"इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय": अवतरणों में अंतर

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२०० एकड़ क्षेत्रफल में स्थापित इस संग्रहालय के दो भागों में एक भाग खुले आसमान के नीचे है और दूसरा एक भव्य भवन में। मुक्ताकाश प्रदर्शनी में भारत की विविधता को दर्शाया गया है। इसमें हिमालयी, तटीय, रेगिस्तानी व जनजातीय निवास के अनुसार वर्गीकृत कर प्रदर्शित किया गया है। मध्य-भारत की जनजातियों को भी पर्याप्त स्थान मिला है जिनके अनूठे रहन-सहन को यहाँ पर देखा जा सकता है। आदिवासियों के आवासों को उनके बरतन, रसोई, कामकाज के उपकरण अन्न भंडार तथा परिवेश को हस्तशिल्प, देवी देवताओं की मूर्तियों और स्मृति चिन्हों से सजाया गया है। बस्तर [[दशहरा|दशहरे]] का रथ भी यहाँ प्रदर्शित है जो आदिवासियों और उनके राजपरिवार की परंपरा का एक भाग है।
२०० एकड़ क्षेत्रफल में स्थापित इस संग्रहालय के दो भागों में एक भाग खुले आसमान के नीचे है और दूसरा एक भव्य भवन में। मुक्ताकाश प्रदर्शनी में भारत की विविधता को दर्शाया गया है। इसमें हिमालयी, तटीय, रेगिस्तानी व जनजातीय निवास के अनुसार वर्गीकृत कर प्रदर्शित किया गया है। मध्य-भारत की जनजातियों को भी पर्याप्त स्थान मिला है जिनके अनूठे रहन-सहन को यहाँ पर देखा जा सकता है। आदिवासियों के आवासों को उनके बरतन, रसोई, कामकाज के उपकरण अन्न भंडार तथा परिवेश को हस्तशिल्प, देवी देवताओं की मूर्तियों और स्मृति चिन्हों से सजाया गया है। बस्तर [[दशहरा|दशहरे]] का रथ भी यहाँ प्रदर्शित है जो आदिवासियों और उनके राजपरिवार की परंपरा का एक भाग है।
[[चित्र:Rabari house.jpg|left|thumb|200x200px|इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में प्रदर्शित कुछ कृतियाँ।]]
[[चित्र:Rabari house.jpg|left|thumb|200x200px|इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में प्रदर्शित कुछ कृतियाँ।]]
<nowiki> </nowiki>भीतरी संग्रहालय भवन बहुत विशाल है, जिसका स्थापत्य अनूठा है। यह संग्रहालय ढालदार भूमि पर १० हजार वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में फैला है। इसके अंदर अनेक प्रदर्शनी कक्ष हैं। प्रथम कक्ष में मानव जीवन के विकास की कहानी को चरणबद्ध रूप से दर्शाने के लिए माडलों व स्केचों का सहारा लिया गया है। देश के विभिन्न भागों से जुटाए गए साक्ष्यों को भी यहाँ रखा गया है। यहाँ विभिन्न समाजों के जनजीवन की बहुरंगी झलक तो देखने को मिलती ही है, अलग-अलग क्षेत्रों के परिधान, साजसज्जा, आभूषण, संगीत के उपकरण, पारंपरिक कला, हस्तशिल्प, शिकार, मछली मारने के उपकरण, कृषि उपकरण, औजार व तकनीकी, पशुपालन, कताई व बुनाई के उपकरण, मनोरंजन, उनकी कला से जुडे नमूने से भी परिचय होता है। यह संग्रहालय २१ मार्च १९७७ में [[दिल्ली|नई दिल्ली]] के बहावलपुर हाउस में खोला गया था किंतु दिल्ली में पर्याप्त जमीन व स्थान के अभाव में इसे भोपाल में लाया गया। चूँकि श्यामला पहाडी के एक भाग में पहले से ही प्रागैतिहासिक काल की प्रस्तर पर बनी कुछ कलाकृतियाँ थीं, इसलिए इसे यहीं स्थापित करने का निर्णय लिया गया।<ref>{{cite web |url= http://www.igrms.com/defaulthindi.htm|title=इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय|accessmonthday=[[४ अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher=इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय |language=}}</ref>
भीतरी संग्रहालय भवन बहुत विशाल है, जिसका स्थापत्य अनूठा है। यह संग्रहालय ढालदार भूमि पर १० हजार वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में फैला है। इसके अंदर अनेक प्रदर्शनी कक्ष हैं। प्रथम कक्ष में मानव जीवन के विकास की कहानी को चरणबद्ध रूप से दर्शाने के लिए माडलों व स्केचों का सहारा लिया गया है। देश के विभिन्न भागों से जुटाए गए साक्ष्यों को भी यहाँ रखा गया है। यहाँ विभिन्न समाजों के जनजीवन की बहुरंगी झलक तो देखने को मिलती ही है, अलग-अलग क्षेत्रों के परिधान, साजसज्जा, आभूषण, संगीत के उपकरण, पारंपरिक कला, हस्तशिल्प, शिकार, मछली मारने के उपकरण, कृषि उपकरण, औजार व तकनीकी, पशुपालन, कताई व बुनाई के उपकरण, मनोरंजन, उनकी कला से जुडे नमूने से भी परिचय होता है। यह संग्रहालय २१ मार्च १९७७ में [[दिल्ली|नई दिल्ली]] के बहावलपुर हाउस में खोला गया था किंतु दिल्ली में पर्याप्त जमीन व स्थान के अभाव में इसे भोपाल में लाया गया। चूँकि श्यामला पहाडी के एक भाग में पहले से ही प्रागैतिहासिक काल की प्रस्तर पर बनी कुछ कलाकृतियाँ थीं, इसलिए इसे यहीं स्थापित करने का निर्णय लिया गया।<ref>{{cite web |url= http://www.igrms.com/defaulthindi.htm|title=इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय|accessmonthday=[[४ अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएम|publisher=इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय |language=}}</ref>


यहाँ स्थित दूसरा संग्रहालय राज्य आदिवासी संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। यह भी श्यामला पहाडी़ पर स्थित है और आदिम जाति अनुसंधान केंद्र के परिसर में है। मध्यप्रदेश के आदिवासियों के जनजीवन व उनकी संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से इस संस्थान की स्थापना १९५४ में छिंदवाडा में कर दी गई थी किंतु किसी केंद्रीय स्थान में इसकी उपयोगिता को देखते हुए १९६५ में इसे छिंदवाडा से भोपाल स्थानांतरित कर दिया गया। इस संग्रहालय में जनजातियों की उपासना की मूर्तियाँ, संगीत उपकरण, आभूषण, चित्रकारी, प्रस्तर उपकरण, कृषि उपकरण, शिकार करने के हथियार-तीर कमान, मस्त्य आखेट के उपकरण, वस्त्र हस्तशिल्प व उनके औषध तन्त्र आदि संग्रहीत हैं। छत्तीसगढ राज्य के गठन से पूर्व में इसमें वहाँ की भी जनजातियाँ शामिल थी किंतु राज्य बनने के बाद इस संग्रहालय का क्षेत्र कुछ कम हो गया। राज्य की लगभग ४० जनजातियों द्वारा निर्मित कालकृतियों को यहाँ रखा जा रहा है जिनमें सहरिया, भील, गोंड भरिया, कोरकू, प्रधान, मवासी, बैगा, पनिगा, खैरवार कोल, पाव भिलाला, बारेला, पटेलिया, डामोर आदि शामिल हैं।<ref>{{cite web |url= http://in.jagran.yahoo.com/news/travel/general/16_36_295.html|title=देखने चलें अतीत के जनजीवन को|accessmonthday=[[४ अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएमएल|publisher=जागरण|language=}}</ref>
यहाँ स्थित दूसरा संग्रहालय राज्य आदिवासी संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। यह भी श्यामला पहाडी़ पर स्थित है और आदिम जाति अनुसंधान केंद्र के परिसर में है। मध्यप्रदेश के आदिवासियों के जनजीवन व उनकी संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से इस संस्थान की स्थापना १९५४ में छिंदवाडा में कर दी गई थी किंतु किसी केंद्रीय स्थान में इसकी उपयोगिता को देखते हुए १९६५ में इसे छिंदवाडा से भोपाल स्थानांतरित कर दिया गया। इस संग्रहालय में जनजातियों की उपासना की मूर्तियाँ, संगीत उपकरण, आभूषण, चित्रकारी, प्रस्तर उपकरण, कृषि उपकरण, शिकार करने के हथियार-तीर कमान, मस्त्य आखेट के उपकरण, वस्त्र हस्तशिल्प व उनके औषध तन्त्र आदि संग्रहीत हैं। छत्तीसगढ राज्य के गठन से पूर्व में इसमें वहाँ की भी जनजातियाँ शामिल थी किंतु राज्य बनने के बाद इस संग्रहालय का क्षेत्र कुछ कम हो गया। राज्य की लगभग ४० जनजातियों द्वारा निर्मित कालकृतियों को यहाँ रखा जा रहा है जिनमें सहरिया, भील, गोंड भरिया, कोरकू, प्रधान, मवासी, बैगा, पनिगा, खैरवार कोल, पाव भिलाला, बारेला, पटेलिया, डामोर आदि शामिल हैं।<ref>{{cite web |url= http://in.jagran.yahoo.com/news/travel/general/16_36_295.html|title=देखने चलें अतीत के जनजीवन को|accessmonthday=[[४ अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format= एचटीएमएल|publisher=जागरण|language=}}</ref>

14:05, 20 सितंबर 2015 का अवतरण

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय का द्वार।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय (IGRMS) भोपाल स्थित एक मानवविज्ञान संग्रहालय है। इसका उद्देश्य भारत के विशेष सन्दर्भ में मानव तथा संस्कृति के विकास के इतिहास को प्रदर्शित करना है। यह अनोखा संग्रहालय शामला की पहाडियों पर २०० एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है, जहाँ ३२ पारंपरिक एवं प्रागैतिहासिक चित्रित शैलाश्रय भी हैं।[1] यह भारत ही नहीं अपितु एशिया में मानव जीवन को लेकर बनाया गया विशालतम संग्रहालय है। इसमें भारतीय प्ररिप्रेक्ष्य में मानव जीवन के कालक्रम को दिखाया गया है। इस संग्रहालय में भारत के विभिन्‍न राज्यों की जनजातीय संस्‍कृति की झलक देखी जा सकती है। यह संग्रहालय जिस स्‍थान पर बना है, उसे प्रागैतिहासिक काल से संबंधित माना जाता है। सोमवार और राष्ट्रीय अवकाश के अतिरिक्त यह संग्रहालय प्रतिदिन प्रातः १० बजे से शाम ५ बजे तक खुला रहता है।

परिचय

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय सहस्रों वर्षों में विकसित बहुमूल्य सांस्कृतिक प्रतिमानों की वैकल्पिक वैद्यता को समारोहित करने हेतु भारत में एक अंतर्क्रियात्मक संग्रहालय आंदोलन का प्रणेता है। यह संस्थान राष्ट्रीय एकता हेतु कार्यरत है तथा विलुप्तप्राय परन्तु बहुमूल्य सांस्कृतिक परम्पराओं के संरक्षण और पुनर्जीवीकरण हेतु शोध और प्रशिक्षण के माध्यम से अन्य संस्थानों से सम्बंध बनाने हेतु तथा जैविक उद्विकास और विभिन्नता और एकता को प्रदर्शनियों के माध्यम से दर्शाने हेतु कार्यरत है। इं.गां.रा.मा.सं. अपनी प्रदर्शनियों और साल्वेज गतिविधियों के माध्यम से हजारों वर्षों से पोषित देशज ज्ञान तथा मूल्यों, भारत की पारंपरिक जीवन शैली की सुन्दरता को प्रदर्शित करता और पारिस्थितिकी, पर्यावरण, स्थानीय मूल्यों, प्रथाओं इत्यादि के अभूतपूर्व विनाश के प्रति सचेत करता है। संग्रहालय की शैक्षणिक प्रक्रिया में एक बदलाव आया है और इं.गां.रा.मा.सं. इस प्रक्रिया में स्वयं हेतु एक भूमिका सुनिश्चित करता है।

२०० एकड़ क्षेत्रफल में स्थापित इस संग्रहालय के दो भागों में एक भाग खुले आसमान के नीचे है और दूसरा एक भव्य भवन में। मुक्ताकाश प्रदर्शनी में भारत की विविधता को दर्शाया गया है। इसमें हिमालयी, तटीय, रेगिस्तानी व जनजातीय निवास के अनुसार वर्गीकृत कर प्रदर्शित किया गया है। मध्य-भारत की जनजातियों को भी पर्याप्त स्थान मिला है जिनके अनूठे रहन-सहन को यहाँ पर देखा जा सकता है। आदिवासियों के आवासों को उनके बरतन, रसोई, कामकाज के उपकरण अन्न भंडार तथा परिवेश को हस्तशिल्प, देवी देवताओं की मूर्तियों और स्मृति चिन्हों से सजाया गया है। बस्तर दशहरे का रथ भी यहाँ प्रदर्शित है जो आदिवासियों और उनके राजपरिवार की परंपरा का एक भाग है।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में प्रदर्शित कुछ कृतियाँ।

भीतरी संग्रहालय भवन बहुत विशाल है, जिसका स्थापत्य अनूठा है। यह संग्रहालय ढालदार भूमि पर १० हजार वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में फैला है। इसके अंदर अनेक प्रदर्शनी कक्ष हैं। प्रथम कक्ष में मानव जीवन के विकास की कहानी को चरणबद्ध रूप से दर्शाने के लिए माडलों व स्केचों का सहारा लिया गया है। देश के विभिन्न भागों से जुटाए गए साक्ष्यों को भी यहाँ रखा गया है। यहाँ विभिन्न समाजों के जनजीवन की बहुरंगी झलक तो देखने को मिलती ही है, अलग-अलग क्षेत्रों के परिधान, साजसज्जा, आभूषण, संगीत के उपकरण, पारंपरिक कला, हस्तशिल्प, शिकार, मछली मारने के उपकरण, कृषि उपकरण, औजार व तकनीकी, पशुपालन, कताई व बुनाई के उपकरण, मनोरंजन, उनकी कला से जुडे नमूने से भी परिचय होता है। यह संग्रहालय २१ मार्च १९७७ में नई दिल्ली के बहावलपुर हाउस में खोला गया था किंतु दिल्ली में पर्याप्त जमीन व स्थान के अभाव में इसे भोपाल में लाया गया। चूँकि श्यामला पहाडी के एक भाग में पहले से ही प्रागैतिहासिक काल की प्रस्तर पर बनी कुछ कलाकृतियाँ थीं, इसलिए इसे यहीं स्थापित करने का निर्णय लिया गया।[2]

यहाँ स्थित दूसरा संग्रहालय राज्य आदिवासी संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। यह भी श्यामला पहाडी़ पर स्थित है और आदिम जाति अनुसंधान केंद्र के परिसर में है। मध्यप्रदेश के आदिवासियों के जनजीवन व उनकी संस्कृति के संरक्षण के उद्देश्य से इस संस्थान की स्थापना १९५४ में छिंदवाडा में कर दी गई थी किंतु किसी केंद्रीय स्थान में इसकी उपयोगिता को देखते हुए १९६५ में इसे छिंदवाडा से भोपाल स्थानांतरित कर दिया गया। इस संग्रहालय में जनजातियों की उपासना की मूर्तियाँ, संगीत उपकरण, आभूषण, चित्रकारी, प्रस्तर उपकरण, कृषि उपकरण, शिकार करने के हथियार-तीर कमान, मस्त्य आखेट के उपकरण, वस्त्र हस्तशिल्प व उनके औषध तन्त्र आदि संग्रहीत हैं। छत्तीसगढ राज्य के गठन से पूर्व में इसमें वहाँ की भी जनजातियाँ शामिल थी किंतु राज्य बनने के बाद इस संग्रहालय का क्षेत्र कुछ कम हो गया। राज्य की लगभग ४० जनजातियों द्वारा निर्मित कालकृतियों को यहाँ रखा जा रहा है जिनमें सहरिया, भील, गोंड भरिया, कोरकू, प्रधान, मवासी, बैगा, पनिगा, खैरवार कोल, पाव भिलाला, बारेला, पटेलिया, डामोर आदि शामिल हैं।[3]

संदर्भ

  1. "इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय" (एचटीएमएल). सिटीभोपाल. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  2. "इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय" (एचटीएम). इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)
  3. "देखने चलें अतीत के जनजीवन को" (एचटीएमएल). जागरण. नामालूम प्राचल |accessyear= की उपेक्षा की गयी (|access-date= सुझावित है) (मदद); नामालूम प्राचल |accessmonthday= की उपेक्षा की गयी (मदद)

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