"कबीर निर्णय मंदिर": अवतरणों में अंतर

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'''कबीर निर्णय मंदिर''' मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित है। यह मंदिर पूरे विश्व में कबीर के पारख सिद्धांतो को मानने वालों का सबसे बड़ा केंद्र है।<ref>{{cite web|url=http://mnaidunia.jagran.com/madhya-pradesh/burhanpur-burhanpur-kabir-379939|title=देशभर से जुटे साधक, जाना कबीर का गूढ़ रहस्य|publisher=mnaidunia.jagran.com|accessdate=2017-07-18}}</ref>
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==इतिहास==
==इतिहास==
कबीर निर्णय मंदिर की स्थापना पूरण दास साहेब ने की थी। कहा जाता है कि उनका ताल्लुक महाराष्ट्र के एक जमींदार परिवार से था। वे 11 वर्ष की अवस्था में वैरागी हो गए थे और सद्गुरु की खोज में निकल पड़े थे। घूमते-घूमते वे रीवा पहुंच जहां उनकी भेंट सुखलाल साहेब से हुई। उनसे कबीर साहित्य की शिक्षा-दिक्षा लेकर वे कबीरपंथ का प्रचार करने लगे। प्रचार करते-करते वे ताप्ती नदी के किनारे पहुंचे और साधना करने लगे। साधना के दौरान उन्होंने 'वैराग्य शतक' और 'निर्णयसार' की रचना की। उन्होंने कबीर के बीजक की टीका भी लिखी, जिसे बीजक की पहली टीका कहा जाता है। इस टीका का नाम 'त्रिज्या' रखा गया। टीका पूर्ण करने के तीन दिन बाद उन्होंने अपनी देह त्याग दी। तभी से हर वर्ष कारतिक पूर्णिमा के दिन ताप्ती के तट पर कबीर निर्णय मंदिर के पास कबीर पंथियों का मेला लगता है।
कबीर निर्णय मंदिर की स्थापना पूरण दास साहेब ने की थी। कहा जाता है कि उनका ताल्लुक महाराष्ट्र के एक जमींदार परिवार से था। वे 11 वर्ष की अवस्था में वैरागी हो गए थे और सद्गुरु की खोज में निकल पड़े थे। घूमते-घूमते वे रीवा पहुंच जहां उनकी भेंट सुखलाल साहेब से हुई। उनसे कबीर साहित्य की शिक्षा-दिक्षा लेकर वे कबीरपंथ का प्रचार करने लगे। प्रचार करते-करते वे ताप्ती नदी के किनारे पहुंचे और साधना करने लगे। साधना के दौरान उन्होंने 'वैराग्य शतक' और 'निर्णयसार' की रचना की। उन्होंने कबीर के बीजक की टीका भी लिखी, जिसे बीजक की पहली टीका कहा जाता है। इस टीका का नाम 'त्रिज्या' रखा गया। टीका पूर्ण करने के तीन दिन बाद उन्होंने अपनी देह त्याग दी। तभी से हर वर्ष कारतिक पूर्णिमा के दिन ताप्ती के तट पर कबीर निर्णय मंदिर के पास कबीर पंथियों का मेला लगता है।

19:02, 17 जुलाई 2017 का अवतरण

कबीर निर्णय मंदिर मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित है। यह मंदिर पूरे विश्व में कबीर के पारख सिद्धांतो को मानने वालों का सबसे बड़ा केंद्र है।[1][2]

इतिहास

कबीर निर्णय मंदिर की स्थापना पूरण दास साहेब ने की थी। कहा जाता है कि उनका ताल्लुक महाराष्ट्र के एक जमींदार परिवार से था। वे 11 वर्ष की अवस्था में वैरागी हो गए थे और सद्गुरु की खोज में निकल पड़े थे। घूमते-घूमते वे रीवा पहुंच जहां उनकी भेंट सुखलाल साहेब से हुई। उनसे कबीर साहित्य की शिक्षा-दिक्षा लेकर वे कबीरपंथ का प्रचार करने लगे। प्रचार करते-करते वे ताप्ती नदी के किनारे पहुंचे और साधना करने लगे। साधना के दौरान उन्होंने 'वैराग्य शतक' और 'निर्णयसार' की रचना की। उन्होंने कबीर के बीजक की टीका भी लिखी, जिसे बीजक की पहली टीका कहा जाता है। इस टीका का नाम 'त्रिज्या' रखा गया। टीका पूर्ण करने के तीन दिन बाद उन्होंने अपनी देह त्याग दी। तभी से हर वर्ष कारतिक पूर्णिमा के दिन ताप्ती के तट पर कबीर निर्णय मंदिर के पास कबीर पंथियों का मेला लगता है।

संदर्भ

  1. "देशभर से जुटे साधक, जाना कबीर का गूढ़ रहस्य". mnaidunia.jagran.com. अभिगमन तिथि 2017-07-18.
  2. "संत कबीर का संदेश जानने और समझने के लिए दुनिया भर से आ रहे हैं कबीरपंथ के अनुयायी". univarta.com. अभिगमन तिथि 2017-07-18.

बाहरी कड़ियां

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