्र की रक्षा करना, सशस्त्र बलों की अन्य शाखाओं के साथ संयोजन के रूप में भारतीय क्षेत्र और राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा प्राथमिक उद्देश्य है। भारतीय वायु सेना युद्ध के मैदान में, भारतीय सेना के सैनिकों को हवाई समर्थन तथा सामरिक और रणनीतिक एयरलिफ्ट करने की क्षमता प्रदान करता है। भारतीय वायु सेना एकीकृत अंतरिक्ष प्रकोष्ठ के साथ दो अन्य शाखाओं भारतीय सशस्त्र बल, अंतरिक्ष विभाग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ अंतरिक्ष आधारित संपत्तियों के उपयोग प्रभावी ढंग से करने के लिए, सैनिक दृष्टि से इस संपत्ति पर ध्यान देंता है।[11]
भारतीय वायु सेना भारतीय सशस्त्र बलों की अन्य शाखाओं के साथ साथ आपदा राहत कार्यक्रमो में प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री गिराने, खोज एवं बचाव अभियानों, आपदा क्षेत्रों में नागरिक निकासी उपक्रम में सहायता प्रदान करता है। भारतीय वायु सेना ने 2004 में सुनामी तथा 1998 में गुजरात चक्रवात के दौरान प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए राहत आपरेशनों के रूप में व्यापक सहायता प्रदान की। भारतीय वायु सेना अन्य देशों की राहत कार्यक्रमों में भी सहायता प्रदान करता है, जैसा की उसने ऑपरेशन रेनबो (Rainbow) के रूप में श्रीलंका में किया।
इतिहास
[संपादित करें]भारतीय वायुसेना (Air Force) स्कीन कमेटी (Skeen Committee) द्वारा 1926 ई. में की गई सिफारिश के आधार पर 1 अप्रैल 1933 में भारतीय वायुसेना का गठन किया गया।[12] कुछ वापिटि (Wapiti) विमानों, क्रानवेल (Cranwel) प्रशिक्षित कुछ उड़ाकों तथा वायुसैनिकों (airmen) के छोटे से दल से इस सेना ने कार्यारंभ किया। गत 35 वर्षों में भारतीय वायुसेना ने विशेष विस्तार और प्रतिष्ठा अर्जित की है। आज भारतीय वायुसेना राष्ट्र की सुरक्षा की दृष्टि से सशस्त्र सेना का न केवल अपरिहार्य एवं पृथक् अंग हैं, बल्कि यह आधुनिकतम वायुयानों से सुसज्जित एक विस्तारी वायुसेना का उड़ाकू बेड़ा बन गया है। - साहिल खॉन
द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945)
[संपादित करें]भारतीय वायुसेना का गठन ब्रिटिश कालिन भारत में रॉयल एयरफोर्स के एक सहायक हवाई दल के रूप में किया गया था।[13] भारतीय वायु सेना अधिनियम 1932 को उसी वर्ष 8 अक्टूबर से लागू किया गया[14] जिसके तहत रॉयल एयरफोर्स के वर्दी, बैज और प्रतीक चिह्न अपनाए गए।[15] 1 अप्रैल 1933 को वायुसेना के पहले स्कवॉड्रन, स्कवॉड्रन क्र. 1 का चार वेस्टलैंड वापिटी विमान व पांच पाइलटों के साथ गठन किया गया। भारतीय पायलटों का नेतृत्व फ्लाइट लेफ्टिनेंट सेसिल बाउशर के अंतर्गत सौंपा गया।[16] 1941 तक स्कवॉड्रन क्र. 1 भारतीय वायुसेना का एकमेव स्कवॉड्रन था जिसमें दो और विमान शामिल कर लिए गये थे।[16] शुरूआत में वायुसेना कि केवल दो शाखाएं थी, ग्राउंड ड्यूटी व रसद शाखा।
द्वीतिय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के चिह्न में से लाल गोला हटा दिया गया ताकि जापानी हिनोमारू (उगता सुरज) के साथ साम्य को टाला जा सकें।[15] 1943 में वायुसेना बढ कर सात स्कवॉड्रनस व 1945 तक नौं स्कवॉड्रनस की हो गई जिसमें वल्टी वेंजंन्स गोता बमवर्षक व हरिकेन और ए. डब्लू 15 अटलांटस जिसे 1944 में शामिल कर लिया गया।[16] भारतीय वायुसेना ने बर्मा में बढती हुई जापानी सेना को रोकने में सहायता प्रदान की थी, जहां इसने अपना पहली हवाई हमला अराकन में जापानी सैन्य छावनी पर किया। वायुसेना ने माई हंग सन और उत्तरी थाइलैंड के चैंग माई व चैंग राए में भी जापानी हवाई अड्डों पर हमले किए। अपने योगदान के लिए 1945 में राजा जॉर्ज VI नें इसे रॉयल कि उपाधि दी।[17]
आज़ादी के बाद के शुरूआती वर्ष (1947-1950)
[संपादित करें]आज़ादी के पश्च्यात भारत दो भागों, भारत संघ व डोमिनियन ऑफ़ पाकिस्तान, में बांट दिया गया। भौगोलिक विभाजन के बाद वायुसेना भी दोनो देशों में बांट दी गई। भारत कि वायुसेना का नाम रॉयल इंडियन एयरफोर्स ही रहा पर दस में से तीन स्कवॉड्रन और कार्यालय जो पाकिस्तान में चले गए थे वह रॉयल पाकिस्तान एयरफोर्स में शामिल कर लिए गए।[18] रॉयल इंडियन एयरफोर्स का चिह्न एक अंतरिम 'चक्र' अशोक चक्र से व्युत्पन्न चिह्न से बदल गया था।[15]
उसी दौरान जम्मू कश्मीर के ग्रहण का विवाद खडा हो गया। पाकिस्तानी सेना को राज्य में घुसते देख उसके महाराजा हरि सिंह ने भारत का हिस्सा बनना स्वीकार कर लिया ताकि सैन्य सहायता मिल सके।[19] विलय के कागज़ातों पर दस्तखत होते ही रॉयल इंडियन एयरफोर्स ने सैन्य टुकडियों को युद्ध क्षेत्र में उतारना शुरू कर दिया और यह था जब रसद कार्य का एक अच्छे प्रबंधन के रूप में काम आया।[19] इस तरह भारत-पाकिस्तान में पूर्णतया: युद्ध छिड गया हालाँकि युद्ध कि औपचारिक घोषणा कभी नहीं की गई।.[20] युद्ध के समय रॉयल इंडियन एयरफोर्स का पाकिस्तानी वायुसेना से हवाई युद्ध में सामना नहीं हुआ परन्तु सैन्य टुकडियों को पहुंचाने व ज़मीनी दल को हवाई सहकार्य देने में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा।[21]
भारत को 1950 में गणतंत्र घोषित करते ही रॉयल शब्द हटाकर सिर्फ इंडियन एयरफोर्स कर दिया गया और उसी समय से आज कार्यान्वित चिह्न अपना लिया गया।[15][22]
कौंगो युद्ध व गोवा मुक्ती संग्राम (१९६०-१९६१)
[संपादित करें]भारतीय वायुसेना ने 1960 में महत्वपूर्ण संघर्ष देखा जब कौंगो पर बेल्जियम का 75 सालों का राज अचानक खत्म हो गया और देश को बड़े पैमाने पर हिंसा और विद्रोह ने निगल लिया।[23] भारतीय वायुसेना ने अपने पांचवें स्कवॉड्रन, जो इंगलिश इलेक्ट्रिक कैनबेरा विमानों का दस्ता था, को संयुक्त राष्ट्र के कौंगो अभियान में सहायता देने के मकसद से रवाना कर दिया। स्क्वाड्रन ने नवंबर में परिचालन मिशन के उपक्रम शुरू कर दिए।[24] 1966 में संयुक्त राष्ट्र का अभियान खत्म होने तक स्क्वाड्रन वहां टिका रहा।[24] लिओपोल्डविल और कमिना से कार्य करते हुए कैनबेरा विमानो ने जल्द ही विद्रोही वायुसेना को नेस्तानाबूद कर दिया और संयुक्त राष्ट्र के ज़मीनी दस्ते का एक मात्र हवाई सहारा बन गए।[25]
1961 के अंत में सालों से चली आ रही बातचीत के बाद भारतीय सरकार ने पुर्तगालियों को गोवा व आस पास के इलाकों से खदेडने के लिए सशस्त्र बलों को तैनात करने का निर्णय लिया।[26] ऑपरेशन विजय के तहत भारतीय वायुसेना को ज़मीनी दल को सहायता प्रदान करने के लिए अनुरोध किया गया। 8 से 18 दिसम्बर के बीच पुर्तगाली वायुसेना को बाहर निकालने के उद्देश्य से कुछ फाइटर्स और बमवर्षक विमानों द्वारा जांच उड़ानों भरी गई पर इसका कोई असर नहीं हुआ।[26] 18 दिसम्बर को कैनबेरा बमवर्षको ने डाबोलिम हवाई पट्टी पर बमबारी की परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखा कि टर्मिनल व एटीसी टॉवर को बर्बाद ना किया जाए। दो पुर्तगाली यातायात विमान (सुपर कॉस्टिलेशन व डीसी-6) को अकेला छोड़ दिया गया ताकि उन पर कब्ज़ा किया जा सके परन्तु पुर्तगाली पायलट उन्हे क्षतिग्रस्त हवाई पट्टी से उडा ले जाने में सफल हुए जिसके ज़रिये वे पुर्तगाल भाग निकले।[26] हंटर विमानो ने बाम्बोलिम में वायरलेस स्टेशन पर हमला किया व वैम्पायर विमानो द्वारा ज़मीनी दस्तों को सहायता प्रदान की गई।[26] दमन में मैस्टर विमानो द्वारा पुर्तगाली बंदूक पदों पर हमला किया गया।[26] औरागन्स (जिसे भारतीय वायुसेना में तुफानिज़ कहा जाता है) ने दीव में रनवे पर बमबारी की और नियंत्रण टावर, वायरलेस स्टेशन और मौसम स्टेशन नष्ट कर दिए।[26]
सीमा विवाद व वायुसेना में बदलाव (1962-1971)
[संपादित करें]1962 में भारत व चीन में स्तिथि युद्ध स्तर तक जा पहुंची जब चीन ने अपनी सैन्य टुकडियां भारत के सीमावर्ती इलाकों में दाखिल कर दी।[27] भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत के सैन्य योजनाकार वायुसेना तैनात करने और प्रभावी ढंग से इस्तेमाल में असफल रहे जिसका खामियाज़ा भारत को चीन के हाथों कईं जगह मुश्किलों का सामना करना पडा, खास तौर पर जम्मू-कश्मीर में।[27]
भारत-चीन युद्ध के तीन साल बाद 1965 में कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान में द्वीतिय युद्ध छिड गया। चीन से युद्ध से सबक लेते हुए इस बार भारत ने अपनी वायुसेना का युद्ध के दौरान बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। यह पहली बार था जब भारतीय वायुसेना ने दुश्मन वायुसेना से आमने-सामने भिडंत की हो।[28] इस बार थल सेना को मदद करने के बजाए[29] वायुसेना ने पाकिस्तानी वायुसेना के हवाई अड्डों पर स्वतंत्र हमले किए।[30] यह अड्डें पाकिस्तानी सीमा के काफी अन्दर थे जिससे भारतीय वायुसेना के विमानों को वायुयान - विध्वंसी गोलाबरी से काफी खतरा था।[31] युद्ध के दौरान पाकिस्तानी वायुसेना ने भारतीय वायुसेना से अधिक गुणात्मक श्रेष्ठता का आनंद लिया क्योंकि भारतीय विमान द्वितीय विश्व युद्ध के पुराने विमान थे। इस के बावजूद, भारतीय वायुसेना पाकिस्तानी वायुसेना को संघर्ष क्षेत्रों पर हवा में श्रेष्ठता पाने से रोकने में सक्षम रही।[32] युद्ध समाप्ति पर पाकिस्तान ने 113 भारतीय विमान मार गिराने का दावा किया जबकी भारत केवल 73 पाकिस्तानी विमान ही गिरा पाया।[33] 60% से अधिक भारतीय विमान पठानकोट व कालिकुंडा में हवाई पट्टी पर खडे-खडे ही बरबाद कर दिए गए थे।[34]
1965 के युद्ध के बाद भारतीय वायु सेना ने अपने बदलाव व अपनी क्षमताओं में सुधार की एक श्रृंखला शुरू कर दी। 1966 में पैरा कमांडो की रेजिमेंट तैयार की गई।[35] अपनी रसद आपूर्ति और बचाव कार्य करने की क्षमता में वृद्धि के लिए वायुसेना ने हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स द्वारा ऐव्रो से प्राप्त लाइसंन्स के तहत बनाए गए 72 एचएस 748 विमान शामिल किए।[36] भारत ने लड़ाकू विमानों के स्वदेशी निर्माण पर अधिक दबाव डालना शुरू कर दिया जिसके परिणाम स्वरूप प्रसिद्ध जर्मन एयरोस्पेस इंजीनियर कर्ट टैन्क द्वारा डिज़ाइन किए गए हाल एचएफ-24 मारूत विमान भारतीय वायुसेना का अंग बन गए।[37] हाल (हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड) ने भी फॉलंड ग्नात विमानों के एक उन्नत संस्करण हाल-अजित विकसित करने शुरू कर दिए।[38] इसी के साथ भारत ने माक-२ (ध्वनी के रफ्तार से दोगुना) की रफ्तार से उडने वाले रुसी मिग-21 व सुखोई सू-7 लडाकू विमान शामिल कर लिए।[39]
बांग्लादेश मुक्ति युद्ध (1971)
[संपादित करें]1971 के अंत में पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता आंदोलन के चलते भारत-पाकिस्तान के बीच बांग्लादेश मुक्ति संग्राम छिड गया।[40] 22 नवम्बर 1971 को युद्ध शुरू होने से दस दिन पहले ही चार पाकिस्तानी एफ-86 सेबर लडाकू विमानों ने भारतीय व गरिबपुर में मुक्ती भनी इलाकों में हमला कर दिया जो अंतर्राष्ट्रीय सीमा के काफी निकट है। चार में से तीन सेबर विमानों को भारतीय फॉलंड ग्नात विमानों ने मार गिराया।[41] 3 दिसम्बर को भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध कि औपचारिक घोषणा कर दी जिसके साथ ही पाकिस्तानी वायुसेना ने श्रीनगर, अम्बाला, सिरसा, हलवारा और जोधपुर में भारी हमले किए। अधिकारियों को पहले से ही इसकी आशंका थी इसिलिए पहले ही सावधानियां बरती गई जिसके कारण मामूली नुकसान हुआ।[42] भारतीय वायुसेना ने जल्द ही जवाबी कार्यवाही की जिसके बाद पाकिस्तानी सेना बचाव की मुद्रा में उडानें भरने लगी।[43]
शुरूआती दो सप्ताहों में ही भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी सीमा में 2,000 उड़ानें भरी और बढ़ती थल सेना को सहायता प्रदान की।[44] भारतीय वायुसेना ने नौ सेना को भी अरब सागर व बंगाल कि खाडी में पाकिस्तानी नौ सेना के विरुद्ध लडने में सहायता प्रदान की। पश्चिमी सीमा पर लोंगेवाला की लड़ाई में वायुसेना ने 29 पाकिस्तानी टैंक, 40 बख्तरबंद गाडियां व एक रेल ध्वस्त कर दी।[45] वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान बमबारी करते हुए कईं प्रमुख लक्ष्यों को निशाना बनाया जिनमें कराची में तल अधिष्ठापनों, मंगला डैम और सिंध में गैस प्लांट शामील थे।[46] इसी तरह कि रण-निति पूर्वी पाकिस्तान में आज़माई गई जहां वायुसेना ने कईं और्डनन्स फैक्ट्रियां, हवाई पट्टी और प्रमुख इलाकों को लक्ष्य बनाया।[47] पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के बाद भारतीय वायुसेना ने 94 पाकिस्तानी विमान जिनमें 54 एफ-86 सेबर लडाकू विमान शामिल थे, मार गिराने का दावा किया।[48] वायुसेना ने 6,000 से अधिक उडानें भरी[44] जिनमें यातायात विमान व हैलिकॉप्टर शामिल थे।[44] युद्ध के अंतिम क्षणों में वायुसेना ने पाकिस्तानी सेना पर ढाका में आत्मसमर्पण करने के लिए पर्चे डाले।[49]
कारगिल से पहले की गतिविधियाँ (1984-1988)
[संपादित करें]1984 में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया, जिसके अंतर्गत सियाचिन को कश्मीर में वापस शामिल करना था।[50] वायुसेना के मी-8, चेतक व चीता हेलिकॉप्टर्स ने कईं भरतीय सेनानियों को सियाचिन पर उतार दिया।[51] 13 अप्रैल 1984 को शुरू हुआ यह अभियान सियाचिन की मुश्किल परिस्थितियों के चलते अपनी तरह का एकमेव अभियान था। यह सैन्य अभियान कामयाब रहा। भारतीय सेना को किसी भी तरह कि रुकावट का सामना नहीं करना पड़ा और वह सियाचिन के अधिकतर भागों पर पुनः वर्चस्व साबित करनें में कामयाब रही।[52]
श्रींलंकाई गृह युद्ध को खत्म करने और मानवीय सहायता प्रदान करने की वार्ता जब विफ़ल रही[53] तब भारतीय प्रशासन ने ऑपरेशन पुमलाई शुरू किया[53] जिसके चलते 4 जून 1987 को पांच एन-32 के द्वारा, जिन्हे पांच मिराज 2000 ने हवाई सुरक्षा प्रदान करने का कार्य किया, इन्सानी ज़रुरतों का सामान गिराया जिसे श्रींलंकाई सेना ने बिना विरोध होने दिया।[53][54]
संगठन
[संपादित करें]सुखोई-30 |
मिराज 2000 |
जैगुआर |
मिग-29 |
मिग-21 |
तेजस |
भारतीय वायुसेना का प्रमुख अधिकारी चीफ ऑफ एअर स्टाफ (Chief of Air Staff) कहलाता है और इसका पद चीफ एअर मार्शल (Air Marshal) का होता है। वायुसेना का मुख्यालय दिल्ली में स्थित है, जिसके द्वारा संपूर्ण संगठन पर नियंत्रण रखा जाता है। चीफ ऑफ एअर स्टाफ की सहायता के लिए एअर मार्शल तथा वाइस एअर मार्शल (Vice Air Marshal), या एअर कमोडोर (Air Commodor) पद के मुख्य चार स्टाफ अफसर (staff officers) होते हैं। ये ही वायुसेना की प्रमुख शाखाओं पर नियंत्रण रखते हैं।
वायुसेना का मुख्यालय निम्नलिखित चार मुख्य शाखाओं में विभक्त है :
(१) एअर स्टाफ (Air Staff) शाखा,
(२) प्रशासनिक शाखा,
(३) अनुरक्षण (Maintenance) शाखा तथा
(४) कार्यनीति एवं योजना (Policy and Plans) शाखा।
एअर स्टाफ शाखा
[संपादित करें]इस शाखा के अंतर्गत निम्नलिखित निदेशालय हैं : सिगनल, प्रशिक्षण (Training), प्रासूचना (Intelligence), मौसम विज्ञान और सहायक एवं रिजर्व (Auxiliary and Reserve)।
प्रशासनिक शाखा
[संपादित करें]इस शाखा में निम्नलिखित निदेशालय हैं : संगठन, (Organization), कार्मिक (Personnel), चिकित्सा व्यवस्था लेखा, कार्मिक सेवा, वायुसेना निर्माण (Airforce, Works), मुख्य अभियंता, वायुसेना खेलकूद, नियंत्रक बोर्ड तथा जज-एडवोकेट। इनमें चिकित्सा व्यवस्था और लेख विभाग विशेष महत्व के हैं।
कमान तथा फौजी काररवाई (Command and Operations)
[संपादित करें]वायुसेना की कुछ यूनिटों के अतिरिक्त अन्य सभी यूनिटें इन केंद्र के अंतर्गत आती हैं। देश के विभिन्न भागों में स्थित विंगों (wings) एवं केंद्रों (stations) के द्वारा कमान वायुसेना पर अपना नियंत्रण रखता है। प्रत्येक विंग एवं केंद्र के अंतर्गत अनेक उड़ान, प्रशिक्षण, तकनीकी एवं स्थैतिक यूनिटें रहती हैं। उपर्युक्त चार कमानें निम्नलिखित हैं :
(१) फौजी कार्यवाही कमान, (२) प्रशिक्षण कमान, (३) अनुरक्षण कमान तथा (४) ईस्टर्न एअर कमान (Eastern Air Command)। १९५२ ई. में संसद् द्वारा रिज़र्व एंड ऑक्ज़िलियरी एअर फोर्स ऐक्ट पारित किया गया। इस ऐक्ट का पालन करने के लिए निम्नलिखित सात स्क्वाड्रनों का गठन किया गया : ५१ नं. (दिल्ली), ५२ नं. (बंबई), ५३ नं (मद्रास), ५४ नं. (उ. प्र.), ५५ नं. (बंगाल), ५६ नं. (उड़ीसा) और ५७ नं. (पंजाब)।
वौसेना क केंद्र
भारतीय वायुसेना क पांच परिचालन केंद्र और दो कार्यात्मक केंद्र है | परिचालन केंद्र का काम अपने इलाके में फौजी गतविधियों क तहत कब्ज़ा बनाए रखना है | कार्यात्मक केंद्र का काम हमेशा फ़ौज को तैयार रखना है |
वायुसे क ठिकाने
एक परिचालन केंद्र में १६ ठिकाने होते है | एक स्टेशन में १ या २ बेडा होता है |
विंग्स
विंग्स केंद्र और ठिकाने के बीच माध्यम का काम करती है | विंग्स में २ या ३ बड़े होते है और घिरनीदार विमान (हेलीकाप्टर) | जंग क समय में ये पूरी तरह जंगी ठिकाने में तब्दील हो सकता है | कुल मिला का ४७ विंग्स और १९ फबसूस भारतीय वायुसेना को बनाते है | विंग को एक ग्रुप कप्तान सम्हालता है |
बेडा और इकाई
बेडा जमीनी स्टार का गठन होता है | एक जंगी बेड़े में १८ लड़ाकू विमान होते है | एक जंगी बेड़े को विंग कमांडर सम्हालता है , कूच परिवहन और घिरनीदार विमान (हेलीकाप्टर) को ग्रुप कप्तान सम्हालता है |
फ्लाइट्स
फ्लाइट्स बेड़े का उप-विभाजन होती है | इश्मे दो अनुभाग होते है |
सेक्शंस (अनुभाग)
ये वायु सेना की सबसे छोटा हिस्सा है | इसे फ्लाइट लिएउतनान्त सम्हालता है |
वायुसेना के पद
[संपादित करें]वायुसेना के कमीशन प्राप्त अफसरों के निम्नलिखित पद है :
एअर चीफ मार्शल, एअर मार्शल, एअर वाइस मार्शल, एअर कमोडोर, ग्रुप कैप्टन, विंग कमांडर, स्क्वॉड्रन लीडर, फ्लाइट लेफ्टिनेंट, फ्लाइंग अफसर तथा पाइलट अफसर (वर्तमान में हटा दिया गया)।
उपर्युक्त पदों के अतिरिक्त गैर कमिशन अधिकारियों के पद निम्नलिखित हैं :
मास्टर वारंट अफसर, वारंट अफसर, जूनियर वॉरेंट ऑफिसर या फ्लाइट सारजेंट, सारजेंट, कार्पोरल, लीडिंग एअरक्राफ्ट मैन, एअरक्राफ्ट्स मैन क्लास १ तथा एअरक्राफ्ट्स मैन मैन क्लास २।
कन्धा | |||||||||||
आस्तीन | |||||||||||
रैंक | वायु सेना के मार्शल¹ | एयर चीफ़ मार्शल | एयर मार्शल | उप एयर मार्शल | एयर कमोडोर | ग्रुप कैप्टेन | विंग कमांडर | स्कवॉड्रन लीडर | फ़्लाइट लेफ्टिनेंट | फ्लाइंग अफ़सर | पाइलट अफ़सर2 |
|
वायुसेना में प्रशिक्षण सुविधा
[संपादित करें]एअर फोर्स फ्लाइंग कॉलेज, जोधपुर और पाइलट ट्रेनिंग स्कूल, इलाहाबाद, में विमान चालकों को उड़ान का प्रारंभिक प्रशिक्षण एक वर्ष तक दिया जाता है। हैदराबाद स्थित जेट ट्रेनिंग एंड ट्रांसपोर्ट ट्रेनिंग विंग्स में जेट एवं बहुइंजन (multiengined) वायुयानों पर एक वर्ष तक उच्च उड़ान एवं संपरिवर्तन (conversion) प्रशिक्षण दिया जाता है। जलाहल्लि (बंगलोर) स्थित एअर फोर्स टेक्निकल कॉलेज (Airforce Technical College) में इंजीनियरिंग तथा सिंगनल आदि के अधिकारी प्रशिक्षण देकर तैयार किए जाते हैं। जलाहल्लि स्थित स्कूल में उच्च सिगनल ट्रेड के वायुसैनिकों को प्रशिक्षित किया जाता है। पूर्णांग हवाई कर्मी (air crew) की उपाधि पाने से पूर्व छात्र नेविगेटर (pupil navigator) का प्रारंभिक प्रशिक्षण जोधपुर में और उच्च प्रशिक्षण हैदराबाद में प्राप्त करता है। कोयपुत्तूर स्थित एअर फोर्स ऐडमिनिस्ट्रटिव कॉलेज में अनेक स्थलीय कार्यों के लिए अधिकारियों का प्रशिक्षण होता है। बंगलोर के ऐविएशन मेडिसिन कालेज में मेडिकल अफसरों को प्रशिक्षित किया जाता है। तंबारम स्थित स्कूल में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टरों का प्रशिक्षण होता है। हैदराबाद में उच्चाधिकारियों को स्थल तथा हवाई युद्ध का एक साथ अध्ययन कराने के लिए एक स्कूल है। आगरा में छाताधारी सैनिकों (paratroopers) के प्रशिक्षण के लिए स्कूल है।
भारतीय वायुसेना निम्नलिखित विमानों का उपयोग करती है :
प्रकार | अंग्रेजी नाम | विमानों के नाम | संदर्भ |
---|---|---|---|
प्रशिक्षण विमान | Training Aircraft | टाइगर मॉथ (Tiger Moth), पर्सिवल प्रेंटिस (Percival Prentice), एच. टी-२ (H. T-2), हार्वार्ड स्पिटफायर (Harvard Spitfire), वैंपायर (Vampire) तथा डाकोटा (Dakotas) | |
लड़ाकू विमान | Fighter Aircraft | स्पिटफायर (Spitfire), टेंपीट (Tempeet), वैंपायर, तूफानी (Toophani), हंटर (Hunter) तथा नैट (Gnat) | |
परिवहन विमान | Transport Aircraft | डाकोटा, डीवान सी-119 (Devon C-119) बॉक्सकार (Boxcar), ऑटर्स (Otters), वाइकाउंट (Viscount), इलिशिन (Illyshin) तथा पैकेट (Paket) | |
बमवर्धक | Bombers | लिबरेटर (Liberator) तथा कैनबरा (Canberra | |
टोही विमान | Reconnaissance | स्पिटफायर, ऑस्टर (Auster) तथा हार्वार्ड (Harvard) | |
अतिरिक्त विमान | Additional Aircraft | हेलिकॉप्टर (Helicopter), ऑस्टर, तथा कानपुर-1 (Kanpur-1) |
विमान का उत्पादन (Aircraft Production)
[संपादित करें]भारत सरकार ने बंगलोर स्थित हिंदुस्तान एअरक्रैप्ट फैक्टरी (Hindustan Aircraft Factory) में विमानों का निर्माण आरंभ किया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मित्र राष्ट्रों की अत्यधिक व्यस्त वायुसेना के विमानों के ओवरहाल (overhaul) के लिए इस फैक्टरी की स्थापना हुई थी। कुछ ही वर्षों के बाद १९४० ई. में यह कारखाना गैरसरकारी लिमिटेड कंपनी में परिवर्तित हो गया था और इसका नाम हिंदुस्तान एअरक्राप्ट लिमिटेड (Hindustan Aircraft Ltd) पड़ा। १९४५ ई. यह कारखाना पूर्णत: सरकारी प्रबंध में आ गया। भारत के स्वतंत्र होने के बाद इस कारखाने में विमानों का निर्माण प्रारंभ हुआ। इसका नाम हिंदुस्तान ऐयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Ltd.) रखा गया। इस कारखाने में प्रथम भारतीय प्रशिक्षण विमान एच. टी-२ (H. T-2) भारतीय इंजीनियरों द्वारा बनाया गया। वैंपायर जेट लड़ाकू विमान तथा नैट विमान लाइसेंस के अंतर्गत यहाँ बनाए गए। गत दस वर्षों में पुष्पक एवं कृषक विमानों तथा मारुत नामक भारतीय पराध्वनिक (supersonic) विमान एच. एफ-२४ (H. F-24) का निर्माण इस कारखाने में हुआ है। लाइसेंस के अंतर्गत बने ब्रिस्टल आरफीयस (Bristoi Orpheus) तथा रोल्स रॉयस डार्ट (Rolls Royce Dart) इंजन और भारतीय अभिकल्प के जेट ऐरो (jet aero) इंजन इस कारखाने के अन्य उत्पादन है। इस कारखाने में भारतीय विमानों की मरम्मत तथा ओवरहाल के अतिरिक्त विदेशी ग्राहकों, जैसे साउदी अरब, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बर्मा के विमानों की मरम्मत एवं ओवरहाल होता है।
कानपुर के हवाई केंद्र (air base) पर भी भारत सरकार ने विमान निर्माण डिपो की स्थापना की। इस डिपो में ब्रिटेन की प्रसिद्ध फर्म हाकर सिडले ग्रुप (Hawker Siddeley Group) के सहयोग से आधुनिक परिवहन विमान ऐवरो-७४८ (AVRO 748) का निर्माण हुआ है। भारत सरकार ने कानपुर में विमान निर्माण का एक कारखाना स्थापित किया है। कुछ दिनों पूर्व हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड तथा कानपुरवाली फैक्ट्री एकीकृत होकर एक कंपनी में परिवर्तित हो गए हैं, जिसका नाम इंडिया एयरोनॉटिकल लिमिटेड (India Aeronautics Ltd.) रखा गया है।
इंडिया ऐरोनॉटिकल लिमिटेड की अन्य तीन नई इकाइयाँ नासिक, हैदराबाद तथा कोरापुट (Koraput) में स्थापित की गई हैं। इनमें मिग-२१ (MIG-21) नामक विमान के ढाँचे, इंजन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बन रहे हैं। विमान के ढाँचे नासिक में, इंजन कोरापुट में तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैदराबाद में बन रहे हैं।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Archived copy" [पुरालेखित प्रति]. मूल से 27 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 दिसंबर 2017.सीएस1 रखरखाव: Archived copy as title (link)
- ↑ World Air Forces 2023. Flight International. पृ॰ 20.
- ↑ en:International Institute for Strategic Studies [रणनीतिक अध्ययन के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थान]: The Military Balance 2014, p.245
- ↑ "The IAF Motto". Webmaster IAF – Air Headquarters. मूल से 10 एप्रिल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 एप्रिल 2009.
- ↑ "भारतीय वायुसेना के आदर्श वाक्य". भारतीय वायुसेना. मूल से 19 नवंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १८ नवम्बर २०१८.
- ↑ "A Mother in India: 8th October" [भारत में एक माँ: ८ अक्टूबर] (अंग्रेज़ी में). 22 अक्टूबर 2007. मूल से 6 दिसंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 नवम्बर 2018.
- ↑ "Air Marshal Anil Khosla PVSM AVSM VM took over as Vice Chief of Air Staff". pib.nic.in. मूल से 2 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अक्टूबर 2018.
- ↑ "Indian Air Force Day [Hindi]: गीता में छुपा है भारतीय वायुसेना का आदर्श वाक्य". SA News Channel (अंग्रेज़ी में). 2021-10-08. अभिगमन तिथि 2021-10-08.
- ↑ "शक्ति - आधिकारिक वेबसाइट". मूल से 21 मार्च 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अप्रैल 2008.
- ↑ "Indian Air Force Museum - Badges and Heraldry". मूल से 28 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 दिसंबर 2011.
- ↑ "जानें भारतीय वायुसेना के बारे में". Jagranjosh.com. 2019-02-28. अभिगमन तिथि 2021-10-08.
- ↑ न्यूज, एबीपी (2021-10-08). "Air Force Day 2021: जानिए 8 अक्टूबर को ही क्यों मनाया जाता है भारतीय वायुसेना दिवस". www.abplive.com. अभिगमन तिथि 2021-10-08.
- ↑ "HC Deb 3 अप्रैल 2011 vol 276 cc1473-501". Hansard. Parliament of the United Kingdom. मूल से 3 मई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 Apr. 2009.
|accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "History of the IAF". Official Website. Webmaster IAF – Air Headquarters. मूल से 9 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 Apr 2009.
- ↑ अ आ इ ई "INDIAN AIR FORCE MUSEUM - Heraldry (Badges and Insignia)". Bharat Rakshak. मूल से 28 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 दिसंबर 2011.
- ↑ अ आ इ Goyal, S.N. (अक्टूबर 1993). "1939–45 Second World War: Air Force Reminiscences". Sainik Samachar. Indian Air Force. मूल से 6 अक्तूबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 Apr. 2009.
|accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ D’Souza, Bart (अक्टूबर 2010). "Indian Air Force : Down the Memory Lane". Sainik Samachar. मूल से 6 मई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 Apr. 2010.
|accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ Engineer, Aspy M. (फ़रवरी 1993). "Air Marshal Aspy Engineer's Recollections". Bharat Rakshak. मूल से 30 दिसंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 Apr. 2010.
|accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ अ आ Lyon 2008, पृष्ठ 79
- ↑ Massey 2005, पृष्ठ 97
- ↑ Barua 2005, पृष्ठ 192
- ↑ सन्दर्भ त्रुटि:
<ref>
का गलत प्रयोग;airpower3
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है। - ↑ "The Congolese Rescue Operation". US Army History. मूल से 7 मई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 Apr. 2009.
|accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ अ आ Singh, Charanjit (2005). "The Congo Diary" (PDF). Air Power Journal. Center for Air Power Studies. 2 (3): 27–45. मूल (PDF) से 10 जुलाई 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 Apr 2009. नामालूम प्राचल
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद) - ↑ "Air Force History". Global Security. मूल से 5 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 Jul 2010.
- ↑ अ आ इ ई उ ऊ Jagan Pillarisetti. "THE LIBERATION OF GOA: 1961". Bharat Rakshak. मूल से 7 जनवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 दिसंबर 2011.
- ↑ अ आ Pradhan 2010, पृष्ठ 185
- ↑ Pradhan & Chavan 2007, पृष्ठ xiv
- ↑ Thomas 1996, पृष्ठ 11
- ↑ Sisodia & Bhaskar 2005, पृष्ठ 82
- ↑ Gupta 1997, पृष्ठ 43
- ↑ Dixit 2002, पृष्ठ 149
- ↑ Barua 2005, पृष्ठ 193
- ↑ Khan 2004, पृष्ठ 185
- ↑ Praval 1975, पृष्ठ 6
- ↑ Jones 1985, पृष्ठ 78
- ↑ Boyne & Fopp 2002, पृष्ठ 619
- ↑ "The Folland Gnat / HAL Ajeet". 1 दिसम्बर 2009. मूल से 12 जून 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जुलाई 2010.
- ↑ "A Whale of a Fighter: the Su-7 in IAF Service". Bharat Rakshak. मूल से 30 दिसंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 Jul 2010.
- ↑ Sisson & Rose 1991, पृष्ठ 229
- ↑ Ajithkumar 2006, पृष्ठ 141
- ↑ Newsweek: 34. 20 दिसम्बर 1971. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0028-9604.
Trying to catch the Indian Air Force napping, Yahya Khan, launched a Pakistani version of Israel's 1967 air blitz in hopes that one quick blow would cripple India's far superior air power. But India was alert and Yahya's strategy of scattering his thin air force over a dozen air fields failed!
गायब अथवा खाली|title=
(मदद) - ↑ Kainikara 2011, पृष्ठ 195
- ↑ अ आ इ "The War Of December 1971". Indian Air Force. मूल से 10 अप्रैल 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 मई 2009.
- ↑ Shorey, Anil (2005). "Battle of Longewala: Best of Braves". Sainik Samachar. 52 (4). मूल से 18 मार्च 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 Apr. 2009. नामालूम प्राचल
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद);|accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ Mohan, Jagan. "When lightning strikes". Bharat Rakshak. मूल से 28 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 Apr. 2009.
|accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "Bangladesh: Out of War, a Nation Is Born". TIME. Time Inc. 20 दिसम्बर 1971. मूल से 23 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 Apr. 2011.
|accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ Wilson 2002, पृष्ठ 58
- ↑ Choudhury, Ishfaq Ilahi. "Air aspect of the Liberation War 1971". Daily Star. मूल से 22 मार्च 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 Apr. 2009.
|accessdate=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ Ives 2004, पृष्ठ 186
- ↑ Talbott 2006, पृष्ठ 164
- ↑ Karthikeyan et al. 2011, पृष्ठ 109
- ↑ अ आ इ "Indian Air Force in Sri Lanka.Operation Poomalai - The Jaffna Food drop". Bharat-rakshak.com. मूल से 9 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जनवरी 2012.
- ↑ Weisman, Steven R. (5 जून 1987). "India Airlifts Aid to Tamil Rebels". दि न्यू यॉर्क टाइम्स. मूल से 19 फ़रवरी 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 जनवरी 2012.