१९७१ का भारत-पाक युद्ध

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
(भारत पाक युद्ध १९७१ से अनुप्रेषित)
भारत-पाक युद्ध १९७१
बांग्लादेश मुक्ति युद्ध और भारत पाकिस्तान युद्ध का भाग
आत्मसमर्पण पर हस्ताक्षर करते पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी साथ में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा, 16 दिसम्बर, 1971।

लेफ़्टिनेंट जनरल ए ए के नियाज़ी, पाकिस्तान पूर्वी कमान के कमाण्डर, ढाका में १६ दिसम्बर, १९७१ को भारतीय लेफ़्ट.जन. जगजीत सिंह अरोड़ा की उपस्थिति में समर्पण अभिलेख पर हस्ताक्षर करते हुए। एकदम पीछे बाएं से दाएं:- भारतीय नौसेना वाइस-एडमिरल नीलकान्त कृष्णन, भारतीय वायुसेना एयर मार्शल हरिचन्द दीवान, भारतीय थल सेना लेफ़्टि जन सगत सिंह, मेज जन.जे एफ़ आर जैकब
तिथि ३-१६ दिसम्बर १९७१ (१३ दिन)
स्थान पूर्वी फ़्रण्ट:

पश्चिमी फ़्रण्ट:

परिणाम निर्णायक भारतीय विजय।[1][2][3]
पूर्वी फ़्रण्ट:
पूर्वी पाकिस्तानी सैन्य कमान का आत्मसमर्पण.
पश्चिमी फ्रंट:
एकतरफ़ा युद्धविराम[4]
क्षेत्रीय
बदलाव
पूर्वी फ़्रण्ट:

पश्चिमी मोर्चा:

  • भारतीय सेनाओं ने पश्चिमी ओर लगभग 5,795 वर्ग मील (15,010 कि॰मी2) भूमि अधिग्रहीत कर ली थी, किन्तु सारी भूमि शिमला समझौते के अन्तर्गत्त अच्छे पड़ोसी के नाते लौटा दी गयी।[5][6][7]
योद्धा
 भारत

बांग्लादेश प्रावधानिक बांग्लादेश

 पाकिस्तान

पूर्वी पाकिस्तान

सेनानायक
भारत वी वी गिरी
(भारत के राष्ट्रपति)
भारत इन्दिरा गांधी
(भारत के प्रधानमंत्री)
भारत स्वरण सिंह
(भारतीय विदेश मंत्री)
भारत जगजीवन राम
(भारतीय रक्षा मंत्री)
जन. सैम मानेकशॉ
(भारतीय थलसेना प्रमुख)
लेफ़्टि.जन. जगजीत सिंह अरोड़ा
(GOC-in-C, पूर्वी कमान)
लेफ़्टि.जन. जी जी बेवूर
(GOC-in-C, दक्षिणी कमान)
लेफ़्टि.जन. के पी कॅन्डेथ
(GOC-in-C, पश्चिमी कमान)
लेफ़्टि.जन. मनोहर लाल छिब्बर
(GOC-in-C, उत्तरी कमान)
लेफ़्टि.जन. प्रेमेन्द्र सिंह भगत
(GOC-in-C, मध्य कमान)
लेफ़्टि.जन. सगत सिंह
(GOC-in-C, चतुर्थ कोर)
लेफ़्टि.जन. टी एन रैना
(GOC-in-C, द्वितीय कोर)
लेफ़्टि.जन. सरताज सिंह
(GOC-in-C, १५वीं कोर)
लेफ़्टि.जन. करण सिंह
(GOC-in-C, प्रथम कोर)
लेफ़्टि.जन. देपिन्दर सिंह
(GOC-in-C, द्वादश कोर)
मेज.जन. फ़र्ज आर जैकब
(COS, पूर्वी कमान)
मेज.जन.ओम मल्होत्रा
(COS, चतुर्थ कोर)
एड्मि. एस एम नन्दा
(नौसेना अध्यक्ष)
ए.सी.एम प्रताप सी.लाल
(वायुसेनाध्यक्ष)
रामेश्वर काओ
(निदेशक रॉ)
बांग्लादेश ताजुद्दीन अहमद
(प्र.मंत्री प्रावधानिक सरकार)
बांग्लादेश कर्नल एम ए जी उस्मानी
(कमाण्डर, मुक्ति बाहिनी)
बांग्लादेश मेजर क़ाज़ी शफ़ीउल्लाह
(कमाण्डर, बांग्ला.सेनाएँ)
बांग्लादेश मेजर ज़ियाउर रहमान
(कमाण्डर, ज़ेड फ़ोर्स)
बांग्लादेश मेजर खालिद मुशर्रफ़
(कमाण्डर, क्रॅक पल्टन)
पाकिस्तान याह्या खान
(पाकिस्तान के राष्ट्रपति)
पाकिस्तान नूरुल अमीन
(पाकिस्तान के प्रधानमंत्री)
जन. ए एच खान
( थल सेनाध्यक्ष, सेना GHQ)
लेफ़्टि.जन. ए ए कि नियाज़ी Surrendered
(कमाण्डर, पूर्वी कमान)
लेफ़्टि.जन. गुल हसन खान
(चीफ़-जनरल स्टाफ़)
लेफ़्टि.जन. अब्दुल अली मलिक
(कमाण्डर, प्रथम कोर)
लेफ़्टि.जन. टिक्का खान
(कमाण्डर, द्वितीय कोर)
लेफ़्टि.जन. शेर खाँ
(कमाण्डर, चतुर्थ कोर)
मेज.जन. इफ़्तिखार जन्जुआ
(GOC, २३वीं पैदल डिवी.)
मेज.जन. खादिम हुसैन
(GOC, १४वीं पैदल डिवी.)
मेज.जन. राव फ़रमान  Surrendered
(सैन्य सलाह, ई.पाक राई. ई.पाक.पोलीस, ईपीसीजी)
वाइस एडमि. मुज़फ़्फ़र हसन
(कमा-इन-चीफ़, नौसेना)
वा.एड्मि. सै.मु.अहसान
(नौसेनाध्यक्ष, नौसेना NHQ)
रि.एड्मिरल मो.शरीफ़  Surrendered
(कमाण्डर, पूर्वी नौसेना कमान)
रि.एड्मिरल हसन अहमद
(कमाण्डर कराची कोस्ट)
रि.एड्मिरल लेज़्ली नॉर्मन
(कमाण्डर, पाक मैरीन्स)
एयर मार्शल अब्दुल रहीम खान
(पाक वायुसेनाध्यक्ष)
एयर वा.मा ज़ुल्फ़ीकार अली खान
(COS, वायु सेना मुख्यालय, ढाका)
ए.वा.मार्शल पी डी कॅलाघन  Surrendered
(कमा.पूर्वी वायु कमान)
अब्दुल मुतालिब मलिक  Surrendered
(पूर्वी पाक गवर्नर)
शक्ति/क्षमता
भारतीय सशस्त्र सेनाएँ: ५,००,०००
मुक्ति बाहिनी: १,७५,०००
कुल: ६,७५,०००
पाकिस्तानी सशस्त्र सेनाएँ: ३,६५,०००
मृत्यु एवं हानि
२,५००[8]–३,८४३ मृत।[9]

पाकिस्तानी दावे

भारतीय दावे

तटस्थ दावे

९,००० मृत[17]
२५,००० घायल[18]


९७,३६८ युद्धबन्दी
विनाशक[19]
माइनस्वीपर[19]
पनडुब्बी[20]
गश्त वाहन
७ गनबोट्स

  • पाकिस्तानी मुख्य बंदरगाह क्षतिग्रस्त/ ईंधन टैंक ध्वस्त [19][21]
  • पाकिस्तानी वायुक्षेत्र क्षतिग्रस्त एवं कुचला गया [22]

पाकिस्तानी दावे

भारतीय दावे

तटस्थ दावे

१९७१ भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को बड़ी हार का सामना करना पड़ा।[24] पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया और बांग्लादेश के रूप में एक नया देश बना। १६ दिसंबर को ही पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर किया था।

१९७१ का भारत-पाक युद्ध भारत एवं पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष था। इसका आरम्भ तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम के चलते ३ दिसंबर, १९७१ से दिनांक १६ दिसम्बर, १९७१ को हुआ था एवं ढाका समर्पण के साथ समापन हुआ था। युद्ध का आरम्भ पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायुसेना के ११ स्टेशनों पर रिक्तिपूर्व हवाई हमले से हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेशी स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन में कूद पड़ी।[25][26] मात्र १३ दिन चलने वाला यह युद्ध इतिहास में दर्ज लघुतम युद्धों में से एक रहा। [27][28]

युद्ध के दौरान भारतीय एवं पाकिस्तानी सेनाओं का एक ही साथ पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों फ्रंट पर सामना हुआ और ये तब तक चला जब तक कि पाकिस्तानी पूर्वी कमान ने समर्पण अभिलेख पर[29] १६ दिसम्बर, १९७१ में ढाका में हस्ताक्षर नहीं कर दिये, जिसके साथ ही पूर्वी पाकिस्तान को एक नया राष्ट्र बांग्लादेश घोषित किया गया। लगभग ~९०,०००[30] से ~९३,००० पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना द्वारा युद्ध बन्दी बनाया गया था। इनमें ७९,६७६ से ९१,००० तक पाकिस्तानी सशस्त्र सेना के वर्दीधारी सैनिक थे, जिनमें कुछ बंगाली सैनिक भी थे जो पाकिस्तान के वफ़ादार थे।[30][31][32] शेष १०,३२४ से १५,००० युद्धबन्दी वे नागरिक थे, जो या तो सैन्य सम्बन्धी थे या पाकिस्तान के सहयोगी (रज़ाकर) थे। [30][33][34][35] एक अनुमान के अनुसार इस युद्ध में लगभग ३०,००० से ३ लाख बांग्लादेशी नागरिक हताहत हुए थे।[36][37][38][39][40] इस संघर्ष के कारण, ८०,००० से लगभग १ लाख लोग पड़ोसी देश भारत में शरणार्थी रूप में घुस गये। [41]

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

पूर्वी पाकिस्तान में स्थापित प्रभावशाली बंगाली लोगों एवं पाकिस्तान के चार प्रान्तों में बसे बहु-जाति पाकिस्तानी लोगों के बीच राज्य करने के अधिकार को लेकर चल रहे मुक्ति संघर्ष ने भारत-पाकिस्तान युद्ध में चिंगारी का काम किया।:24 [42][19] पाकिस्तान (पश्चिमी) एवं पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के बीच १९४७ में संयुक्त राजशाही द्वारा भारत की स्वतंत्रता के फलस्वरूप पाकिस्तान के सृजन के समय से ही राजनैतिक तनाव चल रहा था जो समय के साथ बढ़ता ही जा रहा था। इसको हवा देने वाले मुख्य कारकों में १९५० का प्रसिद्ध भाषा आन्दोलन, १९६४ के पूर्व में बड़े दंगे और अन्ततः १९६९ में भारी विरोध प्रदर्शन रहे। इनके परिणामस्वरूप पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान कोअपने पद से त्याग-पत्र देकर सेना प्रमुख जनरल याह्या ख़ान को पाकिस्तान की केन्द्रीय सरकार संभालने का न्यौता देना पड़ा।[43][44] पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान की भौगोलिक दूरी भी अत्यधिक थी, लगभग ~1,000 मील (1,600 कि॰मी॰), जो बंगाली संस्कृति एवं पाकिस्तानी संस्कृति के राष्ट्रीय एकीकरण के प्रत्येक प्रयास में बाधा बनती थी।:13–14 [45]:xxi [46]

बंगाली प्रभाव को दबाने एवं उन्हें इस्लामाबाद की केन्द्रीय सरकार बनाने में हिस्सेदारी देने के अधिकार से रोकने के लिये एक विवादित वन युनिट कार्यक्रम चलाया गया जिसके अन्तर्गत पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान की स्थापना की गई, किन्तु इस प्रयास का स्थानीय पश्चिमी लोगों द्वारा घोर विरोध किया गया, एवं इसके कारण सरकार के दोनों धड़ों को साथ-साथ चलाना असंभव होता गया।:xxx [44] १९६९ में, तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान ने प्रथम आम चुनावों की घोषणा की १९७० में पश्चिमी पाकिस्तान की स्थिति का स्थगन कर दिया जिससे की उसे अपनी १९४७ में पाकिस्तान की स्थापना के समय बनायी गई चार प्रान्तों वाली मूल विषम स्थिति में बहाल किया जा सके।[47] इसके साथ-साथ ही वहां बंगालियों एवं बहु-जातीय पाकिस्तानियों के बीच धार्मिक एवं जातीय विवाद भी उठने लगे, क्योंकि बंगाली लोग उन प्रभावशाली पश्चिम पाकिस्तानियों से बहुत भिन्न थे।:24–25 [42]

१९७० में हुए आम चुनावों में पूर्वी-पाकिस्तान की आवामी लीग को पूर्वी पाकिस्तान विधान सभा की १६९ में से १६७ सीटें मिली जिसके परिणामस्वरूप उसे ३१३ सीटों वाली नेशनल असेम्बली में लगभग पूर्ण बहुमत मिल गया, जबकि पश्चिम पाकिस्तान का वोट-बैंक कंज़र्वेटिव पाकिस्तान मुस्लिम लीग एवं समाजवादी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी, और तत्कालीन--साम्यवादी आवामी नेशनल पार्टी में बंट गया।:686–687 [48] आवामी लीग नेता शेख मुजीबुर्रहमान ने अपनी राजनीतिक स्थिति पर जोर देते हुए इस संवैधानिक संकट को एक छः सूत्री कार्यक्रम के द्वारा समाधान दिया साथ ही राज्य करने के बंगालियों के अधिकार का पुरजोर समर्थन किया।:xxx [44] आवामी लीग की चुनावी जीत के चलते बहुत से पाकिस्तानियों को यह भय लगा कि कहीं इस तरह बंगालीे संविधान को भी उन छः-सूत्री कार्यक्रम की ओर घुमा न लें।:xlv [49]

इस संकट से उबरने हेतु सिफ़ारिशों एवं समाधान के लिये अहसान-याकूब मिशन बनायी गई एवं उसकी सिफ़ारिशों एवं रिपोर्ट को आवामी लीग, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी तथा पाकिस्तान मुस्लिम लीग और साथ ही राष्ट्रपति याहया खान से समस्थन मिला।:109–110 [50]

मानचित्र में पाकिस्तान एवं पूर्वी पाकिस्तान। इन दोनों के बीच की दूरी भारतीय क्षेत्र में 1,000 मील (1,600 कि॰मी॰) है।

हालांकि इस मिशन को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के कई घटकों का समर्थन नहीं मिल पाया था, और परिणामस्वरूप इसे वीटो कर दिया गया।:110 [50] पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष, ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के वीटो को समर्थन देने और पाकिस्तान की प्रीमियरशिप को शेख मुजीबुर्रहमान को देने से मना कर देने पर आवामी लीग ने राष्ट्रव्यापी सामान्य हड़ताल कि घोषणा कर दी।:110 [50] राष्ट्रपति याह्या खान ने नेशनल असेम्बली के संयोजन को स्थगित कर दिया जिससे आवामी लीग एवं उसके पूर्वी पाकिस्तान के ढ़ेरों समर्थकों का मोहभंग हो गया।[51] इसकी प्रतिक्रियास्वरूप शेख मुजीबुर्रहमान ने सामान्य हड़ताल की घोषणा की जिससे सरकार बंदी के हालात हो गये साथ ही उधर पूर्व में असंतुष्टों के समूह ने बिहारी जातीय समूहों पर अपनी अहिंसक प्रतिक्रिया करनी आरम्भ कर दी, जिन समूहों ने पाकिस्तान का समर्थन किया था। [52] मार्च १९७१ के आरम्भ में अकेले चिट्टागॉन्ग में ही लगभग ३०० बिहारियों को बंगालियों की हिंसक भीड़ ने काट डाला।[53] पाकिस्तान सरकार ने इस "बिहारी हत्याकाण्ड'" के बहाने पूर्वी पाकिस्तान में कुछ दिन बाद २५ मार्च को ऑपरेशन सर्चलाइट के तहत सेना तैनात कर दी।[54] राष्ट्रपति याह्या खान ने तब पूर्वी पाक-सेनाध्यक्ष लेफ़्टि.जन.साहबज़ादा याकूब खां से त्यागपत्र मांगने के बाद पूर्व के असन्तुष्टों को दबाने के लिये और सेना बढ़ा दी जिसमें पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों की बहुतायत थी। [55][56]

वहां असन्तुष्टों की भीड़ की भीड़ गिरफ़्तार की जाने लगीं और कई दिनों की हड़ताल एवं असहयोग आन्दोलन के बाद, टिक्का खान के नेतृत्त्व में पाकिस्तानी सेना ने २५ मार्च १९७१ की रात्रि में ढाका पर अधिकार कर लिया। आवामी लीग को सरकार ने अवैध घोषित कर दिया। इसके बहुत से सदस्यों तथा सहानुभूतिज्ञों को पूर्वी भारत के भागों में शरण लेनी पड़ी। मुजीब को २५/२६ मार्च १९७१ की अर्धरात्रि के ०१:३० प्रातः बजे (२९ मार्च १९७१ की रेडियो पाकिस्तान के समाचार के अनुसार) गिरफ़्तार करके पाकिस्तान लेजाया गया। इसके बाद ऑपरेशन सर्चलाइट कार्रवाई की गयी और उसके तुरन्त बाद ही ऑपरेशन बरीसल की कार्रवाई की गई जिसके अन्तर्गत्त पूर्व के बौद्धिक अभिजात वर्ग को निपटाने की मंशा थी।[57]

२६ मार्च १९७१ को पाकिस्तानी सेना के मेजर ज़ियाउर रहमान ने शेख मुजीबुर्रहमान की ओर से बांग्लादेश की स्वतंत्रता का एलान कर दिया।[58][59][60]

उसी वर्ष अप्रैल में विस्थापित आवामी लीग के नेताओं ने मेहरपुर के बैद्यनाथताला में बांग्लादेश की प्रावधानिक सरकार का गठन किया। तब ईस्ट पाकिस्तान राईफ़ल्स, थल सेना, वायु एवं नौसेना तथा पाकिस्तान मैरीन्स के बंगाली अधिकारियों ने भी अपने दलबदल कर लिये साथ ही भारत के विभिन्न भागों में डर के मारे शरण ले ली। बांग्लादेश की सेना जिसे मुक्ति बाहिनी कहते हैं एवं जिसमें नियमितो बाहिनी तथा गॉनो बाहिनी दो प्रमुख अंग थे, की स्थापना सेवानिवृत्त कर्नल मुहम्मद अताउल गनी उस्मानी [61] के नेतृत्त्व में की गई।

बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष में भारत की भूमिका[संपादित करें]

एड्मिरल सैयद मुहम्मद एहसान और लेफ़्टि.जनरल साहबज़ादा याकूब खान के त्यागपत्र दे देने के बाद, मीडिया के समाचारों में पाकिस्तानी सेना के बंगाली नागरिकों के व्यापक नरसंहार को,[62], जिसमें विशेष तौर पर निशाना बने अल्पसंख्य्क हिन्दू समुदाय थे[63][64][27]; को बड़ा स्थान मिला। इसके परिणामस्वरूप इस समुदाय को पड़ोसी देश पूर्वी भारत में शरण लेने हेतु भागना पड़ा।[63][62][65] इस शरणार्थियों के लिये पूर्वी भारत की सीमाओं को भारत सरकार द्वारा खोल दिया गया। इन्हें शरण देने हेतु निकटवर्ती भारतीय राज्य सरकारों, जैसे पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, असम, मेघालय एवं त्रिपुरा सरकारों द्वारा बड़े स्तर पर सीमावर्त्ती क्षेत्रों में शरणार्थी कैम्प भी लगाये गए। :23–24 [66] इस तेजी से भागते पूर्वी पाकिस्तानी शरणार्थी जनसमूह द्वारा भारत में घुस जाने के कारण भारत की पहले ही बोझिल अर्थ०व्यवस्था पर असहनीय भार पड़ा।[64]

युद्ध के बाद, पूर्व के पाकिस्तानी सेना जनरलों में एक दूसरे पर पिछले दिनों किये गए प्रतिबद्ध अत्याचारों के लिये एक दूसरे पर दोषारोपण का काम शुरु हो गया, किन्तु अधिकतर दोष लेफ़्टि.जनरल टिक्का खान के सिर मढ़े गए, जिसे पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर होने के कारण अधिकतम उत्तरदायित्व उठाना था। उसे बंगाल का कसाई, आदि संज्ञाएं दी गयीं, क्योंकि अधिकतर अत्याचार के कार्य उसके नेतृत्त्व में हुए थे। [25] अपने समकालीन साहबज़ादा याकूब खान, जो अपेक्षाकृत शांतिप्रिय था एवं बल प्रयोग में कम विश्वास रखता था, उससे भिन्न टिक्का खान को विवादों के निपटारे हेतु बल प्रयोग करने को आतुर कहा जाता था।:100 [67][68][69][70]

युद्ध जांच आयोग की सुनवाईयों में अपने अपराध-स्वीकारोक्ति में, लेफ़्टि.जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने उसके कार्यकलापों पर टिप्पणी करते हुए लिखा: "२५/२६ मार्च १९७१ के बीच की रात को जन.टिक्का खान ने आक्रमण किया। तब वह शांतिपूर्ण रात्रि एक विलाप, चित्कार और आगज़नी भरी रात में बदल गयी। जन.टिक्का ने अपनी ओर से किसी हमले की तरह कोई कसर नहीं छोड़ी थी, जैसे वे किसी शत्रु पर हमला कर रहे हों, न कि अपने ही दिशाभ्रमित एवं गुमराह लोगों पर। यह सैन्य कार्रवाई पूर्ण क्रूरता एवं नृशंसता भरी थी, जो निर्दयता में चंगेज़ खान एवं हलाकू खान द्वारा बुखारा और बग़दाद में किये गए भयंकर नरसंहार से कहीं अधिक थे...जनरल टिक्का ने नागरिकों की हत्या करवायी और तप्त भूमि नीति अपनायी। अपनी टुकड़ियों के लिये उनके आदेश थे: मुझे भूमि चाहिये न कि आदमी..."।:295 [71] मेजर जनरल राव फ़रमान अली ने अपनी दैनिक डायरी में लिखा है: "पूर्वी पाकिस्तान की हरित भूमि को रक्त कर देंगे। इसे बंगाली रक्त से लाल कर दिया।"[72] हालाम्कि राव फ़रमान ने इस टिप्पणी का जोरदार विरोध करते हुए १९७४ की युद्ध जांच समिति के आगे स्वीकारोक्ति में सारा उत्तरदायित्त्व टिक्का खान पर डाल दिया। [73]

भारत सरकार द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से बारम्बार अपील की गयी, किन्तु भारतीय विदेश मन्त्री स्वरण सिंह के विभिन्न देशों के विदेश मंत्रियों से भेंट करने के बावजूद भी कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं प्राप्त हुई।[74] तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री इन्दिरा गाँधी ने २७ मार्च १९७१ को पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति संघर्ष के लिये अपनी सरकार के पूर्ण समर्थन देते हुए कहा कि लाखों शरणार्थियों को भारत में शरण देने से कहीं बेहतर है कि पाकिस्तान के विरुद्ध युद्ध कर इस संघर्ष को विराम दिया जाए।ल[65] २८ अप्रैल १९७१ को इन्दिरा गांधी मंत्रिमण्डल ने भारतीय तत्कालीन सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ को पूर्वी पाकिस्तान को कूच करने का आदेश दिया।[75][76][77][78] पूर्वी पाकिस्तानी सेना से विलग हुए अधिकारियों एवं भारतीय रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के घटकों द्वारा तुरन्त ही भारतीय शरणार्थी शिविरों से मुक्तिबाहिनी के गुरिल्लाओं हेतु पाकिस्तान के विरुद्ध प्रशिक्षण देने के लिये एवं भर्ती का काम आरम्भ कर दिया गया।[79] १९७१ में, पूर्व में भारत समर्थित बांग्लादेशी राष्ट्रवाद की सशक्त लहर फैल गयी थी। इसके बाद ही स्थिति अहिन्सात्मक होती गयी और व्यवस्थित रूप से पूर्व में रह रहे बहु-जातीय पाकिस्तानियों की लक्ष्य बना कर हत्याएं करनी आरम्भ हो गयीं।:164 [80] पाकिस्तान के राष्ट्रभक्त बंगाली राजनीतिज्ञों की वाहन में बम लगाकर हत्याएं तथा सरकारी सचिवालयों में उच्च पदासीनों को लक्ष्य बनाने व हत्या करने के कार्य तेजी से दिखाई देने लगे थे।:164 [80] फीनिश आतंकवाद रिपोर्टर जुस्सी हान्हीमाकी के अनुसार पूर्व का बंगाली उग्रवाद कुछ-कुछ "एक भुला दिये गए आतंकवाद के इतिहास" की भांति था।:164 [80] हमुदूर रहमान आयोग ने बंगाली उग्रवाद के दावों का समर्थन करते हुए लिखा कि बहु-जातीय पाकिस्तानियों से हुए दुर्व्यहवार ने पाकिस्तानी सैनिकों को अहिन्सा की ओर उक्साया ज्जिससे कि वे अपने लोगों का बदला लेकर सरकार के आदेशों का पालन करने में सहायक हो सकें।[81]

पाकिस्तानी मीडिया का मनोभाव भी तेजी से बदलते हुए युद्ध-प्रिय एवं पूर्व पाकिस्तान तथा भारत के विरुद्ध सैन्यवादी होता जा रहा था। हालांकि कुछ पाकिस्तानी मीडिया विद्वानों की भाषा इन पूर्व की गतिविधियों की रिओपिर्ट देते हुए, मिली-जुली भी दिखाई देती थी।[82][83] सितम्बर १९७१ के अंत तक संभवतः पाकिस्तान सरकार के अंदरूनी घटकों के समर्थन से एक संगठित प्रचार अभियान चालू हो चुका था, जिसके परिणामस्वरूप क्रश इण्डिया आदि सन्देश वाले स्टीकरों को वाहनों के पीछे लगाया जाने लगा। ये अभियान रावलपिण्डी, इस्लामाबाद एवं लाहौर से आरम्भ होते हुए शीघ्र ही पूरे पश्चिमी पाकिस्तान में फ़ैलता चला गया।[84] अक्र्तूबर माह तक अन्य स्टीकरों में हैंग द ट्रेटर (देशद्रोही को फ़ांसी दो) भी दिखाई देने लगा जो शेख मुजीबुर्रहमान के सन्दर्भ में था।[85] दिसम्बर के अंत तक कुछ रूढ़िवादी प्रिंट मीडिया ने "जिहाद" संबंधी पाठ्य सामग्री को छापना भि आरम्भ कर दिया जिससे सेना में भर्ती प्रक्रिया को बढ़ावा मिले।[84]

भारत की पाकिस्तान के साथ आधिकारिक भिड़न्त[संपादित करें]

उद्देश्य[संपादित करें]

युद्ध के पूर्वी क्षेत्र में संचालन के दौरान सैन्य इकाइयों और सेना के आंदोलन का चित्रण।

अप्रैल १९७१ के अंत आते तक भारतीय प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी ने भारतीय सेनाध्यक्ष सैम मानेकशॉ से भारत के पाकिस्तान से युद्ध करने की तैयारी के बारे में चर्चा कर ली थी।[86][87] सैम मानेकशॉ के निजी अभिलेखों के अनुसार उन्होंने अभी इस युद्ध के लिये दो कारणॊं से असमर्थता जतायी थी: एक तो पूर्वी पाकिस्तान क्षेत्र में मॉनसून के आने का समय था, दूसरे सेना के टैंकों का पुनरोद्धार कार्य प्रगति पर था।[88] उन्होंने इस असमर्थता के कारण अपना त्यागपत्र भी प्रस्तुत किया, जिसे गांधी ने अस्वीकार कर दिया।[88] हां उन्होंने गांधी से ऐसे युद्ध में जीत का आश्वासन दिया कि यदि उन्हें आक्रमण उनके तरीके व शर्तों पर करने दिया जाए व एक तिथि सुनिश्चित की जाये,; जिसे गांधी ने मान लिया।[89][90] असल में इन्दिरा गांधी जल्दबाजी में की गई सैन्य कार्यवाही के दिष्परिणाम से अवगत थीं, किन्तु वे अपनी सेना के विचार भी जानना चाहती थीं, जिससे वे अपने मंत्रिमण्डल के कई तीखे सहकर्मियों के उत्तर दे सकें, तथा जन समुदाय को भी शांत कर सकें जो भारत के उस समय के संयम रखने के निर्णय के समर्थन के लिए अति महत्त्वपूर्ण थे।[78]

नवम्बर १९७१ तक की परिस्थितियों को देखते हुए युद्ध अपरिहार्य सा प्रतीत हो रहा था, जिसके बारे में सोवियत संघ ने पाकिस्तान को चेतावनी भी दी थी। इस चेतावनी को उस समय पाकिस्तान की एकता और अखण्डता के लिये आत्मघाती मार्ग (suicidal course for Pakistan's unity):part-3 [91] कहा गया था। नवंबर १९७१ के माह भर पाकिस्तानी रूढिवादी व अपरिवर्तनवादी राजनीतिज्ञों द्वारा उकसाये हुए हजारों लोगों ने लाहौर और अन्य पाकिस्तानी शहरों में क्रश इण्डिया (भारत को कुचल दो) मार्च निकालीं।[92][93] इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप भारत ने अपनी पश्चिमी सीमाओं पर वृहत स्तर पर भारतीय सेना के जमावड़े बनाने आरम्भ कर दिये, किन्तु उन्होंने दिसम्बर तक शांतिपूर्ण प्रतीक्षा की, जिससे की मॉनसून के वर्षाकाल उपरान्त की भूमि शुष्क होकर अभियान हेतु सहायक जाये तथा हिमालय के दर्रों में हिमपात से आवाजाही अवरोधित हो जाये तथा चीन को बीच में घुसने को मार्ग ही न सुलभ हो।:174–175 [94] २३ नवम्बर को पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्या खान ने पूरे पाकिस्तान में आपातकाल कि घोषणा कर दी तथा अपने लोगों को युद्ध हेतु तैयार रहने का आह्वान किया।[95]

३ दिसम्बर की शाम लगभग ०५:४० बजे,[96] पाकिस्तान वायुसेना (पीएएफ़) ने भारत-पाक सीमा से 300 मील (480 कि॰मी॰) दूर बसे आगरा सहित उत्तर-पश्चिमी भारत के ११ वायुसेना बेसेज़ पर अप्रत्याशित रिक्ति-पूर्व हमले कर दिये।:82–83 [97] इस हमले के समय विश्व-प्रसिद्ध ताजमहल को घास-फूस व पत्तियों, बेलों व लताओं से ढंक कर गन्दे कपड़ों से घेर दिया गया था, क्योंकि उसका श्वेत संगमर्मर रात्रि की चांदनी में श्वेत मार्गदर्शक कि भांति चमकता था।[98]

इन रिक्ति-पूर्व हमलों, जिन्हें ऑपरेशन चंगेज़ खान भी कहा गया था, की प्रेरणा इज़्रायल के अरब-इज़्रायली छः दिवसीय युद्ध में आपरेशन फ़ोकस की विजय से ली गई थी, किन्तु १९६७ के उस युद्ध में अरब वायुसेना बेसेज़ पर बड़ी संख्या में इज़्रायली लड़ाकू वायुयान भेजे गये थे, जबकि पाकिस्तान ने लगभग ५० से भी कम वायुयानों को भेजा था।:82 [97][99]

उसी शाम, राष्ट्र के नाम एक सन्देश में प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी ने कहा कि ये हवाई हमले पाकिस्तान की ओर से भारत पर युद्ध कि घोषणा हैं [100][101] और उसी रात को भारतीय वायुसेना ने पहली पहल जवाबी हवाई कार्रवाई भी कर दी। [4] अगले दिन ही इन जवाबी हमलों को वृहत स्तर के हवाई आक्रमण में बदल दिया गया।[4]

इसके साथ ही १९७१ के भारत-पाक युद्ध का आधिकारिक आरम्भ हुआ एवं इन्दिरा गांधी ने सेना कि टुकड़ियों को सीमा की ओर कूच करने के आदेश दिये तथा पूरे स्तर पर पाकिस्तान पर आक्रमण आरम्भ कर दिया।:333 [102] इस अभियान में समन्वय बनाकर वायु, सागर एवं भूमि से पाकिस्तान पर सभी मोर्चों पर हमले बोल दिये गए।:333 [102] भारत के इस अभियान का मुख्य उद्देश्य पूर्वी मोर्चे पर ढाका पर अधिकार करना एवं पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तान को भारतीय भूमि में घुसने से रोकना था।[96] There was no Indian intention of conducting any major offensive into Pakistan to dismember it into different states.[96]

नौसैनिक युद्ध स्थिति[संपादित करें]

पाकिस्तान का पीएनएस ग़ाज़ी भारतीय पूर्वी तट के बंदरगाह विशाखापट्टनम के निकट डूबा, जो हिन्द महासागर के जल में किसी पनडुब्बी की प्रथम दुर्घटना थी।

पिछले १९६५ के युद्ध से अलग, इस बार पाकिस्तान भारत के संग नौसैनिक मुठभेड़ के लिये तैयार नहीं था। इस तथ्य से पाकिस्तानी नौसेना मुख्यालय के उच्च पदासीन अधिकारीगण भली-भांति अवगत थे कि उनकी नौसेना बिल्कुल तैयार नहीं है तथा उन्हें इस बार बुरी तरह मुंह की खानी पड़ेगी।:65 [103] पाकिस्तानी नौसेना भारतीय नौसेना के विरुद्ध गहरे सागर में आक्रामक युद्ध के लिये किसी भी स्थिति में सज्ज नहीं थी, न ही भारतीय नौसेना के सागरीय अतिक्रमण के सामने पर्याप्त सुरक्षा ही दे पाने में समर्थ थी।:75–76 [104]

युद्ध के पश्चिमी मोर्चे पर, भारतीय नौसेना की पश्चिमी नवल कमान से वाइस एड्मिरल सुरेन्द्र नाथ कोहली के नेतृत्त्व में ४/५ दिसम्बर १९७१ की रात्रि में कूटनाम: त्रिशूल नाम से कराची बंदरगाह पर अचानक हमला बोल दिया।[19] इन नौसैनिक हमलों में सोवियत-निर्मित ओसा मिसाइल नावों के द्वारा पाकिस्तानी नौसेना के ध्वंसक पीएनएस खायबर एवं माइनस्वीपर पीएनएस मुहाफ़िज़ को तो जलमग्न ही कर दिया जबकि पीएनएस शाहजहां (डीडी-९६२) भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया गया।[19] इसके बदले में पाकिस्तानी नौसैनिक पनडुब्बियों, पीएनएस हैंगर (एस१३१), मॅन्ग्रो, एवं शुशुक, ने भारतीय युद्धपोतों की खोज का अभियान शुरु कर दिया।:86–95 [104][105] पाकिस्तानी नौसैनिक स्रोतों के अनुसार लगभग ७२० नौसैनिक या तो हताहत हुए या लापता थे, पाकिस्तान का ईंधन भण्डार एवं बहुत से व्यापारिक पोत भी नष्ट हो गये, जिससे पाकिस्तानी नौसेना का युद्ध करना या युद्ध में बने रहना अब और कठिन हो गया।:85–87 [104] ९ दिसम्बर १९७१ को हैंगर ने आईएनएस खुकरी (एफ़१४९) को जलमग्न कर दिया, जिसमें १९४ भारतीय हताहत हुए; एवं यह घटना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद प्रथम पनडुब्बी हमला थी।:229 [106][107]

आईएनएस खुकरी के हमले के तुरन्त बाद ही ८/९ दिसम्बर की रात को ही कराची बंदरगाह पर एक और बड़ा हमला हुआ जो कूटनाम: पायथन के नाम से था।[19] भारतीय नौसेना की ओसा मिसाइल नावों ने कराची बंदरगाह पहुंचकर सोवियत से ली हुई स्टाइक्स प्रक्षेपास्त्र से मार की किसके परिणामस्वरूप कई बड़े ईंधन टैंक द्ज्वस्त हुए एवं तीन पाकिस्तानी व्यापारी बेड़े तथा एक वहां खड़े विदेशी जहाज को भी क्षतिग्रस्त कर दिया।[108] पाकिस्तानी वायु सेना ने किसी भी भारतीय नौसैनिक युद्धपोत पर हमला नहीं किया एवं अगले दिन तक भी उन्हें संदेह बना रहा, जिसके चलते पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस के टोही युद्ध विमानचालक की तरह कार्यरत एक नागरिक विमान चालक ने अपने ही पीएनएस ज़ुल्फ़ीकार (के२६५) को भारतीय पोत के भ्रम में हमला कर दिया, जिससे उस पोत को भयंकर क्षति पहुंची व साथ ही कई कार्यरत नौसैनिक अधिकारीगण भी हताहत हुए।[109]

युद्ध के पूर्वी मोर्चे पर, भारतीय पूर्वी नवल कमान ने वाइस एड्मिरल नीलकांत कृष्णन के नेतृत्त्व में पूर्वी पाकिस्तान को बंगाल की खाड़ी में एक नौसैनिक अवरोध बनाकर पश्चिमी पाकिस्तान से एकदम अलग-थलग कर दिया। इससे पूर्वी पाकिस्तानी नौसेना एवं आठ विदेशी व्यापारिक जहाज भी वहीं फंस गये। :82–83 [104] ४ दिसम्बर से विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को तैनात किया गया और उसके सी-हॉक लड़ाकू बमवर्षकों ने चटगांव एवं कॉक्स बाज़ार सहित पूर्वी पाक के कई तटवर्त्ती नगरों व कस्बों पर हमला बोल दिया।[110] पाकिस्तान ने बदले की कार्रवाई में पीएनएस ग़ाज़ी को भेजा, को संदेहजनक परिस्थितियों में रास्ते में ही, विशाखापट्टनम के निकट डूब गयी।[111][112] सेना के भी कई भाग हो जाने के कारण पाक नौसेना ने रियर एड्मिरल लेज़्ली मुंगाविन पर भरोसा किया, एवं पाकिस्तान मैरीन्स के द्वारा भारतीय सेना के विरुद्ध जलीय युद्ध (रिवराइन वारफ़ेयर) आरम्भ किया, किन्तु उसमें उन्हें आश्चर्यजनक भीषण हानि हुई। जिसका मुख्य कारण उन्हें बांग्लादेश की आर्द्र भूमि के अनुभव की कमी तथा अभियान युद्ध की बारे में अज्ञानता ही थे।[113]

भारतीय विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत (आर११) से उड़ान भरता एक ऍलाइज़ विमान

पाक नौसेना को हुई हानि में ७ तोपनावें, १ माइनस्वीपर, १ पनडुब्बी, २ ध्वंसक, ३ गश्तीदल वाहक नावें, तटरक्षकों के ३ गश्ती जहाज, १८ मालवाहक, आपूर्ति एवं संचार पोत, कराची बंदरगाह पर नौसैनिक बेसेज़ पर तथा डॉक्स पर हुए वृहत-स्तर की हानियां थीं। तटीय नगर कराची को भी काफ़ी हानि हुई। तीन मर्चेण्ट नेवी के जहाज – अनवर बख़्श, पास्नी एवं मधुमति –[114] aएवं दस छोटे जहाज पकड़े भी गये थे।[115] लगभग १९०० नौसैनिक लापता हुए, जबकि १४१३ सेवारत लोगों को भारतीय सेना ने ढाका में पकड़ा।[116] एक पाकिस्तानी विज्ञ, तारिक क्ली के अनुसार, पाकिस्तान को अपनी पाकिस्तान मैरीन्स की पूर्ण हानि हुई एवं लगभग आधी से अधिक नौसेना युद्ध में काम आ गयी।[117]

वायु हमले[संपादित करें]

अब तक के चोरी-छिपे हमलों में मुँह की खाने के बाद एवं उसके परिणामस्वरूप भारतीय हमलों में हानि के बाद अब पाकिस्तान ने रक्षात्मक रुख अपना लिया जिसके चलते युद्ध क्जैसे जैसे बढ़ता गया भारतीय वायु सेना ने प्रत्येक मोर्चों पर पाकिस्तानी वायु सेना को कड़ी टक्कर दी और अब पाकिस्तान के द्वारा हमले दिन-प्रतिदिन घटते जा रहे थे। [118][119] भारतीय वायुसेना ने लगभग ४००० से अधिक उड़ानें भरीं जबकि पाक वायुसेना ने उसकी जवाबी कार्रवाई नामलेवा ही की, जिसका आंशिक कारण गैर-बंगाली तकनीकी लोगों की अति-न्यून उपलब्धि भी रही[19]

इस तरह युद्ध में पीछे हटने का उत्तरदायी, पाक वायु मुख्यालय के अपने नुकसान को कम करने के निर्णय को भी टहराया जाता है; क्योंकि बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष के दौरान भी भारी हानि उठायी थीं।[120] पाक वायु सेना ने भारतीय वायुसेना के द्वारा कराची बंदरगाह को दो बार भारी नुक्सान पहुंचाये जाने के बाद भारतीय नौसेना से सम्पर्क लगभग बंद ही कर दिये, किन्तु पाक वायुसेना ने इसके बदले में ओखा बंदरगाह पर हमला बोला एवं उन ईंधन भण्डारों को नष्ट किया जिसने पाक पर हमला करने वाली नावें आदि आपूर्ति लेती थीं।[14][121]

इधर पूर्व में नं.१४ स्वाड्रन टेल चॉपर्स जो स्क्वाड्रन लीडर परवेज़ मेहन्दी कुरैशी, जिन्हें युद्ध बंदी बना लिया गया था, के नेतृत्त्व में थी, उसको नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया। इसके बाद ढाका की पाक वायु सुरक्षा समाप्त होने से पूर्व में भारत का अधिकार सिद्ध हो गया।[19]

युद्ध के अंत तक, पाक वायुसेना के विमानचालक पूर्वी पाकिस्तान से पड़ोसी देश बर्मा में बच निकले, एवं बहुत से पाक वायुसेना के लोग पूर्व से बर्मा के लिये ढाका के भारतीय अधिकृत होने से पूर्व ही पलायन कर चुके थे।[122]

पाकिस्तान पर भारतीय हमले[संपादित करें]

पूर्वी पाकिस्तान पर पकड़ मजबूत होने के बाद भी भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान पर अपने हमले जारी रखे}। अब ये अभियान दिन में विमान-भेदी तोपों, रडार-भेदी विमानों एवं लड़ाकू जेट विमानों के पास-पास से निकलने वाले आक्रमणों की श्रेणी तथा रात्रि में विमानक्षेत्रों, हवाईपट्टियों, एयरबेसेज़ पर हमलों तथा पाकिस्तानी बी-५७सी-१३० और भारतीय कॅनबराएएन-१२ के बीच भिड़तों की शृंखला में बदलता जा रहा था।:107–108 [123]

पाक वायुसेना ने अपने वायु बेसेज़ की आंतरिक सुरक्षा एवं रक्षात्मक गश्ती दल हेतु एफ़-६ तैनात करे शुरु किये, किन्तु अधिमान्य वायु श्रेष्ठता के अभाव में वह प्रभावी आक्रामक अभियान नहीं चला पा रहा था, अतः उसके आक्रमण अधिकतर प्रभावहीन ही रहे थे।:107–108 [123] भारतीय वायुसेना ने एक संयुक्त राज्य वायुसेना एवं एक संयुक्त राष्ट्र विमान को डाका में नष्ट कर दिया एवं इस्लामाबाद में कनाडा के रॉयल कनाडा वायुसेना के डीएचसी-४ कॅरिबोउ के साथ खड़े हुए सं.राज्य मिलिट्री के सम्पर्क प्रमुख ब्रिगेडियर-जनरल चुक यीगर के निजी सं.राज्य वायुसेना से लिये हुए बीच यू-८ सहित दोनों को उड़ा डाला। :107 [123][124] इसके बाद भी भारतीय वायुसेना द्वारा पाक वायुसेना पर पाकिस्तान में उनके हवाई-अड्डों पर छिटपुट छापे जैसे हमले युद्ध के अंत तक जारी रहे। इनमें सेना का पूरा हस्तक्षेप तथा सहयोगबना रहा।:107 [123]

पाकिस्तानी वायुसेना ने इस अभियान में अत्यधिक सीमित भाग लिया, इनके सहयोग में जॉर्डन से एफ़-१०४, मध्य-पूर्व के एक अज्ञात सहयोगी (अभी तक) द्वारा मिराज विमानों तथा साउदी अरब से एफ़-८६ विमान आते रहे।:107 [123] इनके आगमन से पाकिस्तानी वायुसेना की क्षमता एवं हानि पर से पूर्ण रूप से पर्दा नहीं हट सका। लीबियाई एफ़-५ विमानों को संभवतः एक संभावित प्रशिक्षण इकाई के रूप में सरगोधा बेस पर तैनात किया गया जो पाकिस्तानी विमानचालकों को साऊदी अरब से और एफ़-५ विमानों की आवक हेतु प्रशिक्षित कर सकें।:112 [123] भा.वा.सेना कई प्रकार के कार्य सफ़लतापूर्वक करती रही, जैसे – सैनिकों को सहायता पहुंचाना; हवाई मुकाबले, गहरी पैठ वाले हमले, शत्रु ठिकानों के निकट पैरा-ड्रॉपिंग; वास्तविक लक्ष्य से शत्रु सेनानियों को दूर रखने, बमबारी और टोह लेने के कार्य।:107 [123] इसके मुकाबले पाक वायुसेना जो मात्र हवाई हमलों में केन्द्रित रही, युद्ध के प्रथम सप्ताह तक महाद्वीपीय आकाश से विलुप्त हो चली थी।:107 [123] जो कोई पाक सेना विमान बचे भी थे, उन्होंने या तो ईरानी वायुबेस में शरण ली या कंक्रीट के बंकरों में जा छिपे व आगे किसी हमले से हाथ ही खींच लिया।[125]

युद्ध के आक्रमण आधिकारिक रूप से १५ दिसम्बर को ढाका पर अधिकार एवं भारत के पाकिस्तान की भूमि पर बड़े स्तर पर अधिकार के दावे के उपरान्त (हालांकि युद्धोपरान्त पुनः युद्ध-पूर्व सीमाएं स्थापित कर दी गईं) १७ दिसम्बर १९७१ को १४:३० (यूटीसी) बजे पाकिस्तान के पूर्वी भाग को बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्रता की घोषणा के बाद बंद किये गए।:107 [123] भारत ने पूर्व में १,९७८ उड़ानें भरीं और पश्चिम में पाकिस्तान पर ४,०००; जबकि पाकिस्तान ने लगभग पूर्व में ३० तथा पश्चिमी मोर्चे पर २,८४०।:107 [123] ८०% से अधिक भारतीय वायुसेना की उड़ानें पुरी सहायता सहित एवं चौकी के नियंत्रण में रहीं, और लगभग ४५ विमान लापता हो गये।[8]

पाक ने ४५ विमान खोये[8] जिनमें उन एफ़-६, मिराज ३, या ६ जॉर्डनियाई एफ़-१०४ की गिनती नहीं हैं जो अपने दानदाताओं के पास कभी नहीं पहुंच पाये।[8] उड़ानों की हानि में इतने बड़े स्तर के असन्तुलन का कारण भा.वा.सेना के उल्लेखनीय स्तर की बड़ी उड़ान दर तथा उनके भूमि मार पर जोर देने के कारण कहा जा सकता है। [8] भूमि के मोर्चों पर पाक के ८,००० सैनिक मृत एवं २५,००० घायल हुए जबकि भारत के ३,००० सैनिक मृत तथा १२,००० घायल हुए। [18] सशस्त्र वाहनों की क्षति भी इसी प्रकार असन्तुलित ही थी और इसी से अन्त में पाकिस्तान की भारी हार को आंका जाता है।[18]

भूमि आक्रमण[संपादित करें]

युद्ध पूर्व भारतीय सेनाएं दोनों मोर्चों पर अति सुव्यवस्थित तरीके से आयोजित थीं और पाक सेना की तुलना में इनकी मात्रा भी कहीं अधिक थी।:596 [126] भारतीय सेना के युद्ध में असाधारण युद्ध प्रदर्शन ने उसकी चीन के संग युद्ध के समय खोई प्रतिष्ठा, आत्मविश्वास, और गरिमा वापस लौटा दी थी।[127]

इनकी आपसी मुठभेड़ के आरम्भ होने के कुछ ही समय में भारत एवं उनके बंगाली विद्रोही साथियों के पक्ष में निर्णायक करवट ले ली थी। :596 [126] दोनों ही मोर्चों पर पाकिस्तान ने कई बार भूमि के हमले किये, किन्तु भारतीय सेना के दोनों ही मोर्चों पर सुसमन्वित भूमि संचालन के आगे उनकी हिम्मत एवं भूमि दोनों ही भारतीयों के आगे हारे गये।:596 [126] पाकिस्तान द्वारा बड़े स्तर के भूमि हमले पश्चिमी मोर्चों पर पाकिस्तान मरीन्स (दक्षिणी सीमा पर) के संग किये गए किन्तु भारतीय सेनाएं पाक भूमि पर घुसने व अधिकार जमाने में बड़े स्तर पर सफ़ल हुई तथा शीघ्र ही और आरम्भ में ही लगभग 5,795 वर्ग मील (15,010 कि॰मी2) [5][6] पाक भूमि अधीन पर ली जिनमें आजाद कश्मीर, पंजाब एवं सिंध के क्षेत्र आते हैं, किन्तु बाद में १९७२ के शिमला समझौते के अन्तर्गत्त सद्भावना के रूप में वापस कर दिये गए।[7] पाक सेना के प्रथम कॉर्प एवं द्वितीय कॉर्प में हताहतों की संख्या काफ़ी बड़ी थी। इसमें बहुत से सैनिकों की हानि का कारण भारतीय सेना की दक्षिणी एवं पश्चिमी कमान के विरुद्ध हमलों में मात्र सेना की आंतरिक संरचना के परिचालन योजना और समन्वय की कमी थे। :82–93 [128] युद्ध के अंत आते आते पश्चिमी मोर्चे पर पाक सेना के सैनिकों तथा मरीन्स भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत ही हतोत्साहित हो चुकी थी और अब उनमें आगे बढ़ती भारतीय सेना का सामना करने को कोई भी उत्साह न हिम्मत शेष थी। :1–2 [129]:26–27 [130] युद्ध जाँच समिति ने बाद में यह तथ्य भी उजागर किया कि पाकिस्तान की सेनाओं के लिये प्रत्येक स्तर एवं प्रत्येक कमान स्तर पर सैनिकों हेतु पर्याप्त शस्त्रों एवं प्रशिक्षण की गहन आवश्यकता थी।[131]

२३ नवंबर १९७१ को भारतीय सेनाओं ने पूर्ण रूप से पूर्वी मोर्चे पर प्रवेश किया एवं पूर्वी पाकिस्तान की सीमाओं में घुस कर बंगाली राष्ट्रावादी संघर्षकर्ता साथियों का साथ दिया।:156 [132] १९६५ के युद्ध से अलग, जिसमें धीमी गति से आगे बढ़त ली थी, इस बार अपनायी गई रणानीति में तेजी थी, नौ पैदल सेना टुकड़ियों के साथ संलग्न बख्तरबंद इकाइयों एवं इनके सहायक वायु हमलों के साथ भारतीय सेनाओं ने शीघ्र ही पूर्वी पाकिस्तान की तत्कालीन राजधानी ढाका तक पहुंच बनायी।:156 [132] भारतीय सेना की पूर्वी कमान के जनरल ऑफ़िसर मुख्य कमान अध्यक्ष लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने पूर्वी पाकिस्तान पर पूरा जोर लगाकर आक्रमण किया और इनकी सहायता में वायुसेना ने त्वरित गति से पाकिस्तानी पूर्वी कमान के उपस्थित छोटे-छोटे हवाई दलों को नष्ट कर डाला जिससे ढाका वायुक्षेत्र का प्रचालन एकदम स्तंभित हो गया।:156 [132] इस बीच भारतीय नौसेना ने पूर्वी पाकिस्तान को समुद्री मार्ग पर प्रभावी रूफ से बाधित कर दिया।:156 [132]


भारतीय अभियानों में "ब्लिट्ज़क्रीग" तकनीकें अपनायी, जिसके अन्तर्गत्त शत्रु के स्थानों में कमजोरी व्याप्त कर, उनके विरोध से बचते हुए शीघ्रता से विजय प्राप्त की गयीं। :802 [133] असहनीय एवं अत्यंत हानि झेलने के बाद पाकिस्तानी सेनाओं ने एक पखवाड़े के अन्दर ही समर्पण कर दिया एवं पूर्वी कमान के सैन्य अधिकारियों के मन में एक डर एवं आतंक बैठ गया।:802 [133] पूर्व में भारतीय सेना की बढ़त से पाकिस्तानोयों में एक मनोवैज्ञानिक डर उपजा जिससे उन पाकिस्तानी सैनिकों में हतोत्साह का संचार हुआ।:104 [134] इसके बाद १६ दिसम्बर १९७१ को भारतीय सेनाओं ने ढाका को घेर लिया और अन्ततः मात्र ३०-मिनट में समर्पण कर देने अन्तिमेत्थम जारी किया।[135] इस अन्तिमेथम कि घोषणा को सुनने के बाद, पूर्वी पाकिस्तान में तैनात अपने लेफ़्टि-जनरल आमिर अब्दुल्लाह खान नियाज़ी के नेतृत्व में पाकिस्तानी पूर्वी कमान ने बिना किसी विरोध के समर्पण कर दिया।[132] १६ दिसम्बर १९७१ को पाकिस्तान ने अन्ततः एकतरफ़ा युद्ध-विराम की घोषणा कर दी एवं इसके साथ ही अपनी संयुक्त थल सेना को भारतीय सेना को सौंप दिया जिसके साथ ही १९७१ का भारत-पाक युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त हो गया।[132]

पाक पूर्वी कमान का पूर्वी पाकिस्तान में समर्पण[संपादित करें]

आधिकारिक रूप से पूर्वी पाकिस्तान स्थित पूर्वी कमान द्वारा भारतीय पूर्वी कमान के जन.आफ़िसर कमाण्ड-इन चीफ़ लेफ़्टि-जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा एवं पाक पूर्वी कमान के कमाण्डर, लेफ़्टि.जन ए ए के नियाज़ी के बीच रमणा रेसकोर्स, ढाका में १६:३१ बजे (भामास) समर्पण अभिलेख पर हस्ताक्षर हुए।:156–157 [136] भारतीय लेफ़्टि.जन.अरोड़ा द्वारा समर्पण अभिलेख पर बिना कुछ बोले हस्ताक्षर कर दिये गए, रेसकोर्स में व उसे घेरे हुए खड़ी बड़ी भीड़ में पाकिस्तान विरोधी नारे लगने लगे तथा प्राप्त रिपोर्ट्स के अनुसार पाकिस्तानी मिलिट्री के समर्पण करते कमाण्डरों के विरुद्ध अपशब्द भी ऊंचे स्वरों में बोले गये।:157 [136][137]

समर्पण होने पर भारतीय सेना ने लगभग ९०,००० से अधिक पाक सैनिक एवं उनके बंगाली सहायकों को युद्धबंदी बना लिया। यह द्वितीय विश्व युद्ध से अब तक का विश्व का सबसे बड़ा समर्पण था। :157 [136] आरम्भिक णनाओं के अनुसारलगग ~७९,६७६ व्दीधार सैनिक, जिनें से५५,६९२ पाकिस्तान सेनाके सैनिक थे, १६,३५४ अर्द्धसैनिक बल, ५,२९६ पुलिस, १,००० नौसैनिक एवं ८०० पाक वायु सैनिक थे।[138]

इनके अलावा शेष बंदी सामान्य नागरिक थे जो या तो इन सैनिकों के निकट सम्बन्धी थे या उनके सहायक (रज़ाकर) थे। हमुदूर रहमान आयोग एवं युद्धबन्दी जाँच आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान द्वारा सौंपी गयी युद्धबन्दियों की सूचियों में: सैनिकों के अलावा १५,००० बंगाली नागरिकों को भी युद्धबन्दी बना लिया गया था।[139]

अन्तर-सेवा शाखा पाकिस्तानी युद्धबन्दियों की संख्या कमान अधिकारी
 पाकिस्तान सेना 54,154 लेफ़्टि-जन. आमिर अब्दुल्लाह खान नियाज़ी
पाकिस्तानी नौसेना/पाकिस्तान मरीन्स १,३८१ रियर-एडमिरल मुहम्मद शरीफ़
Flag of the पाकिस्तान Air Force पाकिस्तान वायु सेना ८३३ एयर वाइस मार्शल पैट्रिक डेस्मंड कैलाघन
अर्धसैनिक/ईस्ट पाकिस्तान राइफल्स/पुलिस २२,००० मेजर-जन. राव फ़रमान अली
सरकारी अधिकारी १२,००० गवर्नर अब्दुल मुतलिब मलिक
कुल: ९०,३६८ ~

प्रभाव[संपादित करें]

2 जुलाई 1 9 72 को, भारत-पाकिस्तानी शिखर शिमला, हिमाचल प्रदेश में शिमला में आयोजित किया गया था, भारत में शिमला समझौता पर हस्ताक्षर किए गए थे और राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो और प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के बीच हर राज्य की एक सरकार एक डिपॉजिटरी भूमिका निभाते थे। इस संधि ने बांग्लादेश को बीमा प्रदान किया था कि पाकिस्तान ने पाकिस्तानी सैनिकों की वापसी के बदले बांग्लादेश की संप्रभुता को मान्यता दी थी क्योंकि भारत 1 9 25 में जेनेवा कन्वेंशन के अनुसार युद्ध कैदियों के साथ व्यवहार कर रहा था। केवल पांच महीनों में, भारत ने लेफ्टिनेंट-जनरल एए.के. के साथ व्यवस्थित रूप से 9 0,000 से अधिक युद्ध कैदियों को जारी किया। नियाज़ी पाकिस्तान को सौंपे जाने वाले अंतिम युद्ध कैदी हैं।

इस संधि ने 13,000 वर्ग किमी से भी ज़्यादा जमीन वापस कर दी जो युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान में जब्त की थी, हालांकि भारत ने कुछ रणनीतिक क्षेत्र (तुरतुक, थांग , त्याक्षी (पूर्वी तियाक़ी) और चोरबत घाटी के चुलुंका सहित) को बरकरार रखा है,[140][141] जो कि 804 वर्ग किमी से अधिक था।[142][143][144] भारतीय राष्ट्रवादियों ने हालांकि महसूस किया कि यह संधि राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो के लिए बहुत ही उदार थी, जिन्होंने उदारता के लिए अनुरोध किया था, उनका तर्क था कि अगर पाकिस्तान में नाजुक स्थिरता कम हो जाती तो समझौता पाकिस्तानियों द्वारा अत्यधिक कठोर होने के रूप में माना जाता था और वह आरोपी होगा पूर्वी पाकिस्तान के नुकसान के अलावा कश्मीर को खोने का। जिसके परिणामस्वरूप प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की भूटो की 'मीठी बात और झूठी शपथ' के विश्वास के लिए भारत के एक सेक्शन की आलोचना की गई, जबकि अन्य खंड ने दावा किया कि इसे "वर्साइल सिंड्रोम" जाल में गिरने के लिए सफल नहीं होने के कारण।

विदेशी प्रतिक्रिया और अन्तर्भावितता[संपादित करें]

संयुक्त राज्य एवं सोवियत संघ[संपादित करें]

ब्लड टेलीग्राम

सोवियत संघ ने पूर्वी पाकिस्तान से सहानुभूति दिखाते हुए भारतीय सेना एवं मुक्ति बाहिनी द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध हमले का समर्थन किया क्योंकि व्यापक रूप से उसे लगा कि पूर्व पाकिस्तान की बांग्लादेश के रूप में पहचान संघ के प्रतिद्वंदियों—संयुक्त राज्य एवं चीन की स्थिति को कमजोर कर देगी। सोवियत संघ ने भारत को युद्ध पूर्व कड़ा आश्वासन दिया था कि भविष्य में यदि इस युद्ध के कारण सं.राज्य या चीन से टकराव की स्थिति बनी तो वह भारत के समर्थन में उससे निबटने के उपाय करेगा। ये आश्वासन अगस्त १९७१ में की गयी भारत-सोवियत मैत्री एवं सहयोग संधि के रूप में सुरक्षित एवं सुनिश्चित किये गए थे।[145]

हालांकि भारत-सोवियत संधि के तहत भारत की प्रत्येक स्थिति के लिये सोवियत संघ की कोई प्रतिबद्धता नहीं थी, जबकि लेखक रॉबर्ट जैकसन के अनुसार संघ ने संघर्ष के दौरान भारती की स्थिति को स्वीकार कर लिया था। :72–73 [146] सोवियत संघ ने पाकिस्तान के प्रति मध्य-अक्तूबर तक अपना सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार ही बनाये रखा था। अक्तूबर के मध्य में संघ ने पाकिस्तान को राजनीतिक समझौते कर मामले को सुलझाने पर जोर दिया, जिसके उपरान्त ही वह पाकिस्तान को अपनी औद्योगिक सहायता जारी रखने की पुष्टि करेगा।:73 [146] नवम्बर १९७१ में पाकिस्तान में सोवियत राजदूत ने एक गुप्त सन्देश (रोदियोनोव सन्देश) के द्वारा पाकिस्ताण को सूचित चेतावनी दी कि "यदि उपमहाद्वीप में तनाव और बढ़ता है तो वह पाकिस्तान के लिये एक आत्मघाती कार्यकलाप सिद्ध होगा।:part-3 [91]


संयुक्त राज्य पाकिस्तान के प्रति नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं, भौतिक रूप से समर्थन में रहा एवं तत्कालीन यू.एस राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन एवं उनके राज्य सचिव हेनरी किसिन्जर ने इस वृहत स्तर के सिविल युद्ध को रोकने हेतु हस्तक्षेप करने के लिये एक आशापूर्ण प्रयास से एकदम मना कर दिया। सं.राज्य इस भुलावे में रहा कि उन्हें दक्षिण एशिया में भारत के साथ सोवियत प्रभाव एवं अनौपचारिक मैत्री को इस प्रकार रोकने में पाकिस्तान की आवश्यकता होगी।:281 [147] शीत युद्ध के समय पाकिस्तान संयुक्त राह्य का एक औपचारिक साथी रहा था उसके चीन के संग भी घनिष्ठ सम्बन्ध रहे थे, जिनके द्वारा सं.राज्य चीनी-अमरीकी मेल-मिलाप को बढ़ावा देने हेतु निक्सन फरवरी १९७२ में यहां की यात्रा करने को भी उत्सुक था।[148] निक्सन को यह भय था कि पाक पर भारतीय आक्रमण इस क्षेत्र में सोवियत वर्चस्व को बढ़ावा देगा, जिससे सं.राज्य की वैश्विक सत्ता स्थिति पर एवं साथ ही अमेरिका की यहां क्षेत्रीय स्थिति पर और उनके नये साथी चीन के संग उनके सम्बन्ध पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।:281–282 [147] निक्सन ने जॉर्डन एवं ईरान को पाकिस्तान की सहायता के लिये सैन्य सहायता भेजने पर जोर दिया तथा चीन को भी पाकिस्तान के लिये हथियार भेजने पर जोर दिया, हालांकि ये सभी आपूर्तियां बहुत सीमित रहीं।:61 [149][150] निक्सन प्रशासन द्वारा पाक सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में किये जा रहे नरसंहार की रिपोर्ट्स की भी अवहेलना की गयी, जिसकी यूनाइटेड स्टेट्स कॉंग्रेस तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रेस द्वारा कड़ी निन्दा की गयी।[62][151][152]


संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत]] जॉर्ज बुश, सीनियर ने संयुक्र्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत-पाक के बीच युद्ध-बन्दी करने और दोनों को अपनी-अपनी सेनाएं हटाने के लिये एक प्रस्ताव रखा।:73 [146]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ल्योन, पीटर (२०००). कॉन्फ़्लिक्ट बिटवीन इण्डिया एण्ड पाकिस्तान: एन एन्साय्क्लोपीडिया (अंग्रेज़ी में). ABC-CLIO. पृ॰ १६६. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-57607-712-2. India's decisive victory over Pakistan in the 1971 war and emergence of independent Bangladesh dramatically transformed the power balance of South Asia
  2. केम्प, ज्यॉफ़रे (2010). द ईस्ट मूव्स वेस्ट इण्डिया, चाइना, एण्ड एशिया’ज़ ग्रोइंग प्रेसेन्स इन द मिडल ईस्ट. ब्रूकिंग्स इन्स्टीट्यूशन प्रेस. पृ॰ 52. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8157-0388-4. However, India's decisive victory over Pakistan in 1971 led the Shah to pursue closer relations with India
  3. बायमैन, डेनियल (२००५). डैडली कनेक्शन्स: स्टेट्स दैट स्पॉन्सर टेररिज़्म. कॅम्ब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस. पृ॰ 159. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-83973-0. India's decisive victory in 1971 led to the signing of the Simla Agreement in 1972
  4. "Indian Air Force. Squadron 5, Tuskers". Global Security. मूल से 17 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  5. नवाज़, शूजा (२००८). क्रॉस्ड सोर्ड्स: पाकिस्तान, इट्स आर्मी, एण्ड द वार्स विदिन. ऑक्स्फ़ोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस. पृ॰ 329. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-547697-2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "Shuja Nawaz 2008" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  6. चितकारा, एम.जी (१९९६). बेनज़ीर, ए प्रोफ़ाइल – एम.जी.चितकारा. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170247524. अभिगमन तिथि २७ जुलाई २०१२. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "books.google.com" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  7. शोफ़ील्ड, विक्टोरिया (१८ जनवरी, २००३). कश्मीर इन कॉन्फ़्लिक्ट: इण्डिया, पाकिस्तान एण्ड थे उनवैडिंग वार – विक्टोरिया शोफ़ील्ड (अंग्रेज़ी में). आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781860648984. अभिगमन तिथि २७ जुलाई २०१२. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "https" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  8. M. Leonard, Thomas (2006). Encyclopedia of the Developing World. Taylor & Francis. पृ॰ 806. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0415976640. अभिगमन तिथि 2015-07-13. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; "Encyclopedia of the Developing World, Volume 3" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  9. Vulnerable India: A Geographical Study of Disaster By Anu Kapur
  10. "Chapter 10: Naval Operations In The Western Naval Command". Indian Navy. मूल से 23 February 2012 को पुरालेखित.
  11. "Damage Assessment– 1971 Indo Pak Naval War". Orbat.com. अभिगमन तिथि 27 July 2012.
  12. Air Chief Marshal P C Lal (1986). My Days with the IAF. Lancer. पृ॰ 286. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7062-008-2.
  13. "The Battle of Longewala—The Truth". India Defence Update. मूल से 8 June 2011 को पुरालेखित.
  14. "Pakistan Air Force Combat Experience". Globalsecurity.org. मूल से 12 जून 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 July 2012.
  15. "Pakistan Air Force – Official website". Paf.gov.pk. अभिगमन तिथि 27 July 2012.
  16. "IAF Combat Kills – 1971 Indo-Pak Air War" (PDF). orbat.com. मूल (PDF) से 13 January 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 December 2011.
  17. Leonard, Thomas. Encyclopedia of the developing world, Volume 1. Taylor & Francis, 2006. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780415976626.
  18. The Encyclopedia of 20th Century Air Warfare, edited by Chris Bishop (Amber publishing 1997, republished 2004 pages 384–387 ISBN 1-904687-26-1)
  19. "Indo-Pakistani War of 1971". Global Security. मूल से 26 नवंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  20. "The Sinking of the Ghazi". Bharat Rakshak Monitor, 4(2). अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  21. "How west was won...on the waterfront". The Tribune. अभिगमन तिथि 24 December 2011.
  22. "India – Pakistan War, 1971; Western Front, Part I". acig.com. अभिगमन तिथि 22 December 2011.
  23. "Archived copy". मूल से 1 May 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 April 2010. नामालूम प्राचल |deadurl= की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: Archived copy as title (link)
  24. "1971 war: who lost what?". मूल से 29 जून 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जून 2018.
  25. "Gen. Tikka Khan, 87; 'Butcher of Bengal' Led Pakistani Army". Los Angeles Times. 30 March 2002. मूल से 11 मार्च 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 April 2010.
  26. कोहेन, स्टीफ़न (२००४). द आईडिया ऑफ़ पाकिस्तान. ब्रुकिंग्स इन्स्टीट्यूशन प्रेस. पृ॰ 382. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8157-1502-3.
  27. "इण्डिया: ईज़ी विक्टरी, अनीज़ी पीस". टाइम. २७ दिसम्बर, १९७१. मूल से 13 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2017. नामालूम प्राचल |subscription= की उपेक्षा की गयी (मदद); |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  28. "वर्ल्ड्स शॉर्टेस्ट वार लास्टेड ओनली ४५ मिनट्स". प्रावड़ा. १० मार्च, २००७. मूल से 28 जनवरी 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2017. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  29. "1971 War: 'I will give you 30 minutes'". Sify.com. मूल से 6 दिसंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14 April 2011.
  30. ऑर्टन, ऍना (२०१०). India's Borderland Disputes: China, Pakistan, Bangladesh, and Nepal. एपिटोम बुक्स. पृ॰ 117. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789380297156. अभिगमन तिथि २०१६-०३-१०.
  31. Burke, S. M (1974). Mainsprings of Indian and Pakistani Foreign Policies – S. M. Burke. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780816607204. अभिगमन तिथि 27 July 2012.
  32. Bose, Sarmila (25 November 2011). "The question of genocide and the quest for justice in the 1971 war" (PDF). Journal of Genocide Research: 398. मूल (PDF) से 10 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित.
  33. "जमात क्लेम्स डिनाइड बाए एविडेन्स" (अंग्रेज़ी में). द डेली स्टार. २८ फ़रवरी २००८. मूल से 11 अगस्त 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १० मार्च २०१६.
  34. हक़्क़ानी, हुसैन (2005). पाकिस्तान: बिटवीन मॉस्क एण्ड मिलिटरी (अंग्रेज़ी में). United Book Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-87003-214-1., Chapter 3, p. 87.
  35. बुर्क, सैम्युअल मार्टिन (1974). मेनस्प्रिंग्स ऑफ़ इण्डियन एण्ड पाकिस्तानी फ़ॉरेन Policies (अंग्रेज़ी में). मिन्नेसोटा विश्वविद्यालय प्रेस. पृ॰ 216. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8166-5714-8.
  36. ऍल्स्टॉन, मार्गरेट (२०१५). वुमेन एण्ड क्लाइमेट चेन्ज इन बांग्लादेश (अंग्रेज़ी में). रूटलेज. पृ॰ 40. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781317684862. अभिगमन तिथि 8 मार्च 2016.
  37. टॉट्टन, सॅम्युअल (2012). प्लाइट एण्ड फ़ेट ऑफ़ वूमेन ड्यूरिंग एण्ड फ़ॉलोइंग जीनोसाइड (अंग्रेज़ी में). ट्रान्सैक्शन पब्लिशर्स. पृ॰ 55. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781412847599. अभिगमन तिथि 8 मार्च 2016.
  38. मायर्स, डैविड जी. (२००४). एक्स्प्लोरिंग सायकोलॉजी ४ई (अंग्रेज़ी में). टाटा मॅक्ग्रॉ हिल एड्युकेशन. पृ॰ 269. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780070700628. अभिगमन तिथि 8 मार्च 2016.
  39. Consulate (Dacca) Cable, Sitrep: Army Terror Campaign Continues in Dacca; Evidence Military Faces Some Difficulties Elsewhere Archived 2011-12-21 at the वेबैक मशीन, ३१ मार्च १९७१, गोपनीय, पृ.३।
  40. कैनेडी, सिनेटर एडवार्ड, "Crisis in South Asia – A report to the Subcommittee investigating the Problem of Refugees and Their Settlement, Submitted to U.S. Senate Judiciary Committee", १ नवंबर १९७१, सं.राज्य सरकार प्रेस, पृ.६६। Sen. Kennedy wrote, "Field reports to the U.S. Government, countless eye-witness journalistic accounts, reports of International agencies such as World Bank and additional information available to the subcommittee document the reign of terror which grips East Bengal (East Pakistan). Hardest hit have been members of the Hindu community who have been robbed of their lands and shops, systematically slaughtered, and in some places, painted with yellow patches marked 'H'. All of this has been officially sanctioned, ordered and implemented under martial law from Islamabad."
  41. Rummel, रुडोल्फ जे., "स्टैटिस्टिक्स ऑफ़ डेमोसाइड: Genocide and Mass Murder Since 1900" Archived 2016-02-21 at the वेबैक मशीन, ISBN 3-8258-4010-7, अध्याय ८, Table 8.2 Pakistan Genocide in Bangladesh Estimates, Sources, and Calculations Archived 2012-02-04 at the वेबैक मशीन: lowest estimate 2 million claimed by Pakistan (reported by Aziz, Qutubuddin. Blood and tears कराची: यूनाइटेड प्रेस ऑफ़ पाकिस्तान, १९७४। पृ.७४, २२६), some other sources used by Rummel suggest a figure of between 8 and 10 million with one (जॉनसन, बी.एल.सी। बांग्लादेश। न्यू यॉर्क: बार्न्स एण्ड नोबल, १९७५। पृ ७३,७५) that "could have been" 12 million.
  42. Chatterjee, Pranab (2010). A Story of Ambivalent Modernization in Bangladesh and West Bengal: The Rise and Fall of Bengali Elitism in South Asia (अंग्रेज़ी में). Peter Lang. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781433108204. अभिगमन तिथि 23 December 2016.
  43. "विवेचना: याहया की अय्याशी की वजह से पाकिस्तान हारा था 1971 का युद्ध?". मूल से 21 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अक्तूबर 2018.
  44. Lieven, Anatol (6 मार्च 2012). Pakistan: A Hard Country (अंग्रेज़ी में). PublicAffairs. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ [[विशेष:पुस्तक_स्रोत/1610391 624|1610391 624]] |isbn= के मान की जाँच करें: length (मदद). अभिगमन तिथि 23 December 2016. |isbn= में 8 स्थान पर line feed character (मदद)
  45. Abbott, David (2015). Changing World: Pakistan (अंग्रेज़ी में). Minnesota, U.S.: Encyclopaedia Britannica. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781625133212. अभिगमन तिथि 8 January 2017.
  46. Cochrane, Iain (2009). The Causes of the Bangladesh War (अंग्रेज़ी में). University of London: Lulu.com. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781445240435. अभिगमन तिथि 8 January 2017.
  47. "Legal Framework Order 1970". Story Of Pakistan. Nazaria-e-Pakistan Trust, 2003. 1 June 2003. मूल से 3 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 December 2016. Explicit use of et al. in: |last1= (मदद)
  48. Nohlen, Dieter (2004). Elections in Asia and the Pacific (Reprint संस्करण). Oxford: Oxford Univ. Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924958-X.
  49. Guha, Ramachandra (10 फरवरी 2011). India After Gandhi: The History of the World's Largest Democracy (अंग्रेज़ी में). Pan Macmillan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780330540209. अभिगमन तिथि 23 December 2016.
  50. Ehtisham, S. Akhtar (1998). A Medical Doctor Examines Life on Three Continents: A Pakistani View. Algora Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780875866345. अभिगमन तिथि 9 December 2016.
  51. Ghazali, Abdus Sattar. "Islamic Pakistan: Illusions and Reality". ghazali.net. National Book Club,. मूल से 30 मई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 December 2016.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)
  52. D'Costa, Bina (2011). Nationbuilding, Gender and War Crimes in South Asia. Routledge. पपृ॰ 103. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780415565660.
  53. D'Costa, Bina (2011). Nationbuilding, Gender and War Crimes in South Asia. Routledge. पपृ॰ 103. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780415565660.
  54. D' Costa, Bina (2011). Nationbuilding, Gender and War Crimes in South Asia. Routledge. पृ॰ 103. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780415565660.
  55. Bose, Sarmila (8 October 2005). "Anatomy of Violence: Analysis of Civil War in East Pakistan in 1971". Economic and Political Weekly. मूल से 1 March 2007 को पुरालेखित.
  56. Salik, Siddiq, Witness To Surrender, ISBN 978-984-5-1373-4, pp. 63, 228–9.
  57. Riedel, Bruce O. (2011). Deadly Embrace: Pakistan, America, and the Future of the Global Jihad. Brookings Institution. पृ॰ 10. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-8157-0557-4.
  58. "Lt. Gen. Kamal Matinuddin – Tragedy of Errors: East Pakistan Crisis, 1968–1971; Wajidalis, Lahore, 1994; page 255". मूल से 18 मई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2017.
  59. "Maj. Gen. Fazal Muqeem Khan – Pakistan's Crisis in Leadership; National Book Foundation, Islamabad, 1973; page 79". मूल से 11 जून 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अप्रैल 2017.
  60. Qureshi, Hakeem Arshad (2003). Through the 1971 Crisis: An Eyewitness Account by a Soldier. Oxford University Press. पृ॰ 33. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-579778-7.
  61. Raja, Dewan Mohammad Tasawwar, O General My General – Life and Works of General M A G Osmany; pp. 35–109, ISBN 978-984-8866-18-4
  62. "The U.S.: A Policy in Shambles". Time. 20 December 1971. मूल से 30 सितंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009. नामालूम प्राचल |subscription= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  63. U.S. Consulate (Dacca) Cable, Sitrep: Army Terror Campaign Continues in Dacca; Evidence Military Faces Some Difficulties Elsewhere Archived 2011-12-21 at the वेबैक मशीन, 31 March 1971, Confidential, 3 pp.
  64. "East Pakistan: Even the Skies Weep". Time. 25 October 1971. मूल से 8 अक्तूबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009. नामालूम प्राचल |subscription= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  65. "Indo-Pakistani Wars".। अभिगमन तिथि: 20 October 2009 Archived 2009-10-29 at the वेबैक मशीन "संग्रहीत प्रति". मूल से 29 अक्तूबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अप्रैल 2017.
  66. International, Rotary (1971). The Rotarian (अंग्रेज़ी में). Rotary International. अभिगमन तिथि 23 December 2016.
  67. Bhutto, Fatima (6 सितंबर 2011). Songs of Blood and Sword: A Daughter's Memoir. Nation Books. पृ॰ 100. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-56858-712-0. अभिगमन तिथि 19 August 2016.
  68. Baixas, Lionel (21 June 2008). "Khan (1917–2002), General Tikka". Online Encyclopedia of Mass Violence. मूल से 13 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 July 2013.
  69. Alamgir, Aurangzaib (Nov–Dec 2012). "Pakistan's Balochistan Problem: An Insurgency's Rebirth". World Affairs. मूल से 20 जुलाई 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 July 2013.
  70. Col (retd) Anil Athale (29 August 2006). "Is Balochistan another Bangladesh?". Rediff India Abroad. मूल से 18 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 July 2013.
  71. Ahluwalia, A. (जून 2012). Airborne to Chairborne: Memoirs of a War Veteran Aviator-lawyer of the Indian Air Force (अंग्रेज़ी में). Xlibris Corporation. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781469196565. अभिगमन तिथि 23 December 2016.
  72. Haqqani, Hussain (2005). Pakistan: between mosque and the military. Carnegie Endowment. पृ॰ 74. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-87003-214-1. अभिगमन तिथि 11 April 2010.
  73. (arup), অরূপ (13 March 2010). "অরূপকথা: Interview of Major General Rao Farman Ali AKA "The Butcher of Bengal"". অরূপকথা. অরূপকথা. मूल से 18 दिसंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अप्रैल 2017.
  74. "The four Indo-Pak wars". Kashmirlive, 14 September 2006. मूल से 17 अक्तूबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  75. "1971: Making Bangladesh a reality – I". Indian Defence Review. मूल से 24 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 जून 2015.
  76. Major K.C. Praval. Indian Army After Independence. Lancer Publishers LLC. पपृ॰ 1–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-935501-61-9. मूल से 15 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अप्रैल 2017.
  77. Gary J Bass (1 October 2013). The Blood Telegram. Random House Publishers India Pvt. Limited. पपृ॰ 83–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8400-483-0.
  78. Raghavan, Srinath (2012), "Soldiers, Statesmen, and India's Security Policy", India Review, 11 (2): 116–133, डीओआइ:10.1080/14736489.2012.674829 नामालूम प्राचल |subscription= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  79. "I had to find troops for Dhaka". Rediff News, 14 December 2006. मूल से 25 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  80. Hanhimäki, Jussi M.; Blumenau, Bernhard (2013). An International History of Terrorism: Western and Non-Western Experiences (अंग्रेज़ी में). Routledge. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780415635400. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  81. "The Hamood-ur-Rahman Commission". storyofpakistan.com/. Nazaria-e-Pakistan Trust, HRC. 1 June 2003. अभिगमन तिथि 23 August 2016.[मृत कड़ियाँ]
  82. Ahmad, Dawood (16 December 2011). "Rethinking the big lies from 1971 – The Express Tribune". The Express Tribune. The Express Tribune, Ahmad. The Express Tribune. मूल से 24 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 December 2016.
  83. Ahmed, Khalid (26 December 2013). "Pakistan,1971". The Indian Express. Indian Express, 1971. Indian Express. मूल से 24 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 December 2016.
  84. Editorial (16 December 2014). "1971 'Jihad': Print ads from West Pakistan". DAWN.COM. Dawn newspaper, 2014. Dawn newspaper. मूल से 24 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 December 2016.
  85. "New Twist In "Crush India" Propaganda Campaign". US Department of State Telegram. 26 October 1971. मूल से 2 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 September 2011.
  86. Dikshit, Sandeep (28 June 2008). "How he and his men won those wars". The Hindu. The Hindu, Sandeep. The Hindu. मूल से 24 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  87. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अप्रैल 2017.
  88. Editorial Obituary (3 July 2008). "Sam Manekshaw: Sam Manekshaw, soldier, died on June 27th, aged 94". The Economist. The Economist, 2008. The Economist. मूल से 12 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  89. "Sam Manekshaw", The Economist (5 July 2008), पृ॰ 107, मूल से 6 जुलाई 2008 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 7 July 2008
  90. Manekshaw, SHFJ. (11 Nov 1998). "Lecture at Defence Services Staff College on Leadership and Discipline" (Appendix V) in Singh (2002)Field Marshal Sam Manekshaw, M.C. – Soldiering with Dignity.
  91. Service, British Broadcasting Corporation Monitoring (1971). Summary of World Broadcasts: Far East (अंग्रेज़ी में). London, UK: Monitoring Service of the British Broadcasting Corporation. अभिगमन तिथि 22 December 2016.
  92. "Anti-India Demonstration and Procession". US Department of State Telegram. 9 November 1971. मूल से 2 अप्रैल 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 September 2011.
  93. "Crush India" (PDF). Pakistan Observer. 30 November 1971. मूल (PDF) से 11 मई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 September 2011.
  94. Mohiuddin, Yasmeen Niaz (2007). Pakistan: A Global Studies Handbook (अंग्रेज़ी में). ABC-CLIO. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781851098019. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  95. "Indo-Pakistani War of 1971". मूल से 23 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  96. "War is Declared". subcontinent.com. मूल से 7 October 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.[self-published source?]
  97. Davies, Peter E. (20 नवंबर 2014). F-104 Starfighter Units in Combat (अंग्रेज़ी में). Bloomsbury Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781780963143. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  98. "Bangladesh: Out of War, a Nation Is Born". Time. 20 December 1971. मूल से 28 सितंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009. नामालूम प्राचल |subscription= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  99. "Trying to catch the Indian Air Force napping, Yahya Khan, launched a Pakistani version of Israel's 1967 air blitz in hopes that one rapid attack would cripple India's far superior air power. But India was alert, Pakistani pilots were inept, and Yahya's strategy of scattering his thin air force over a dozen air fields was a bust!", p. 34, Newsweek, 20 December 1971
  100. "India and Pakistan: Over the Edge". Time. 13 December 1971. मूल से 8 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009. नामालूम प्राचल |subscription= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  101. "1971: Pakistan intensifies air raids on India". BBC News. 3 December 1971. मूल से 30 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  102. Garver, John W. (1 दिसंबर 2015). China's Quest: The History of the Foreign Relations of the People's Republic of China (अंग्रेज़ी में). Oxford University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780190261061. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  103. Goldrick, James (1997). No Easy Answers. New Delhi: Lancer's Publications and Distributors. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-897829-02-7.
  104. Goldrick, James (1997). No Easy Answers (PDF). New Delhi, India: Sona Printers, India. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1 897829 02 7. मूल (PDF) से 24 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  105. Seapower: A Guide for the Twenty-first Century By Geoffrey Till page 179
  106. Branfill-Cook, Roger (27 अगस्त 2014). Torpedo: The Complete History of the World's Most Revolutionary Naval Weapon (अंग्रेज़ी में). Seaforth Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781848322158. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  107. "Trident, Grandslam and Python: Attacks on Karachi". Bharat Rakshak. मूल से 26 September 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  108. Shabir, Usman. "The Second Missile Attack «  PakDef Military Consortium". pakdef.org. Pakistan Defence, Usman. मूल से 24 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  109. "Defence Notes". defencejournal.com. मूल से 1 जनवरी 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि अप्रैल 25, 2012.
  110. Olsen, John Andreas (2011). Global Air Power. Potomac Books. पृ॰ 237. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-59797-680-0.
  111. "Remembering our war heroes". The Hindu. Chennai, India. 2 December 2006. मूल से 28 सितंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 6 मई 2017.
  112. 'Does the US want war with India?' Archived 2010-10-25 at the वेबैक मशीन. Rediff.com (31 December 2004). Retrieved on 14 April 2011.
  113. Pike, John. "Pakistan Marines (PM)". www.globalsecurity.org. Global security, Marines. मूल से 16 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  114. "Utilisation of Pakistan merchant ships seized during the 1971 war". Irfc-nausena.nic.in. मूल से 1 मार्च 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2012.
  115. "Damage Assesment – 1971 Indo-Pak Naval War" (PDF). B. Harry. मूल (PDF) से 8 May 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 June 2010.
  116. "Military Losses in the 1971 Indo-Pakistani War". Venik. मूल से 25 फ़रवरी 2002 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 मई 2005.
  117. Tariq Ali (1983). Can Pakistan Survive? The Death of a State. Penguin Books Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-14-022401-6.
  118. Jon Lake, "Air Power Analysis: Indian Airpower", World Air Power Journal, Volume 12
  119. Group Captain M. Kaiser Tufail, "Great Battles of the Pakistan Airforce" and "Pakistan Air Force Combat Heritage" (pafcombat) et al., Feroze sons, ISBN 969-0-01892-2
  120. "Indo-Pakistani conflict". Library of Congress Country Studies. मूल से 19 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  121. "Picture Gallery – Aviation Art by Group Captain Syed Masood Akhtar Hussaini". PAF Falcons. मूल से 30 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 July 2012.
  122. Khan, Sher. "Last Flight from East Pakistan". www.defencejournal.com. Defence Journal, 2001. मूल से 3 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  123. Bowman, Martin (30 जनवरी 2016). Cold War Jet Combat: Air-to-Air Jet Fighter Operations 1950–1972 (अंग्रेज़ी में). Pen and Sword. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781473874633. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  124. Simha, Rakesh Krishnan (17 January 2012). "How India brought down the US' supersonic man". Russia & India Report (अंग्रेज़ी में). Russia & India Report. मूल से 11 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  125. "Why the Indian Air Force has a high crash rate". मूल से 21 मार्च 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मई 2017.
  126. Jr, Karl DeRouen; Heo, Uk (10 मई 2007). Civil Wars of the World: Major Conflicts Since World War II (अंग्रेज़ी में). ABC-CLIO. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781851099191. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  127. Singh, Dipender (27 June 2008). "'Sam gave dignity to Army in 1971, after 1962 debacle'". Hindustan Times. मूल से 26 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 December 2016.
  128. Palit, Maj Gen DK (10 अक्टूबर 2012). The Lightning Campaign: The Indo-Pakistan War, 1971 (अंग्रेज़ी में). Lancer Publishers. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781897829370. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  129. Hasnat, Syed Farooq (2011). Pakistan (अंग्रेज़ी में). ABC-CLIO. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780313346972. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  130. Goswami, Arvind (13 सितंबर 2012). 3 D Deceit, Duplicity & Dissimulation of U.S. Foreign Policy Towards India, Pakistan & Afghanistan (अंग्रेज़ी में). AuthorHouse. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781477257098. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  131. Alam, Dr Shah (12 जून 2012). Pakistan Army: Modernisation, Arms Procurement and Capacity Building (अंग्रेज़ी में). Vij Books India Pvt Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789381411797.
  132. Nair, Sreekumar (1 मार्च 2010). Interpretation (अंग्रेज़ी में). Pustak Mahal. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788122311112. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  133. Paret, Peter; Gordon A. Craig; Felix Gilbert (1986). Makers of Modern Strategy: From Machiavelli to the Nuclear Age. Oxford University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-820097-0., pp802
  134. Cohen, Stephen P. (21 सितंबर 2004). The Idea of Pakistan (अंग्रेज़ी में). Brookings Institution Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0815797613. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  135. Sengupta, Ramananda. "1971 War: 'I will give you 30 minutes'". Sify. Sify, Sengupta. मूल से 24 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  136. Naseer, Javed (26 अक्टूबर 2012). The Morning Echo: An Observation of Nature and Science (अंग्रेज़ी में). iUniverse, Naseer. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781475957082. अभिगमन तिथि 24 December 2016.
  137. Nayar, Kuldip (3 February 1998). "Of betrayal and bungling". The Indian Express. मूल से 23 August 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  138. "Huge bag of prisoners in our hands". Bharat Rakshak. मूल से 1 अक्तूबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  139. Burke, S. M (1974). Mainsprings of Indian and Pakistani Foreign Policies – S. M. Burke. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780816607204. अभिगमन तिथि 27 July 2012.
  140. "Turtuk, a Promised Land Between Two Hostile Neighbours". मूल से 26 अगस्त 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अगस्त 2017.
  141. "An encounter with the 'king' of Turtuk, a border village near Gilgit-Baltistan". मूल से 21 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अगस्त 2017.
  142. "A portrait of a village on the border". मूल से 26 अगस्त 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अगस्त 2017.
  143. "Have you heard about this Indian Hero?". rediff.com. 22 December 2011. मूल से 14 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अगस्त 2017.
  144. "The Simla Agreement 1972". Story of Pakistan. मूल से 14 June 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.
  145. "1971 India Pakistan War: Role of Russia, China, America and Britain". The World Reporter. मूल से 1 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 30 October 2011.
  146. Jackson, Robert (17 जून 1978). South Asian Crisis: India — Pakistan — Bangla Desh (अंग्रेज़ी में). Springer. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781349041633. अभिगमन तिथि 22 December 2016.
  147. VSM, Brig Amar Cheema (31 मार्च 2015). The Crimson Chinar: The Kashmir Conflict: A Politico Military Perspective (अंग्रेज़ी में). Lancer Publishers. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170623014. अभिगमन तिथि 27 December 2016.
  148. Harold H. Saunders, "What Really Happened in Bangladesh" Foreign Affairs (2014) 93#4 d
  149. Alvandi, Roham. Nixon, Kissinger, and the Shah: The United States and Iran in the Cold War (अंग्रेज़ी में). Oxford University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780190610685. अभिगमन तिथि 27 December 2016.
  150. Shalom, Stephen R. "The Men Behind Yahya in the Indo-Pak War of 1971". Coalition to Oppose the Arms Trade. मूल से 23 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 October 2009.साँचा:Self-published source
  151. Hanhimäki, Jussi (2004). The flawed architect: Henry Kissinger and American foreign policy. Oxford University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-19-517221-8.
  152. Lewis, John P. (9 December 1971). "Mr. Nixon and South Asia". The New York Times. मूल से 28 सितंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2017. The Nixon Administration's South Asia policy... is beyond redemption

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]