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विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र

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विशाल अणुकणिका संयोजन का एक उदाहरण, जा़न-मारी लैह्न और साथियों द्वारा प्रतिवेदित (Angew. Chem., Int. Ed. Engl. 1996, 35, 1838-1840.)
क्लोरीन आयन का विशाल अणुकणिक, cucurbit[5]uril, and cucurbit[10]uril डे और साथियों द्वारा प्रतिवेदित (Angew. Chem. Int. Ed., 2002, 275-277.)

विशाल-अणुकणिका रासायन शास्त्र, रसायन शास्त्र का वह शाखा़ है, जिसमे अणुकणिकाओं के बीच गैर सह-संयुज बोन्डिंग का अध्ययन किया जाता है।[1][2] सामान्य तौर पर रसायन शास्त्र में ध्यान सह-संयुज बोन्डिंग पर रहा है, किन्तु विशाल-अणुकणिका रासायन शास्त्र में ध्यान अणुकणिकाओं के बीच शक्तिहीन और उत्त्क्रमात्मक अंतःक्रियाओं पर होता है। ये शक्तियाँ हैं हाइड्रोजन बाँड, धातु तालमेल, जल विरोधी बल, वॉन डर वॉल बल, pi-pi अंतःक्रिया और स्थिरविद्युत प्रभावें। यह शास्त्र महत्वपूर्ण सिद्धांतों का स्पष्टीकरण करता है, जैसे कि आणुविक स्व-संयोजन, रासायनिक बलन, आणुविक अभिज्ञान, परिचारक-अतिथि रसायन, यांत्र-आलिंगित आणुविक ढांचे और गतिक संयुज रसायन[3] गैर सह-संयुज का अध्ययन आवश्यक है जैविक प्रकृयाओं को समझने के लिये। इस अनुसन्धान में जीवाणु ही अकसर प्रयोगशालाएँ होंतीं हैं। इन प्रकृयाओं से नये तकनीकों के आविष्कार के लिये, जिनका प्रयोग नैनोतकनीकी मे किया जा सकता है।

१८७३ में जोहानेस डिडेरिक वॉन डर वॉल ने अंतर-आणुविक बलों की कल्पना की। किंतु नोबेल पुरुस्कृत हर्मन एमिल फिशर ने विशाल अणुकणिका रसायन शास्त की नींव रखी। १८९० में फिशर ने सुझाया के किण्वक-विकृत्य अंतःक्रियाएं ताले-चाबी के रूप में होतीं ह, जिन से जन्म हुआ आणुविक अभिज्ञान और परिचारक-अतिथि रसायन सिद्धांतों का। बीसवीं सदी के शुरुवात में धीरे-धीरे गैर सह-संयुज बोन्डिंग का ज्ञान समझमे आने लगा। १९२० में लेटिमर और रोडबुश ने हाइड्रोजन बाँड को समझाया।

इन सिद्धांतों के अनुप्रयोग से प्रोटीन के ढाचें और अन्य जीव प्रणालियों का दृष्टिगोचर हो पाया। उदाहरण के लिये, डी एन ऐ के सर्पिल घुमावदार ढांचे का परिज्ञान उसके दो न्यूक्लियोटाइड भांजों के बीच हाइड्रोजन बाँड की पकड के समझ से। डी-एन-ऐ के प्रतिलिपिकरण के लिये गैर सह-संयुज बोन्डिंग ज़रूरी है, क्योंकि ये ही दो भांजों को अलग-अलग होने दे कर, हर एक भांजे के प्रतिरूप से दो नये डी-एन-ऐ को बनाना सम्भव करते हैं।

रासायन शास्त्री इन सिद्धांतों को फिर संश्लेषिक पदार्थों को बनाने में करने लगे, जैसे कि मिसैल और सूक्ष्म-इमल्शन। १९६०-८० के बीच अनुसन्धान मे तेजी आई। चार्लस् पैडर्सन ने १९६७ में क्राउन ईथर (मुकुटनूमा हिमद्रव) () का संश्लेषण किया।

१९८७ मे डॉनल्ड क्रैम्, जा़न-मारी लैह्न और चार्लस् पैडर्सन को मिले नोबेल पुरस्कार से इस क्षेत्र को काफी बढावा मिला।[4] परिचारक-अतिथि रसायन के सिद्धांतों पर निर्मित संकर अणुकणिकाओं को भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया।

१९९० के करीब विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र और भी परिष्कृत हुआ। जेम्स फ्रेसर स्टोड्डार्ट ने आणुविक यंत्रों और आणुविक स्व-संयोजन के प्रयोग से जटिल ढांचें बनाये। ईटामर विलनर ने इस पैमाना पर प्रयोग किये जाने वाले संकेतों और प्रणालियों का विकास किया। वैद्युत-रसायनी और प्राकाशिक-रसायनी के प्रभाव से इस क्षेत्र मे और उन्नति हुई। नैनोतकनीकी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अध्ययन किया गया फुलरीन, नैनोकणों और डेन्ड्रैमर पर।

विशाल-अणुकणिकाओं में नियंत्रण

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ऊष्मागतिकी

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विशाल अणुकणिका रसायन शास्त के अंतःक्रियाओं में अस्थिरता बढी आसानी से आ जाता है, इसलिये नियंत्रण बहुत ही कठिन है। विशेषतः गैर सह-संयुज बोन्ड में बंध-ऊर्जा और सक्रियण शक्ति बहुत कम होती है। अर्हेनियस समीकरण के अनुसार एसी परिस्तिथी में बढते तापमान से आणुविके बंधन की दर बढती नही (जैसे की सह-संयुज बोन्डमें), बलकि, रासायनिक संतुलन के समीकरण हमें ये बतातें हैं कि ठीक इसका उलटा होता है तापमान के बढने से। कम तापमान में भी विशाल अणुकणिकाओं की प्रक्रियाओं में कठिनाइयाँ आती हैं, क्योंकि ये प्रक्रियाएँ धीमी पढ जातीं हैं। इसका शानदार उदाहरण है उष्ण-रक्ती जीव, जो पूर्णतह सीमित ताप फैलाव के अंदर काम करतीं हैं।

विशाल अणुकणिका रसायन शास्त मे ऊष्मागतिकी का रचना, नियंत्रण और अध्ययन के लिहाज से एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

वातावरण

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आणुविक वातावरण एक विशाल अणुकणिका वयवस्था में का महत्वपूर्ण है उसके चालन और स्थिरता के लिये। कई द्राववक (solvents) तीव्र हाइड्रोजन बाँड, स्थिरविद्युत और आवेश स्थानान्तरण (charge transfer) क्षमता रखते हैं, जिसके कारण वे जटिल वयवस्था की स्थिरता को छेड़ पाते हैं, यहाँ तक की उन वयवस्थाओं को पूरी तरह तोड भी सकतें हैं। इस लिये, सही द्राववक का चुनाव जरूरी है।

विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र के मूल सिद्धांत

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आणुविक स्व-संयोजन: आणुविक स्व-संयोजन प्रणालियों के निर्माण की वह प्रक्रिया है, जिसमे उस प्रणाली के बाहर से संयोजन में किसी प्रकार का सहयोग या संचालन नही किया जाता।

परिचारक-अतिथि रसायन का एक उदाहरण सैंडर्स और साथियों द्वारा प्रतिवेदित (Angew. Chem., Int. Ed. Engl. 1995, 34, 1096-1099.)
परिचारक-अतिथि संश्लिष्ट, p-xylylenediammonium, cucurbituril के अंदर बन्द, फ्रीमन द्वारा प्रतिवेदित (Acta. Crystallogr. B, 1984, 382-387.)

आणुविक अभिज्ञान दो संपूरक अणुकणिकाओं के बीच के विशेष बन्धन को कहा जाता है, जो गैर सह-संयुज अंतःक्रियाओं से अणुकणिकाओं के एक दूसरे को पहचानने से होता है। इसमें से किसी एक को परिचारक और दूसरे को अतिथि कहा जा सकता है और इनके बीच बनता है परिचारक-अतिथि संश्लिष्ट। इस ज्ञान का अनुप्रयोग आणुविक संकेतकों और उत्सर्जकों के बनाने में होता है।

प्रतिरूप-निर्देशित संश्लेषण: आणुविक अभिज्ञान और स्व-संयोजन को अगर पूर्वनिर्धारित अनुक्रम से किया जाये, तो इस रासायनिक प्रतिक्रिया से उष्मागतिकी के सिद्धांतों के तहत असम्भव सह-संयुज अंतःक्रियाओ को किया जा सकता है। इस तरह विशाल अणुकणिकाओं का प्रयोग उत्सर्जक के रूप मे होता है, जहाँ गैर सह-संयुज बलों से एक प्रतिक्रिया-साझी रसायन (जो की धातु आयन या जटिल अणुकणिका होता सकता है) विशाल अणुकणिका से जुड जातें हैं और अपने लक्ष्य के साथ प्रतिक्रिया के बाद हटा दिये जातें हैं।

यांत्र-आलिंगित आणुविक ढांचे का एक उदाहरण, रोटैक्सेन, जेम्स फ्रेसियर स्टॉडार्थ और साथियों द्वारा प्रतिवेदित (Eur. J. Org. Chem. 1998, 2565-2571.)

यांत्र-आलिंगित आणुविक ढांचे अणुकणिकाओं के वो संरचनाएं हैं जिनके बन्धन का कारण सिर्फ उनके रूपरेखा पर निर्भर करता है। कुछ हद तक गैर सह-संयुज बोन्डिंग का सहारा हो सकता है, पर इसमें सह-संयुज अंतःक्रियाओं का सहारा नही लिया जाता। विशाल अणुकणिका रसायन शास्त और प्रतिरूप-निर्देशित संश्लेषण के सहयोग से इन यौगिकों का प्रभावशाली रूप में संयोजन किया जाता है।

गतिक सह-संयुज रसायन में उष्मागतिकी के नियंत्रण में, एक उत्क्रमणीय (reversible) रासयनिक प्रतिक्रिया के रूप में, सह-संयुज बोन्डिंग को तोडकर पुनर्निर्मित किया जाता है। गैर सह-संयुज बोन्डिंग के निर्देशन में न्यूनतम ऊर्जा ढांचों के प्रयोग से यह सम्भव हो पाता है।

जैव-नकलबाजी़ (Biomimetics): कई संश्लिष्ट विशाल अणुकणिका पदार्थों का निर्माण प्रकृतिक दुनिया कि मिसालों की नकल उठा कर किया जाता है। इसके उदाहरण हैं प्रकाशिक-वैधयुत-रासायनिक प्रणालियाँ, उत्सर्जक प्रणालियाँ, प्रोटीन उत्पादन और आणुविक स्व-संयोजन

आणुविक छापन (Molecular imprinting): इस प्रणाली में एक परिचारक का निर्माण किया जाता है छोटे-छोटे अणुकणिकाओं को किसी प्रतिरूप पर स्थापित करके। निर्माण के बाद प्रतिरूप को हठा दिया जाता है।

आणुविक मशीनें: आणुविक स्तर पर बनी मशीनें जो पंक्तिरूप या घूर्णनित चालन, अंतरण और फांसने की क्षमता रखती हैं। इसके कुछ मूलरूप बनाये जा चुकें हँ, जो की विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र और नैनोतकनीकी के बीच की सीमा पर पडतीं हैं।


अनुप्रयोग

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पदार्थ तकनीकी: विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र और आणुविक अभिज्ञान के प्रयोग से नये पदार्थों को बनाना। नैनोतकनीकी में इसका महत्वपूर्ण योगदान है।

उत्सर्जक: विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र का उत्सर्जकों के अध्ययन और अभिकल्पना मे महत्वपूर्ण स्थान है। गैर सह-संयुज अंतःक्रियाएँ उत्सर्जन के लिये उचित प्रतिक्रिया-साझी रसायनों को सही लक्ष्य तक ले जा कर अवस्था संकरमण शक्ति को घटातें हैं। मिसैल और डेन्ड्रैमर के प्रयोग से प्रतिक्रिया उचित सूक्ष्म-वातावरण को भी बनाया जाता है, जो वृहत्-वातावरण मे संभव नही हो पाता।

औषध: विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र का औषधीय चिकित्सा के क्षेत्र मे औषधियों के शरीर पर दवा के बंधन-लक्ष्य स्थल की अंतःक्रियाओं के अध्ययन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। दवा सुपुर्दगी के आश्चर्यजनक उन्नति इनमे शामिल है। कोशिकाओं में प्रोटीन-प्रोटीन अंतःक्रियाओं को तोडने में भी विशाल अणुकणिका प्रणालियों का प्रयोग है।

आंकड़ा भंडारण और संसाधन: विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र की सहायता से आणुविक पैमाने पर अभिकलन (गणना) प्रणाली बनाया जा चुका है। वैद्युत अंतरक (ट्रांस्ड्यूसर) यंत्रों से इन्हे जोडा़ भी जा चुका है। आंकड़ा भंडारण के लिये आणुविक स्विचों का प्रयोग किया गया है, जिनमे कई तरीकों का अपनाया गया है, जैसे की: प्रकाशिक-वर्णिक और प्रकाशिक-समावयव, वैद्युत-वर्णिक और रिडोक्स (उपचयन-ऑक्सीकरण्) और यहाँ तक आणुविक गमन। प्रारिंभिक संश्लिष्ट आणुविक तर्क गेट बनाये जा चुकें हैं, यहाँ तक की अर्ध-संश्लिष्ट डी एन ए कम्प्यूटर भी बन चुके हैं।

पर्यावरण-अनुकूल रसायन: विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र का पर्यावरण-अनुकूल रसायन मे महत्वपूर्ण योगदान है, क्योंकि गैर सह-संयुज बोन्डिंग की तकनीकों की सहायता से रासायनिक अंतःक्रिया में द्राववकों की कम ज़रूरत पढती है।

अन्य यंत्र और उपयोगिताएँ: विशाल अणुकणिका रसायन शास्त्र को कई एसे पदार्थों को बनाने के लिये किया जाता है जो एक अकेले अणुकणिका से नही बनाया जा सकता। उदाहणार्थ, चुम्बकीय पदार्थ, प्रकाश-क्रियाशील पदार्थ, स्व-संवारिक पॉलिमर, आणुविक संकेत, इत्यादि। अनुसंधान चल रहा है उच्च-तकनीकी संकेत, रेडियोधर्मी अपशिष्ट उपचार के लिये प्रणालियाँ और विपर्यास रोगन कम्प्यूटरिकृत अक्षवत् टोमोग्राफी (CAT scans) के प्रभाविकता को बढाने के लिये।

सन्दर्भ

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  1. Lehn JM (1993). "विशाल अणुकणिका रसायन शास्त". Science. 260 (5115): 1762–3. PMID 8511582.
  2. विशाल अणुकणिका रसायन शास्त, J.-M. Lehn, Wiley-VCH (1995) ISBN-13:978-3527293117
  3. Gennady V. Oshovsky, Dr. Dr., David N. Reinhoudt, Prof. Dr. Ir., Willem Verboom, Dr. (2007). "जल में विशाल अणुकणिका रसायन शास्त". Angewandte Chemie International Edition. 46 (14): 2366–2393. doi:10.1002/anie.200602815.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  4. "रसायन और भौतिकी के नोबल पुरस्कृत वैज्ञानिकों की जयजयकार; तीन वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण किण्वक की खोज के लिये पुरस्कार" [1] Archived 2007-12-01 at the वेबैक मशीन

बाहरी कड़ियाँ

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