विदेश नीति
ति' जिसे विदेशी सम्बन्धों की नीति भी कहा जाता है, अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने के लिए और अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों के वातावरण में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राज्य द्वारा चुनी गई स्वहितकारी रणनीतियों का समूह होती है। “विदेश नीति किसी राष्ट्र द्वारा अपने देश के हितों की पूर्ति के लिए बनाए गए सिद्धांत ही विदेश नीति कहलाते है। विदेश नीति दूसरे देशों के साथ आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा सैनिक विषयों पर पालन की जाने वाली नीतियों का एक समुच्चय है।।
परिचय
[संपादित करें]किसी भी देश की विदेश नीति मुख्य रूप से कुछ सिद्धान्तों, हितों एवं उद्देश्यों का समूह होता है जिनके माध्यम से वह राज्य दूसरे राष्ट्रों के साथ संबंध स्थापित करके उन सिद्धान्तों की पूर्ति हेतु कार्यरत रहता है। इसी प्रकार प्रत्येक राज्यों की अपनी विदेश नीति होती है जिसके माध्यम से वे अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपने संबंधों का निरूपण करते है। विशेष रूप से सर्वप्रथम मॉडलस्की ने इसको परिभाषित करते हुए कहा था कि विदेश नीति समुदायों द्वारा विकसित उन क्रियाओं की व्यवस्था है जिसके द्वारा एक राज्य दूसरे राज्यों के व्यवहार को बदलने तथा उनकी गतिविधियों को अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में ढ़ालने की कोशिश करता है। परन्तु विदेश नीति की इस प्रकार की परिभाषा को अति सरलीकरण माना जाएगा क्योंकि विदेश नीति का उद्देश्य मात्र दूसरों के व्यवहार का परिवर्तन मात्र नहीं हो सकता है। अपितु इसके माध्यम से दूसरे राज्यों की गतिविधियों का नियंत्रण करना भी अति आवश्यक होता है। इस प्रकार विदेश नीति में परिवर्तन के साथ-साथ कई बार निरंतरता की आवश्यकता भी होती है। क्योंकि विदेशी नीति परिवर्तन एवं यथास्थिति दोनों प्रकार की नीतियों का समन्वय होता है। बल्कि फेलिम्स ग्रास तो इससे भी एक कदम आगे निकल जाते हैं जब वे कहते है कि कई बार किसी राज्य के साथ कोई संबंध न होना या उसके बारे में कोई निश्चित नीति न होना भी विदेश नीति कहलाता है। इस प्रकार विदेश नीति के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों पहलू होते है। यह सकारात्मक रूप में जब होती है जब वह दूसरे राज्यों के व्यवहार का प्रयास करती है तथा नकारात्मक रूप में तब होती है जब वह दूसरे राज्यों के व्यवहार को परिवार्तित करने का प्रयास करती है।
अतः विदेश नीति उन सिद्धान्तों, हितो व उद्देश्यों के प्रति वचनबद्धता है जिनके द्वारा एक राज्य दूसरे राज्यों के साथ अंतरराष्ट्रीय सन्दर्भ में अपने संबंधों का निर्वाह करता है। इस संदर्भ में विदेश नीति पर निर्णय लेने के साथ-साथ इसका अन्य राज्यों के साथ संबधों का वहन करना भी अति महत्त्वपूर्ण हो जाता है। लेकिन इस प्रकार के व्यवहार के समय राज्य को अपने लाभ-हानि अर्थात् संसाधन एवं जोखिम दोनों का मूल्यांकन भी कर लेना चाहिए।
इस संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि विदेश नीति एवं राष्ट्रीय हितों के बीच एक गहन संबंध होता है। राष्ट्रहित विभिन्न संदर्भो में विदेश नीति हेतु आवश्यक भूमिका निभाते हैं- प्रथम, ये विदेश नीति को अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण के संदर्भ में सामान्य अभिविन्यास प्रदान करते है। द्वितीय, ये निकट भविष्य की स्थिति में विदेश नीति को नियंत्रण करने वाले मापदण्डों का विकल्प प्रदान करते हैं। तृतीय, राष्ट्रीय हित विदेश नीति को निरंतरता प्रदान करते हैं। चतुर्थ, इन्ही के आधार पर विदेश नीति बदलते हुए अतंर्राष्ट्रीय स्वरूप में अपने आपको ढ़ालने में सक्षम हो सकती है। पंचम, राष्ट्रीय हित विदेश नीति को मजबूत आधार प्रदान करते हैं क्योंकि ये समाज के समन्वित एवं सर्वसम्मति पर आधारित मूल्यों की अभिव्यक्ति होते हैं। अन्ततः ये विदेशी नीति हेतु दिशा निर्देशन का कार्य करते हैं।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- जानिए भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्व और सिद्धांत
- विदेश नीति का अर्थ, परिभाषा और उद्देश्य
- ऐसे होगा खुशहाल, स्वावलम्बी और शक्तिशाली भारत का निर्माण: एक घोषणापत्र
- कमजोर विदेश नीति का परिणाम
- विदेश नीति का मनमोहन सिद्धांत (डॉ॰ वेद प्रताप वैदिक)
- Foreign Policy Magazine
- Foreign Policy Association
- International Affairs Forum
- Teaching Foreign Policy in the Post-Cold War Era
- [https://web.archive.org/web/20100214132939/http://www.ncafp.orm