चन्द्रकान्त राजू

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

चन्द्रकान्त राजू (जन्म 7 मार्च 1954) भारत के कम्प्यूटर विज्ञानी, गणितज्ञ, भौतिकशास्त्री, शिक्षाशास्त्री, दार्शनिक एवं बहुज्ञ अनुसंधानकर्ता हैं। सम्प्रति वे नयी दिल्ली के सभ्यता अध्ययन केन्द्र (Centre for Studies in Civilizations) से जुड़े हुए हैं। भारत के प्रथम सुपरकम्प्यूटर 'परम' (1988-91) में उनका उल्लेखनीय एवं प्रमुख योगदान रहा।

परिचय[संपादित करें]

श्री चन्द्रकान्त राजू का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उन्होने सन् १९७३ में मुम्बई के विज्ञान संस्थान (Institute of Science) से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। मुम्बई के ही प्रगत गणित अध्ययन केन्द्र (Centre of Advanced Study in Mathematics) से सन् १९७५ में एमएससी किया। उन्होने सन् १९८० में कोलकाता स्थित भारतीय सांख्यिकी संस्थान से पीएचडी की।

उन्होने मुख्यत: गणित और भौतिकी पर बहुत सी पुस्तके एवं लेख लिखी हैं। उन्होने विज्ञान के दर्शन एवं इतिहास पर भी बहुत कुछ लिखा है। श्री राजू के अधिकांश विश्वास एवं धारणाएं बहुत विवादस्पद रहीं हैं।

प्रमुख विचार[संपादित करें]

चन्द्रकान्त राजू के विज्ञान तथा गणित से सम्बन्धित प्रमुख विचार निम्नलिखित हैं-

  • क्रूसेड (युरोपीय धर्मयुद्ध) और इंक्विजिशन के दौरान विज्ञान के इतिहास की "वर्ल्ड क्लास" जालसाजी की गयी।
  • युक्लिड और क्लॉडियस टॉलेमी के अस्तित्व का कोई गंभीर सबूत नहीं है। उन्हें जिन किताबों का रचनाकार बताया जाता है, वे किताबें बहुत बाद की हैं।
  • कोपर्निकस ने अरब लेखकों से शब्दशः नक़ल की।
  • न्यूटन, भारत से आयातित कैलकुलस पर अत्यधिक निर्भर था।
  • विकृत पश्चिमी इतिहास के साथ-साथ पश्चिमी धर्मशास्त्र से रँगे मैथमेटिक्स और विज्ञान की बिना समीक्षा किये धर्मनिरपेक्ष ज्ञान के रूप में स्कूली बच्चों को पढ़ाया जाता है।
  • विज्ञान में स्वराज की मांग : गणित और विज्ञान को व्यावहारिक उद्देश्यों से जोड़कर पश्चिमी धर्मशास्त्र से दूर रखना होगा और पश्चिमी सामाजिक स्वीकृति के मानदंड से खुद को अलग करना होगा।

प्रमुख कृतियाँ[संपादित करें]

  • 'क्या विज्ञान पश्चिम में शुरू हुआ?' (२००९ ; इस पुस्तक की प्रेस विज्ञप्ति)
  • Cultural foundations of mathematics: the nature of mathematical proof and transmission of the calculus from India to Europe in the 16th Century
  • Raju, C.K. (1994). Time: Towards a Consistent Theory. Kluwer Academic. ISBN 978-0-7923-3103-2.
  • Raju, C.K. (2003). The Eleven Pictures of Time. Sage. ISBN 978-0-7619-9624-8.
  • C.K. Raju. (2007). Cultural Foundations of Mathematics. Pearson Longman. ISBN 978-81-317-0871-2.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]