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नक्षत्र

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आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुड़े हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं।

नक्षत्र सूची अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता, शतपथ ब्राह्मण और लगध के वेदांग ज्योतिष में मिलती है। भागवत पुराण के अनुसार ये नक्षत्रों की अधिष्ठात्री देवियाँ प्रचेतापुत्र दक्ष की पुत्रियाँ तथा चन्द्रमा की पत्नियाँ हैं।[1]

तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है। ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सूर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं—अर्थात् एक तारा दूसरे तारे से जिस ओर और जितनी दूर आज देखा जायगा उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा देखा जायगा। इस प्रकार ऐसे दो चार पास-पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति का ध्यान एक बार कर लेने से हम उन सबको दूसरी बार देखने से पहचान सकते हैं। पहचान के लिये यदि हम उन सब तारों के मिलने से जो आकार बने उसे निर्दिष्ट करके समूचे तारकपुंज का कोई नाम रख लें तो और भी सुभीता होगा। नक्षत्रों का विभाग इसीलिये और इसी प्रकार किया गया है।

चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है। खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है। इसी पथ में पड़नेवाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है। इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर 'नक्षत्र चक्र' कहलाता है। नीचे तारों की संख्या और आकृति सहित २७ नक्षत्रों के नाम दिए जाते हैं—

नक्षत्र तारासंख्या आकृति और पहचान
अश्विनी घोड़ा
भरणी त्रिकोण
कृत्तिका अग्निशिखा
रोहिणी गाड़ी
मृगशिरा हरिणमस्तक वा विडालपद
आर्द्रा उज्वल
पुनर्वसु ५ या ६ धनुष या धर
पुष्य १ वा ३ माणिक्य वर्ण
अश्लेषा कुत्ते की पूँछ वा कुलावचक्र
मघा हल
पूर्वाफाल्गुनी खट्वाकार X उत्तर दक्षिण
उत्तराफाल्गुनी शय्याकारX उत्तर दक्षिण
हस्त हाथ का पंजा
चित्रा मुक्तावत् उज्वल
स्वाती कुंकुं वर्ण
विशाखा ५ व ६ तोरण या माला
अनुराधा सूप या जलधारा
ज्येष्ठा सर्प या कुंडल
मुल ९ या ११ शंख या सिंह की पूँछ
पुर्वाषाढा सूप या हाथी का दाँत
उत्तरषाढा सूप
श्रवण बाण या त्रिशूल
धनिष्ठा प्रवेश मर्दल बाजा
शतभिषा १०० मंडलाकार
पूर्वभाद्रपद भारवत् या घंटाकार
उत्तरभाद्रपद दो मस्तक
रेवती ३२ मछली या मृदंग

इन २७ नक्षत्रों के अतिरिक्त 'अभिजित्' नाम का एक और नक्षत्र पहले माना जाता था पर वह पूर्वाषाढ़ा के भीतर ही आ जाता है, इससे अब २७ ही नक्षत्र गिने जाते हैं। इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं। महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण की पूर्णिमा को मृगशिरा वा आर्दा पर; इसी प्रकार और समझिए।


# नाम स्वामी ग्रह पाश्चात्य नाम मानचित्र स्थिति
1 अश्विनी (Ashvinī) केतु β and γ Arietis 00AR00-13AR20
2 भरणी (Bharanī) शुक्र (Venus) 35, 39, and 41 Arietis 13AR20-26AR40
3 कृत्तिका (Krittikā) रवि (Sun) Pleiades 26AR40-10TA00
4 रोहिणी (Rohinī) चन्द्र (Moon) Aldebaran 10TA00-23TA20
5 मॄगशिरा (Mrigashīrsha) मंगल (Mars) λ, φ Orionis 23TA40-06GE40
6 आद्रा (Ārdrā) राहु Betelgeuse 06GE40-20GE00
7 पुनर्वसु (Punarvasu) बृहस्पति(Jupiter) Castor and Pollux 20GE00-03CA20
8 पुष्य (Pushya) शनि (Saturn) γ, δ and θ Cancri 03CA20-16CA40
9 अश्लेशा (Āshleshā) बुध (Mercury) δ, ε, η, ρ, and σ Hydrae 16CA40-30CA500
10 मघा (Maghā) केतु Regulus 00LE00-13LE20
11 पूर्वाफाल्गुनी (Pūrva Phalgunī) शुक्र (Venus) δ and θ Leonis 13LE20-26LE40
12 उत्तराफाल्गुनी (Uttara Phalgunī) रवि Denebola 26LE40-10VI00
13 हस्त (Hasta) चन्द्र α, β, γ, δ and ε Corvi 10VI00-23VI20
14 चित्रा (Chitrā) मंगल Spica 23VI20-06LI40
15 स्वाती(Svātī) राहु Arcturus 06LI40-20LI00
16 विशाखा (Vishākhā) बृहस्पति α, β, γ and ι Librae 20LI00-03SC20
17 अनुराधा (Anurādhā) शनि β, δ and π Scorpionis 03SC20-16SC40
18 ज्येष्ठा (Jyeshtha) बुध α, σ, and τ Scorpionis 16SC40-30SC00
19 मूल (Mūla) केतु ε, ζ, η, θ, ι, κ, λ, μ and ν Scorpionis 00SG00-13SG20
20 पूर्वाषाढा (Pūrva Ashādhā) शुक्र δ and ε Sagittarii 13SG20-26SG40
21 उत्तराषाढा (Uttara Ashādhā) रवि ζ and σ Sagittarii 26SG40-10CP00
22 श्रवण (Shravana) चन्द्र α, β and γ Aquilae 10CP00-23CP20
23 श्रविष्ठा (Shravishthā) or धनिष्ठा मंगल α to δ Delphinus 23CP20-06AQ40
2 4शतभिषा (Shatabhishaj) राहु γ Aquarii 06AQ40-20AQ00
25 पूर्वभाद्र्पद (Pūrva Bhādrapadā) बृहस्पति α and β Pegasi 20AQ00-03PI20
26 उत्तरभाद्रपदा (Uttara Bhādrapadā) शनि γ Pegasi and α Andromedae 03PI20-16PI40
27 रेवती (Revatī) बुध ζ Piscium 16PI40-30PI00


28वें नक्षत्र का नाम

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28वें नक्षत्र का नाम अभिजित (Abhijit)(α, ε and ζ Lyrae - Vega - उत्तराषाढ़ा और श्रवण मध्ये)

जिस प्रकार चंद्रमा के पथ का विभाग किया गया है उसी प्रकार उस पथ का विभाग भी हुआ है जिसे सूर्य १२ महीनों में पूरा करता हुआ जान पड़ता है। इस पथ के १२ विभाग किए गए हैं जिन्हें राशि कहते हैं। जिन तारों के बीच से होकर चंद्रमा घूमता है उन्हीं पर से होकर सूर्य भी गमन करता हुआ जान पड़ता है; खचक्र एक ही है, विभाग में अंतर है। राशिचक्र के विभाग बड़े हैं जिनसें से किसी किसी के अंतर्गत तीन तीन नक्षत्र तक आ जाते हैं। ज्योतिषियों ने जब देखा कि बारह राशियों से सारे अंतरिक्ष के तारों और नक्षत्रों का निर्देश नहीं होता है तब उन्होंने और बहुत सी राशियों के नाम रखे। इस प्रकार राशियों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती गई। पर भारतीय ज्योतिषियों ने खगोल के उत्तर और दक्षिण खंड में जो तारे हैं उन्हें नक्षत्रों में बाँधकर निर्दिष्ट नहीं किया।

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. भागवत षष्ठ स्कंध षष्ठ अध्याय।