कार्बधातुक यौगिक

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उन रासायनिक वस्तुओं को, जिनमें एक या अधिक हाइड्रोकार्बन मूलक धातु या उपधातु (metalloid) से ऋजु संयोजित होते हैं, कार्बधातुक यौगिक (Organomettllic Compounds) कहते हैं। प्रकृति में ये अप्राप्य हैं, पर प्रयोगशाला में संश्लेषित इन यौगिकों की संख्या बहुत बड़ी है।

फ़्रैंकलैंड ने सर्वप्रथम 1849 ई. में डाइ-एथिल जस्ता नामक एक कार्बधातुक यौगिक का पृथक्करण किया और उसकी संरचना निर्धारित की। बाद में अनेक धातुओं और उपधातुओं के संयोग से कई यौगिकों का संश्लेषण किया गया। इन यौगिकों ने आधुनिक रसायन की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसे टेट्रा-एथिल सीस (Lead) एक बेहद उपयोगी प्रत्याघात (antiknock) है, जिसका उपयोग मोटर ईंधन में होता है। ये यौगिक कई प्रकार के हैं, जिन्हें साधारणत दो भागों में विभाजित किया जाता है : (1) "सरल" कार्बधातुक यौगिक, जिनमें कार्बनिक समूह आर (R) (ऐल्किल, ऐरिल आदि) धातु से संयोजित हैं और (2) कार्बधातुक यौगिक "मिश्रित", जब आर (R) और एक्स (X) (हैलोजन, हाइड्राक्सिल, हाइड्रोजन आदि) दोनों ही धातु से संबद्ध हों।

इन यौगिकों का संश्लेषण प्राय: जस्ता, मैग्नीशियम, पारद आदि धातुओं और ऐल्किल आयोडाइडों की अभिक्रिया से होता है। विशेष क्रियाशील होने के कारण इनका उपयोग रासायनिक संश्लेषण क्रियाओं में अधिकता से होता है। सोडियम मेथिल (NaCH3) जैसे सोडियम ऐल्किल की प्राप्ति, पारद ऐल्किलों पर सोडियम की अभिक्रिया से, होती है। शुद्ध रूप में ये अमणिभीय पदार्थ हैं, जो भिन्न-भिन्न विलायकों में अविलेय हैं। गर्म करने पर बिना द्रवित हुए ही विच्छेदित होते हैं।

जस्ता-ऐल्किल[संपादित करें]

इसकी प्राप्ति जस्ता और ऐल्किल आयोडाइडों की अभिक्रिया से होती है। जस्ते को जस्ता-ताम्र-युगल (Zinc-copper couple) के रूप में उपयोग करने से अभिक्रिया अधिक क्रियाशील होती है। पहले जस्ता ऐल्किल आयोडाइड की उत्पत्ति होती है, जो आसवन पर विच्छेदित होकर जस्ता ऐल्किल में परिवर्तित होता है :

C2 H5 I + Zn = C2 H5 Zn I

(एथिल आयोडाइड) + (जस्ता) = (जस्ता एथिल आयोडाइड)

2 C2 H5 Zn I --> Zn (C2 H5) + Zn I2

डाइथिल जस्ता आयोडाइड --> (डाइएथिल-जस्ता) + जस्ता आयोडाइड

ये जस्ता-ऐल्किल रंगहीन तथा दुर्गंधमय द्रव हैं जो उबलने पर विच्छेदित हो जाते हैं। ये हवा में शीघ्र ही जल उठते हैं और चमड़ी में कष्टप्रद फफोले उत्पन्न करते हैं।

कार्ब-मैग्नीशियम यौगिक[संपादित करें]

संश्लेषण के हेतु मैग्नीशियम का उपयोग सर्वप्रथम बार्बीर (Barbier) ने 1899 ई. में किया, किंतु इसका महत्व बताने का श्रेय उनके शिष्य विक्टर ग्रीनयार्ड को है। ग्रीनयार्ड ने दिखाया कि मैग्नीशियम शुष्क ईथर की उपस्थिति में बहुत से कार्बनिक हैलोजन योगिकों से अभिक्रिया करके (RMgX), जिसमें आर R = ऐल्किल अथवा एरिल समूह और एक्स X = हैलोजन है, यौगिक बनाता है। इनके असाधारण क्रियाशील होने के कारण इनका महत्व संश्लिष्ट रसायन में अतुलनीय है। (विशद वर्णन के लिए देखिए, "ग्रीनयार्ड के अभिकर्मक")। लीथियम एल्किलों की प्राप्ति शुष्क ईथर के माध्यम में ऐल्किल हैलाइडों और लिथियम की अभिक्रिया से होती है। गुणधर्म में ये ग्रीनयार्ड अभिकर्मकों के ही समान हैं और इनका भी उपयोग संश्लेषण के हेतु किया जाता है। ताम्र, रजत और स्वर्ण के कार्बधातुक यौगिकों—क्रमश: फेनिल ताम्र, (C6H5-Cu); फेनिल रजत, (C6H5-Ag) और फेनिल स्वर्ण, (C6H5-Au)-की प्राप्ति भी ग्रीनयार्ड अभिकर्मकों की सहायता से ही होती है। एक संयोजी (monovalent) ताम्र, स्वर्ण और रजत यौगिकों का लाक्षणिक गुण यह है कि ये पूर्ण रूप से R-R यौगिक यौगिकों तथा धातु (M) में विच्छेदित हो जाते हैं :

2C6 H5 M --> (C6 H5 -C6 H5 + 2M)

(फेनिल-ताम्र, रजत या स्वर्ण) --> (डाइफेनिल) + (धातु)

कैडमियम के यौगिक शुष्क कैडमियम क्लोराइड और ग्रीनयार्ड अभिकर्मक के संयोग से प्राप्त होते हैं।

C H3 Mg Cl + CdCl2 ® C H3 Cd Cl + Mg Cl2

टेट्रा-मेथिल सीस, मिश्रधातु और एथिल जैसे सीस-ऐल्किल क्लोराइड से प्राप्त करते हैं। थोड़ी मात्रा में पेट्रोल में मिश्रित किया जाता हे। जो प्रत्याघात (antiknock / ऐंटिनाक) का काम करता है।

पारद में हाइड्रोकार्बनों के कार्बन के साथ अथवा कार्बनिक मूलकों के साथ संयुक्त होने की विशेष क्षमता है। सोडियम संरस (Sodium Amalgam) सीधे ही ऐथिल आयोडाइड और ब्रोमोबेंज़ीन से अभिक्रिया करता है और पारद डाइ-एथिल Hg(C2H2)2 (क्वथनांक 159 डिग्री सें.) और पादर डाइफनिल, (C6 H5)2 Hg (गलनांक 120 दिग्री सें.) उत्पन्न होता है। बहुत से क्रियाशील पदार्थों, जैसे सौरभिक समाक्षरों या फेनिल से संजात केवल मरक्यूरिक एसीटेट के साथ गरम करने पर ही प्राप्त हो जाते हैं। आर्सैंनिक, ऐंटिमनी और बिस्मथ के योगिकों का भी विशेष महत्व है, क्योंकि उनमें से बहुत से अद्भुत औषघि गुणवाले सिद्ध हुए हैं। पोटैशियम ऐसीटेट और आर्सेनिक ट्राइ-आक्साइड के आसवन से एक सधूप द्रव, कैकोडिल आक्साइड (CH3)2 As O2 क्वथनांक 150 डिग्री सें.) प्राप्त होता है। कैकोडिल मूलक [(C H3)2 As] भी काफी स्थायी है। कैकोडिल आक्साइड के हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ आसवन पर कैकोडिल क्लोराइड (डाइ-मेथिल आर्सीन क्लोराइड) (C H3)2 As Cl की प्राप्ति होती है। मेथिली डाइक्लोरोआर्सीन C H3 AsCl का प्रयोग युद्ध में विषैली गैस के लिए किया जाता है। ऐंटिमनी के यौगिक भी गुणधर्म में इनसे बहुत मिलते हैं। कार्बवंग यौगिक गुणधर्म में सीस यौगिकों से मिलते हैं। स्टेनस क्लोराइड और मैग्नीशियम एथिल ब्रोमाइड से वंग डाइएथिल Sn (C2 H5)2 एक तैल प्राप्त होता है। इसी भाँति वंग डाइ फेनिल Sn (C2 H5)2 एकचटकीले पीले-चूर्ण के रूप में (गलनांक 130 डिग्री सें.) प्राप्त होता है।

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