"तोमर वंश": अवतरणों में अंतर
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''' तोमर''' तंवर, या कुंतल उत्तर पश्चिम भारत का एक [[ |
''' तोमर''' तंवर, या कुंतल उत्तर पश्चिम भारत का एक [[गुज॑र]]<!-- कृपया बिना सन्दर्भ डाले जाती न बदलें--><ref> B S Dahiya:Jats the Ancient Rulers (A clan study), p.244, s.n.239</ref> और [[राजपूत]]<ref>Rajputane ka Itihas ( History of Rajputana), Publisher: Vaidika Yantralaya, Ajmer 1927.</ref> वंश है। तोमरो का मानना है कि वे चन्द्रवन्शी है। इन्होंने वर्तमान [[दिल्ली]] की स्थापना '' दिहिलिका'' के नाम से की थी।<ref>books.google.es/books/about/Prithviraj_raso.html?id=4ymMbwAACAAJ&redir_esc=y</ref> |
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== परिचय == |
== परिचय == |
12:59, 10 दिसम्बर 2019 का अवतरण
तोमर तंवर, या कुंतल उत्तर पश्चिम भारत का एक गुज॑र[1] और राजपूत[2] वंश है। तोमरो का मानना है कि वे चन्द्रवन्शी है। इन्होंने वर्तमान दिल्ली की स्थापना दिहिलिका के नाम से की थी।[3]
परिचय
पुराणों से प्रतीत होता है कि आरंभ में तोमरों का निवास हिमालय के निकटस्थ किसी उत्तरी प्रदेश में था। किंतु १०वीं शताब्दी तक ये करनाल तक पहुँच चुके थे। थानेश्वर में भी इनका राज्य था। उस समय उत्तर भारत में चौहान राजवन्श का साम्राज्य था। उन्हीं के सामंत के रूप में तंवरों ने दक्षिण की ओर अग्रसर होना आरम्भ किया।[उद्धरण चाहिए]
दिल्ली में उनके अधिकार का समय अनिश्चित है। किंतु विक्रम की १०वीं और ११वीं शतियों में हमें साँभर के चौहानों और तोमरों के संघर्ष का उल्लेख मिलता है। तोमरेश रुद्र चौहान राजा चंदन के हाथों मारा गया। तंत्रपाल तोमर चौहान वाक्पति से पराजित हुआ। वाक्पति के पुत्र सिंहराज ने तोमरेश सलवण का वध किया। किंतु चौहान सिंहराज भी कुछ समय के बाद मारा गया। बहुत संभव है कि सिंहराज की मृत्यु में तोमरों का कुछ हाथ रहा हो। ऐसा प्रतीत होता है कि तोमर इस समय दिल्ली के स्वामी बन चुके थे। गज़नवी वंश के आरंभिक आक्रमणों के समय दिल्ली-थानेश्वर का तोमर वंश पर्याप्त समुन्नत अवस्था में था।[उद्धरण चाहिए]
तोमरराज ने थानेश्वर को महमूद से बचाने का प्रयत्न भी किया, यद्यपि उसे सफलता न मिली। सन् १०३८ ईo (संo १०९५) महमूद के पुत्र मसूद ने हांसी पर अधिकार कर लिया। मसूद के पुत्र मजदूद ने थानेश्वर को हस्तगत किया। दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी होने लगी। ऐसा प्रतीत होता था कि मुसलमान दिल्ली राज्य की समाप्ति किए बिना चैन न लेंगे। किंतु तोमरों ने साहस से काम लिया। तोमरराज महीपाल ने केवल हांसी और थानेश्वर के दुर्ग ही हस्तगत न किए; उसकी वीर वाहिनी ने काँगड़े पर भी अपनी विजयध्वजा कुछ समय के लिये फहरा दी। लाहौर भी तँवरों के हाथों से भाग्यवशात् ही बच गया।[उद्धरण चाहिए]
तोमरों की इस विजय से केवल विद्वेषाग्नि ही भड़की। तोमरों पर इधर उधर से आक्रमण होने लगे। तँवरों ने इनका यथाशक्ति उत्तर दिया। संवत् ११८९ (सन् ११३२) में रचित श्रीधर कवि के पार्श्वनाथचरित् से प्रतीत होता है कि उस समय तोमरों की राजधानी दिल्ली समृद्ध नगरी थी और तँवरराज अनंगपाल अपने शौर्य आदि गुणों के कारण सर्वत्र विख्यात था। द्वितीय अनंगपाल ने मेहरोली के लौह स्तंभ की दिल्ली में स्थापना की। शायद इसी राजा के समय तँवरों ने अपनी नीति बदली। बीसलदेव तृतीय न संवत् १२०८ (सन् ११५१ ईo) में तोमरों को हरा कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इसके बाद तँवर चौहानों के सामंतों के रूप में दिल्ली में राज्य करते रहे। [उद्धरण चाहिए] पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद दिल्ली पर मुसलमानों का अधिकार हुआ।
दिल्ली के तोमर राजा
- अनंगपाल प्रथम 736 ई
- विशाल 752
- गंगेय 772
- पथ्वीमल 793
- जगदेव 812
- नरपाल 833
- उदयसंघ 848
- जयदास 863
- वाछाल 879
- पावक 901
- विहंगपाल 923
- तोलपाल 944
- गोपाल 965
- सुलाखन 983
- जसपाल 1009
- कंवरपाल 1025 (मसूद ने हांसी पर कुछ दिन कब्जा किया था 1038 में)
- अनंगपाल द्वितीय 1046 (1052 महरौली के लौह स्तंभ पर शिलालेख]])
- तेजपाल 1076
- महीपाल 1100
- दकतपाल (अर्कपाल भी कहा जाता है) 1115 A.D.-1046 (1052 महरौली के लौह स्तंभ पर शिलालेख)
सन्दर्भ
- दशरथ शर्मा : दिल्ली का तोमर राज्य, राजस्थान भारती, भाग ३, अंक ३, ४, पृo १७२६