"चौपाई": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो Undid edits by Pramod9200 (talk) to last version by अजीत कुमार तिवारी: सामग्री बिना सूचना हटाई।
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना SWViewer [1.3]
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
चौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के १६ मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है।<ref>{{cite book |last= |first= |title= हिन्दी साहित्य कोश, भाग- १|year=१९८५|publisher=ज्ञानमण्डल लिमिटेड|location=वाराणसी |id= |page=२४८ |accessday= |accessmonth= |accessyear= }}</ref>
चौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के १६ मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है।<ref>{{cite book |last= |first= |title= हिन्दी साहित्य कोश, भाग- १|year=१९८५|publisher=ज्ञानमण्डल लिमिटेड|location=वाराणसी |id= |page=२४८ |accessday= |accessmonth= |accessyear= }}</ref>
गोस्वामी तुलसीदास ने [[रामचरित मानस]] में चौपाइ छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
गोस्वामी तुलसीदास ने [[श्रीरामचरितमानस|रामचरित मानस]] में चौपाइ छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


== सन्दर्भ ==
== सन्दर्भ ==

07:53, 2 मार्च 2020 का अवतरण

चौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के १६ मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है।[1] गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में चौपाइ छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।

सन्दर्भ

  1. हिन्दी साहित्य कोश, भाग- १. वाराणसी: ज्ञानमण्डल लिमिटेड. १९८५. पृ॰ २४८.