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"सूक्ष्मजैविकी": अवतरणों में अंतर

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=== प्रोटोज़ोआ ===
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'''प्रोटोज़ोआ''' एक एककोशिकीय जीव है । इनकी कोशिकायें [[युकैरियोटिक]] प्रकार की होती हैं ये साधारण [[सूक्ष्मदर्शी यंत्र]] से आसानी से देखे जा सकते हैं । कुछ प्रोटोज़ोआ जन्तुओं या मनुष्य में रोग उत्पन्न करते हैं, उन्हे रोगजनित प्रोटोज़ोआ कहते हैं
'''प्रोटोज़ोआ''' एक एककोशिकीय जीव है। इनकी कोशिकायें [[युकैरियोटिक]] प्रकार की होती हैं। प्रोटोजोआ का आकार 10 से 50&nbsp;μm होता है तथा ये साधारण [[सूक्ष्मदर्शी यंत्र]] से आसानी से देखे जा सकते हैं। कुछ प्रोटोज़ोआ जन्तुओं या मनुष्य में रोग उत्पन्न करते हैं, उन्हे रोगजनित प्रोटोज़ोआ कहते हैं। ये जल एवं मिट्टी में सर्वत्र पाएं जाते हैं। अपने भोजन का पाचन रसधानियों में करते हैं।<ref>[http://www.microbeworld.org/microbes/protista/protozoa.aspx] Protozoa, defined at Microbe World. 2006 American Society for Microbiology. Retrieved June 15, 2008.</ref>


===आर्किया===
===आर्किया===

05:00, 7 जनवरी 2009 का अवतरण

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सूक्ष्मजीवों से स्ट्रीक्ड एक अगार प्लेट

सूक्ष्मजैविकी उन सूक्ष्मजीवों का अध्ययन है, जो एककोशिकीय या सूक्ष्मदर्शीय कोशिका-समूह जंतु होते हैं।[1] इनमें यूकैर्योट्स जैसे कवक एवं प्रोटिस्ट, और प्रोकैर्योट्स, जैसे जीवाणु और आर्किया आते हैं। विषाणुओं को स्थायी तौर पर जीव या प्राणी नहीं कहा गया है, फिर भी इसी के अन्तर्गत इनका भी अध्ययन होता है[2]। संक्षेप में सूक्ष्मजैविकी उन सजीवों का अध्ययन है, जो कि नग्न आँखों से दिखाई नहीं देते हैं। सूक्ष्मजैविकी अति विशाल शब्द है, जिसमें विषाणु विज्ञान, कवक विज्ञान, परजीवी विज्ञान, जीवाणु विज्ञान, व कई अन्य शाखाएँ आतीं हैं। सूक्ष्मजैविकी में तत्पर शोध होते रहते हैं एवं यह क्षेत्र अनवरत प्रगति पर अग्रसर है। अभी तक हमने शायद पूरी पृथ्वी के सूक्ष्मजीवों में से एक प्रतिशत का ही अध्ययन किया है।[3] । हाँलाँकि सूक्ष्मजीव लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व देखे गये थे, किन्तु जीव विज्ञान की अन्य शाखाओं, जैसे जंतु विज्ञान या पादप विज्ञान की अपेक्षा सूक्ष्मजैविकी अपने अति प्रारम्भिक स्तर पर ही है।

इतिहास

सूक्ष्मजीवविज्ञान पूर्व

सूक्ष्मजीवों के अस्तित्व का अनुमान उनकी खोज से कई शताब्दियों पूर्व लगा लिया गया था। इन पर सबसे पहला सिद्धांत प्राचीन रोमन विद्वान मार्कस टेरेंशियस वैर्रो ने अपनी कृषि पर आधारित एक पुस्तक में दिया था। इसमें उन्होंने चेतावनी दी थी कि दलदल के निकट खेत नहीं बनाएँ जाने चाहिए।[क]

कैनन ऑफ मैडिसिन नामक पुस्तक में, अबु अली इब्न सिना ने कहा है कि शरीर के स्राव, संक्रमित होने से पहले बाहरी सूक्ष्मजीवों द्वारा दूषित किये जाते हैं. [4] उन्होंने क्षय रोग व अन्य संक्रामक बिमारियों के संक्रमक स्वभाव की परिकल्पना की थी, व संगरोध (क्वारन्टाइन) का प्रयोग संक्रामक बिमारियों की रोकथाम हेतु किया था। [5]

चौदहवीं शताब्दी में जब काली मृत्यु (ब्लैक डैथ) व ब्युबोनिक प्लेग अल-अंडैलस में पहुंचा तब इब्न खातिमा ने यह प्राक्कलन किया कि सूक्ष्मजीव मानव शरीर के अंदर पहुंच कर, संक्रामक रोग पैदा करती हैं। [6]

1546 में जिरोलामो फ्रैकैस्टोरो ने यह प्रस्ताव दिया कि महामारियां स्थानांतरणीय बीज जैसे अस्तित्वों द्वारा फैलती हैं। यह वस्तुएं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कभी कभी तो बिना सम्पर्क के ही लम्बी दूरी से भी संक्रमित कर सकती हैं।

सूक्ष्मजीवों के बारे में यह सभी दावे अनुमान मात्र ही थे क्योंकि ये किसी आंकड़ों या विज्ञान पर आधारित नहीं थे। सत्रहवीं शताब्दी तक सूक्ष्म जीव ना तो सिद्ध ही हुए थे और न ही देखे गये थे। इनको सत्रहवीं शताब्दी में ही सही तौर पर देखा गया तथा वर्णित किया गया। इसका मूल कारण यह था कि सभी पूर्व सूचनाएं व शोध एक मूलभूत उपकरण के अभाव में किये गये थे, जो कि सूक्ष्मजैविकी या जीवाणुविज्ञान के अस्तित्व में रहने के लिये अत्यावश्यक था और वह था सूक्ष्मदर्शी यंत्र

एंटोनी वॉन ल्यूवेन्हॉक

एंटोनी वॉन ल्यूवेन्हॉक प्रथम सूक्ष्मजीववैज्ञानिक थे जिन्होंने पहली बार सूक्ष्मजीवों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा था, इसी कारण उन्हें सूक्ष्मजैविकी का जनक कहा जाता है। इन्होंने ही सूक्ष्मदर्शी यंत्र का आविष्कार किया था।

सूक्ष्मजैविकी की खोज व उद्गम

जीवाणुसूक्ष्मजीवों को सर्वप्रथम एंटोनी वॉन ल्यूवेन्हॉक ने 1676 में स्वनिर्मित एकल-लेंस सूक्ष्मदर्शी से देखा था। ऐसा करके उन्होंने जीव विज्ञान के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व कार्य किया जिसके द्वारा जीवाणु विज्ञान व सूक्ष्मजैविकी का आरम्भ हुआ। [1]। बैक्टीरियम शब्द का प्रयोग काफी बाद (1828) में एह्रेन्बर्ग द्वारा हुआ। यह यूनानी शब्द βακτηριον से निकला है, जिसका अर्थ है - छोटी सी डंडी। हालॉकि ल्यूवेन्हॉक को प्रथम सूक्ष्मजैविज्ञ कहा गया है, किन्तु प्रथम मान्यता प्राप्त सूक्ष्मजैविक रॉबर्ट हूक (1635-1703)को माना जाता है जिन्होंने मोल्ड के फलन का अवलोकन किया था[7]

जीवाणु विज्ञान (जो बाद में सूक्ष्मजैविकी का एक उप-विभाग बन गया) फर्डिनैंड कोह्न (1828–1898) द्बारा स्थापित किया गया माना जाता है। ये एक पादपवैज्ञानिक थे, जिनके शैवाल व प्रकाशसंश्लेषित जीवाणु पर किये गए शोध ने उन्हें बैसिलस व बैग्गियैटोआ सहित कई अन्य जीवाणुओं का वर्णन करने को प्रेरित किया था। कोह्न ही जीवाणुओं के वर्गीकरण की योजना को परिभाषित करने वाले प्रथम व्यक्ति थे[8]लुई पाश्चर (1822–1895) व रॉबर्ट कोच (1843–1910) कोह्न के समकालीन थे तथा उनको आयुर्विज्ञान सूक्ष्मजैविकी का संस्थापक माना जाता है[9] । पाश्चर तत्कालीन सहज उत्पादन के सिद्धांत को झुठलाने के लिये अपने द्वारा किये गए श्रेणीबद्ध प्रयोगों के लिये प्रसिद्ध हो चुके थे। इसी से सूक्ष्मजैविकी का धरातल और ठोस हो गया।[10]। पाश्चर ने खाद्य संरक्षण के उपाय खोजे थे (पाश्चराइजेशन) उन्होंने ही ऐन्थ्रैक्स, फाउल कॉलरा एवं रेबीज़ सहित कई रोगों के सुरक्षा टीकों की खोज की थी। [1] कोच अपने रोगों के जीवाणु सिद्धांत के लिये प्रसिद्द थे, जिसके अनुसार कोई विशिष्ठ रोग, किसी विशिष्ठ रोगजनक सूक्ष्मजीव के कारण ही होता है। उन्होंने ही कोच्स पॉस्ट्युलेट्स बनाये थे। कोच शुद्ध कल्चर में से जीवाणुओं के पृथकीकरण करने वाले वैज्ञानिकों में से प्रथम रहे हैं। जिसके परिणामस्वरूप कई नवीन जीवाणुओं की खोज व वर्णन किया जा सकें, जिनमें माइकोबैक्टीरियम ट्यूबर्क्युलोसिस, क्षय रोग का मूल जीवणु भी रहा।

जबकि पाश्चर एवं कोच प्रायः सूक्ष्मजैविकी के जनक कहे जाते हैं परंतु उनका कार्य सही ढ़ंग से सूक्ष्मजैविक संसार के वास्तविक विविधता को नहीं दर्शाता है, क्योंकि उनक ध्यान प्रत्यक्ष चिकित्सा संबंधी संदर्भों वाले सूक्ष्मजीवों पर ही केन्द्रित रहा। मार्टिनस विलियम बेइजरिंक (1851–1931) एवं सर्जेई विनोग्रैड्स्की (1856–1953), जो कि सामान्य सूक्ष्मजैविकी (एक पुरातन पद, जिसमें सूक्ष्मजैविक शरीरक्रिया विज्ञान, विभेद एवं पारिस्थितिकी आते हैं) के संस्थापक कहे जाते हैं। उनके कार्यों के उपरांत ही, सूक्ष्मजैविकी की सही-सही परिधि का ज्ञान हुआ[1]

बेइजरिंक के सूक्ष्मजैविकी में दो महान योगदान हैं: विषाणुओं की खोज तथा उपजाउ संवर्धन तकनीक (एन्ररिचमेंट कल्चर टैक्नीक)। [11] उनके तम्बाकू मोज़ाइक विषाणु पर किये गए अनुसंधान कार्य ने विषाणु विज्ञान के मूलभूत सिद्धांत स्थापित किये थे। यह उनके एनरिच्मेंट कल्चर का विकास था, जिसका तात्क्षणिक प्रभाव सूक्ष्मजैविकी पर पड़ा। इसके द्वारा एक वृहत सूक्ष्मजीवों की शृंखला को संवर्द्धित किया जा सका, जिनकी शारीरिकी विविध प्रकार की थीं। विनोग्रैड्स्की ने अकार्बनिक रासायनिक पदार्थों (कीमोलिथोट्रॉफी) पर प्रथम सिद्धांत प्रस्तुत किया था, जिसके साथ ही सूक्ष्मजीवों की भूरासायनिक प्रक्रियाओं में अतिमहत्वपूर्ण भूमिका उजागर हुई। [12] इन्होंने ही सर्वप्रथम नाइट्रिफाइंग तथा नाइट्रोजन-फिक्सिंग जीवाणु का पृथकीकरण किया था। [1]

सूक्ष्मजीवों के प्रकार

जीवाणु

जीवाणु
ई. कोलाइ नामक जीवाणु, सर्वाधिक अध्ययन किया गया सूक्ष्मजीव

जीवाणु एक एककोशिकीय जीव है । इसका आकार कुछ मिलिमीटर तक ही होता है । इनकी आकृति गोल या मुक्त-चक्राकार से लेकर छङा, आदि आकार की हो सकती है। ये प्रोकैरियोटिक, कोशिका भित्तियुक्त, एककोशकीय सरल जीव हैं जो प्रायः सर्वत्र पाये जाते है। ये पृथ्वी पर मिट्टी में, अम्लीय गर्म जल-धाराओं में, नाभिकीय पदार्थों में[13], जल में,भू-पपड़ी में, यहां तक की कार्बनिक पदार्थों में तथा पौधौं एवं जन्तुओं के शरीर के भीतर भी पाये जाते हैं. साधारणतः एक ग्राम मिट्टी में 4 करोड़ जीवाणु कोष तथा 1 मिलीलीटर जल में 10 लाख जीवाणु पाएं जाते हैं। संपूर्ण पृथ्वी पर अनुमानतः लगभग 5X1030 जीवाणु पाएं जाते हैं।[14] जो संसार के बायोमास का एक बहुत बड़ा भाग है.[15] ये कई तत्वों के चक्र में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, जैसे कि वायुमंडलिए नाइट्रोजन के स्थीरीकरण में। हलाकि बहुत सारे वंश के जीवाणुओं का श्रेणी विभाजन भी नहीं हुआ है तथापि लगभग आधों के किसी न किसी जाति को प्रयोगशाला में उगाया जा चुका है।[16] जीवाणुओं का अध्ययन बैक्टिरियोलोजी के अन्तर्गत किया जाता है जो कि सूक्ष्मजैविकी की ही एक शाखा है।
मानव शरीर में जितनी मानव कोशिकाएं है, उसकी लगभग 10 गुणा अधिक तो जीवाणु कोष है। इनमें से अधिकांश जीवाणु त्वचा तथा अहारनाल में पाएं जाते हैं। [17] हानिकारक जीवाणु इम्मयुन तंत्र के रक्षक प्रभाव के कारण शरीर का नुकसान नही पहुंचा पाते है। कुछ जीवाणु लाभदायक भी होते हैं। अनेक प्रकार के परजीवी जीवाणु कई रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे - हैजा, मियादी बुखार, निमनिया, तपेदिक या क्षयरोग, प्लेग इत्यादि. सिर्फ क्षय रग से प्रतिवर्ष लगभग 20 लाख लोग मरते हैं जिनमें से अधिकांश उप-सहारा क्षेत्र के होते हैं। [18] विकसित देशों में जीवाणुओं के संक्रमण का उपचार करने के लिए तथा कृषि कार्यों में प्रतिजैविक का उपयोग होता है, इसलिए जुवाणुओं में इन प्रतिजैविक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक शक्ति विकसित होती जा रही है। औद्दोगिक क्षेत्र में जीवाणुओं के किण्वन क्रिया द्वारा दही, पनीर इत्यादि वस्तुओं का निर्माण होता है। इनका उपयोग प्रतिजैविकी तथा और रसायनों के निर्माण में तथा जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होता है।[19]

विषाणु

एक आदर्श विषाणु

विषाणु अतीसूक्ष्म जीव हैं।जो कि शरीर के बाहर तो मृत होते हैं परंतु शरीर के अंदर जीवित हो जाते हैं। इन्हे क्रिस्टल के रूप मे इकट्ठा किया जा सकता है। एक विषाणु बिना एक जीवित मध्यम के पुनरुत्पादन नहीं कर सकता है एक विषाणु सैकड़ों वर्षों तक सुशुप्तावस्था में रह सकता है और जब भी एक जीवित मध्यम या धारक के संपर्क में आता है उस जीव की कोशिका को भेद कर आच्छादित कर देता है और जीव बीमार हो जाता है। एक बार जब विषाणु जीवित कोशिका में प्रवेश कर जाता है, वह कोशिका के मूल RNA व डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक सूचना से बदल देता है और इन्फेक्टेड कोशिका अपने जैसे इन्फेक्टेड कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है.

कवक

फफूंद या कवक एक प्रकार के पौधे हैं जो अपना भोजन स़डे गले म्रृत कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं । ये संसार के प्रारंभ से ही जगत मे उपस्थित हैं। इनका सबसे बडा लाभ इनका संसार मे अपमार्जक के रूप मे कार्य करना है। इनके द्वारा जगत मे से कचरा हटा दिया जाता है।

प्रोटोज़ोआ

प्रोटोज़ोआ एक एककोशिकीय जीव है। इनकी कोशिकायें युकैरियोटिक प्रकार की होती हैं। प्रोटोजोआ का आकार 10 से 50 μm होता है तथा ये साधारण सूक्ष्मदर्शी यंत्र से आसानी से देखे जा सकते हैं। कुछ प्रोटोज़ोआ जन्तुओं या मनुष्य में रोग उत्पन्न करते हैं, उन्हे रोगजनित प्रोटोज़ोआ कहते हैं। ये जल एवं मिट्टी में सर्वत्र पाएं जाते हैं। अपने भोजन का पाचन रसधानियों में करते हैं।[20]

आर्किया

आर्किया या आर्किबैक्टीरिया यानी वे जीव जो अपने सरल रूप में बैक्टीरिया जैसे ही होते हैं पर उनकी कोशीय संरचना काफ़ी अलग होती है।

शैवाल

एक शैवाल

शैवाल सरल सजीव हैं. अधिकांश शैवाल पौधों के समान सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं अर्थात् स्वपोषी होते हैं. ये एक कोशिकीय से लेकर बहु-कोशिकीय अनेक रूपों में हो सकते हैं, परन्तु पौधों के समान इसमें जड़, पत्तियां इत्यादि रचनाएं नहीं पाई जाती हैं. ये नम भूमि, अलवणीय एवं लवणीय जल.वृक्षों की छाल, नम दीवारों पर हरी, भूरी या कुछ काली परतों के रूप में मिलते हैं.

विविधता

सूक्ष्मजैविकी के क्षेत्र को प्रायः कई उप-क्षेत्रों में बांटा जाता है:

सूक्ष्मजीव शरीर क्रिया विज्ञान

सूक्ष्मजैविक कोशिकाएं किस प्रकार जैवरासायनिक क्रियाएं करतीं हैं, इसका अध्ययन । इसमें सूक्ष्मजैविक उपज, सूक्ष्मजैविक उपपाचय (मैटाबोलिज़्म) एवं सूक्ष्मजैविक कोशिका संरचना सम्मिलित हैं।

सूक्ष्मजैविक अनुवांशिकी

सूक्ष्मजीवों में जीन अपने कोशिकीय क्रियाओं के संबंध में, किस प्रकार व्यवस्थित व नियमित होते हैं। यह आण्विक जैविकी के क्षेत्र से निकटता से संबंधित है।

आयुर्विज्ञान सूक्ष्मजैविकी या सूक्ष्मजैव आयुर्विज्ञान;

मानवीय रोगों में सूक्ष्मजीवों की भूमिका का अध्ययन। सूक्ष्मजैविक रोगजनन एवं महामारी विज्ञान का अध्ययन, जिसके साथ ही रोग विकृति विज्ञान एवं इम्म्यूनोलॉजी से भी संबंधित है।

पशु सूक्ष्मजैविकी

सूक्ष्मजीवों की पशु चिकित्सा या पशु वर्गीकरण में भूमिका।

पर्यावरण सूक्ष्मजैविकी

सूक्ष्मजीवों के प्राकृतिक पर्यावरण/वातावरण में क्रिया व विभेद। इसमें सूक्ष्मजैविक पारिस्थितिकी, सूक्ष्मजैविकीय-मध्यस्थ पोषण चक्र, भूसूक्ष्मजैविकी, सूक्ष्मजैविक विभेद व बायोरीमैडियेशन भी सम्मिलित हैं।

विकासवादी सूक्ष्मजैविकी

सूक्ष्मजीवों के विकास का अध्ययन। इसमें जीवाण्विक सुव्यवस्था एवं वर्गीकरण सम्मिलित है।

औद्योगिक सूक्ष्मजैविकी

औद्योगिक प्रक्रियाओं में सूक्ष्मजीवों के अनुप्रयोग व उपयोग। उदाहरणार्थ, औद्योगिक प्रकिण्वन, व्यर्थ जल निरुपण। यह जैवप्रौद्योगिकी व्यवसाय का निकट संबंधी है। इस क्षेत्र में मद्यकरण भी सम्मिलित है, जो सूक्ष्मजैविकी का महत्वपूर्ण अनुप्रयोग है।

वायु सूक्ष्मजैविकी;

यह वायुवाहित सूक्ष्मजीवों का अध्ययन है।

खाद्य सूक्ष्मजैविकी

सूक्ष्मजीवों द्वारा खाद्य पदार्थों में खराबी व खाद्य संबंधी रोगों का अध्ययन। सूक्ष्मजीवों को खाद्य पदार्थ उत्पादन हेतु प्रयोग में लाना, जैसे प्रकिण्वन।

औषधीय सूक्ष्मजैविकी

औषधियों में दूषण लाने वाले सूक्ष्मजीवों का अध्ययन।

मौखिक सूक्ष्मजैविकी

मुख के भीतर के सूक्ष्मजीवों का अध्ययन, खासकर अस्थिक्षय एवं दंतपरिधीय (पैरियोडॉंन्टल) रोगों के कारण सूक्ष्मजीव।

लाभ

बीयर उत्पादन हेतु खमीर से पूर्ण गड्ढे

यद्यपि सूक्ष्मजीवों को उनके विभिन्न मानवीय रोगों से सम्बन्धित होने के कारण, प्रायः नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है, तथापि सूक्ष्मजीव कई लाभदायक प्रक्रियाओं के लिये भी उत्तरदायी होते हैं, जैसे औद्योगिक प्रकिण्वन (उदाहरण स्वरूप मद्यसार (अल्कोहॉल) एवं दुग्ध-उत्पाद), जैवप्रतिरोधी उत्पादन। यह उच्च श्रेणी के जीवों जैसे पादपों में क्लोनिंग हेतु वाहन रूप में भी प्रयोग किए जाते हैं। वैज्ञानिकों ने जैवप्रौद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण किण्वक जैसे टैक पॉलिमरेज़, रिपोर्टर जीन आदि का उत्पादन करने में अपने सूक्ष्मजीवों के ज्ञान का उपयोग किया है। इन किण्वकों का प्रयोग अन्य अनुवांशिक तंत्रों में व नोवल आण्विक जीवविज्ञान तकनीकों में होता है, जैसे यीस्ट टू-हाइब्रिड सिस्टम इत्यादि।

जीवाणुओं को अमीनो अम्ल के औद्योगिक उत्पादन के लिये प्रयोग किया जाता है। कॉराइनेबैक्टीरियम ग्लूटैमिकम जीवाणु का प्रयोग एल-ग्लूटामेट एवं एल-लाइसीन नामक अमीनो अम्ल के उत्पादन में किया जाता है, जिससे प्रति वर्ष दो मिलियन टन अमीनो अम्ल का उत्पादन होता है। [21]

अनेक प्रकार के जैव बहुअणुक जैसे पॉलीसैक्कराइड, पॉलिएस्टर एवं पॉलीएमाइड; सूक्ष्मजीवों द्वारा ही उत्पादित किये जाते हैं। सूक्ष्मजीवों का प्रयोग बहुअणुकों के जैवप्रौद्योगिक उत्पादन हेतु भी किया जाता है। यह जीव उच्च मान के आयुर्विज्ञानी अनुप्रयोगों, जैसे ऊतक अभियांत्रिकी एवं ड्रग डिलीवरी के अनुकूल गुणों से लैस किये गये होते हैं। सूक्ष्मजीवों का प्रयोग ज़ैन्थैन, ऐल्जिनेट, सैल्युलोज़, सायनोफाइसिन, पॉली-गामा ग्लूटोनिक अम्ल, लेवैन, हायल्युरॉनिक अम्ल, कार्बनिक ऑलिगोसैक्कराइड एवं पॉलीसैक्कराइड तथा पॉलीहाइड्रॉक्सीऐल्कैनोएट आदि के जैवसंश्लेषण हेतु भी होता है।[22]

सूक्ष्मजीव घरेलु, कृषि या औद्योगिक कूड़े तथा मृदा (मिट्टी), अवसाद एवं समुद्रीय पर्यावरणों में अधोसतही प्रदूषण के सूक्ष्मजैविक विघटन या जैवपुनर्निर्माण में प्रयुक्त होते हैं। प्रत्येक सूक्ष्मजीव द्वारा जहरीले कूड़े के विघटन की क्षमता संदूषित के स्वभाव पर भी निर्भर करती है, क्योंकि अधिकांश स्थल विभिन्न प्रकार के प्रदूषकों से युक्त होते हैं। सूक्ष्मजैविक विघटन की सर्वोत्तम प्रभावी पद्धति है- विभिन्न जीवाण्विक जातियों व स्ट्रेन्स, जिनमें से प्रत्येक एक या अनेक प्रकार के संदूषकों के विघटन में सक्षम हो, के मिश्रण का प्रयोग करना।[23]

प्रोबायोटिक (पाचन प्रणाली में संभवतः सहायक जीवाणु) एवं प्रीबायोटिक (प्रोबायोटिक सूक्ष्मजीवों की बढ़ोत्तरी हेतु लिये गये पदार्थ) पदार्थों से मानवीय व पाश्विक स्वास्थ्य में योगदान के कई दावे भी हुए हैं।[24]

हाल के शोधों से ज्ञात हुआ है कि सूक्ष्मजीव कैंसर के उपचार में भी सहायक हो सकते हैं। गैर-पैथोजैनिक क्लोस्ट्रीडिया के कई स्ट्रेन देते घुसपैठ करके ठोस रसौलियों के अंदर ही प्रतिलिपियां बना सकता है। क्लोस्ट्रिडियल वाहक सौरक्षित रूप से नियंत्रित किये जा सकते हैं, व उनकी चिकित्सा संबंधी प्रोटीनों को वहन करने की क्षमता कई प्रतिरूपों में प्रदर्शित की जा चुकी है।[25]



टीका टिप्पणी

   क.    ^ ...and because there are bred certain minute creatures which cannot be seen by the eyes, which float in the air and enter the body through the mouth and nose and there cause serious diseases. [26]

सन्दर्भ

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  24. टैन्नॉक जी.डब्ल्यु (सम्पादक). (2005). प्रोबायोटिक्स एण्ड प्रीबायोटिक्स: साइंटिफिच आस्पैक्ट्स. सैस्टर ऐकेडैमिक प्रैस. ISBN 978-1-904455-01-1.
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विस्तृत पठन

  • लर्नर, ब्रेन्डा विल्मौथ & के.ली लर्नर (संपा.) (2006). मैडिसिन, हैल्थ एण्ड बायोएथिक्स : असेन्शियल प्राइमरी सोर्सेज़ (प्रथम संस्करण संस्करण). थॉमसन गेल. ISBN 1414406231.
  • विटज़ैनि, गुएन्थर (2008). बायो-कम्युनिकेशन ऑफ बैक्टीरिया एण्ड इत्स इवॉल्यूश्नरी इंटररिलेशन्स टू नैचुरल जीनोम एडिटिंग कॉम्पिटैन्सेज़ ऑफ वायरसेज़. नेचर प्रिसीडिंग्स. hdl:10101/npre.2008.1738.1.

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियां

सामान्य

जर्नल्स

व्यावसायिक प्रतिष्ठान

साँचा:Link FA