"बुद्धचरित": अवतरणों में अंतर

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[[File:'Buddha's First Sermon', chlorite statue from India, Pala dynasty, 11th century, Honolulu Academy of Arts.JPG|166 × 240 pixelspx|thumbnail|बुद्ध का पहला उपदेश, भारत, 11 वीं शताब्दी]]
'''बुद्धचरितम्''', [[संस्कृत]] का [[महाकाव्य]] है। इसके रचयिता [[अश्वघोष]] हैं। इसमें [[गौतम बुद्ध]] का जीवनचरित वर्णित है। इसकी रचनाकाल दूसरी शताब्दी है।
'''बुद्धचरितम्''', [[संस्कृत]] का [[महाकाव्य]] है। इसके रचयिता [[अश्वघोष]] हैं। इसमें [[गौतम बुद्ध]] का जीवनचरित वर्णित है। इसकी रचनाकाल दूसरी शताब्दी है।



12:46, 13 मई 2018 का अवतरण

बुद्ध का पहला उपदेश, भारत, 11 वीं शताब्दी

बुद्धचरितम्, संस्कृत का महाकाव्य है। इसके रचयिता अश्वघोष हैं। इसमें गौतम बुद्ध का जीवनचरित वर्णित है। इसकी रचनाकाल दूसरी शताब्दी है।

सन् ४२० में धर्मरक्षा ने इसका चीनी भाषा में अनुवाद किया तथा ७वीं एवं ८वीं शती में इसका अत्यन्त शुद्ध तिब्बती अनुवाद किया गया। दुर्भाग्यवश यह महाकाव्य मूल रूप में अपूर्ण ही उपलब्ध है। 28 सर्गों में विरचित इस महाकाव्य के द्वितीय से लेकर त्रयोदश सर्ग तक तथा प्रथम एवं चतुर्दश सर्ग के कुछ अंश ही मिलते हैं। इस महाकाव्य के शेष सर्ग संस्कृत में उपलब्ध नहीं है। इस महाकाव्य के पूरे 28 सर्गों का चीनी तथा तिब्बती अनुवाद अवश्य उपलब्ध है।

परिचय

बुद्धचरित के 28 सर्गो में भगवत्प्रसूति, संवेगोत्पत्ति, अभिनिष्क्रमण, तपोवन प्रवेश, अंत:पुर विलाप, कुमारान्वेषणम्, श्रेणभिगमनम्, बुद्धत्वप्राप्ति, महाशिष्याणा प्रव्रज्या प्रमुख हैं।

इस महाकाव्य का आरम्भ बुद्ध के गर्भाधान से तथा इसकी परिणति बुद्धत्व-प्राप्ति में होती है। यह महाकव्य भगवान बुद्ध के संघर्षमय सफल जीवन का ज्वलन्त, उज्ज्वल तथा मूर्त चित्रपट है। इसका चीनी भाषा में अनुवाद पांचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में धर्मरक्ष, धर्मक्षेत्र अथवा धर्माक्षर नामक किसी भारतीय विद्वान ने ही किया था तथा तिब्बती अनुवाद नवीं शताब्दी से पूर्ववर्ती नहीं है। इसकी कथा का रूप-विन्यास वाल्मीकिकृत रामायण से मिलता-जुलता है।

बुद्धचरित 28 सर्गों में था जिसमें 14 सर्गों तक बुद्ध के जन्म से बुद्धत्व-प्राप्ति तक का वर्णन है। यह अंश अश्वघोष कृत मूल संस्कृत सम्पूर्ण उपलब्ध है। केवल प्रथम सर्ग के प्रारम्भ सात श्लोक और चतुर्दश सर्ग के बत्तीस से एक सौ बारह तक (81 श्लोक) मूल में नहीं मिलते हैं। चौखम्बा संस्कृत सीरीज तथा चौखम्बा विद्याभवन की प्रेरणा से उन श्लोकों की रचना श्री रामचन्द्रदास ने की है। उन्हीं की प्रेरणा से इस अंश का अनुवाद भी किया गया है।

15 से 28 सर्गों की मूल संस्कृत प्रति भारत में बहुत दिनों से अनुपलब्ध है। उसका अनुवाद तिब्बती भाषा में मिला था। उसके आधार पर किसी चीनी विद्वान ने चीनी भाषा में अनुवाद किया तथा आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से संस्कृत अध्यापक डाक्टर जॉन्सटन ने उसे अंग्रेजी में लिखा। इसका अनुवाद श्रीसूर्यनारायण चौधरी ने हिन्दी में किया है, जिसको श्री रामचन्द्रदास ने संस्कृतपद्यमय काव्य में परिणत किया है।

बुद्धचरित के सर्ग

बुद्धचरितम् मूल रूप में अपूर्ण ही उपलब्ध है। 28 सर्गों में विरचित इस महाकाव्य के दूसरे सर्ग से लेकर तेरहवें सर्ग तक पूर्ण रूप से तथा पहला एवं चौदहवाँ सर्ग के कुछ अंश ही मिलते हैं। इस महाकाव्य के शेष सर्ग संस्कृत में उपलब्ध नहीं है। प्रथम तेरह सर्गों के नाम इस प्रकार हैं-[1]

  1. भगवत्प्रसूति,
  2. अन्तःपुरविहार
  3. संवेगोत्पत्तिः
  4. स्त्रीविघातन
  5. अभिनिष्क्रमण
  6. छन्दकनिवर्तनम्
  7. तपोवनप्रवेशम्
  8. अंत:पुरविलाप
  9. कुमारान्वेषणम्
  10. श्रेणभिगमनम्
  11. कामविगर्हणम्
  12. आराडदर्शन
  13. मारविजय

वैराग्य का कारण

बुद्ध के वैराग्यप्राप्ति का कारण था? इसका उत्तर राजकुमार के प्रथम विहार के समय मार्ग में जाते हुए वृद्ध को देखकर सारथी से पूछा गया प्रशन और सारथी द्वारा दिया गया उत्तर में मिल सकता है-

क एष भोः सूत! नरोऽभ्युपेतः ? केशैः सितैर्यष्टिविषक्तहस्तः।
भ्रूसंवृताक्षः शिथिलानतांगः , किं विक्रियैषा प्रकृतिर्यदृच्छा ॥ बुद्धच. ३-२८

सारथी ने इसका समुचित उत्तर दिया-

रूपस्य हन्त्री व्यसनं बलस्य, शोकस्य योनिर्निधनं रतीनाम्।
नाशः स्मृतीनां रिपुरिन्द्रियाणाम् एषा जरा नाम ययैष भग्नः ॥ बुद्धच. ३-३०

सारथी ने पुनः कहा-

पीतं ह्यनेनापि पयः शिशुत्वे, कालेन भूयः परिमृष्टमुर्व्याम्।
क्रमेण भूत्वा च युवा वपुष्मान्, क्रमेण तेनैव जरामुपेतः ॥ बुद्धच. ३-३१

जब राजकुमार द्वितीय विहार पर बाहर निकले तब उन्हीं देवताओं ने एक रोगी मनुष्य का सृजन कर उनके सामने दर्शाया। उसे देखकर गौतम ने सूत से पूछा-

स्थूलोदरः श्वासचलच्छरीरः स्रस्तांसबाहुः कृशपाण्डुगात्रः।
अम्बेति वाचं करुणं ब्रुवाणः परं समाश्लिष्य नरः क एषः? ॥

तब सूत ने उनसे कहा, " रोगाभिधानः सुमहाननर्थः" इति। (रोगग्रस्त होना महान अनर्थ है।) राजकुमार के तृतीय विहार के समय देवताओं ने एक नया दृष्य प्रस्तुत किया जिसमें एक मृत मनुष्य के शव को चार मनुष्य उठा कर ले जा रहे थे। राजकुमार ने पूछा, ये चार लोग क्या ले जा रहे हैं? सूत ने उत्तर दिया-

बुद्धीन्द्रियप्राणगुणैर्वियुक्तः सुप्तो विसंज्ञः तृणकाष्ठभूतः।
संवर्ध्य संरक्ष्य च यत्नवद्भिः प्रियाप्रियैस्त्यज्यत एष कोऽपि। इति।

यह सुनकर गौत्म का मन दुख से भर गया।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ