जीवरसायन
जीवरसायन विज्ञान या जैवरासायनिकी (अंग्रेज़ी -Biochemistry) रसायन शास्त्र की वह शाखा है जो जीवों के भीतर और उनसे संबंधित रासायनिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करती है जैसे कि पेड़-पौधों और जानवरों और उनके जैविक प्रक्रमों से सम्बन्धित विद्या। इसके अन्तर्गत जीवित कोशिकाओं में विद्यमान अवयव का संगठन और और उनमें घटित होने वाले परिवर्तनों का अध्य्यन किया जाता है।
जैवरासायनिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान दोनों की एक उपविधा है; जैव रसायन को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है: संरचनात्मक जीवविज्ञान, प्रकिण्व विज्ञान(एन्ज़ाइमिकी) और चयापचय । २०वीं शताब्दी के अंतिम दशकों तक, जैव रसायन इन तीन विषयों के माध्यम से जीवित प्रक्रियाओं को समझाने में सुसफल हो गया है। जीव विज्ञान के लगभग सभी क्षेत्रों को, जैवरासायनिक पद्धति और अनुसंधान के माध्यम से उजागर और विकसित किया जा रहा है। जीव रसायनशास्त्र, जीवन की उस रासायनिक आधार को समझने पर ध्यान केंद्रित करता है जो जैविक अणुओं को जीवित कोशिकाओं के भीतर और एक दूसरे कोशिकाओं के बीच होने वाली प्रक्रियाओं को जन्म देने के लायक बनाता है, बदले में जो ऊतकों और अंगों की समझ के साथ-साथ जीव संरचना और क्रिया विज्ञान अध्य्यन से संबंधित है। जीव रसायन, अणुजैविकी से निकटतः संबंधित है, जो जैविक घटना के आणविक तंत्र का अध्ययन है।
अधिकांश जीवरसायन, प्रोटीन, नाभिकीय अम्ल, कार्बोहाइड्रेट और लिपिड जैसे जैविक वृहदणुओं की संरचनाओं, आबंधों, प्रकार्यों और अंतःक्रियाओं से संबंधित है। वे कोशिकाओं की संरचना प्रदान करते हैं और जीवन से जुड़े कई प्रकार्य करते हैं। कोशिका का रसायन भी छोटे अणुओं और आयनों की प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करता है। ये अकार्बनिक हो सकते हैं (उदाहरण के लिए, पानी और धातु आयन) या कार्बनिक (उदाहरण के लिए, अमीनो अल्म, जिसका प्रोटीन-संश्लेषण में उपयोग किया जाता है)। रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से कोशिकाओं द्वारा अपने पर्यावरण से ऊर्जा का उपयोग करने के लिए प्रयोग की जाने वाली क्रियाविधि को चयापचय के रूप में जाना जाता है । जैव रसायन के निष्कर्ष मुख्य रूप से चिकित्सा, पोषण विज्ञान और कृषि में अनुप्रयुक्त होते हैं । चिकित्सा में, जैवरसायनविद् रोगों के कारणों और उपचारों की अन्विक्षा करते हैं । पोषणविज्ञान, स्वास्थ्य का अध्ययन करता है और स्वास्थ्य को कैसे बनाए रखा जाए और पोषक तत्वों की कमी के प्रभावों का भी अध्ययन करता है । कृषि में, जैवरसायनविद् मिट्टी और उर्वरक की जांच करते हैं । फसल की खेती में सुधार, फसल भंडारण और कीट नियंत्रण भी इनका लक्ष्य होता है।
विषय-वस्तु[संपादित करें]
जीवन के विवरण में,आणविक स्तर पर, कोशिका के भीतर होने वाले जटिल रूप से व परस्पर संबंधित सभी रासायनिक परिवर्तनों (अभिक्रियाओं) का विवरण शामिल है- यानी,जिन प्रक्रियाओं को मध्यस्थ चयापचय (intermediary metabolism) के रूप में भी जाना जाता है । वृद्धि, प्रजनन और आनुवंशिकता की प्रक्रियाएं,जो जैव रसायनज्ञ की जिज्ञासा के विषय भी हैं, मध्यस्थ चयापचय से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं और इन्हें चपापचय से अलग, स्वतंत्र रूप से नहीं समझा जा सकता है। एक जटिल बहुकोशिकीय जीव द्वारा प्रदर्शित गुणों और क्षमताओं को, उस जीव की अलग-अलग कोशिकाओं के गुणों में विघटित किया जा सकता है, और प्रत्येक व्यक्तिगत कोशिकाओं के व्यवहार को उसकी रासायनिक संरचना और उस कोशिका के भीतर होने वाले रासायनिक परिवर्तनों के संदर्भ में स्वतंत्र रूप से समझा जा सकता है।
अध्य्यन पद्धति व प्रविधि[संपादित करें]
इतिहास[संपादित करें]
जीवन के रसायनिक तत्व[संपादित करें]
जैविक अणुऍं[संपादित करें]
चयापचय[संपादित करें]
प्रकिण्व[संपादित करें]
कोशिका विज्ञान व अणुजैविकी[संपादित करें]
अन्य विज्ञान की शाखाओं से इसका संबंध[संपादित करें]
इसे भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
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दूसरे शब्दों में यह रसायन विज्ञान की वह शाखा है - जिसके अन्तर्गत श्वसन , पाचन ,उत्सर्जन, अवशोषण आदि जैव-रासायनिक प्रक्रम का अध्ययन किया जाता है ।