दशवैकालिक
दिखावट
जैन धर्म |
---|
![]() |
प्रार्थना |
मुख्य व्यक्तित्व |
![]() |
दशवैकालिक आचार्य शय्यम्भव की निर्यूहणकृति है , वे श्रुतकेवली थे। उन्होंने विभिन्न पूर्वों से दशवैकालिक निर्यूहण किया।[1] इसमें १० अध्याय हैं , इसकी रचना विकाल में पूर्ण हुई थी।
दशवैकालिक में मुख्य रूप से धर्मका स्वरूप साधु की भिक्षाचर्या , श्रामण्य की पूर्व भूमिका भाषाशुद्धि , विनय समाधि आदि का सुंदर विवेचन [2] हुआ है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ .Jainlibrary. "Dashvaikalika Sutra" (PDF). www.jainlibrary.org. अभिगमन तिथि 20 फरवरी 2016.[मृत कड़ियाँ]
- ↑ Yumpu. "Dashvaikalika Sutra - Jain Library - Yumpu". www.yumpu.com. अभिगमन तिथि 20 फरवरी 2016.
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]![]() | यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |