अध्यक्षीय प्रणाली

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██ संपूर्ण राष्ट्रपति प्रणाली वाले देश ██ अर्ध-अध्यक्षीय प्रणाली वाले देशों ██ संसदीय गणराज्य जहां संसद कार्यकारी अध्यक्ष का चयन करती है ██  नाममात्र राष्ट्राध्यक्ष वाले संसदीय गणराज्य, जहां प्रधानमंत्री प्रमुख कार्यकारी है ██ संवैधानिक राजतंत्र: जहां पारंपरिक शासक एक जन-चयित प्रधानमंत्री के सलाह पर कार्य करता है ██  अर्ध-संवैधानिक राजतंत्र: जहां शासक के अलावा एक अन्य कार्याधिकारी शासन प्रशासन संभालता है, परंतु राजा को भी राजनीतिक अधिकार होते हैं ██ संपूर्ण राजतंत्र ██ एक-दलीय राज्य ██ अस्पष्ट स्थिति: अनंतिम सरकार अथवा पूर्णतः अलग शासन प्रणाली

अध्यक्षीय प्रणाली या राष्ट्रपति प्रणाली एक ऐसी गणतांत्रिक शासनप्रणाली होती है, जिसमें राजप्रमुख(सरकार प्रमुख) और राष्ट्रप्रमुख(रष्ट्राध्यक्ष) एक ही व्यक्ति होता है। अध्यक्षीय गणतंत्र का एक उदाहरण है अमेरिका और लगभग सभी लैटिन अमेरिकी देश, वहीं फ्रांस में एक मिश्रित संसदीय और अध्रक्षीय व्यवस्था है।

Ø  अर्थ, परिभाषाएं- (डॉ. धीरज बाकोलिया, प्रोफ़ेसर-राजनीति विज्ञान, राजकीय लोहिया महाविद्यालय, चूरू (राजस्थान, भारत)

Ø   अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का आधार शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत है, इसमें व्यवस्थापिका और कार्यपालिका दोनों एक-दूसरे से पूर्ण पृथक और स्वतंत्र होती है, इसमें शासनाध्यक्ष नाममात्र का प्रधान न होकर वास्तविक कार्यपालिका होता है, उसकी शक्ति व्यवस्थापिका के विश्वास पर निर्भर नहीं होती तथा एक निश्चित अवधि तक वह अपने पद पर बना रहता है

Ø   वह अपनी सहायता के लिए जिन मंत्रियों की नियुक्ति करता है, वे सभी उसी के प्रति उतरदायी होते है न कि व्यवस्थापिका के प्रति

Ø   यहां राष्ट्रपति कार्यपालिका के क्षेत्र में तथा कांग्रेस (संसद) व्यवस्थापिका के क्षेत्र में एक-दूसरे से प्रायः स्वतंत्र है, इन दोनों को ही जनता प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित करती है, राष्ट्रपति अपने कार्यों व नीतियों के लिए कांग्रेस के प्रति उतरदायी नहीं होता, उसका कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व उसे महाभियोग की विशेष प्रक्रिया के द्वारा ही पद से हटाया जा सकता है

Ø   गार्नर के अनुसार- “ अध्यक्षात्मक शासन वह व्यवस्था है जिसमें कार्यपालिका (राज्याध्यक्ष तथा उसके मंत्री) अपने कार्यकाल के लिए व्यवस्थापिका से स्वतंत्र और अपनी राजनीतिक नीतियों के लिए उसके प्रति अनुतरदायी होती है “

Ø   गेटेल के अनुसार- “अध्यक्षात्मक शासन वह प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका का प्रधान अपने कार्यकाल और बहुत कुछ सीमा तक अपनी नीतियों और कार्यों के बारे में विधानमण्डल से स्वतंत्र होता है “

Ø   अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली या राष्ट्रपति शासन प्रणाली एक ऐसी गणतांत्रिक शासन प्रणाली होती है, जिसमें राजप्रमुख (सरकार प्रमुख) और राष्ट्रप्रमुख (राष्ट्राध्यक्ष) एक ही व्यक्ति होता है, अध्यक्षात्मक शासन गणतन्त्र का एक उदाहरण है अमरीका और लगभग सभी लैटिन अमेरिकी देश, वहीँ फ़्रांस में एक मिश्रित संसदीय और अध्यक्षीय व्यवस्था है

Ø  अध्यक्षात्मक शासन की विशेषताएं-

Ø  1. शक्तियों का पृथक्करण-

Ø   यह प्रणाली इसी सिद्धांत पर आधारित है, इसके अन्तर्गत व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका एक-दूसरे से सर्वथा पृथक एवं स्वतंत्र रहती है, कार्यपालिका के सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य नहीं होते और न उसके प्रति उतरदायी ही होते है

Ø   इस शासन पद्धति में व्यवस्थापिका का कार्यपालिका पर कोई नियंत्रण नहीं रहता, कानून निर्माण के अपने कार्य में विधायिका भी पूर्णतः स्वतंत्र रहती है तथा उस पर कार्यपालिका का कोई नियंत्रण नहीं होता

Ø  2. निश्चित कार्यकाल-

Ø   इसमें कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका दोनों का कार्यकाल निश्चित होता है, जिस प्रकार व्यवस्थापिका कार्यपालिका को उसका कार्यकाल समाप्त होने से पहले हटा नहीं सकती, उसी प्रकार राष्ट्रपति भी विधानमण्डल को विघटित नहीं कर सकता

Ø  3. कार्यपालिका की सुदृढ़ स्थिति-

Ø   इसमें शासनाध्यक्ष नाममात्र का प्रधान न होकर वास्तविक कार्यपालिका होता है, वह उन शक्तियों का वास्तविक प्रयोग करता है जो संविधान तथा कानूनों द्वारा उसे दी जाती है

Ø  4. उतरदायित्व का अभाव-

Ø   इस पद्धति में कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उतरदायी नहीं होती, विधायिका न तो उससे प्रश्न पूछ सकती है और न उसे अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटा सकती है

Ø  5. वास्तविक मंत्रिमण्डल नहीं-

Ø   इस प्रणाली में मंत्रिमण्डल नहीं होता, सिर्फ राष्ट्रपति को सहायता पहुंचाने तथा सलाह देने के लिए कुछ सचिव होते है, मंत्रीगण राष्ट्रपति के प्रति उतरदायी होते है, उसकी आज्ञानुसार कार्य करते है तथा उसकी इच्छापर्यन्त अपने पद पर रहते है

Ø  अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के गुण-

Ø  1. संकटकाल के लिए उपयुक्त-

Ø   अध्यक्षीय शासन किसी भी संकटकालीन परिस्थिति का सरलता से सामना कर सकता है क्योंकि सच्चा और महत्वपूर्ण निर्णय एक ही व्यक्ति ले सकता है, आपात स्थिति आने पर राष्ट्रपति बिना मंत्रियों के परामर्श की चिन्ता किए या बिना संसद का विचार जाने अविलम्ब राष्ट्रहित में निर्णय ले सकता है

Ø  2. स्थायी कार्यपालिका-

Ø   इस शासन में कार्यपालिका स्थायी रहती है, कार्यपालिका अध्यक्ष का निर्वाचन एक निश्चित अवधि के लिए किया जाता है, इस अवधि में उसे साधारणतया अपदस्थ नहीं किया जा सकता

Ø  3. दलबन्दी का अभाव-

Ø   इस प्रणाली में राजनीतिक दलबन्दी का उग्र वातावरण नहीं पाया जाता, इसमें अनावश्यक विरोधी दल नहीं होते और चुनावों के बाद दल निष्क्रिय हो जाते है, अतः दल प्रणाली के दोष इसमें नहीं होते

Ø  4. नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा-

Ø   यह प्रणाली शक्ति पृथक्करण पर आधारित होने के कारण नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षक कहलाती है, शक्तियों का सकेन्द्रण सरकार के किसी एक अंग में न होने से किसी भी अंग का निरंकुश बनना सम्भव नहीं है

Ø  5. विशाल राष्ट्रों के लिए उपयुक्त-

Ø   यह प्रणाली उन देशों में अधिक उपयुक्त रहती है, जिनमें भाषा, संस्कृति, धर्म आदि के आधार पर विविधता पायी जाती है, विविधता वाले देश में इससे एकता का संचार होता है

Ø  6. दक्ष शासन-

Ø   इस पद्धति में मंत्रियों तथा महत्वपूर्ण अधिकारियों की नियुक्ति का आधार दलबन्दी न होकर कार्यकुशलता होता है, अध्यक्ष देश के विभिन्न क्षेत्रों से प्रतिभाओं को मंत्रिमण्डल में लेने को स्वतंत्र होता है

Ø  अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के दोष-

Ø  1. निरंकुशता का भय-

Ø   इसमें अध्यक्ष के निरंकुश होने का भय होता है क्योंकि कार्यपालिका अपनी नीति व कार्यों के लिए व्यवस्थापिका के प्रति उतरदायी नहीं होती, कार्यपालिका को महाभियोग के बिना निश्चित समय से पूर्व हटाया नहीं जा सकता

Ø  2. कठोर शासन-

Ø   यह शासन प्रणाली अत्यंत कठोर है, इसमें व्यवस्थापिका और कार्यपालिका दोनों का कार्यकाल निश्चित रहता है, एक बार चुन लेने पर उन्हें पूरे कार्यकाल तक सहन करना पड़ता है

Ø  3. शासन में गतिरोध-

Ø   इसमें कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं होते, यदि कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में अलग-अलग दलों का अस्तित्व है तो प्रतिस्पर्द्धा और संघर्ष उत्पन्न हो जाता है, इससे शासन में गतिरोध पैदा हो जाता है

Ø  4. उतरदायित्व की अनिश्चितता-

Ø   इस प्रणाली में शासन व व्यवस्थापन के लिए किसी को उतरदायी ठहराना मुश्किल है, शक्ति पृथक्करण के कारण किसी एक शासकीय अंग में उतरदायित्व केन्द्रित नहीं होता और कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका एक-दूसरे पर दोष मढ़ते हुए जिम्मेदारी टाल देते है

Ø  5. न्यायपालिका का अनुचित हस्तक्षेप-

Ø   इस शासन में न्यायपालिका लगातार शासन में हस्तक्षेप करती रहती है, कानूनों की व्याख्या का काम न्यायपालिका का होने के कारण संविधान वही होता है जो न्यायाधीश कहते है

Ø  6. लोकमत के प्रतिकूल-

Ø   यह प्रणाली लोकमत की सरलता से उपेक्षा कर सकती है, अध्यक्ष एक निश्चित अवधि तक रहता है जिसे हटाया नहीं जा सकता, अतः लोकमत की आसानी से उपेक्षा हो सकती है

Ø  संसदात्मक और अध्यक्षात्मक शासन में अन्तर-

Ø  1. कार्यपालिका का अन्तर-

Ø   संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका नाममात्र तथा वास्तविक में विभक्त रहती है जबकि अध्यक्षात्मक में कार्यपालिका शक्ति एक ही व्यक्ति में होती है

Ø  2. कार्यकाल का अन्तर-

Ø   संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका का समय अनिश्चित होने से अस्थिरता रहती है जबकि अध्यक्षीय में कार्यपालिका का समय निश्चित होने से स्थिरता रहती है

Ø  3. शक्ति पृथक्करण का अन्तर-

Ø   संसदीय व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का घनिष्ठ सम्बन्ध रहता है जबकि अध्यक्षीय में शासनांगो में शक्ति पृथक्करण होता है

Ø  4. मंत्रियों की स्थिति का अन्तर-

Ø   संसदीय पद्धति में मंत्रियों की स्थिति अधिक महत्वपूर्ण रहती है जबकि अध्यक्षीय में मंत्रियों की स्थिति दुर्बल होती है

Ø  5. भंग करने की शक्ति का अन्तर-

Ø   संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका निम्न सदन को भंग कर सकती है जबकि अध्यक्षीय में कार्यपालिका के पास यह शक्ति नहीं होती

Ø  6. उतरदायित्व का अन्तर-

Ø   संसदात्मक शासन में उतरदायित्व की भावना पायी जाती है जबकि अध्यक्षीय में इसका अभाव होता है

Ø  7. उपयोगिता का अन्तर-

Ø   शान्तिकाल के लिए संसदीय प्रणाली ज्यादा उपयुक्त है जबकि संकटकाल के लिए अध्यक्षीय प्रणाली उपयुक्त है

अनुयायी देश[संपादित करें]

प्रधानमंत्री युक्त अध्यक्षीय प्रणाली[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]