ज़फ़र महल, महरौली
ज़फ़र महल | |
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![]() ज़फ़र महल का ज़फ़र द्वार | |
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सामान्य जानकारी | |
स्थापत्य कला | मुगल स्थापत्य |
कस्बा या शहर | दिल्ली |
देश | भारत |
निर्देशांक | 28°31′09″N 77°10′47″E / 28.519049°N 77.179727°E |
पूर्ण | 19वीं सदी |
डिजाइन और निर्माण | |
ग्राहक | मुगल साम्राज्य |
वास्तुकार | अकबर शाह द्वितीय एवं बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय |
ज़फ़र महल दक्षिणी दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित मुगल काल की आखिरी ऐतिहासिक इमारत है। मुगल शासन द्वारा इस इमारत का निर्माण ग्रीष्मकालीन राजमहल के रूप में करवाया गया था। उपब्ध ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक इस इस इमारत के भीतरी ढांचे के निर्माण मुगल बादशाह अकबर द्वितीय द्वारा करवाया गया जबकि इसको और भव्य रूप देते हुए इसके बाहरी भाग और आलिशान द्वार का निर्माण बहादुर शाह ज़फ़़र द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया। मुगल बादशाहों की आरामगाह होने के बावजूद इस इमारत का एक दुख भरा इतिहास है। बहादुर शाह ज़फ़र ने अपनी वसीयत में मृत्यु के बाद खुद को इसी महल में दफनाए जाने की इच्छा व्यक्त की थी। लेकिन 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में असफलता के बाद अंगरेजों द्वारा ज़फर को रंगून निर्वासित कर दिया गया जहां कैद में उनका दु:खद अंत हो गया।[1][2][3]
इतिहास[संपादित करें]
ज़फ़र महल का निर्माण मुगलों द्वारा ग्रीष्मकालीन आरामगाह के रूप में कराया गया था। महरौली का इलाका उस समय भी घने जंगलों से आच्छादित था, जो शिकार और दिल्ली की अपेक्षा कम तापमान की वजह से गर्मियों में रिहाइश के लिए उपयुक्त जगह थी। महरौली में ज़फ़र महल के पड़ोस में जहांदार शाह ने अपने पिता बहादुर शाह प्रथम की कब्र के पास संगमरमर की जाली का निर्माण करवाया था। मुगल बादशाह शाह आलम को भी इसी इलाके में दफनाया गया था। शाह आलम के पुत्र अकबर शाह द्वितीय की कब्र भी ज़फ़र महल के पास ही है। ज़फ़र ने खुद को दफनाए जाने की जगह को भी इसी इलाके में चिह्नित कर रखा था लेकिन दुर्भाग्यवश मुगल वंश के आखिरी बादशाह को अंग्रेजों द्वारा रंगून निर्वासित कर दिया गया।
स्थापत्य[संपादित करें]
संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर से बनी इस तीन मंजिला इमारत के प्रवेशद्वार 50 फीट ऊंचा और 15 मीटर चौड़ा है। इस प्रवेश द्वार को हाथी गेट कहा जाता है, जिसमें से हौदे सहित एक सुसज्जित हाथी आराम से पार हो सकता था। इस द्वार का निर्माण बहादुर शाह ज़फ़र ने करवाया था। जिसके बारे में प्रवेश द्वार पर एक अभिलेख लगा हुआ। अभिलेख में लिखा गया है कि इस द्वार को मुगल बादशाह ज़फ़र ने अपने शासन के 11वें वर्ष में सन् 1847-48 में बनवाया। मुगल शैली में निर्मित एक विशाल छज्जा इस द्वार की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। प्रवेश द्वार पर घुमावदार बंगाली गुंबजों और छोटे झरोखोॆ का निर्माण किया गया है। इसके साथ ही मेहराब के दोनों किनारों पर, बड़े कमल के रूप में दो अलंकृत फलक भी बनाए गए हैं।
संरक्षण[संपादित करें]
जफर महल को प्राचीन इमारत संरक्षण अधिनियम के तहत 1920 में संरक्षित इमारत घोषित कर दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद इस इमारत के दक्षिमी और पूर्वी दीवार के पास अतिक्रमण साफतौर पर देका जा सकता है। हांलाकि अभ इंटैक ने अब इस इमारत को संरक्षित क्षेत्र के रूप में दर्ज कर लिया है। जिसके फलस्वरूप भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस महल में एक संग्रहालय की स्थापना का कार्य प्रस्तावित किया है जिससे अतिक्रमण पर रोक लगाकर पर्यटकों को यहां भ्रमण के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।[4]
संपर्क मार्ग[संपादित करें]
दक्षिणी दिल्ली में महरौली शहर के दूसरे हिस्सोें से सड़क मार्ग से बेहतर ढंग से जुड़ा हुआ है। यह पर्यटकों के पसंदीदा स्थल कुतुब कॉम्प्लेक्स का ही एक हिस्सा है। यह स्थान नई दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। महरौली से नजदीकी रेलवे स्टेशन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन है जो 18 किमी की दूरी पर है। फिर भी महरौली कि संकरी गलियों से होते हुए जफर महल तक पहुंचने में स्थानीय लोगों से पूछताछ करनी पड़ सकती है।
चित्र दीर्घा[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ अभिलाष गौड़ (1999-11-07). "Zafar Mahal: A forsaken monument". द ट्रिब्यून. मूल से 3 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-11-18.
- ↑ वाई.डी.शर्मा (2001). Delhi and its Neighbourhood. दरगाह कुतुब साहिब. नई दिल्ली: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग. पपृ॰ 62–63. मूल से 31 अगस्त 2005 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-11-18.
- ↑ विलियम डैलरिंपल (2006-10-01). "A dynasty crushed by hatred". Telegraph.co.uk. मूल से 3 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-11-18.
- ↑ "ASI To Build Mughal Museum At Zafar Mahal". मूल से 1 जनवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-11-18.