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*[https://www.generalnowlege.com/read-more.php?id=3959 17वीं लोकसभा के अस्थायी अध्यक्ष बने वीरेंद्र कुमार]
* [[सोलहवीं लोकसभा]] के सदस्य
*[[सोलहवीं लोकसभा]] के सदस्य
* [[राज्यसभा]]
* [[राज्यसभा]]
* [[भारतीय संसद]]
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13:32, 11 जून 2019 का अवतरण

लोक सभा, भारतीय संसद का निचला सदन है। भारतीय संसद का ऊपरी सदन राज्य सभा है। लोक सभा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर लोगों द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों से गठित होती है। भारतीय संविधान के अनुसार सदन में सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 तक हो सकती है, जिसमें से 530 सदस्य विभिन्न राज्यों का और 20 सदस्य तक केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। सदन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने की स्थिति में राष्ट्रपति यदि चाहे तो आंग्ल-भारतीय समुदाय के 2 प्रतिनिधियों को लोकसभा के लिए मनोनीत कर सकता है।

लोकसभा की कार्यावधि 5 वर्ष है परंतु इसे समय से पूर्व भंग किया जा सकता है। में दिनेश नागर भौंरा इस बात से सहमत हु

इतिहास

प्रथम लोक सभा 1952 पहले आम चुनाव होने के बाद देश को अपनी पहली लोक सभा मिली। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 260 सीटों के साथ जीत हासिल करके सत्ता में पहुँची। इसके साथ ही जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।

राज्यों के अनुसार सीटों की संख्या

भारत के प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर लोकसभा-सदस्य मिलते है। वर्तमान मे यह 1971 की जनसंख्या पर आधारित है। अगली बार लोकसभा के सदस्यों की संख्या वर्ष 2026 मे निर्धारित किया जायेगा। इससे पहले प्रत्येक दशक की जनगणना के आधार पर सदस्य स्थान निर्धारित होते थे। यह कार्य बकायदा 84वें संविधान संशोधन(2001) से किया गया था ताकि राज्य अपनी आबादी के आधार पर ज्यादा से ज्यादा स्थान प्राप्त करने का प्रयास नही करें।

वर्तमान परिपेक्ष्य में राज्यों की जनसंख्या के अनुसार वितरित सीटों की संख्या के अनुसार उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व, दक्षिण भारत के मुकाबले काफी कम है। जहां दक्षिण के चार राज्यों, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल को जिनकी संयुक्त जनसंख्या देश की जनसंख्या का सिर्फ 21% है, को 129 लोक सभा की सीटें आवंटित की गयी हैं जबकि, सबसे अधिक जनसंख्या वाले हिन्दी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार जिनकी संयुक्त जनसंख्या देश की जनसंख्या का 25.1% है के खाते में सिर्फ 120 सीटें ही आती हैं।[1] वर्तमान में अध्यक्ष और आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो मनोनीत सदस्यों को मिलाकर, सदन की सदस्य संख्या 545 है।[2]

लोक सभा की सीटें निम्नानुसार 29 राज्यों और 7 केन्द्र शासित प्रदेशों के बीच विभाजित है: -

उपविभाजन प्रकार निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या[3]
अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह केन्द्र शासित प्रदेश 1
आन्ध्र प्रदेश राज्य 25
अरुणाचल प्रदेश राज्य 2
असम राज्य 14
बिहार राज्य 40
चंडीगढ़ केन्द्र शासित प्रदेश 1
छत्तीसगढ़ राज्य 11
दादरा और नगर हवेली केन्द्र शासित प्रदेश 1
दमन और दीव केन्द्र शासित प्रदेश 1
गोवा केन्द्र शासित प्रदेश 1
गुजरात राज्य 26
हरियाणा राज्य 10
हिमाचल प्रदेश राज्य 4
जम्मू और कश्मीर राज्य 6
झारखंड राज्य 14
कर्नाटक राज्य 28
केरल राज्य 20
लक्षद्वीप केन्द्र शासित प्रदेश 1
मध्य प्रदेश राज्य 29
महाराष्ट्र राज्य 48
मणिपुर राज्य 2
मेघालय राज्य
नागालैंड राज्य 1
उड़ीसा राज्य 21
पुदुच्चेरी केन्द्र शासित प्रदेश 1
पंजाब राज्य 13
राजस्थान राज्य 25
सिक्किम राज्य 1
तमिल नाडु राज्य 39
त्रिपुरा राज्य 2
उत्तराखंड राज्य 5
उत्तर प्रदेश राज्य 80
पश्चिम बंगाल राज्य 42
तेलंगाना राज्य 17

आंग्ल-भारतीय- 2 [अगर राष्ट्रपति मनोनीत करे (संविधान के अनुच्छेद 331 के तहत)]

लोक सभा का कार्यकाल

यदि समय से पहले भंग ना किया जाये तो, लोक सभा का कार्यकाल अपनी पहली बैठक से लेकर अगले पाँच वर्ष तक होता है उसके बाद यह स्वत: भंग हो जाती है। लोक सभा के कार्यकाल के दौरान यदि आपातकाल की घोषणा की जाती है तो संसद को इसका कार्यकाल कानून के द्वारा एक समय में अधिकतम एक वर्ष तक बढ़ाने का अधिकार है, जबकि आपातकाल की घोषणा समाप्त होने की स्थिति में इसे किसी भी परिस्थिति में छ: महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।

लोकसभा की विशेष शक्तियाँ

  1. मंत्री परिषद केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। अविश्वास प्रस्ताव सरकार के विरूद्ध केवल यहीं लाया जा सकता है।
  2. धन बिल पारित करने मे यह निर्णायक सदन है।
  3. राष्ट्रीय आपातकाल को जारी रखने वाला प्रस्ताव केवल लोकसभा मे लाया और पास किया जायेगा।

लोकसभा के पदाधिकारी

लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर)

लोकसभा अपने निर्वाचित सदस्यों में से एक सदस्य को अपने अध्यक्ष (स्पीकर) के रूप में चुनती है। कार्य संचालन में अध्यक्ष की सहायता उपाध्यक्ष द्वारा की जाती है, जिसका चुनाव भी लोक सभा के निर्वाचित सदस्य करते हैं। लोक सभा में कार्य संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष का होता है।वर्तमान मे लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन है।

लोकसभा अध्यक्ष के दो कार्य है-
1. लोकसभा की अध्यक्षता करना एवं उस में अनुसाशन, गरिमा तथा प्रतिष्टा बनाये रखना। इस कार्य हेतु वह किसी न्यायालय के सामने उत्तरदायी नहीं होता है।

2. वह लोकसभा से संलग्न सचिवालय का प्रशासनिक अध्यक्ष होता है किंतु इस भूमिका के रूप में वह न्यायालय के समक्ष उत्तरदायी होगा।

स्पीकर की विशेष शक्तियाँ
1. दोनो सदनों का सम्मिलित सत्र बुलाने पर स्पीकर ही उसका अध्यक्ष होगा। उसके अनुउपस्थित होने पर उपस्पीकर तथा उसके भी न होने पर राज्यसभा का उपसभापति अथवा सत्र द्वारा नांमाकित कोई भी सदस्य सत्र का अध्यक्ष होता है

2. धन बिल का निर्धारण स्पीकर करता है। यदि धन बिल पे स्पीकर साक्ष्यांकित नहीं करता तो उस बिल को धन बिल नहीं माना जायेगा। स्पीकर का निर्णय अंतिम तथा बाध्यकारी होता है।

3. सभी संसदीय समितियाँ उसकी अधीनता में काम करती हैं। उसके किसी समिति का सदस्य चुने जाने पर वह उसका पदेन अध्यक्ष होगा

4. लोकसभा के विघटन होने पर भी स्पीकर पद पर कार्य करता रहता है। नवीन लोकसभा के चुने जाने पर ही वह अपना पद छोड़ता है।

कार्यवाहक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर)

जब कोई नवीन लोकसभा चुनी जाती है तब राष्ट्रपति उस सदस्य को कार्यवाहक स्पीकर नियुक्त करता है जिसको संसद मे सदस्य होने का सबसे लंबा अनुभव होता है। वह राष्ट्रपति द्वारा शपथ ग्रहण करता है।
उसके दो कार्य होते हैं-
1. संसद सदस्यों को शपथ दिलवाना, एवं
2. नवीन स्पीकर चुनाव प्रक्रिया का अध्यक्ष भी वही बनता है।

उपाध्यक्ष

लोकसभा के सदस्य अपने में से किसी एक का उपाध्यक्ष के रूप में चुनाव करते हैं। यदी संबंधित सदस्य का लोकसभा की सदस्यता खत्म हो जाती है तो उसका अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद भी खत्म हो जाता है। उपाध्यक्ष अपना त्याग पत्र अध्यक्ष को संबोधित करता है। लोकसभा के उपस्थित सदस्यों के बहुमत से संमत किये हुए प्रस्ताव के अनुसार अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पदच्युत (पद से निकाला जाना) किया जा सकता है।

वर्तमान में लोकसभा के उपाध्यक्ष का पद रिक्त है, क्योंकि निवर्तमान उपाध्यक्ष एम.थंबीदुरई का कार्यकाल 16वीं लोकसभा के भंग होने से (25.05.2019) पूर्ण हो गया।

लोकसभा के सत्र

संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार संसद सदैव इस तरह से आयोजित की जाती रहेगी कि संसद के दो सत्रॉ के मध्य 6 मास से अधिक अंतर न हो। पंरपरानुसार संसद तीन नियमित सत्रों तथा विशेष सत्रों मे आयोजित की जाती है। सत्रों का आयोजन राष्ट्रपति की विज्ञप्ति से होता है।

1. बजट सत्र वर्ष का पहला सत्र होता है सामान्यत फरवरी मई के मध्य चलता है यह सबसे लंबा तथा महत्वपूर्ण सत्र माना जाता है इसी सत्र मे बजट प्रस्तावित तथा पारित होता है सत्र के प्रांरभ मे राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है

2. मानसून सत्र जुलाई अगस्त के मध्य होता है

3. शरद सत्र नवम्बर-दिसम्बर के मध्य होता है सबसे कम समयावधि का सत्र होता है

विशेष सत्र – इस के दो भेद है

  • 1. संसद के विशेष सत्र.
  • 2. लोकसभा के विशेष सत्र

संसद के विशेष सत्र – प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति इनका आयोजन करता है ये किसी नियमित सत्र के मध्य अथवा उससे पृथक आयोजित किये जाते है
एक विशेष सत्र मे कोई विशेष कार्य चर्चित तथा पारित किया जाता है यदि सदन चाहे भी तो अन्य कार्य नही कर सकता है

लोकसभा का विशेष सत्र – अनु 352 मे इसका वर्णन है किंतु इसे 44 वें संशोधन 1978 से स्थापित किया गया है यदि
लोकसभा के कम से कम 1/10 सद्स्य एक प्रस्ताव लाते है जिसमे राष्ट्रीय आपातकाल को जारी न रखने
की बात कही गयी है तो नोटिस देने के 14 दिन के भीतर सत्र बुलाया जायेगा

सत्रावसान – मंत्रिपरिषद की सलाह पे सदनॉ का सत्रावसान राष्ट्रपति करता है इसमे संसद का एक सत्र समाप्त
हो जाता है तथा संसद दुबारा तभी सत्र कर सकती है जब राष्ट्रपति सत्रांरभ का सम्मन जारी कर दे सत्रावसान की दशा मे संसद के
समक्ष लम्बित कार्य समाप्त नही हो जाते है

स्थगन – किसी सदन के सभापति द्वारा सत्र के मध्य एक लघुवधि का अन्तराल लाया जाता है इस से
सत्र समाप्त नही हो जाता ना उसके समक्ष लम्बित कार्य समाप्त हो जाते है यह दो प्रकार का होता है

  • 1. अनिश्चित कालीन
  • 2. जब अगली मीटिग का समय दे दिया जाता है

लोकसभा का विघटन— राष्ट्रपति द्वारा मंत्रि परिष्द की सलाह पर किया है। इससे लोकसभा का जीवन समाप्त हो जाता है। इसके बाद आमचुनाव ही होते है। विघटन के बाद सभी लंबित कार्य जो लोकसभा के समक्ष होते है समाप्त हो जाते है किंतु बिल जो राज्यसभा मे लाये गये हो और वही लंबित होते है समाप्त नही होते या या बिल जो राष्ट्रपति के सामने विचाराधीन हो वे भी समापत नही होते है या राष्ट्रपति संसद के दोनॉ सदनॉ की लोकसभा विघटन से पूर्व संयुक्त बैठक बुला ले।

विधायिका संबंधी कार्यवाही

प्रक्रियाबिल/विधेयक कुल 4 प्रकार होते है

सामान्य बिल

इसकी 6 विशेषताएँ है
1. परिभाषित हो
2. राष्ट्रपति की अनुमति हो
3. बिल कहाँ प्रस्तावित हो
4. सदन की विशेष शक्तियॉ मे आता हो
5.कितना बहुमत चाहिए
6. गतिवरोध पैदा होना
यह वह विधेयक होता है जो संविधान संशोधन धन या वित्त विधेयक नही है यह संसद के किसी भी सदन मे लाया जा सकता है यदि अनुच्छेद 3 से जुडा ना हो तो इसको राष्ट्रप्ति की अनुंशसा भी नही चाहिए
इस बिल को पारित करने मे दोनो सदनॉ की विधायी शक्तिय़ाँ बराबर होती है इसे पारित करने मे सामान्य बहुमत
चाहिए एक सदन द्वारा अस्वीकृत कर देने पे यदि गतिवरोध पैदा हो जाये तो राष्ट्रपति दोनो सद्नॉ की संयुक्त बैठक मंत्रि परिषद की
सलाह पर बुला लेता है
राष्ट्रपति के समक्ष यह विधेयक आने पर वह इस को संसद को वापस भेज सकता है या स्वीकृति दे सकता है या अनिस्चित काल हेतु रोक सकता है

धन बिल

विधेयक जो पूर्णतः एक या अधिक मामलों जिनका वर्णन अनुच्छेद 110 में किया गया हो से जुडा हो धन विधेयक कहलाता है ये मामलें है
1. किसी कर को लगाना, हटाना, नियमन
2. धन उधार लेना या कोई वित्तेय जिम्मेदारी जो भारत सरकार ले
3. भारत की आपात/संचित निधि से धन की निकासी/जमा करना
4.संचित निधि की धन मात्रा का निर्धारण
5. ऐसे व्यय जिन्हें भारत की संचित निधि पे भारित घोषित करना हो
6. संचित निधि मे धन निकालने की स्वीकृति लेना
7. ऐसा कोई मामला लेना जो इस सबसे भिन्न हो
धन विधेयक केवल लोकसभा मे प्रस्तावित किए जा सकते है इसे लाने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति आवशय्क है इन्हें पास करने के लिये सदन का सामान्य बहुमत आवश्यक होता है
धन बिल मे ना तो राज्य सभा संशोधन कर सकती है न अस्वीकार
जब कोई धन बिल लोकसभा पारित करती है तो स्पीकर के प्रमाणन के साथ यह बिल राज्यसभा मे ले जाया जाता है राज्यसभा इस
बिल को पारित कर सकती है या 14 दिन के लिये रोक सकती है किंतु उस के बाद यह बिल दोनॉ
सदनॉ द्वारा पारित माना जायेगा राज्य सभा द्वारा सुझाया कोई भी संशोधन लोक सभा की इच्छा पे निर्भर करेगा कि वो स्वीकार करे
या ना करे जब इस बिल को राष्ट्रपति के पास भेजा जायेगा तो वह सदैव इसे स्वीकृति दे देगा
फायनेसियल बिल वह विधेयक जो एक या अधिक मनीबिल प्रावधानॉ से पृथक हो तथा गैर मनी मामलॉ से भी संबधित हो एक फाइनेंस विधेयक मे धन प्रावधानॉ के साथ साथ सामान्य विधायन से जुडे मामले भी होते है इस प्रकार के विधेयक को पारित करने की शक्ति दोनो सदनॉ मे समान होती

संविधान संशोधन विधेयक

अनु 367 के अंतर्गत प्रस्तावित बिल जो कि संविधान के एक या अधिक प्रस्तावॉ को संशोधित करना चाहता है संशोधन बिल कहलाता है यह किसी भी संसद सदन मे बिना राष्ट्रपति की स्वीकृति के लाया जा सकता है इस विधेयक को सदन द्वारा कुल उपस्थित सदस्यॉ की 2/3 संख्या तथा सदन के कुल बहुमत द्वारा ही पास किया जायेगा दूसरा सदन भी इसे इसी प्रकार पारित करेगा किंतु इस विधेयक को सदनॉ के पृथक सम्मेलन मे पारित किया जायेगा गतिरोध आने की दशा मे जैसा कि सामान्य विधेयक की स्थिति मे होता है सदनॉ की संयुक्त बैठक नही बुलायी जायेगी 24 वे संविधान संशोधन 1971 के बाद से यह अनिवार्य कर दिया गया है कि राष्ट्रपति इस बिल को अपनी स्वीकृति दे ही दे

विधेयक पारित करने में आया गतिरोध

जब संसद के दोनॉ सदनॉ के मध्य बिल को पास करने से संबंधित विवाद हो या जब एक सदन द्वारा पारित बिल को दूसरा अस्वीकृत कर दे या इस तरह के संशोधन कर दे जिसे मूल सदन अस्वीकर कर दे या इसे 6 मास तक रोके रखे तब सदनॉ के मध्य गतिवरोध की स्थिति जन्म लेती है अनु 108 के अनुसार राष्ट्रपति इस दशा मे दोनॉ सदनॉ की संयुक्त बैठक बुला लेगा जिसमे सामान्य बहुमत से फैसला हो जायेगा अब तक मात्र तीन अवसरॉ पे इस प्रकार की बैठक बुलायी गयी है
1. दहेज निषेध एक्ट 1961
2.बैंकिग सेवा नियोजन संशोधन एक्ट 1978
3.पोटा एक्ट 2002
संशोधन के विरूद्ध सुरक्षा उपाय 1. न्यायिक पुनरीक्षा का पात्र है
2.संविधान के मूल ढांचे के विरूद्ध न हो
3. संसद की संशोधन शक्ति के भीतर आता हो
4. संविधान की सर्वोच्चता, विधि का शासन तीनॉ अंगो का संतुलन बना रहे
5. संघ के ढाँचे से जुडा होने पर आधे राज्यॉ की विधायिका से स्वीकृति मिले
6. गठबंधन राजनीति भी संविधान संशोधन के विरूद्ध प्रभावी सुरक्षा उपाय देती है क्योंकि एकदलीय पूर्ण बहुमत के दिन समाप्त हो चुके

अध्यादेश जारी करना

अनु 123 राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति देता है यह तब जारी होगा जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाये कि परिस्थितियाँ ऐसी हो कि तुरंत कार्यवाही करने की जरूरत है तथा संसद का 1 या दोनॉ सदन सत्र मे नही है तो वह अध्यादेश जारी कर सकता है यह अध्यादेश संसद के पुनसत्र के 6 सप्ताह के भीतर अपना प्रभाव खो देगा यधपि दोनो सदनॉ द्वारा स्वीकृति देने पर यह जारी रहेगा

यह शक्ति भी न्यायालय द्वारा पुनरीक्षण की पात्र है किंतु शक्ति के गलत प्रयोग या दुर्भावना को सिद्ध करने का कार्य उस व्यक्ति पे होगा जो इसे चुनौती दे अध्यादेश जारी करने हेतु संसद का सत्रावसान करना भी उचित हो सकता है क्यॉकि अध्यादेश की जरूरत तुरंत हो सकती है जबकि संसद कोई भी अधिनियम पारित करने मे समय लेती है अध्यादेश को हम अस्थाई विधि मान सकते है यह राष्ट्रपति की विधायिका शक्ति के अन्दर आता है न कि कार्यपालिका वैसे ये कार्य भी वह मंत्रिपरिषद की सलाह से करता है यदि कभी संसद किसी अध्यादेश को अस्वीकार दे तो वह नष्ट भले ही हो जाये किंतु उसके अंतर्गत किये गये कार्य अवैधानिक नही हो जाते है राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति पे नियंत्रण

  • 1. प्रत्येक जारी किया हुआ अध्यादेश संसद के दोनो सदनो द्वारा उनके सत्र शुरु होने के 6 हफ्ते के भीतर स्वीकृत करवाना होगा इस प्रकार कोई अध्यादेश संसद की स्वीकृति के बिना 6 मास + 6 सप्ताह से अधिक नही चल सकता है
  • 2. लोकसभा एक अध्यादेश को अस्वीकृत करने वाला प्रस्ताव 6 सप्ताह की अवधि समाप्त होने से पूर्व पास कर सकती है
  • 3. राष्ट्रपति का अध्यादेश न्यायिक समीक्षा का विषय़ है

संसद मे राष्ट्रपति का अभिभाषण

यह सदैव मंत्रिपरिषद तैयार करती है। यह सिवाय सरकारी नीतियों की घोषणा के कुछ नही होता है। सत्र के अंत मे इस पर धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया जाता है। यदि लोकसभा मे यह प्रस्ताव पारित नही हो पाता है तो यह सरकार की नीतिगत पराजय मानी जाती है तथा सरकार को तुरंत अपना बहुमत सिद्ध करना पडता है। संसद के प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र मे तथा लोकसभा चुनाव के तुरंत पश्चात दोनॉ सदनॉ की सम्मिलित बैठक को राष्ट्रपति संबोधित करता है। यह संबोधन वर्ष के प्रथम सत्र का परिचायक है। इन सयुंक्त बैठकों का सभापति खुद राष्ट्रपति होता है
अभिभाषण मे सरकार की उपलब्धियॉ तथा नीतियॉ का वर्णन तथा समीक्षा होती है (जो पिछले वर्ष मे हुई थी) आतंरिक समस्याओं से जुडी नीतियाँ भी इसी मे घोषित होती है। प्रस्तावित विधायिका कार्यवाहिया जो कि संसद के सामने उस वर्ष के सत्रॉ मे लानी हो का वर्णन भी अभिभाषण मे होता है। अभिभाषण के बाद दोनो सद्न पृथक बैठक करके उस पर चर्चा करते है जिसे पर्यापत समय दिया जाता है

वित्त व्यवस्था पर संसद का नियंत्रण

अनु 265 के अनुसार कोई भी कर कार्यपालिका द्वारा बिना विधि के अधिकार के न तो आरोपित किया जायेगा और न ही वसूला जायेगा। अनु 266 के अनुसार भारत की समेकित निधि से कोई धन व्यय /जमा भारित करने से पूर्व संसद की स्वीकृति जरूरी है।
अनु 112 के अनुसार राष्ट्रपति भारत सरकार के वार्षिक वित्तीय लेखा को संसद के सामने रखेगा यह वित्तीय लेखा ही बजट है

बजट

बजट सरकार की आय व्यय का विवरण पत्र है।
1. अनुमानित आय व्यय जो कि भारत सरकार ने भावी वर्ष मे करना हो
2. यह भावी वर्ष के व्यय के लिये राजस्व उगाहने का वर्णन करता है
3. बजट मे पिछले वर्ष के वास्तविक आय व्यय का विवरण होता है
बजट सामान्यत वित्तमंत्री द्वारा सामान्यतः फरवरी के पहले दिन लोकसभा मे प्रस्तुत किया जाता है उसी समय राज्यसभा मे भी बजट के कागजात रखे जाते है यह एक धन बिल है।
बजट में सामान्यतः-
१- पिछले वर्ष के वास्तविक अनुमान,
२- वर्तमान वर्ष के संशोधित अनुमान,
३- आगामी वर्ष के प्रस्तावित अनुमान
प्रस्तुत किए जाते है। अतः बजट का संबंध 3 वर्ष के आकडो़ से होता है।

कटौती प्रस्ताव

—बजट प्रक्रिया का ही भाग है केवल लोकसभा मे प्रस्तुत किया जाता है ये वे उपकरण है जो लोकसभा सदस्य कार्यपालिका पे नियंत्रण हेतु उपयोग लाते है ये अनुदानॉ मे कटौती कर सकते है इसके तीन प्रकार है

1.नीति सबंधी कटौती--- इस प्रस्ताव का ल्क्ष्य लेखानुदान संबंधित नीति की अस्वीकृति है यह इस रूप मे होती है ‘-------‘ मांग को कम कर मात्र 1 रुपया किया जाता है यदि इस प्रस्ताव को पारित कर दिया जाये तो यह सरकार की नीति संबंधी पराजय मानी जाती है उसे तुरंत अपना विश्वास सिद्ध करना होता है

2. किफायती कटौती--- भारत सरकार के व्यय को उससीमा तक कम कर देती है जो संसद के मतानुसार किफायती होगी यह कटौती सरकार की नीतिगत पराजय नहीं मानी जाती है

3. सांकेतिक कटौती--- इन कटौतीयों का ल्क्ष्य संसद सदस्यॉ की विशेष शिकायतें जो भारत सरकार से संबंधित है को निपटाने हेतु प्रयोग होती है जिसके अंतर्गत मांगे गये धन से मात्र 100 रु की कटौती की जाती है यह कटौती भी नीतिगत पराजय नही मानी जाती है

लेखानुदान (वोट ओन अकाउंट)

अनु 116 इस प्रावधान का वर्णन करता है इसके अनुसार लोकसभा वोट ओन अकाउंट नामक तात्कालिक उपाय प्रयोग लाती है इस उपाय द्वारा वह भारत सरकार को भावी वित्तीय वर्ष मे भी तब तक व्यय करने की छूट देती है जब तक बजट पारित नही हो जाता है यह सामान्यत बजट का अंग होता है किंतु यदि मंत्रिपरिषद इसे ही पारित करवाना चाहे तो यही अंतरिम बजट बन जाता है जैसा कि 2004 मे एन.डी.ए. सरकार के अंतिम बजट के समय हुआ था फिर बजट नयी यू.पी.ए सरकार ने पेश किया था
वोट ओन क्रेडिट [प्रत्यानुदान] लोकसभा किसी ऐसे व्यय के लिये धन दे सकती है जिसका वर्णन किसी पैमाने या किसी सेवा मद मे रखा जा सक्ना संभव ना हो मसलन अचानक युद्ध हो जाने पे उस पर व्यय होता है उसे किस शीर्षक के अंतर्गत रखे?यह लोकसभा द्वारा पारित खाली चैक माना जा सकता है आज तक इसे प्रयोग नही किया जा सका है
जिलेटीन प्रयोग—समयाभाव के चलते लोकसभा सभी मंत्रालयों के व्ययानुदानॉ को एक मुश्त पास कर देती है उस पर कोई चर्चा नही करती है यही जिलेटीन प्रयोग है यह संसद के वित्तीय नियंत्रण की दुर्बलता दिखाता है

संसद मे लाये जाने वाले प्रस्ताव

अविश्वास प्रस्ताव

लोकसभा के क्रियांवयन नियमॉ मे इस प्रस्ताव का वर्णन है विपक्ष यह प्रस्ताव लोकसभा मे मंत्रिपरिषद के विरूद्ध लाता है इसे लाने हेतु लोकसभा के 50 सद्स्यॉ का समर्थन जरूरी है यह सरकार के विरूद्ध लगाये जाने वाले आरोपॉ का वर्णन नही करता है केवल यह बताता है कि सदन मंत्रिपरिषद मे विश्वास नही करता है एक बार प्रस्तुत करने पर यह प्रस्ताव् सिवाय धन्यवाद प्रस्ताव के सभी अन्य प्रस्तावॉ पर प्रभावी हो जाता है इस प्रस्ताव हेतु पर्याप्त समय दिया जाता है इस पर् चर्चा करते समय समस्त सरकारी कृत्यॉ नीतियॉ की चर्चा हो सकती है लोकसभा द्वारा प्रस्ताव पारित कर दिये जाने पर मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को त्याग पत्र सौंप देती है संसद के एक सत्र मे एक से अधिक अविश्वास प्रस्ताव नही लाये जा सकते है

विश्वास प्रस्ताव--- लोकसभा नियमॉ मे इस प्रस्ताव का कोई वर्णन नही है यह आवश्यक्तानुसार उत्पन्न हुआ है ताकि मंत्रिपरिषद अपनी सत्ता सिद्ध कर सके यह सदैव मंत्रिपरिषद लाती है इसके गिरजाने पर उसे त्याग पत्र देना पडता है

निंदा प्रस्ताव--- लोकसभा मे विपक्ष यह प्रस्ताव लाकर सरकार की किसी विशेष नीति का विरोध/निंदा करता है इसे लाने हेतु कोई पूर्वानुमति जरूरी नही है यदि लोकसभा मे पारित हो जाये तो मंत्रिपरिषद निर्धारित समय मे विश्वास प्रस्ताव लाकर अपने स्थायित्व का परिचय देती है है उसके लिये यह अनिवार्य है।

कामरोको प्रस्ताव--- लोकसभा मे विपक्ष यह प्रस्ताव लाता है यह एक अद्वितीय प्रस्ताव है जिसमे सदन की समस्त कार्यवाही रोक कर तात्कालीन जन मह्त्व के किसी एक मुद्दे को उठाया जाता है प्रस्ताव पारित होने पर सरकार पे निंदा प्रस्ताव के समान प्रभाव छोडता है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Unequal democracy: South gets more seats in Lok Sabha
  2. "लोक सभा के संबंध में बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्न". राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केन्द्र. २१ दिसम्बर २००९. अभिगमन तिथि २ दिसम्बर २०१२.
  3. "Lok Sabha Introduction". राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केन्द्र, भारत सरकार. अभिगमन तिथि 2008-09-22.

बाहरी कड़ियाँ

Lok sabha