१ + १ + १ + १ + · · ·
गणित में, 1 + 1 + 1 + 1 + · · ·, जिसे निम्न प्रकार भी लिखा जाता है , , अथवा साधारणतया , एक अपसारी श्रेणी है इसका अर्थ यह है कि इस अनुक्रम के आंशिक योग वास्तविक संख्याओं में सीमा पर अभिसरण नहीं करते। अनुक्रम 1n को सार्वानुपात 1 के साथ गुणोत्तर श्रेणी भी माना जा सकता है। विस्तारित वास्तविक संख्या रेखा के प्रसंग में
चूँकि इसके आंशिक योग का अनुक्रम सीमा रहित एकदिष्टतः वर्धमान है।
जहाँ n0 का योग एक भौतिकीय अनुप्रयोग के रूप में प्राप्त होता है, यह कभी-कभी ज़ेटा फलन नियमितीकरण के रूप में भी प्राप्त होता है। यह रीमान ज़ेटा फलन का 1=s = 0 पर मान है
यद्यपि उपरोक्त दोनों सूत्र शून्य पर वैध नहीं हैं, अतः रीमान ज़ेटा फलन का वैश्लेषिक अनुवर्ती काम में लिया जा सकता है,
इसका उपयोग करने पर (यहाँ Γ(1) = 1 दिया गया है।),
जहाँ ζ(s) का घातिय श्रेणी विस्तार लगभग s = 1 लागू होता है क्योंकि ζ(s) का वहाँ पर अवशेष का साधारण ध्रुव प्राप्त होता है। इस अर्थ में 1 = 1 + 1 + 1 + 1 + · · · = ζ(0) = 1/2 लिखा जाता है।
एमिलिओ एलिज़ल्ड़े ने श्रेणी के सम्बंध में निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया:
हिन्दी अनुवाद: एक वर्ष से भी कम समय में दो प्रतिष्ठित भौतिक विज्ञानियों 'ए॰ स्लाव्नोव और एफ॰ यन्दुरें ने दो भिन्न विषयों पर बार्सिलोना में संगोष्ठियाँ प्रस्तुत की। यह उल्लेखनीय था कि इन दोनों प्रस्तुतियों में एक बिन्दु पर दोनों वक्ताओं ने निम्न शब्दों द्वारा श्रोताओं को निवेदित किया: 'जैसा कि हम जानते हैं, 1 = 1 + 1 + 1 + · · · = −1⁄2 होता है' शायद जिसका अर्थ है: यदि आप यह नहीं जानते तो यह लगातार सुनते रहना अर्थहीन है।[1]
ये भी देखें
[संपादित करें]टिप्पणी
[संपादित करें]- ↑ एलिज़ल्ड़े, एमिलियो (2004). "ब्रह्माण्ड विज्ञान : प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोग (Cosmology: Techniques and Applications)". Proceedings of the II International Conference on Fundamental Interactions.